भारतीय राजव्यवस्था
प्रयागराज ध्वस्तीकरण मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने उचित प्रक्रिया को बरकरार रखा
- 03 Apr 2025
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प्रिलिम्स के लिये:भारत का सर्वोच्च न्यायालय, अनुच्छेद 21, जिनेवा कन्वेंशन, वैकल्पिक विवाद समाधान मेन्स के लिये:ध्वस्तीकरण अभियानों में कानून की उचित प्रक्रिया का कार्यान्वयन, न्यायिक समीक्षा और भारत में मौलिक अधिकारों का संरक्षण |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने प्रयागराज विकास प्राधिकरण द्वारा वर्ष 2021 में घरों पर बुलडोज़र चलाने की घटना की निंदा करते हुए इसे “अमानवीय और अवैध” बताया तथा प्रत्येक प्रभावित व्यक्ति को 10 लाख रुपए का मुआवज़ा देने का आदेश दिया।
- यह निर्णय राज्य की एकपक्षीय कार्यवाहियों के विरुद्ध आश्रय के अधिकार और मनमाने ढंग से किये जाने वाले ध्वस्तीकरण पर अंकुश लगाने को पुष्ट करता है।
प्रयागराज में ध्वस्तीकरण पर सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय क्या है?
- आश्रय का अधिकार: सर्वोच्च न्यायालय ने दोहराया कि आश्रय का अधिकार अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार का अभिन्न अंग है।
- उचित प्रक्रिया के बिना मनमाने ढंग से ध्वस्तीकरण प्रक्रियागत निष्पक्षता और मानवीय गरिमा दोनों का उल्लंघन है।
- उचित प्रक्रिया का उल्लंघन: सर्वोच्च न्यायालय ने टिप्पणी की कि प्राधिकारी मकान मालिकों को जवाब देने के लिये उचित अवसर प्रदान करने में विफल रहे।
- यह देखा गया कि उत्तर प्रदेश शहरी नियोजन एवं विकास (UPUPD) अधिनियम, 1973 के तहत नोटिस व्यक्तिगत रूप से या पंजीकृत डाक के माध्यम से देने की बजाय केवल चस्पा (Affixed) कर दिये गए थे।
- उदाहरण और कानूनी ढाँचा: सर्वोच्च न्यायालय ने अपने वर्ष 2024 के निर्णय (संरचनाओं के ध्वस्तीकरण के मामले में निर्देशों के संबंध में ) का हवाला दिया, जिसमें "बुलडोज़र न्याय" के खिलाफ दिशानिर्देश दिये गए थे, जिसमें 15 दिन की पूर्व सूचना, उल्लंघनों का स्पष्ट उल्लेख और रहने वालों को ध्वस्तीकरण के आदेशों को चुनौती देने का उचित मौका देना अनिवार्य किया गया था।
- सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि वर्ष 2024 के इस निर्णय से पूर्व भी, UPUPD अधिनियम, 1973 व्यक्तिगत रूप से नोटिस भेजने के वास्तविक प्रयासों को बाध्य करता है।
- सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि 1973 का यूपीयूपीडी अधिनियम, 2024 के इस निर्णय से पूर्व भी न्यायालय ने प्राधिकारियों को याद दिलाया कि विधि के शासन को कायम रखा जाना चाहिये तथा एकपक्षीय कार्यवाहियों को उचित नहीं ठहराया जा सकता।
संपत्ति ध्वस्तीकरण पर न्यायिक निर्णय
- मेनका गांधी बनाम भारत संघ, 1978: सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि कानून न्यायसंगत, निष्पक्ष और उचित होने चाहिये, तथा "कानून की उचित प्रक्रिया" को सुदृढ़ करना चाहिये, जिससे मनमाने ढंग से किये गए ध्वस्तीकरण असंवैधानिक घोषित करना चाहिये।
- ओल्गा टेलिस बनाम बॉम्बे म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन, 1985: सर्वोच्च न्यायालय ने पुष्टि की कि आश्रय का अधिकार अनुच्छेद 21 का भाग है, जिससे उचित प्रक्रिया के बिना ध्वस्तीकरण करना मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है।
- के.टी. प्लांटेशन (P) लिमिटेड बनाम कर्नाटक राज्य मामला, 2011: सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि अनुच्छेद 300-A के तहत संपत्ति से वंचित करने का प्रावधान करने वाला कानून न्यायसंगत, निष्पक्ष और उचित होना चाहिये।
बुलडोज़र न्याय क्या है?
और पढ़ें: बुलडोज़र न्याय
मनमाना ध्वस्तीकरण किस प्रकार विधि सम्मत शासन और मानव अधिकारों को प्रभावित करता है?
