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भारतीय समाज

सर्वोच्च न्यायालय द्वारा समलैंगिक विवाह पर पुनर्विचार की याचिका खारिज

  • 15 Jan 2025
  • 13 min read

प्रिलिम्स के लिये:

समलैंगिक विवाह, धारा 377, भारतीय दंड संहिता (IPC), समलैंगिकता, LGBTQ समुदाय, सर्वोच्च न्यायालय, उच्च न्यायालय, संविधान पीठ

मेन्स के लिये:

समलैंगिक विवाह को वैध बनाने से भारतीय समाज के सामाजिक ताने-बाने एवं प्रगति पर प्रभाव

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों?

भारत के सर्वोच्च न्यायालय (SC) की 5 सदस्यीय पीठ ने हाल ही में अपने फैसले में अक्तूबर 2023 के फैसले के खिलाफ समीक्षा याचिकाओं को खारिज कर दिया, जिसमें समलैंगिक विवाह को वैध बनाना अस्वीकार किया गया था। 

  • अक्तूबर 2023 के फैसले में भारत के मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली पीठ ने समलैंगिक विवाहों की संवैधानिक वैधता के खिलाफ 3:2 बहुमत से फैसला दिया।

समलैंगिक विवाह क्या है?

  • परिचय:
    • समलैंगिक विवाह से तात्पर्य सामान लिंग के दो व्यक्तियों के बीच विवाह (अर्थात दो पुरुषों के बीच या दो महिलाओं के बीच विवाह) से है।
  • भारत में वैधता: भारत में समान लिंग वाले विवाह को मान्यता नहीं दी गई है। 
  • सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय 2023: सर्वोच्च न्यायालय (SC) ने फैसला सुनाया कि विशेष विवाह अधिनियम (SMA), 1954 समान-लिंग वाले युगलों पर लागू नहीं होता है और कहा कि इस पर कानून बनाना संसद और राज्य विधानमंडल का कार्य है।
    • सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि भारतीय संविधान के तहत विवाह करना कोई मूल अधिकार नहीं है।
    • हालाँकि, सर्वोच्च न्यायालय ने समान लिंग वाले युगलों के लिये अनुच्छेद 21 (जीवन के अधिकार) के तहत लिव-इन पार्टनर के समान प्रदत्त समान लाभ प्राप्त करने के अधिकार को बरकरार रखा है।

समलैंगिक विवाह की मान्यता पर वैश्विक स्थिति

  • वर्ष 2024 तक अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा और फ्राँस सहित विश्व के 30 से अधिक देशों ने समलैंगिक विवाह को वैध कर दिया है।
  • नीदरलैंड वर्ष 2001 में नागरिक विवाह कानून में संशोधन करके समलैंगिक विवाह को वैध बनाने वाला पहला देश था।
  • ताइवान, एशिया का पहला देश था जिसने समलैंगिक विवाह को वैध बनाया।
  • ईरान, अफगानिस्तान, सऊदी अरब एवं ब्रुनेई जैसे कई देश न केवल समलैंगिक विवाहों पर प्रतिबंध लगाते हैं बल्कि इसके लिये यहाँ मृत्युदंड या शारीरिक दंड सहित कठोर दंड का भी प्रावधान है।

विशेष विवाह अधिनियम (SMA) 1954 क्या है?

  • परिचय:
    • SMA, 1954 भारत में विभिन्न धर्मों या जातियों के बीच विवाह के लिये विधिक ढाँचा प्रदान करता है।
    • इसके द्वारा सिविल विवाहों का विनियमन किया जाता है, जहाँ धार्मिक प्राधिकारियों के बजाय राज्य, विवाह को मान्यता देता है।
  • प्रयोज्यता: 
    • SMA भारत में हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, जैन और बौद्ध सहित सभी धर्मों के लोगों पर लागू होता है।
    • SMA, 1954 के तहत विदेशी भी भारत में अपने विवाह का पंजीकरण करा सकते हैं, यदि दोनों पक्षों के पास वैध पासपोर्ट हों और विवाह नोटिस दाखिल करने से पहले कम से कम एक पक्ष ने भारत में न्यूनतम 30 दिन तक निवास किया हो।
  • प्रमुख प्रावधान:
    • विवाह मान्यता: यह अधिनियम विवाहों के पंजीकरण, विधिक मान्यता प्रदान करने तथा उत्तराधिकार, विरासत एवं सामाजिक सुरक्षा लाभ जैसे अधिकार प्रदान करने की सुविधा प्रदान करता है।
    • नोटिस की आवश्यकता: धारा 5 के अनुसार, संबंधित पक्षों को ज़िले के विवाह अधिकारी को लिखित नोटिस देना होगा, जिसमें कम से कम एक पक्ष नोटिस देने से पहले कम से कम 30 दिनों तक ज़िले में निवास कर रहा हो। 
      • धारा 7 के अनुसार नोटिस प्रकाशित होने के 30 दिनों के अंदर विवाह पर आपत्तियाँ दर्ज़ की जा सकती हैं।
    • आयु सीमा: SMA के तहत विवाह की न्यूनतम आयु पुरुषों के लिये 21 वर्ष तथा महिलाओं के लिये 18 वर्ष है।

