स्वयं सहायता समूह | 22 May 2024
प्रिलिम्स के लिये:कुदुम्बश्री मिशन, स्वयं सहायता समूह (SHG), राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड), राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (NRLM), दीन दयाल अंत्योदय योजना-राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (DAY-NRLM), SHG-बैंक लिंकेज प्रोग्राम (SBLP), वित्तीय समावेशन मिशन (MFI), ई-शक्ति परियोजना मेन्स के लिये:वित्तीय समावेशन, महिला सशक्तीकरण, माइक्रोफाइनेंस, सामुदायिक विकास, गरीबी उन्मूलन, स्वयं सहायता समूह |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
हाल ही में केरल में स्वयं सहायता समूह कुदुम्बश्री मिशन की 26वीं वर्षगाँठ मनाई गई।
- वर्ष 1998 में स्थापित, कुदुम्बश्री में वर्तमान में तीन लाख नेबरहुड ग्रुप में 46.16 लाख सदस्य शामिल हैं, जो मूल रूप से महिलाओं के उद्यमों पर केंद्रित था, लेकिन अब कानूनी सहायता, परामर्श, ऋण, सांस्कृतिक जुड़ाव और आपदा राहत प्रयासों में भाग लेने की पेशकश कर रहा है।
स्वयं सहायता समूह (SHGs) क्या है?
- परिचय:
- स्वयं सहायता समूह को समान सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि वाले और सामूहिक रूप से एक सामान्य उद्देश्य को पूरा करने के इच्छुक लोगों के स्व-शासित, सहकर्मी-नियंत्रित सूचना समूह के रूप में परिभाषित किया जा सकता है।
- एक SHG में आमतौर पर समान आर्थिक दृष्टिकोण और सामाजिक स्थिति वाले कम-से-कम पाँच व्यक्ति (अधिकतम बीस) शामिल होते हैं।
- भारत में स्वयं सहायता समूहों की उत्पत्ति:
- प्रारंभिक प्रयास (1970 से पूर्व): सामूहिक कार्रवाई और आपसी सहयोग के लिये विशेष रूप से महिलाओं के बीच अनौपचारिक SHG के उदाहरण थे।
- SEWA (1972): इलाबेन भट्ट द्वारा स्थापित स्व-रोज़गार महिला संघ (Self-Employed Women's Association- SEWA) को अक्सर एक निर्णायक क्षण माना जाता है।
- इसने गरीब और स्व-रोज़गार महिला श्रमिकों को संगठित किया, आय सृजन एवं समर्थन के लिये एक मंच प्रदान किया।
- MYRADA और पायलट कार्यक्रम (1980 के दशक के मध्य): 1980 के दशक के मध्य में, मैसूर पुनर्वास और क्षेत्र विकास एजेंसियों (MYRADA) ने निर्धनों, विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों की महिलाओं को ऋण प्रदान करने के लिये एक माइक्रोफाइनेंस रणनीति के रूप में SHG की शुरुआत की।
- NABARD एवं SHG-बैंक लिंकेज (1992): राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (National Bank for Agriculture and Rural Development- NABARD) ने वर्ष 1992 में SHG-बैंक लिंकेज कार्यक्रम शुरू किया।
- इस पहल ने SHG को औपचारिक बैंकिंग संस्थानों से जोड़ा गया, जिससे विभिन्न समूहों के लिये ऋण और वित्तीय सेवाओं तक पहुँच संभव हो गई।
- सरकारी मान्यता (1990-वर्तमान): 1990 के दशक से, सरकार ने स्वर्ण जयंती ग्राम स्वरोज़गार योजना (SGSY) और राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (National Rural Livelihoods Mission- NRLM) जैसी विभिन्न योजनाओं के माध्यम से SHG को सक्रिय रूप से समर्थन दिया है।
- इन पहलों ने भारत में SHG आंदोलन की पहुँच और प्रभाव में काफी विस्तार किया है।
- SHG को समर्थन देने वाली सरकारी पहल और नीतियाँ:
महिलाओं पर SHG का क्या प्रभाव रहा है?
- आर्थिक सशक्तीकरण:
- SHG ने महिलाओं की माइक्रोफाइनेंस और ऋण तक पहुँच में उल्लेखनीय सुधार किया है।
- SHG ने महिलाओं के बीच आय सृजन गतिविधियों और उद्यमिता को सुविधाजनक बनाया है तथा कई महिलाओं एवं उनके परिवारों के लिये आय व आर्थिक स्थिरता में वृद्धि की है।
- SHG ने किफायती वित्तीय सेवाओं तक पहुँच प्रदान करके, उच्च लागत वाले अनौपचारिक ऋणों पर निर्भरता कम करके गरीबी उन्मूलन और वित्तीय समावेशन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
- महिला एजेंसी और सशक्तीकरण:
- SHG महिलाओं को नेतृत्व क्षमता प्रदान करने के साथ पारंपरिक लिंग मानदंडों को चुनौती देने तथा अपने समुदायों में प्रभावी भूमिका निभाने के लिये सशक्त बनाते हैं।
- परिवार और समाज पर प्रभाव:
- SHG ने महिलाओं को अधिक सम्मान और निर्णय लेने की शक्ति देकर सशक्त बनाया है, जिससे अधिक न्यायसंगत पारिवारिक संबंधों को बढ़ावा मिला है।
- SHG ने स्थानीय शासन में महिलाओं के प्रतिनिधित्व और नेतृत्व की भूमिका में भी वृद्धि की है।
- SHG ने महिलाओं को आर्थिक रूप से सशक्त बनाकर और एक सहायक नेटवर्क प्रदान करके घरेलू हिंसा जैसे सामाजिक मुद्दों को कम करने में भूमिका निभाई है।
- SHG ने महिलाओं को अधिक सम्मान और निर्णय लेने की शक्ति देकर सशक्त बनाया है, जिससे अधिक न्यायसंगत पारिवारिक संबंधों को बढ़ावा मिला है।
SHG के समक्ष चुनौतियाँ और रुकावटें क्या हैं?
