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भारतीय राजनीति

सर्वोच्च न्यायालय द्वारा यूपी मदरसा अधिनियम, 2004 को मान्यता

  • 07 Nov 2024
  • 16 min read

प्रिलिम्स के लिये:

सर्वोच्च न्यायालय, उच्च न्यायालय, राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (NCERT), अनुच्छेद 14, अनुच्छेद 15, शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009, अनुच्छेद 21A, अरुणा रॉय बनाम भारत संघ 2002, अनुच्छेद 28, लोकतंत्र, संघवाद, पंथनिरपेक्षता, राज्य विधानमंडल, समवर्ती सूची, अनुच्छेद 30

मेन्स के लिये:

पंथनिरपेक्ष लोकतंत्र में अल्पसंख्यक अधिकारों एवं गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के बीच संतुलन।

स्रोत: बिज़नेस स्टैण्डर्ड

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम, 2004 की संवैधानिक वैधता को आंशिक रूप से मान्यता दी तथा इलाहाबाद उच्च न्यायालय के उस फैसले के विपरीत दृष्टिकोण रखा, जिसमें इसे असंवैधानिक घोषित किया गया था।

सर्वोच्च न्यायालय ने यूपी मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम, 2004 को मान्यता क्यों दी है?

  • संवैधानिक वैधता: मदरसा अधिनियम, 2004 शिक्षा के मानकों को प्रभावी ढंग से विनियमित करने पर केंद्रित है, जो राज्य के दायित्व के अनुरूप है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि समाज में छात्र सक्रिय रूप से भाग लेने के लिये योग्य हो सकें।
  • विधायी आधार: सर्वोच्च न्यायालय ने पुष्टि की कि मदरसा अधिनियम राज्य विधानमंडल की विधायी क्षमता (विशेष रूप से संविधान की समवर्ती सूची के तहत प्राप्त अधिकार) के अनुरूप है।
  • धार्मिक शिक्षा बनाम धार्मिक निर्देश: न्यायालय ने धार्मिक शिक्षा और धार्मिक निर्देश के बीच अंतर स्पष्ट किया। 
    • अरुणा रॉय बनाम भारत संघ, 2002 में न्यायालय ने सांप्रदायिक सद्भाव को बढ़ावा देने वाली धार्मिक शिक्षा को स्वीकार्य बताया जबकि अनिवार्य पूजा जैसी धार्मिक शिक्षा अनुच्छेद 28 के तहत राज्य-मान्यता प्राप्त संस्थानों में निषिद्ध है।  
  • मूल ढाँचा के प्रति संरक्षा: किसी विधि की संवैधानिक वैधता को संविधान के मूल ढाँचे के उल्लंघन के रूप में चुनौती नहीं दी जा सकती (इंदिरा नेहरू गांधी बनाम राज नारायण केस, 1975 )। पंथनिरपेक्षता से संबंधित संवैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन होने पर विधि को असंवैधानिक घोषित किया जाएगा
    • लोकतंत्र, संघवाद और पंथनिरपेक्षता जैसी अपरिभाषित अवधारणाओं का उल्लंघन करने वाले कानूनों को रद्द करने के संदर्भ में न्यायालयों को अधिकार देने से संवैधानिक न्यायनिर्णयन में  अनिश्चितता पैदा होती है।
  • राज्य विनियमन: न्यायालय ने कहा कि राज्य सरकार अधिनियम के तहत नियम बना सकती है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि मदरसे पंथनिरपेक्षता का उल्लंघन किये बिना धार्मिक शिक्षा के साथ-साथ पंथनिरपेक्ष शिक्षा दे सकें।
  • अल्पसंख्यक अधिकार और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा: राज्य को यह सुनिश्चित करने के लिये उपयुक्त निर्देश देने चाहिये कि मदरसों में पढ़ने वाले छात्र राज्य द्वारा अन्य संस्थानों में उपलब्ध कराई जाने वाली गुणवत्तापूर्ण शिक्षा से वंचित न हों।
  • अल्पसंख्यक अधिकार: इस अधिनियम को बरकरार रखते हुए न्यायालय ने भारतीय संविधान के अनुच्छेद 30 के तहत शैक्षणिक संस्थान स्थापित करने के धार्मिक अल्पसंख्यकों के अधिकार को मज़बूत किया है। 
  • समावेशिता पर बल देना: मदरसा के छात्रों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्राप्त हो सके, यह सुनिश्चित करने के लिये न्यायालय का निर्देश राज्य के व्यापक शैक्षिक ढाँचे के तहत मदरसा शिक्षा के एकीकरण को महत्त्व देने पर केंद्रित है।