- विधि सम्मत शासन पर नकारात्मक प्रभाव: दोषसिद्धि या सुनवाई के बिना, दंड के रूप में की गई ध्वस्तीकरण न्यायपालिका की भूमिका को प्रभावित करती है और कार्यपालिका की कार्रवाई को विधिक जाँच से अधिक महत्त्वपूर्ण बनाती है।
- तत्काल न्याय का उदय: प्रतीकात्मक प्रतिशोध के रूप में मनमाने रूप से ध्वस्तीकरण के लिये बुलडोज़र के उपयोग से न्यायालयों की उपेक्षा होती है और "तत्काल न्याय" की अवधारणा सुदृढ़ होती है, जो विधिक रूप से अनुचित और नैतिक रूप से चिंतनीय है।
- सामूहिक दंड: कथित अपराध के कारण असंबंधित महिलाएँ, बच्चे और वृद्धजन सहित अन्य सदस्य बेघर हो जाते हैं, जो सामूहिक दंड के समान है, तथा जिनेवा सम्मेलनों के तहत अंतर्राष्ट्रीय मानवीय विधि का उल्लंघन है।
- जिनेवा कन्वेंशन (अनुच्छेद 87) के अंतर्गत सामूहिक दंड पर प्रतिषेध है और मनमाने रूप से की गई ध्वस्तीकरण इस मानदंड का उल्लंघन है।
- व्यापक मानवीय प्रभाव: आवासन और भूमि अधिकार नेटवर्क के अनुसार केवल वर्ष 2022-23 में 1.5 लाख से अधिक घर ध्वस्त किये गए और 7.38 लाख लोग विस्थापित हुए, जो व्यवधान के पैमाने को उजागर करता है।
- मनोवैज्ञानिक और आर्थिक परिणाम: अचानक बेघर होने से आजीविका समाप्त हो जाती है, शिक्षा बाधित होती है, तथा विशेष रूप से नगरीय क्षेत्रों के निर्धन और उपांतिकीकृत समुदायों के लिये मानसिक आघात होता है।
मनमाना ध्वस्तीकरण की रोकथाम हेतु क्या किये जाने की आश्यकता है?
- सर्वोच्च न्यायालय के दिशा-निर्देशों का सख्ती से प्रवर्तन: सभी अधिकार क्षेत्रों में एक समान कार्यान्वयन सुनिश्चित करने के लिये वर्ष 2024 के सर्वोच्च न्यायालय के दिशा-निर्देशों को नगरपालिका और राज्य विधियों में संहिताबद्ध किया जाना चाहिये।
- विकास आधारित निष्कासन और विस्थापन पर संयुक्त राष्ट्र के मूल सिद्धांतों और दिशा-निर्देशों जैसे अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अनुरूप निष्कासन और ध्वस्तीकरण प्रक्रियाओं को विनियमित करने के लिये राष्ट्रीय विधान क्रियान्वित करने की आवश्यकता है।
- संस्थागत ढाँचे का सुदृढ़ीकरण: अतिक्रमण और ध्वस्तीकरण से संबंधित विवादों पर निर्णय लेने के लिये समर्पित न्यायाधिकरणों की स्थापना की जानी चाहिये, जिनमें मनमाने कार्यों पर रोक लगाने की शक्ति प्रदान की जानी चाहिये।
- प्रभावित व्यक्तियों के लिये ध्वस्तीकरण आदेशों का विरोध करने हेतु ज़िला स्तर पर फास्ट-ट्रैक प्रणाली विकसित करने की आवश्यकता है।
- ध्वस्तीकरण की कार्यवाही से पहले, अधिभोगी और प्राधिकारियों के बीच विवादों को सौहार्दपूर्ण रूप से निपटाने के लिये मध्यस्थता और पंचनिर्णय जैसे वैकल्पिक विवाद निराकरण (ADR) तंत्रों को बढ़ावा दिया जाना चाहिये।
- पारदर्शिता और जवाबदेही: पारदर्शिता को बढ़ावा देने के लिये सभी नियोजित ध्वस्तीकरण, जारी किये गए नोटिस, अंतिम आदेश और रिकॉर्ड किये गए वीडियो को सूचीबद्ध करने वाला एक ऑनलाइन पोर्टल बनाए रखने की आवश्यकता है।
- यह अनिवार्य किया जाए कि प्रत्येक ध्वस्तीकरण के साथ निरीक्षण रिपोर्ट, ध्वस्तीकरण रिपोर्ट और वीडियो साक्ष्य भी शामिल हों।
- पुनर्वास उपाय: सभी शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में 'पहले पुनर्वास, तत्पश्चात् ध्वस्तीकरण' की नीति अपनाई जानी चाहिये।
- यह सुनिश्चित किया जाए कि विधिक ध्वस्तीकरण से प्रभावित लोगों को प्रधानमंत्री आवास योजना जैसी योजनाओं के तहत वैकल्पिक आवास उपलब्ध कराया जाए और साथ ही आजीविका और मानसिक स्वास्थ्य सहायता भी प्रदान की जाए।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. "मनमाना रूप से ध्वस्तीकरण" की अवधारणा विधि सम्मत शासन और मानव अधिकारों को किस प्रकार प्रभावित करती है? |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष प्रश्नमेन्स:प्रश्न. उन विभिन्न सामाजिक समस्याओं पर चर्चा करें जो भारत में शहरीकरण की तीव्र प्रक्रिया से उत्पन्न हुई हैं। (2013) प्रश्न. ग्रामीण क्षेत्रों में शहरी सुविधाओं का प्रावधान (PURA) का आधार संयोजकता (मेल) स्थापित करने में निहित है। टिप्पणी कीजिये। (2013) |