- प्रारंभिक समर्थन से परे SHG पहल की स्थिरता: SHG की दीर्घकालिक व्यवहार्यता निरंतर बाह्य समर्थन और प्रभावी आंतरिक प्रबंधन पर निर्भर करती है जिसके लिये मज़बूत नेतृत्व, सामुदायिक समर्थन एवं परिचालन लागत को कवर करने के लिये पर्याप्त राजस्व उत्पन्न करने की क्षमता की आवश्यकता होती है।
- बाह्य सहायता पर निर्भरता और अत्यधिक निर्भरता के मुद्दे: SHG को बाह्य सहायता पर निर्भरता के कारण महत्त्वपूर्ण चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, जो विशेष रूप से आपदा प्रभावित क्षेत्रों में उनकी आत्मनिर्भरता और दीर्घकालिक व्यवहार्यता में बाधा उत्पन्न कर सकता है।
- अंतर्विभागीय चुनौतियों को संबोधित करना: SHG को अक्सर जाति, वर्ग और क्षेत्रीय चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, जिससे उनकी प्रभावशीलता एवं समावेशिता प्रभावित होती है, हाशिये पर रहने वाले समूहों को आमतौर पर लाभ का कुछ अंश ही मिल पाता है।
- कृषि गतिविधियाँ: अधिकांश स्वयं सहायता समूह स्थानीय स्तर पर कार्य करते हैं, जो मुख्य रूप से कृषि गतिविधियों में संलग्न हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में SHG को गैर-कृषि व्यवसायों से परिचित कराया जाना चाहिये और उन्हें अत्याधुनिक मशीनरी प्रदान की जानी चाहिये।
- प्रौद्योगिकी का अभाव: कई स्वयं सहायता समूह अपने संचालन में अल्पविकसित या किसी प्रौद्योगिकी का उपयोग नहीं करते हैं।
- बाज़ार तक पहुँच: SHG द्वारा उत्पादित वस्तुओं की अक्सर बड़े बाज़ारों तक पहुँच नहीं होती है।
- अव्यवस्थित बुनियादी ढाँचा: SHG आमतौर पर ग्रामीण और दूरदराज़ के क्षेत्रों में स्थित होते हैं, जहाँ सड़कों या रेलवे के माध्यम से कनेक्टिविटी प्रभावित होती है और बिजली तक सीमित पहुँच होती है।
- राजनीतिकरण: राजनीतिक संबद्धता और हस्तक्षेप SHG के लिये महत्त्वपूर्ण मुद्दे हैं, जो अक्सर समूह संघर्ष का कारण बनते हैं।
आगे की राह
- मानक और दक्षता के लिये प्रौद्योगिकी का लाभ उठाना: प्रौद्योगिकी रिकॉर्ड रखने, वित्तीय लेनदेन और संचार में सहायता करने वाले डिजिटल प्लेटफॉर्म के साथ दक्षता एवं मापनीयता में सुधार करके SHG को काफी हद तक बढ़ा सकती है, जैसा कि नाबार्ड की ई-शक्ति परियोजना जैसी पहल में देखा गया है।
- औपचारिक वित्तीय संस्थानों के साथ संबंधों को मज़बूत करना: SBLP जैसे कार्यक्रमों के माध्यम से SHG को औपचारिक वित्तीय संस्थानों से जोड़ने से उनकी स्थिरता बढ़ती है, अनौपचारिक उधारदाताओं पर निर्भरता कम होती है और वित्तीय समावेशन को बढ़ावा मिलता है।
- SHG गतिविधियों में पर्यावरणीय स्थिरता को एकीकृत करना: SHG का पर्यावरणीय स्थिरता का एकीकरण लचीलेपन और व्यापक सतत् विकास लक्ष्यों को बढ़ावा देता है।
- समावेशिता के लिये जागरूकता: SHG को समान भागीदारी और लाभ-बँटवारे के लिये, भेदभाव संबंधी चिंताओं को दूर करने के लिये, सदस्यों की सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि पर विचार करते हुए एक समावेशी दृष्टिकोण अपनाने के लिये प्रोत्साहित किया जाना चाहिये।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. भारत में सामाजिक-आर्थिक सशक्तीकरण को बढ़ावा देने में स्वयं सहायता समूहों (SHG) के सामने आने वाली चुनौतियों पर चर्चा करें और इन बाधाओं को दूर करने के उपाय सुझाएँ। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नमेन्स:प्रश्न. स्वयं सहायता समूहों की वैधता एवं जवाबदेही और उनके संरक्षक, सूक्ष्म-वित्तपोषक इकाइयों का, इस अवधारणा की सतत् सफलता के लिये योजनाबद्ध आकलन व संवीक्षण आवश्यक है। विवेचना कीजिये। (2013) |