भारत के खिलौना उद्योग का भविष्य | 15 May 2024

प्रिलिम्स के लिये:

भारत का खिलौना उद्योग, वैश्विक व्यापार अनुसंधान पहल रिपोर्ट, अंतर्राष्ट्रीय मानक संगठन (ISO), भारतीय मानक ब्यूरो (BIS)

मेन्स के लिये:

भारत के खिलौना उद्योग के लिये रणनीति

स्रोत: ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव     

चर्चा में क्यों?

हाल ही में ‘ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव' रिपोर्ट में भारत के खिलौना उद्योग को विकसित करने और निर्यात बढ़ाने के लिये एक व्यापक रणनीति का प्रस्ताव दिया गया है।

  • इसका उद्देश्य गुणवत्ता में सुधार, नवाचार को बढ़ावा देने के साथ-साथ बाज़ार पहुँच का विस्तार करने पर केंद्रित रणनीतिक हस्तक्षेपों को लागू करके भारत को खिलौना निर्माण और निर्यात के लिये एक वैश्विक केंद्र के रूप में स्थापित करना है।

भारत के खिलौना उद्योग की स्थिति और क्षमता:

  • स्थिति:
    • ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव रिपोर्ट के अनुसार, भारत वैश्विक खिलौना व्यापार में सीमांत स्थिति रखता है, निर्यात में केवल 0.3% हिस्सेदारी और आयात में 0.1% हिस्सेदारी है।
    • वैश्विक खिलौना निर्यात में भारत केवल 0.3% की हिस्सेदारी के साथ 27वें स्थान पर है और खिलौना आयात में 61वें स्थान पर है, जिसका कुल आयात 60 मिलियन अमेरिकी डॉलर है।
  • भारत अन्य श्रेणियों की तुलना में इलेक्ट्रॉनिक खिलौनों की एक बड़ी मात्रा का निर्यात करता है, साथ ही प्लास्टिक गुड़िया, धातु और अन्य गैर-इलेक्ट्रॉनिक खिलौनों के निर्यात के माध्यम से खिलौना व्यापार में महत्त्वपूर्ण योगदान देता है, जो इसकी विविध विनिर्माण क्षमताओं को उजागर करता है। 
  • संभावना:
    • भारतीय खिलौना उद्योग वैश्विक स्तर पर सबसे तेज़ी से बढ़ने वाले उद्योगों में से एक है, जिसके वर्ष 2028 तक 3 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँचने का अनुमान है, जो 2022-28 के बीच 12% की CAGR से बढ़ रहा है।
    • मध्य पूर्व और अफ्रीकी देशों में उच्च मूल्य के निर्यात में वृद्धि के साथ, भारतीय खिलौना उद्योग अपनी वैश्विक उपस्थिति का विस्तार कर रहा है।

वैश्विक खिलौना उद्योग:

  • ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव रिपोर्ट के अनुसार 2022 में, वैश्विक खिलौना बाज़ार में लगभग 60.3 बिलियन अमेरिकी डॉलर का आयात किया गया, जिसमें चीन 48.3 बिलियन अमेरिकी डॉलर के निर्यात के साथ सबसे आगे रहा, जो वैश्विक निर्यात का 80% प्रतिनिधित्व करता है।
  • संयुक्त राज्य अमेरिका खिलौनों के सबसे बड़े आयातक के रूप में अग्रणी है, जबकि अन्य प्रमुख आयातकों में यूरोपीय संघ, जापान, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, मैक्सिको और दक्षिण कोरिया शामिल हैं जो एक विविध बाज़ार का प्रतीक हैं।

भारत के खिलौना उद्योग के सामने क्या चुनौतियाँ हैं?

