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भारतीय राजव्यवस्था

समान ध्वस्तीकरण दिशा-निर्देशों की मांग

  • 10 Sep 2024
  • 16 min read

प्रिलिम्स के लिये:

सर्वोच्च न्यायालय, प्रतिकारपरक न्याय, अनुच्छेद 300A, अनुच्छेद 21, जिनेवा कन्वेंशन, विधि का शासन

मेन्स के लिये:

न्यायपालिका, विधि का शासन, ध्वस्तीकरण अभियान और विधि का शासन, ध्वस्तीकरण अभियान के विरुद्ध विधि, निर्णय और मामले।

स्रोत: इंडियन एक्प्रेस 

चर्चा में क्यों? 

भारत के सर्वोच्च न्यायालय (SC) ने हाल ही में संपत्ति/भवन-ध्वस्तीकरण को विनियमित करने के लिये राष्ट्रव्यापी दिशा-निर्देश जारी करने के अपने उद्देश्य की घोषणा की, यह कदम ‘बुलडोजर न्याय’ की प्रथा पर बढ़ती चिंताओं से प्रेरित है।

  • SC का हस्तक्षेप मनमाने और संभावित रूप से अन्यायपूर्ण ध्वस्तीकरण को रोकने के लिये मानकीकृत उचित प्रक्रिया की बढ़ती आवश्यकता को उजागर करता है।

नोट: 

  • बुलडोजर न्याय, एक शब्द है जो प्रायः अपराधों के आरोपी लोगों की संपत्तियों/भवनों/प्रतिष्ठानों को कभी-कभी उचित कानूनी प्रक्रियाओं का पालन किये बिना ध्वस्त करने की प्रथा को संदर्भित करता है।
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सर्वोच्च न्यायालय संपत्ति-ध्वस्तीकरण पर क्यों विचार कर रहा है?

  • इस निर्णय का संदर्भ: सर्वोच्च न्यायालय का यह निर्णय व्यापक रूप से ऐसी रिपोर्टों के बीच आया है कि संपत्ति-ध्वस्तीकरण को दंडात्मक न्याय (जिसे प्रतिशोधात्मक न्याय भी कहा जाता है) के रूप में प्रयोग किया जा रहा है।
    • स्थानीय राज्य सरकारों ने अपराध के आरोपी व्यक्तियों की संपत्ति को ध्वस्त करने के लिये बुलडोजर का सहारा लिया है, जो प्रायः स्थापित कानूनी प्रक्रियाओं को दरकिनार कर देते हैं।
  • सर्वोच्च न्यायालय की प्रतिक्रिया: सर्वोच्च न्यायालय ने इस बात पर ज़ोर दिया कि केवल आरोपों या दोषसिद्धि के आधार पर संपत्ति को ध्वस्त करना उचित प्रक्रिया और प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन है। इस प्रथा ने इसकी वैधता और निष्पक्षता के संदर्भ में चिंताएँ उत्पन्न की हैं।
    • सर्वोच्च न्यायालय ने उचित कानूनी प्रक्रियाओं के बिना संपत्ति को ध्वस्त करने की प्रथा की आलोचना की। उन्होंने इस बात पर ज़ोर देते हुए कहा कि दोषसिद्धि भी कानूनी मानदंडों का पालन किये बिना ध्वस्तीकरण को उचित नहीं ठहराती है।
    • सर्वोच्च न्यायालय ने बताया कि सभी राज्यों में निष्पक्ष और लगातार ध्वस्तीकरण सुनिश्चित करने के लिये दिशा-निर्देशों की आवश्यकता है, विशेषकर अनधिकृत निर्माणों से जुड़े मामलों में।

दिशा-निर्देश ध्वस्तीकरण प्रथाओं को किस प्रकार प्रभावित करेंगे?