समलैंगिक विवाह के पक्ष में क्या तर्क हैं?

  • समानता और मानवाधिकार: समान लिंग वाले युगलों को विवाह करने के अधिकार से वंचित करना इन्हें द्वितीय श्रेणी का दर्जा प्रदान करता है, जो अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार सम्मेलनों के तहत  मूल अधिकारों का उल्लंघन है।
    • UDHR द्वारा विवाह के अधिकार को मूल मानवाधिकार माने जाने के साथ समानता एवं सम्मान पर बल दिया गया है। भारत में कार्यकर्त्ताओं का तर्क है कि यह संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन के अधिकार) के अनुरूप है।
  • साथ में रहने का मूल अधिकार: लता सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य, 2006 और शक्ति वाहिनी बनाम भारत संघ, 2018 जैसे निर्णयों में सर्वोच्च न्यायालय ने अनुच्छेद 21 के तहत साथ में रहने को मूल अधिकार के रूप में मान्यता दी है, जिससे सरकार पर समान लिंग वाले युगलों के बीच संबंधों को विधिक रूप से मान्यता देने का दबाव पड़ा।
  • विधिक और आर्थिक लाभ: समलैंगिक विवाह को वैध बनाने से विवाह से संबंधित कानूनी एवं आर्थिक लाभ, उत्तराधिकार अधिकार तथा सामाजिक सुरक्षा लाभों तक समान पहुँच मिलती है।
  • अंतर्राष्ट्रीय सिद्धांत: समलैंगिक विवाह 30 से अधिक देशों में विधिक है, जो वैश्विक मानवाधिकार सिद्धांतों के अनुरूप है।

समलैंगिक विवाह के विपक्ष में तर्क क्या हैं?

  • धार्मिक और सांस्कृतिक मान्यताएँ: कई धार्मिक और सांस्कृतिक समूह इस बात पर बल देते हैं कि विवाह पुरुष तथा महिला के बीच होना चाहिये तथा उनका तर्क है कि विवाह को पुनर्परिभाषित करना उनके आधारभूत मूल्यों और मान्यताओं को चुनौती देने के समान है।
  • प्राकृतिक व्यवस्था के विरुद्ध: कुछ लोग समलैंगिक विवाह का इस आधार पर विरोध करते हैं कि विवाह का प्राथमिक उद्देश्य संतानोत्पत्ति (जिसे समलैंगिक युगल पूरा नहीं कर सकते) है, इस प्रकार इससे प्राकृतिक व्यवस्था का खंडन होता है।
  • कानूनी और विनियामक चुनौतियाँ: इससे संबंधित संभावित कानूनी जटिलताओं के बारे में चिंताएँ व्यक्त की गई हैं, जैसे कि उत्तराधिकार में आवश्यक समायोजन और संपत्ति कानून, जिसमें जटिल विधिक परिवर्तन शामिल हो सकते हैं।
  • गोद लेने संबंधी मुद्दे: जब समलैंगिक युगल बच्चों को गोद लेने का विकल्प चुनते हैं तो उन्हें सामाजिक कलंक, भेदभाव का सामना (विशेष रूप से भारतीय समाज में) करना पड़ सकता है तथा इससे बच्चे के भावनात्मक और मनोवैज्ञानिक स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