  • प्रौद्योगिकी की कमी: यह कमी भारतीय खिलौना उद्योग में बाधा उत्पन्न करती है, जिससे अधिकांश घरेलू निर्माता पुरानी तकनीक और मशीनरी का उपयोग करते हैं, जिससे खिलौनों की गुणवत्ता एवं डिज़ाइन प्रभावित होते हैं।
  • उच्च GST दरें: मैकेनिकल खिलौनों पर 12% GST लगता है जबकि इलेक्ट्रॉनिक खिलौनों पर कर 18% है। मात्र एक बल्ब या ध्वनि तंत्र जोड़ने से खिलौने का वर्गीकरण परिवर्तित हो जाता है।
  • बुनियादी ढाँचे की कमी: भारत में खिलौना उद्योग को निम्न बुनियादी ढाँचे, एंड-टू-एंड विनिर्माण सुविधाओं की कमी, अपर्याप्त परीक्षण प्रयोगशालाओं, खिलौना पार्कों की कमी, क्लस्टर और लॉजिस्टिक्स समर्थन के कारण चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
  • असंगठित और खंडित: भारतीय खिलौना उद्योग वर्तमान में भी खंडित है, 90% बाज़ार असंगठित है और अधिकतम लाभ प्राप्त करना बहुत मुश्किल हो जाता है।
  • अन्य चुनौतियाँ: लागत-प्रभावशीलता, उत्पाद विविधता, गुणवत्ता मानक और व्यापार समझौते जैसे कारक वैश्विक खिलौना व्यापार परिदृश्य को आकार देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
    • उपभोक्ता प्राथमिकताओं में बदलाव, तकनीकी प्रगति और नियामक परिवर्तन भी बाज़ार की गतिशीलता को प्रभावित करते हैं।

स्थानीय खिलौना उद्योग को बढ़ावा देने के लिये भारत सरकार के उपाय:

  • आयात शुल्क में वृद्धि: भारत ने खिलौनों पर आयात शुल्क में उल्लेखनीय वृद्धि की, जुलाई 2021 में मूल सीमा शुल्क को 20% से बढ़ाकर 70% कर दिया। 
    • इससे आयातित खिलौने बहुत महँगे हो गए, जिससे स्थानीय रूप से उत्पादित खिलौनों को प्रतिस्पर्धात्मक लाभ मिला।
  • गुणवत्ता नियंत्रण आदेश (QCO): जनवरी 2021 से QCO ने भारत में बेचे जाने वाले सभी खिलौनों को विशिष्ट भारतीय सुरक्षा मानकों को पूरा करने के लिये बाध्य किया है, इन मानकों में में तेज़ किनारों, छोटे भागों के खतरों, ज्वलनशीलता और हानिकारक रासायनिक प्रवासन जैसे पहलुओं को शामिल किया गया है। 
    • खिलौनों पर BIS प्रमाणीकरण चिह्न भी होना चाहिये और इन्हें NABL- मान्यता प्राप्त प्रयोगशालाओं में यादृच्छिक जाँच एवं परीक्षण से भी गुज़रना होगा।
    • QCO द्वारा चीन से होने वाले निम्न गुणवत्ता वाले खिलौने के आयात को तो रोका गया, लेकिन इससे भारतीय खिलौनों के निर्यात को बढ़ावा नहीं मिला।
  • खिलौनों के लिये राष्ट्रीय कार्य योजना: भारत सरकार की एक पहल, इसमें 15 मंत्रालयों के बीच सहयोग शामिल है और इसमें खिलौना उत्पादन क्लस्टर बनाना, विनिर्माण एवं निर्यात को प्रोत्साहित करने के लिये योजनाएँ शुरू करना, अनुसंधान व विकास को बढ़ावा देना, गुणवत्ता मानकों को सुनिश्चित करना, खिलौनों को शिक्षा के साथ एकीकृत करना तथा खिलौना मेलों और प्रदर्शनियों का आयोजन करना जैसे उपाय शामिल हैं।

नोट:

  • खिलौने की गुणवत्ता मानकों को पूरा करने से निर्धारित होती है, जो स्वैच्छिक या अनिवार्य हो सकती है।
  • भारत में गुणवत्ता नियंत्रण आदेश, 2020 एक अनिवार्य तकनीकी विनियमन है।
  • अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अंतर्राष्ट्रीय मानकीकरण संगठन (ISO) द्वारा मानक निर्धारित किये जाते हैं, जबकि भारत में भारतीय मानक ब्यूरो (Bureau of Indian Standards- BIS) खिलौनों के लिये विशिष्ट मानक निर्धारित करता है, जिसमें यांत्रिक सुरक्षा तथा ज्वलनशीलता जैसे पहलुओं को शामिल किया जाता है।

