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सामाजिक न्याय

सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिव्यांगता अधिकारों को मूल अधिकार माना जाना

  • 05 Mar 2025
  • 14 min read

प्रिलिम्स के लिये:

RPwD अधिनियम 2016, मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम 2017, PM-DAKSH (दिव्यांग कौशल विकास और पुनर्वास योजना), सुगम्य भारत अभियान, दीनदयाल दिव्यांग पुनर्वास योजना, दिव्यांग छात्रों के लिये राष्ट्रीय फैलोशिप

मेन्स के लिये:

भारत में दिव्यांगता अधिकार, चुनौतियाँ, भारत में दिव्यांग व्यक्तियों को सशक्त बनाने के उपाय।

स्रोत: इकोनाॅमिक टाइम्स

चर्चा में क्यों?

सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया है कि दृष्टिबाधित उम्मीदवार न्यायिक सेवा परीक्षाओं में भाग ले सकते हैं तथा इस बात पर बल दिया है कि दिव्यांगजन अधिकार (RPwD) अधिनियम, 2016 के तहत दिव्यांगता आधारित भेदभाव के खिलाफ अधिकार को मौलिक अधिकार माना जाना चाहिये।

न्यायिक सेवाओं में दिव्यांगता अधिकारों पर सर्वोच्च न्यायालय का क्या निर्णय है?

  • भेदभावपूर्ण प्रावधानों को समाप्त करना: हाल ही में यह निर्णय मध्य प्रदेश न्यायिक सेवा परीक्षा नियम, 1994 एवं राजस्थान न्यायिक सेवा नियम, 2010 से संबंधित याचिकाओं पर निर्णय लेते हुए दिया गया तथा इन्हें RPwD अधिनियम के साथ संरेखित किया गया।
    • मध्य प्रदेश न्यायिक सेवा नियम, 1994 के नियम 6A को रद्द कर दिया गया क्योंकि इसमें शैक्षिक योग्यता के बावजूद दृष्टिबाधित अभ्यर्थियों को शामिल नहीं किया गया था।
  • दिव्यांगता अधिकारों की मान्यता: न्यायिक सेवाओं से दृष्टिबाधित उम्मीदवारों को बाहर करना संविधान में प्रदत्त समानता (अनुच्छेद 14) और भेदभाव के प्रतिषेध (अनुच्छेद 15) के अधिकार का उल्लंघन है।
  • सकारात्मक कार्रवाई: न्यायालय ने फैसला सुनाया कि राज्य को परोपकार-आधारित दृष्टिकोण के बजाय अधिकार-आधारित दृष्टिकोण अपनाना चाहिये ताकि रोज़गार तक समान पहुँच सुनिश्चित हो सके।
    • इस निर्णय में इस बात पर बल दिया गया कि दिव्यांगजनों (PwD) को उचित सुविधाएँ (पीठ ने इंद्रा साहनी निर्णय का हवाला दिया, जिसमें चयन प्रक्रिया में दृष्टिबाधित उम्मीदवारों के लिये अलग कट-ऑफ निर्धारित करने का निर्देश दिया गया) प्रदान की जानी चाहिये, जैसा कि दिव्यांगजनों के अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (UNCRPD) और RPwD अधिनियम, 2016 द्वारा अनिवार्य किया गया है।
    • इसमें पर्याप्त संख्या में दिव्यांग उम्मीदवार उपलब्ध न होने पर अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के उम्मीदवारों के समान पात्रता मानदंडों में छूट की अनुमति दी गई।