भारत में LGBTQIA+ और उनके अधिकार

  •  LGBTQIA+ एक संक्षिप्त शब्द है जो समलैंगिक (Lesbian/Gay), उभयलिंगी (Bisexual), ट्रांसजेंडर (Transgender), क्वीर(Queer), इंटरसेक्स (Intersex) और अलैंगिक (Asexual) का प्रतिनिधित्व करता है।
  • ‘+’ कई अन्य पहचानों का प्रतिनिधित्व करता है जिन्हें अभी भी खोजा और समझा जा रहा है। यह परिवर्णी शब्द लगातार विकसित हो रहा है और इसमें गैर-बाइनरी तथा पैनसेक्सुअल जैसे अन्य शब्द भी शामिल हो सकते हैं।
  • भारत में LGBTQIA+ की मान्यता:
    • 2014: सर्वोच्च न्यायालय के एक ऐतिहासिक फैसले में ट्रांसजेंडरों को तीसरे लिंग के तौर पर मान्यता दी। (राष्ट्रीय कानूनी सेवा प्राधिकरण बनाम भारत संघ, जिसे आमतौर पर NALSA निर्णय के नाम से जाना जाता है)।
    • 2018 (नवतेज सिंह जौहर बनाम भारत संघ): एक ऐतिहासिक फैसले में, सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिक संबंधों को अपराध की श्रेणी से बाहर करने वाली धारा 377 को रद्द कर दिया।
    • 2019: उभयलिंगी व्यक्ति ( अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019 पारित किया गया, जो कानूनी मान्यता प्रदान करता है और ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के खिलाफ भेदभाव पर रोक लगाता है।
    • 2022: अगस्त 2022 में, भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने समलैंगिक युगलों और समलैंगिक संबंधों को शामिल करने के लिये परिवार की परिभाषा का विस्तार किया।
    • 2023: अक्तूबर 2023 में, सर्वोच्च न्यायालय की पाँच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने भारत में समलैंगिक विवाह को वैध बनाने की याचिकाओं को खारिज कर दिया।

आगे की राह

  • विधिक सुधार: SMA, 1954 में संशोधन करके समलैंगिक युगलों को विषमलैंगिक युगलों के समान अधिकार एवं विधिक लाभ प्रदान किये जा सकेंगे। 
    • वैकल्पिक रूप से समलैंगिक व्यक्तियों के लिये समान अधिकार सुनिश्चित करने के क्रम में अनुबंध-आधारित समझौते शुरू किये जा सकते हैं।
  • संवाद एवं सहभागिता: धार्मिक और सांस्कृतिक नेतृत्वकर्त्ताओं के साथ सहभागिता करने से पारंपरिक मान्यताओं एवं समलैंगिक संबंधों पर विकसित दृष्टिकोणों के बीच के अंतराल को कम करने में मदद मिल सकती है।
  • न्यायिक नेतृत्व में सुधार: LGBTQIA+ समुदाय समलैंगिक विवाह को प्रतिबंधित करने वाले मौजूदा कानूनों को न्यायालयों में चुनौती दे सकता है, जिससे संभवतः इसकी मान्यता के लिये कानूनी प्रेरणा मिल सकती है।
  • सहयोग: समलैंगिक विवाह को वैध बनाने के लिये LGBTQIA+ समुदाय, सरकार, नागरिक समाज एवं धार्मिक नेताओं सहित सभी हितधारकों के सामूहिक प्रयासों की आवश्यकता है, ताकि एक समावेशी समाज का निर्माण किया जा सके, जहाँ सभी को समान अधिकार प्राप्त हों।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

Q. भारत में समलैंगिक विवाह के वैधीकरण के साथ इससे संबंधित विमर्श पर चर्चा कीजिये। इस मुद्दे में  शामिल विधिक तथा सामाजिक चुनौतियों का समाधान करने का संभावित तरीका क्या हो सकता है?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. भारतीय संविधान का कौन-सा अनुच्छेद अपनी पसंद के व्यक्ति से विवाह करने के अधिकार की रक्षा करता है? (2019)

(a) अनुच्छेद 19
(b) अनुच्छेद 21
(c) अनुच्छेद 25
(d) अनुच्छेद 29

उत्तर: (b)


मेन्स:

प्रश्न. निजता के अधिकार पर सर्वोच्च न्यायालय के नवीनतम निर्णय के आलोक में मौलिक अधिकारों के दायरे की जाँच कीजिये। (2017)

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