शासन व्यवस्था
शिक्षा प्रणाली में मदरसा की भूमिका
- 19 Oct 2024
- 19 min read
प्रिलिम्स के लिये:राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR), सर्वोच्च न्यायालय, शिक्षा का अधिकार, खुरासान, उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम 2004, धर्मनिरपेक्षता, संविधान, मूल अधिकार, राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (NCERT)। मेन्स के लिये:शिक्षा के अधिकार का महत्त्व, शिक्षा प्रणाली में मदरसों की भूमिका। |
स्रोत: हिंदुस्तान टाइम्स
चर्चा में क्यों?
हाल ही में राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) ने सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किया है कि मदरसों में पढ़ाए जाने वाले पाठ्यक्रम में व्यापकता का अभाव है। इस प्रकार यह शिक्षा के अधिकार अधिनियम के आदेशों का उल्लंघन करता है।
- आयोग का तर्क है कि इन संस्थानों में प्रयुक्त पाठ्य पुस्तकें इस्लाम की सैद्धांतिक प्रधानता पर केंद्रित शिक्षाओं का प्रचार करती हैं।
- मदरसा शब्द अरबी भाषा से लिया गया है और इसका तात्पर्य मुख्य रूप से इस्लामी शिक्षाओं से संबंधित शैक्षणिक संस्थाओं से है।
मदरसों से संबंधित हालिया घटनाक्रम क्या हैं?
- सर्वोच्च न्यायालय (SC) का अंतरिम फैसला:
- सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि RTE (शिक्षा का अधिकार) अधिनियम की धारा 1(5) के अनुसार “इस अधिनियम में निहित कोई भी प्रावधान मदरसा, वैदिक पाठशालाओं और मुख्य रूप से धार्मिक शिक्षा प्रदान करने वाले शैक्षणिक संस्थानों पर लागू नहीं होगा।”
- किसी विशेष समुदाय से संबंधित संस्था को विनियमित करने वाला कानून स्वतः ही धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत के उल्लंघन के तहत शामिल नहीं होता है।
- उत्तर प्रदेश:
- मार्च, 2024 के इलाहाबाद उच्च न्यायालय के निर्णय ने उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम, 2004 को “असंवैधानिक” घोषित कर दिया।
- न्यायालय का निर्णय इस आधार पर था कि यह अधिनियम संविधान में निहित "धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत" का उल्लंघन करता है और अनुच्छेद 14 (कानून के समक्ष समानता का अधिकार) के तहत गारंटीकृत मूल अधिकारों का उल्लंघन करता है।
- NCPCR ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के निर्णय को चुनौती देने वाली अपीलों के जवाब में सर्वोच्च न्यायालय में अपनी दलील दी।
- NCPCR ने सिफारिश की है कि सभी मुस्लिम और गैर-मुस्लिम बच्चों को मदरसों से निकालकर आरटीई अधिनियम, 2009 के अनुसार बुनियादी शिक्षा प्राप्त करने के लिये स्कूलों में दाखिला दिया जाए।
- असम:
- वर्ष 2023 में असम सरकार ने राज्य प्रारंभिक शिक्षा निदेशालय के तहत सामान्य स्कूलों में इनके परिवर्तन के बाद 1,281 मदरसों को "मिडिल इंग्लिश" (ME) स्कूलों के रूप में पुनर्वर्गीकृत किया।
- इस पहल का उद्देश्य राज्य की शिक्षा प्रणाली में एकरूपता और समावेशिता को बढ़ावा देना है।
- वर्ष 2023 में असम सरकार ने राज्य प्रारंभिक शिक्षा निदेशालय के तहत सामान्य स्कूलों में इनके परिवर्तन के बाद 1,281 मदरसों को "मिडिल इंग्लिश" (ME) स्कूलों के रूप में पुनर्वर्गीकृत किया।
उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम, 2004
- इस अधिनियम का उद्देश्य उत्तर प्रदेश राज्य में मदरसों (इस्लामी शैक्षणिक संस्थानों) के कार्यप्रणाली को विनियमित और संचालित करना था।
- इसने उत्तर प्रदेश में मदरसों की स्थापना, मान्यता, पाठ्यक्रम और प्रशासन के लिये एक रूपरेखा प्रदान की।
- इस अधिनियम के तहत राज्य में मदरसों की गतिविधियों की देखरेख और पर्यवेक्षण के लिये उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड की स्थापना की गई।
भारत में मदरसों की स्थिति क्या है?