दिव्यांगजनों से संबंधित ऐतिहासिक मामले  

  • सुचिता श्रीवास्तव बनाम चंडीगढ़ प्रशासन, 2009: इसमें न्यायालय ने मानसिक रूप से मंद महिला के प्रजनन अधिकारों को बरकरार रखा।  
  • भारत सरकार बनाम रवि प्रकाश गुप्ता, 2010: सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय सुनाया कि पूर्वनिर्धारित रोज़गार मानदंडों का उपयोग दृष्टिबाधित उम्मीदवारों को आरक्षण से वंचित करने के लिये नहीं किया जा सकता है, ताकि निष्पक्ष नियुक्तियाँ सुनिश्चित हो सकें।  
  • भारत संघ बनाम राष्ट्रीय दृष्टिहीन संघ, 2013: स्पष्ट किया गया कि 3% आरक्षण कुल कैडर क्षमता में रिक्तियों पर लागू होता है, न कि केवल चिन्हित पदों पर। 
  • डीफ कर्मचारी कल्याण संघ बनाम भारत संघ, 2013: श्रवण बाधित सरकारी कर्मचारियों के लिये समान परिवहन भत्ता देने का निर्देश दिया गया, साथ ही दिव्यांगजनों के बीच भेदभाव न किया जाना सुनिश्चित किया गया। 
  • ओम राठौड़ बनाम स्वास्थ्य सेवा महानिदेशक मामला, 2024: सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया कि उम्मीदवार की क्षमताओं के कार्यात्मक मूल्यांकन को कठोर पात्रता मानदंडों पर प्राथमिकता दी जानी चाहिये।

भारत में दिव्यांगजनों की स्थिति क्या है?

  • 2011 की जनगणना के अनुसार, दिव्यांगजनों की संख्या कुल जनसंख्या का 2.21% (2.68 करोड़) है।
    • RPwD अधिनियम, 2016 के अनुसार, दिव्यांगता के 21 मान्यता प्राप्त प्रकार हैं, जिनमें दृष्टि बाधित, श्रवण बाधित, मूक दिव्यांगता, बौद्धिक नि:शक्तता, बहु नि:शक्तता, मानसिक मंदता और बौनापन आदि शामिल हैं।
  • दिव्यांगजनों के लिये संवैधानिक प्रावधान:
  • पंचायतों और नगर पालिकाओं की ज़िम्मेदारियाँ:
    • 11वीं अनुसूची: दिव्यांगजनों सहित सामाजिक कल्याण पर ध्यान केंद्रित करती है (अनुच्छेद 243-G की प्रविष्टि 26)।
    • 12 वीं अनुसूची: दिव्यांगजनों सहित कमज़ोर वर्गों की सुरक्षा सुनिश्चित करती है (अनुच्छेद 243-W की प्रविष्टि 9)।
  • दिव्यांगता अधिकार से संबंधित कानून:
    • RPwD अधिनियम, 2016: इसका उद्देश्य समान अवसर सुनिश्चित करना, अधिकारों की रक्षा करना और दिव्यांगजनों की पूर्ण भागीदारी को सक्षम बनाना है।
  • राष्ट्रीय ट्रस्ट अधिनियम, 1999: इस अधिनियम के द्वारा अन्य मामलों के अलावा ऑटिज्म, सेरेब्रल पाल्सी, मानसिक मंदता और बहु नि:शक्तताओं से ग्रस्त व्यक्तियों के कल्याण हेतु एक राष्ट्रीय निकाय की स्थापना की गई।
  • मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम, 2017: यह अधिनियम मानसिक बीमारी से पीड़ित व्यक्तियों के अधिकारों और सम्मान की रक्षा करता है।

भारत में दिव्यांगजनों के समक्ष क्या चुनौतियाँ हैं?

  • सामाजिक बाधाएँ: दिव्यांगजनों को अक्सर रोज़गार, शिक्षा और पर्याप्त आय प्राप्त करने में चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, जिससे उनके अपने अधिकारों का पूर्णतः प्रयोग करने में बाधा उत्पन्न होती है।
    • पूर्वाग्रह, भेदभाव, भय और रूढ़िवादिता सामाजिक एकीकरण में बाधा डालते है तथा बहिष्कार एवं अकेलेपन के दुष्चक्र को बढ़ावा देते हैं।
  • परिवहन बाधाएँ: दिव्यांगता पर विश्व रिपोर्ट के अनुसार, परिवहन प्रणालियों, निर्मित पर्यावरण में दुर्गमता, समाज में स्वतंत्र रूप से कार्य करने की दिव्यांगजनों की क्षमता को महत्त्वपूर्ण रूप से सीमित करती है। 
  • संचार बाधाएँ: सुनने, बोलने, पढ़ने या लिखने में अक्षम दिव्यांगजनों को गैर-मौखिक संचार कौशल की अनुपस्थिति जैसे गैर-प्रभावी संचार चैनलों के कारण प्रभावी संचार में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।
  • नीतिगत और कार्यक्रम संबंधी बाधाएँ: असुविधाजनक समय-सारिणी और सुलभ उपकरणों की कमी जैसी चुनौतियाँ आवश्यक सार्वजनिक स्वास्थ्य देखभाल कार्यक्रमों के क्रियान्वयन में बाधा डालती हैं।
  • अंतर्विभागीय हाशियाकरण: दिव्यांग महिलाओं को लिंग और दिव्यांगता के आधार पर दोहरे भेदभाव का सामना करना पड़ता है, जिससे शिक्षा, रोज़गार और स्वास्थ्य सेवा तक उनकी पहुँच सीमित हो जाती है।
    • दिव्यांग जनसंख्या का 69% हिस्सा ग्रामीण क्षेत्रों में रहता है, जहाँ सहायक प्रौद्योगिकियों के अभाव में उन्हें अधिक बहिष्कार का सामना करना पड़ता है।