  • अखिल भारतीय दिशा-निर्देश: सर्वोच्च न्यायालय ने यह सुनिश्चित करने के लिये देश भर में लागू होने वाले व्यापक दिशा-निर्देश स्थापित करने की योजना बनाई है कि ध्वस्तीकरण कानूनी प्रक्रियाओं के अनुसार किया जाए।
    • ये दिशा-निर्देश नोटिस अवधि, कानूनी प्रतिक्रियाओं के अवसर और दस्तावेज़ीकरण आवश्यकताओं जैसे पहलुओं को कवर करेंगे।
  • मनमाने कार्यों को नियंत्रित करना: दिशा-निर्देशों का उद्देश्य मनमाने ढंग से किये जाने वाले ध्वस्तीकरण जो न्यायेतर कारणों से प्रेरित हो सकते हैं, को रोकना है। प्रक्रियाओं को मानकीकृत करके, सर्वोच्च न्यायालय को ध्वस्तीकरण प्रथाओं के दुरुपयोग को रोकने की उम्मीद है।
  • कानूनी तंत्र पर प्रभाव: सर्वोच्च न्यायालय के प्रस्तावित दिशा-निर्देश ‘बुलडोजर न्याय’ की प्रवृत्ति के खिलाफ एक महत्त्वपूर्ण जाँच के रूप में कार्य कर सकते हैं।
    • उनसे संपत्ति के ध्वस्तीकरण के लिये एक समान कानूनी फ्रेमवर्क प्रदान करने की उम्मीद है, जो उचित प्रक्रिया का पालन सुनिश्चित करता है।

ध्वस्तीकरण अभियान के संदर्भ में क्या चिंताएँ हैं?

  • संवैधानिक:
    • भारतीय संविधान का अनुच्छेद 300A: इसके अनुसार किसी भी व्यक्ति को कानून के प्राधिकार के बिना उसकी संपत्ति से वंचित नहीं किया जाएगा।। यह प्रावधान इस बात पर ज़ोर देता है कि संपत्ति केवल उचित प्रक्रिया के बाद और वैध कानूनों के तहत ही छीनी जा सकती है।
    • संविधान का अनुच्छेद 21: गारंटी देता है कि किसी भी व्यक्ति को विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अलावा उसके जीवन या व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित नहीं किया जाएगा।
      • बिना उचित प्रक्रिया के तत्काल ध्वस्तीकरण, सम्मानजनक जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन है।
    • अनुच्छेद 14 (विधि के समक्ष समानता): ऐसे ध्वस्तीकरणों, जो कुछ समुदायों (जैसे झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाले लोग) को असमान रूप से प्रभावित करते हैं, भेदभावपूर्ण मानकर चुनौती दी जा सकती है।
    • अनुच्छेद 19 (वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता): असहमति या आलोचना व्यक्त करने वालों को लक्षित करके दंडात्मक ध्वस्तीकरण को मुक्त अभिव्यक्ति अधिकारों के उल्लंघन के रूप में देखा जा सकता है।
    • विधि का शासन: संविधान का एक मौलिक सिद्धांत जो यह अनिवार्य करता है कि राज्य की कार्रवाइयाँ स्थापित कानूनी प्रक्रियाओं और व्यक्तिगत अधिकारों के सम्मान के अनुरूप होनी चाहिये।   
      • न्याय के बजाय दमन और नियंत्रण के लिये कानूनी साधनों का दुरुपयोग विधि के शासन को कमज़ोर करता है। उचित प्रक्रिया के बिना संपत्तियों को ध्वस्त करने की प्रशासनिक प्रथा इस विरोधाभास को दर्शाती है जिसके लिये न्यायिक जाँच और हस्तक्षेप की आवश्यकता है।
  • जिनेवा कन्वेंशन और अंतर्राष्ट्रीय दायित्व: जिनेवा कन्वेंशन का अनुच्छेद 87(3) सामूहिक दंड पर रोक लगाता है। इस तरह के विध्वंस भारतीय संविधान के अनुच्छेद 51(3) का भी उल्लंघन करते हैं, जिसके अनुसार भारत को अंतर्राष्ट्रीय संधियों और कानूनों का सम्मान करना चाहिये।
    • किसी भी सभ्य समाज की तरह भारतीय संविधान भी सामूहिक दंड की अवधारणा को मान्यता नहीं देता है।
      • किसी आरोपी के घर को ध्वस्त करके उसके परिवार के सदस्यों के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई करना विधि के शासन के अनुरूप नहीं है। राज्य न्याय की आड़ में दूसरा अपराध करके प्रतिशोध नहीं ले सकता।
  • अपरिवर्तनीय क्षति: घर के ध्वस्त होने से भावनात्मक और वित्तीय नुकसान बहुत अधिक होता है। निर्दोष परिवार के सदस्य, जिनकी कथित अपराधों में कोई भूमिका नहीं होती, अनावश्यक रूप से पीड़ित होते हैं।
  • हाशिये पर पड़े समुदायों को लक्षित करना: यह प्रथा अल्पसंख्यक और हाशिये पर पड़े समुदायों पर असंगत रूप से प्रभाव डालती है तथा सामाजिक विभाजन एवं मौजूदा असमानताओं को बनाए रखती है।
    • बुलडोज़र न्याय के शिकार लोगों को प्रायः पुनर्वास या मुआवजे के बिना छोड़ दिया जाता है, जिससे उनकी पीड़ा तथा हाशिये पर जाने की स्थिति और भी बढ़ जाती है।
  • विश्वास का ह्रास: यह प्रथा स्थापित विधि प्रक्रियाओं को दरकिनार करके राजनीतिक और कानूनी संस्थाओं में जनता के विश्वास को कमज़ोर करती है।