भारत में मदरसों की संख्या:
- वर्ष 2018-19 तक भारत में कुल 24,010 मदरसे थे, जिनमें से 19,132 को मान्यता प्राप्त थी, जबकि 4,878 गैर-मान्यता प्राप्त थे।
- मान्यता प्राप्त मदरसे राज्य मदरसा शिक्षा बोर्ड से संबद्ध होते हैं, जबकि गैर-मान्यता प्राप्त मदरसे दारुल उलूम नदवतुल उलमा (लखनऊ) और दारुल उलूम देवबंद जैसे प्रमुख मदरसों द्वारा निर्धारित पाठ्यक्रम का पालन करते हैं।
- देश में सबसे अधिक मदरसे उत्तर प्रदेश में हैं, जहाँ 11,621 मान्यता प्राप्त और 2,907 गैर-मान्यता प्राप्त मदरसे हैं, जो भारत के कुल मदरसों का 60% है।
- राजस्थान में मदरसों की संख्या दूसरे स्थान पर है, जहाँ 2,464 मान्यता प्राप्त हैं और 29 गैर-मान्यता प्राप्त मदरसे हैं।
- ग़ौरतलब है कि दिल्ली, असम, पंजाब, तमिलनाडु और तेलंगाना सहित कुछ राज्यों तथा केंद्रशासित प्रदेशों में कोई भी मदरसा मान्यता प्राप्त नहीं है।
शिक्षा और पाठ्यक्रम:
- पाठ्यक्रम: मदरसों में शिक्षा मुख्यधारा के स्कूल और उच्च शिक्षा की संरचना को प्रतिबिंबित करती है, जिसमें छात्र मौलवी (कक्षा 10 के समकक्ष), आलिम (कक्षा 12 के समकक्ष), कामिल (स्नातक डिग्री के समकक्ष) तथा फाज़िल (मास्टर डिग्री के समकक्ष) जैसे विभिन्न स्तरों से आगे बढ़ते हैं।
- शिक्षण का माध्यम: धर्मार्थ मदरसा दरसे निजामी में शिक्षण का माध्यम अरबी, उर्दू और फारसी है, जबकि मदरसा दरसे आलिया में राज्य पाठ्यपुस्तक निगमों द्वारा प्रकाशित या राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (NCERT) द्वारा निर्धारित पाठ्यपुस्तकों का उपयोग किया जाता है।
- भारत में बड़ी संख्या में मदरसा बोर्डों ने NCERT पाठ्यक्रम को अपनाया है, जिसमें गणित, विज्ञान, हिंदी, अंग्रेज़ी और समाजशास्त्र जैसे अनिवार्य विषय शामिल हैं।
- मुख्य विषयों के अलावा छात्र वैकल्पिक पेपर चुन सकते हैं, जिसमें संस्कृत या दीनियत (धार्मिक अध्ययन, जिसमें कुरान और अन्य इस्लामी शिक्षाएँ शामिल हैं) में से कोई एक चुन सकते हैं। संस्कृत पेपर में हिंदू धार्मिक ग्रंथ एवं शिक्षाएँ शामिल हैं।
वित्तपोषण:
- मदरसों के लिये वित्त पोषण का प्राथमिक स्रोत संबंधित राज्य सरकारों से आता है तथा मदरसों/अल्पसंख्यकों को शिक्षा प्रदान करने की योजना (SPEMM) के तहत केंद्र सरकार से पूरक सहायता भी मिलती है।
- SPEMM देश भर के मदरसों और अल्पसंख्यक संस्थानों को वित्तीय सहायता प्रदान करता है, जिससे उनके शैक्षिक विकास तथा समर्थन में सुविधा होती है।
- इसकी दो उप-योजनाएँ हैं:
- मदरसों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करने की योजना (SPQEM): यह शैक्षिक मानकों में सुधार पर केंद्रित है।
- अल्पसंख्यक संस्थानों का बुनियादी ढाँचा विकास (IDMI): यह बुनियादी ढाँचे में वृद्धि पर ध्यान केंद्रित करता है।
- अप्रैल 2021 में अधिक सुव्यवस्थित प्रशासन के लिये SPEMM को अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय से शिक्षा मंत्रालय में स्थानांतरित कर दिया गया था।
शिक्षा से संबंधित पहल क्या हैं?
भारतीय शिक्षा प्रणाली में मदरसों की क्या भूमिका है?