आगे की राह:

  • सरकारी पहल: MSME मंत्रालय द्वारा शुरू की गई पारंपरिक उद्योगों के उन्‍नयन एवं पुनर्निर्माण के लिये कोष की योजना (SFURTI) जैसी योजनाओं के माध्यम से खिलौना उद्योग का समर्थन करने के साथ-साथ निर्यात को बढ़ावा देना चाहिये, जिससे वैश्विक खिलौना बाज़ार में भारत की उपस्थिति को बढ़ावा मिल सके।
  • वैश्विक खिलौना ब्रांडों को भारत में विनिर्माण हेतु प्रोत्साहित करना: अंतर्राष्ट्रीय खिलौना निर्माताओं को (जो वर्तमान में चीन में कार्यरत हैं) जैसे हैस्ब्रो, मैटल, लेगो, स्पिन मास्टर और MGA एंटरटेनमेंट को भारत में उत्पादन केंद्र स्थापित करने हेतु आमंत्रित किया जाना चाहिये।
    • प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और कौशल विकास के लिये अंतर्राष्ट्रीय भागीदारों के साथ सहयोग से वैश्विक खिलौना व्यापार में भारत की प्रतिस्पर्धात्मकता को बढ़ावा मिल सकता है।
  • चीन से प्रेरित होना: भारतीय खिलौना उद्योग का अनुमानित मूल्य 3 बिलियन अमेरिकी डॉलर है, जबकि चीन में यह 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर है।
    • शुरुआत में निम्न-मानक और असुरक्षित खिलौनों की आपूर्ति करने के बावज़ूद संयुक्त राज्य अमेरिका, यूरोपीय संघ, जापान आदि जैसे देशों के प्रमुख बाज़ारों के लिये प्रमुख निर्यातक बनने की चीन की सफलता का भारत को अध्ययन करना चाहिये।
  • उत्पादन हेतु इनपुट को स्थानीय स्तर पर प्रदान करना: आत्मनिर्भरता बढ़ाने तथा लागत कम करने के लिये मोती, नकली पत्थर, प्लास्टिक, इलेक्ट्रिक मोटर और रिमोट कंट्रोल डिवाइस जैसी आवश्यक खिलौना बनाने वाली सामग्रियों के स्थानीय विनिर्माण को बढ़ावा देना चाहिये जिससे आयात पर निर्भरता में भी कमी आएगी।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. भारतीय खिलौना उद्योग के सामने आने वाली चुनौतियों पर चर्चा करें और उनसे निपटने के लिये संभावित रणनीतियों का मूल्यांकन करें। घरेलू खिलौना क्षेत्र की वृद्धि और प्रतिस्पर्धात्मकता को बढ़ावा देने के लिये भारत सरकार एवं उद्योग हितधारक कैसे सहयोग कर सकते हैं?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न   

प्रिलिम्स:

प्रश्न. विनिर्माण क्षेत्र के विकास को बढ़ावा देने के लिये भारत सरकार की हाल की नीतिगत पहल क्या है/हैं? (2012)

  1. राष्ट्रीय निवेश और विनिर्माण क्षेत्र की स्थापना
  2.  'सिंगल विंडो क्लीयरेंस' का लाभ प्रदान करना
  3.  प्रौद्योगिकी अधिग्रहण और विकास कोष की स्थापना

नीचे दिये गये कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (d)


मेन्स:

प्रश्न. 'भारत में बनाइये' कार्यक्रम की सफलता, 'कौशल भारत' कार्यक्रम और आमूल श्रम सुधारों की सफलता पर निर्भर करती है।" तर्कसम्मत दलीलों के साथ चर्चा कीजिये। (2015)