इंदिरा नेहरू गांधी बनाम राज नारायण मामला, 1975

  • सर्वोच्च न्यायालय ने पहली बार मूल ढाँचे के सिद्धांत का प्रयोग राज नारायण मामले, 1975 में एक संवैधानिक संशोधन को रद्द करने के लिये किया था।
  • राज नारायण पीठ के न्यायाधीशों ने साधारण कानून और संविधान संशोधन के बीच अंतर किया था।
    • संवैधानिक संशोधनों का परीक्षण मूल ढाँचे के सिद्धांत के आधार पर किया जाता है, न कि साधारण कानून का।
  • तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश ए.एन. रे ने कहा कि किसी कानून की वैधता के परीक्षण के लिये मूल ढाँचे के सिद्धांत को लागू करना “संविधान को फिर से लिखने” के समान होगा।
    • अन्य न्यायाधीशों ने पाया कि मूल ढाँचा की अवधारणा "अत्यंत अस्पष्ट और अनिश्चित है, जिससे किसी साधारण कानून की वैधता निर्धारित करने का कोई पैमाना नहीं बनता है।
  • न्यायालय ने कहा था कि संविधान संशोधन और सामान्य कानून अलग-अलग क्षेत्रों में कार्य करते हैं और यह अलग-अलग सीमाओं के अधीन हैं।
  • नोट: न्यायालय ने इस बात पर बल देते हुए, कि अल्पसंख्यकों को संविधान के अनुच्छेद 30 के तहत धार्मिक या पंथनिरपेक्ष शिक्षा प्रदान करने के लिये शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना एवं प्रशासन का मौलिक अधिकार है, कहा कि यह अधिकार “पूर्ण नहीं” है।

उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम, 2004 क्या है?

  • परिचय: इसका उद्देश्य उत्तर प्रदेश राज्य में मदरसा शिक्षा को विनियमित करने के साथ औपचारिक बनाना है।
    • इससे यह सुनिश्चित हुआ कि मदरसे निर्धारित शैक्षिक मानकों और मानदंडों के अंतर्गत संचालित हों।
  • मदरसा शिक्षा: इसका उद्देश्य राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (NCERT) द्वारा निर्धारित पंथनिरपेक्ष पाठ्यक्रम के साथ-साथ धार्मिक शिक्षा को एकीकृत करना था तथा औपचारिक शिक्षा को इस्लामी शिक्षाओं के साथ मिश्रित करना था।
  • मदरसा शिक्षा बोर्ड: इस अधिनियम के तहत उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड का गठन किया गया, जिसे राज्य में मदरसा शिक्षा की देखरेख एवं विनियमन का कार्य सौंपा गया।
  • परीक्षा: इसमें मदरसा के छात्रों के लिये परीक्षा आयोजित करने का प्रावधान है, जिसमें 'मौलवी' स्तर (कक्षा 10 के समकक्ष) से ​​लेकर 'फाज़िल' स्तर तक के पाठ्यक्रम शामिल हैं। 

इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम, 2004 को असंवैधानिक क्यों घोषित किया?

  • पंथ निरपेक्षता: इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने पाया कि मदरसा अधिनियम, 2004 सभी स्तरों पर इस्लामी शिक्षा को अनिवार्य बनाकर पंथ निरपेक्षता का उल्लंघन करता है, जबकि आधुनिक विषयों को वैकल्पिक या अनुपस्थित रखा गया है। 
    • सरकार को पंथ निरपेक्ष शिक्षा की अवधारणा को अपनाना चाहिये तथा आधुनिक शिक्षा पर धर्म-आधारित शिक्षा को प्राथमिकता नहीं देनी चाहिये।
  • मौलिक अधिकारों का उल्लंघन: शिक्षा का अधिकार (अनुच्छेद 21A): इस अधिनियम ने अनुच्छेद 21A का उल्लंघन किया, जो 6 से 14 वर्ष की आयु के बच्चों के लिये निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा का प्रावधान करता है। न्यायालय ने इस दावे को असंवैधानिक घोषित कर दिया है कि नाममात्र शुल्क के साथ पारंपरिक शिक्षा संवैधानिक दायित्वों को पूरा करती है।
    • यह अधिनियम मदरसा और मुख्यधारा के स्कूली छात्रों के बीच भेदभाव उत्पन्न कर अनुच्छेद 14 का उल्लंघन करता है।
    •  यह अधिनियम मदरसा छात्रों के लिये पृथक एवं असमान शिक्षा प्रणाली स्थापित करके अनुच्छेद 15 का उल्लंघन करता है।
  • केंद्रीय कानून के साथ असंगत: न्यायालय ने पाया कि मदरसा अधिनियम, 2004 विश्वविद्यालय अनुदान आयोग अधिनियम, 1956 (UGC अधिनियम) के साथ असंगत है।
    • केवल UGC अधिनियम, 1956 के तहत विश्वविद्यालयों या मान्यता प्राप्त विश्वविद्यालय संस्थाओं को ही डिग्री प्रदान करने का अधिकार है।