आगे की राह

  • प्रभावी मुख्यधारा की नीतियाँ और सेवाएँ: हितधारकों को सामान्य सार्वजनिक गतिविधियों और सेवाओं में दिव्यांगजनों की समान भागीदारी सुनिश्चित करनी चाहिये।
    • पुनर्वास और सहायता सेवाओं में अधिक निवेश की आवश्यकता है। उदाहरण के लिये, व्हीलचेयर, श्रवण यंत्र और सफेद छड़ी जैसे सहायक उपकरण दिव्यांगों की स्वतंत्रता को बढ़ाते हैं।
  • मानव संसाधन क्षमता में वृद्धि: भारतीय पुनर्वास परिषद (RCI) को दिव्यांगता -संबंधी सेवाओं में लगे पेशेवरों की योग्यता को प्रभावी ढंग से विनियमित करने और बढ़ाने के लिये प्रशिक्षण प्रक्रिया में तेज़ी लानी चाहिये।
    • जापान के डॉन कैफे में दिव्यांग कर्मचारियों को रोबोट वेटरों को दूर से नियंत्रित करने के लिये नियुक्त किया गया है, जिससे समावेशी रोज़गार के अवसर पैदा हुए हैं। भारत को दिव्यांग व्यक्तियों के लिये रोज़गार सुलभता बढ़ाने के लिये इसी तरह की प्रथाओं को अपनाना चाहिये।
  • दिव्यांगता के बारे में सार्वजनिक जागरूकता बढ़ाना: सार्वजनिक जागरूकता बढ़ाने से नकारात्मक धारणाओं को चुनौती दी जा सकती है और सामाजिक और मनोवृत्ति संबंधी बाधाओं को तोड़ा जा सकता है। 
    • शैक्षिक संस्थानों को समावेशिता और विविधता को बढ़ावा देना चाहिये, तथा यह सुनिश्चित करना चाहिये कि दिव्यांग व्यक्तियों के लिये आवश्यक भाषा कौशल सक्षम व्यक्तियों को भी सिखाया जाए, जिससे समावेशी संचार को बढ़ावा मिले।
  • दिव्यांगता डेटा संग्रह में सुधार: आयु, लिंग और सामाजिक-आर्थिक स्थिति के आधार पर बेहतर डेटा संग्रह से दिव्यांगजनों के सामने आने वाली बाधाओं की समझ में सुधार होगा।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न: दिव्यांगता आधारित भेदभाव के विरुद्ध अधिकार पर सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय सार्वजनिक सेवाओं में समावेशिता की दिशा में एक प्रगतिशील कदम है। दिव्यांग व्यक्तियों के सामने आने वाली विभिन्न चुनौतियों पर चर्चा कीजिये तथा आगे के सुधारों के लिये उपाय सुझाइए।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स

प्रश्न.  भारत लाखों दिव्यांग व्यक्तियों का घर है। कानून के अंतर्गत उन्हें क्या लाभ उपलब्ध हैं? (2011)

  1. सरकारी स्कूलों में 18 साल की उम्र तक मुफ्त स्कूली शिक्षा।
  2.   व्यवसाय स्थापित करने के लिये भूमि का अधिमान्य आवंटन।
  3.   सार्वजनिक भवनों में रैंप।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1                
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3       
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (d)

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