संपत्ति ध्वस्तीकरण से संबंधित अन्य न्यायिक फैसले क्या हैं?

  • मेनका गांधी बनाम भारत संघ मामला, 1978: सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि अनुच्छेद 21 में प्रयुक्त वाक्यांश "कानून की उचित प्रक्रिया" के बजाय "कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया" है, जिसका अर्थ है कि प्रक्रियाएँ मनमानी और तर्कहीनता से मुक्त होनी चाहिये तथा न्यायसंगत, निष्पक्ष व गैर-मनमाना होनी चाहिये। 
    • अतः संदेह या निराधार आरोपों के आधार पर ध्वस्तीकरण, न्याय, निष्पक्षता और मनमानी न करने के सिद्धांतों  का खंडन करता है।
  • ओल्गा टेलिस बनाम बॉम्बे म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन मामला, 1985: सर्वोच्च न्यायालय ने पुष्टि की कि संविधान का अनुच्छेद 21, जो जीवन के अधिकार की गारंटी देता है, उसमें आजीविका और आश्रय का अधिकार शामिल है। इस प्रकार बिना उचित प्रक्रिया के घरों को ध्वस्त करना संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन है। 
  • के.टी. प्लांटेशन (P) लिमिटेड बनाम कर्नाटक राज्य मामला, 2011: सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला दिया कि अनुच्छेद 300-A के तहत संपत्ति से वंचित करने का प्रावधान करने वाला कानून न्यायसंगत, निष्पक्ष और उचित होना चाहिये।

स्थानीय कानूनों के तहत ध्वस्तीकरण के लिये दिशा-निर्देश क्या हैं?