धार्मिक स्वतंत्रता से संबंधित संवैधानिक प्रावधान: 

  • अनुच्छेद 25: यह अंतःकरण की स्वतंत्रता और धर्म की अबाध रूप से मानने, आचरण और प्रचार की स्वतंत्रता प्रदान करता है।
  • अनुच्छेद 26: यह धार्मिक मामलों के प्रबंधन की स्वतंत्रता देता है।
  • अनुच्छेद 27: यह किसी विशेष धर्म के प्रचार हेतु करों के भुगतान की स्वतंत्रता प्रदान करता है।
  • अनुच्छेद 28: यह कुछ शैक्षणिक संस्थाओं में धार्मिक शिक्षा या धार्मिक पूजा में उपस्थिति के संबंध में स्वतंत्रता देता है।

उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम, 2004 पर सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के क्या निहितार्थ हैं?

  • शिक्षा मानकों का विनियमन: गुणवत्ता बनाए रखने के लिये शिक्षा मानकों को निर्धारित करने में राज्य की भूमिका को सुदृढ़ करता है।
  • अल्पसंख्यक अधिकारों का संरक्षण: यह विधेयक धार्मिक अल्पसंख्यकों के शैक्षणिक संस्थान स्थापित करने के अधिकारों की पुष्टि करता है, बशर्ते वे शैक्षिक मानकों का पालन करता हो।
  • गुणवत्तापूर्ण शिक्षा: संविधान के अनुच्छेद 21A के अनुसार सभी बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्राप्त हो, यह सुनिश्चित करने के लिये राज्य के दायित्व को सुदृढ़ करता है।
  • समावेशिता: व्यापक शैक्षिक ढाँचे में मदरसों के एकीकरण का समर्थन करता है।

निष्कर्ष:

उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम, 2004 को बरकरार रखने का सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय धार्मिक शिक्षा और धर्मनिरपेक्ष मानकों के बीच संतुलन पर जोर देता है। अल्पसंख्यक अधिकारों की पुष्टि करते हुए, यह शिक्षा को विनियमित करने के लिये राज्य के अधिकार को मज़बूत करता है। यह निर्णय देश भर में धार्मिक शिक्षा के विनियमन को प्रभावित कर सकता है, जिससे समावेशिता और गुणवत्ता सुनिश्चित हो सकती है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न: उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम, 2004 पर सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के निहितार्थों का, विशेष रूप से अल्पसंख्यक अधिकारों और धर्मनिरपेक्ष शिक्षा प्रदान करने की राज्य की जिम्मेदारी के संबंध में, परीक्षण कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)  

प्रिलिम्स:

प्रश्न: 26 जनवरी, 1950 को भारत की वास्तविक सांविधानिक स्थिति क्या थी? (2021)

(a) लोकतंत्रात्मक गणराज्य
(b) संपूर्ण प्रभुत्व-संपन्न लोकतंत्रात्मक गणराज्य
(c) संपूर्ण प्रभुत्व-संपन्न पंथनिरपेक्ष लोकतंत्रात्मक गणराज्य
(d) संपूर्ण प्रभुत्व-संपन्न समाजवादी पंथनिरपेक्ष लोकतंत्रात्मक गणराज्य

उत्तर: (b)


प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2020)

  1. भारत का संविधान अपने 'मूल ढाँचे' को संघवाद, पंथनिरपेक्षता, मूल अधिकारों तथा लोकतंत्र के रूप में परिभाषित करता है।
  2. भारत का संविधान, नागरिकों की स्वतंत्रता तथा उन आदर्शों जिन पर संविधान आधारित है,की सुरक्षा हेतु 'न्यायिक पुनरवलोकन' की व्यवस्था करता है। 

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1 
(b) केवल 2
(c) 1 व 2 दोनों 
(d) न तो 1 न ही 2

उत्तर: (d)


मेन्स

प्रश्न: धर्मनिरपेक्षता के नाम पर हमारी सांस्कृतिक प्रथाओं के सामने क्या-क्या चुनौतियाँ हैं? (2019)

प्रश्न: धर्मनिरपेक्षतावाद की भारतीय संकल्पना, धर्मनिरपेक्षतावाद के पाश्चात्य मॉडल से किन-किन बातों में भिन्न है? चर्चा कीजिये। (2018)

प्रश्न: स्वतंत्र भारत में धार्मिकता किस प्रकार सांप्रदायिकता में रूपांतरित हो गई, इसका एक उदाहरण प्रस्तुत करते हुए धार्मिकता एवं सांप्रदायिकता के मध्य विभेदन कीजिये। (2017)

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