  • राजस्थान: राजस्थान में ध्वस्तीकरण राजस्थान नगर पालिका अधिनियम, 2009 और राजस्थान वन अधिनियम, 1953 के तहत विनियमित हैं।
    • उचित प्रक्रिया आवश्यकताएँ: कथित अपराधी को नोटिस दिये जाने की आवश्यकता होती है और संपत्ति जब्ती से पहले लिखित प्रतिनिधित्व करने का अवसर प्रदान किया जाता है।
    • यह निर्दिष्ट करता है कि केवल एक तहसीलदार ही अतिचारियों को बेदखल करने का आदेश दे सकता है, जिससे संपत्ति जब्ती से पहले एक औपचारिक प्रक्रिया सुनिश्चित होती है।
  • मध्य प्रदेश: मध्य प्रदेश नगर पालिका अधिनियम, 1961 द्वारा शासित।
    • उचित प्रक्रिया आवश्यकताएँ: बिना अनुमति के निर्मित इमारतों को ध्वस्त करने की अनुमति देता है, लेकिन किसी भी ध्वस्तीकरण कार्रवाई से पहले मालिक को कारण बताने के लिये पूर्व सूचना देना अनिवार्य करता है।
  • उत्तर प्रदेश: उत्तर प्रदेश शहरी नियोजन और विकास अधिनियम, 1973 के तहत।
    • उचित प्रक्रिया की आवश्यकताएँ: ध्वस्तीकरण से पहले संपत्ति के मालिक को 15 से 40 दिनों की अवधि के भीतर जवाब देने के लिये नोटिस जारी करना आवश्यक है। मालिक को आदेश के विरुद्ध अपील करने का अधिकार है।
  • दिल्ली: दिल्ली नगर निगम अधिनियम, 1957 (DMC अधिनियम) द्वारा विनियमित।
    • उचित प्रक्रिया आवश्यकताएँ: कुछ शर्तों के तहत बिना पूर्व सूचना के अनधिकृत संरचनाओं को हटाने की अनुमति देता है।  
    • इसमें मकान मालिक को ध्वस्तीकरण आदेश को चुनौती देने के लिये उचित अवसर देने का प्रावधान है तथा अपीलीय न्यायाधिकरण के समक्ष अपील की व्यवस्था भी प्रदान की गई है।
  • हरियाणा: हरियाणा नगर निगम अधिनियम, 1994 द्वारा शासित।
    • उचित प्रक्रिया की आवश्यकताएँ: DMC अधिनियम के समान, लेकिन इसमें विध्वंस शुरू करने हेतु कम अवधि (तीन दिन) का प्रावधान है। इसके लिये मालिक को आदेश के विरुद्ध तर्क करने का उचित अवसर की भी आवश्यकता होती है।

आगे की राह

  • कानून के शासन को सुदृढ़ करना: सभी राज्य को अपनी कार्रवाइयों में कानून का सख्ती से पालन करना चाहिये। भावनाओं या राजनीति से प्रेरित मनमाने ढंग से किये गए विध्वंस कानून व्यवस्था और अधिकारों को कमज़ोर करते हैं। न्याय के लिये निष्पक्ष सुनवाई, उचित प्रक्रिया तथा स्थापित कानूनी प्रक्रियाओं की आवश्यकता होती है, न कि त्वरित प्रतिशोध की।
    • राज्य की कार्रवाई व्यक्तिगत अपराधियों पर लक्षित होनी चाहिये, न कि पूरे परिवार या समुदाय पर। कानूनी व्यवस्था को आपराधिक न्याय को सामूहिक दंड से अलग करना चाहिये और निर्दोषता की धारणा को बनाए रखना चाहिये।
  • न्यायिक निगरानी को सुदृढ़ करना: संपत्ति के विध्वंस से संबंधित विवादों को निपटाने के लिये विशेष न्यायाधिकरण या अदालतें स्थापित की जानी चाहिये तथा इन न्यायाधिकरणों के पास सरकारी निर्णयों की समीक्षा करने, निषेधाज्ञा देने और उचित उपाय प्रदान करने का अधिकार होना चाहिये।
  • मौजूदा कानूनों की समीक्षा: संपत्ति अधिकार, शहरी नियोजन और भूमि अधिग्रहण से संबंधित मौजूदा कानूनों और नियमों की व्यापक समीक्षा करना ताकि किसी भी विसंगति या अस्पष्टता की पहचान की जा सके।
    • ध्वस्तीकरण को विनियमित करने के लिये स्पष्ट राष्ट्रीय दिशा-निर्देशों की आवश्यकता है, ताकि उचित सूचना, सुनवाई और अपील के अवसर सुनिश्चित किये जा सकें।
  • वैकल्पिक विवाद समाधान: संपत्ति अधिकारों और विध्वंस से संबंधित विवादों को हल करने के लिये मध्यस्थता और पंचनिर्णय जैसे वैकल्पिक विवाद समाधान तंत्रों के उपयोग को बढ़ावा देना।
  • पुनर्वास: विध्वंस से प्रभावित व्यक्तियों के लिये व्यापक पुनर्वास योजनाएँ विकसित करना, जिसमें वैकल्पिक आवास, आजीविका सहायता और मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं के प्रावधान शामिल हों।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. भारत में मनमाने ढंग से संपत्ति के विध्वंस से उत्पन्न चुनौतियों और संपत्ति के विध्वंस को विनियमित करने में न्यायपालिका की भूमिका पर चर्चा कीजिये।

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