- सांस्कृतिक संरक्षण: ऐतिहासिक रूप से मदरसों ने भारत में मुस्लिम समुदायों के बीच इस्लामी संस्कृति, विश्वासों और मूल्यों को संरक्षित करने तथा प्रसारित करने का काम किया है, जिससे पहचान एवं सामुदायिक भावना को बढ़ावा मिला है।
- शिक्षा और साक्षरता: मदरसे मुस्लिम बच्चों के लिये एक शैक्षिक मंच प्रदान करते हैं, विशेषकर उन क्षेत्रों में जहाँ औपचारिक स्कूली शिक्षा तक पहुँच सीमित है।
- हालाँकि शिक्षा की गुणवत्ता और मुस्लिम समुदायों में तुलनात्मक रूप से कम साक्षरता दर के बारे में चिंताएँ हैं, जिसके कारण कई छात्र माध्यमिक शिक्षा से आगे नहीं बढ़ पाते हैं।
- विचारधारा पर प्रभाव: कुछ मदरसों की आलोचना चरमपंथी विचारधाराओं और राष्ट्र-विरोधी भावनाओं को बढ़ावा देने के लिये की जाती है, जो देश के भीतर सामाजिक विभाजन तथा सांप्रदायिक तनाव को बढ़ाने में संभावित रूप से योगदान करते हैं, जबकि मदरसे सकारात्मक मूल्यों को बढ़ावा दे सकते हैं।
- कानूनी और वित्तपोषण संबंधी मुद्दे: मदरसों का अस्तित्व धर्मनिरपेक्षता और शिक्षा वित्तपोषण में समानता के बारे में सवाल उठाता है।
- आलोचकों का तर्क है कि सार्वजनिक धन का उपयोग धार्मिक शिक्षा के समर्थन के लिये नहीं किया जाना चाहिये ताकि एकरूपता और धर्मनिरपेक्ष सिद्धांतों का पालन सुनिश्चित हो सके।
- एकीकरण की चुनौतियाँ: मदरसों के कई स्नातकों को व्यावसायिक कौशल और आधुनिक शिक्षा की कमी के कारण व्यापक कार्यबल में एकीकृत होने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। शैक्षिक दृष्टिकोण अक्सर मुख्यधारा के समाज से अलगाव की ओर ले जाता है, जिससे ऊपर की ओर गतिशीलता और सामाजिक सामंजस्य के अवसरों में बाधा उत्पन्न होती है।
मदरसा शिक्षा से संबंधित मुद्दे क्या हैं?
- शिक्षा की गुणवत्ता: कई मदरसे मुख्य रूप से धार्मिक शिक्षा पर केंद्रित पाठ्यक्रम प्रदान करते हैं जिनमें अक्सर गणित, विज्ञान और भाषा जैसे विषयों पर कम ध्यान दिया जाता है।
- इससे छात्रों के समग्र शैक्षणिक विकास में अंतराल होने के साथ आगे की शिक्षा एवं रोज़गार के उनके अवसर सीमित हो सकते हैं।
- विनियामक चुनौतियाँ: काफी अधिक संख्या में मदरसे उचित सरकारी निगरानी या विनियमन के बिना संचालित होते हैं। विनियमन की कमी के कारण शिक्षा की गुणवत्ता में अंतराल हो सकता है।
- सामाजिक-आर्थिक कारक: मदरसा शिक्षा अक्सर हाशिये पर पड़े समुदायों के लिये सुलभ होती है, जिससे परिवार आर्थिक बाधाओं के कारण इन संस्थानों को चुन सकते हैं। इससे गरीबी का चक्र बने रहने के साथ सामाजिक-आर्थिक गतिशीलता सीमित हो सकती है।
- उग्रवाद और कट्टरपंथ: कुछ मदरसों की उग्रवादी विचारधाराओं को बढ़ावा देने या कट्टरपंथ को बढ़ावा देने के लिये आलोचना की गई है।
- सीमित व्यावसायिक प्रशिक्षण: अधिकांश मदरसे व्यावसायिक प्रशिक्षण या कौशल विकास कार्यक्रम प्रदान नहीं करते हैं। इससे छात्रों के व्यावहारिक कौशल के साथ रोज़गार क्षमता सीमित हो जाती है, जिससे व्यापक कार्यबल में उनका एकीकरण बाधित होता है।
- लैंगिक असमानताएँ: कई मदरसे ऐतिहासिक रूप से पुरुष-प्रधान रहे हैं, जहाँ बालिकाओं को कम अवसर मिलते हैं। इससे शिक्षा में लैंगिक असमानताएँ बढ़ने के साथ समाज में महिलाओं की भागीदारी सीमित हो सकती है।
- अपर्याप्त बुनियादी ढाँचा: कई मदरसे अपर्याप्त बुनियादी ढाँचे से ग्रसित हैं जिसमें अपर्याप्त कक्षाएँ, पुस्तकालयों की कमी और अपर्याप्त शैक्षिक सामग्री की समस्याएँ हैं। इससे सीखने के माहौल पर काफी असर पड़ सकता है।
- आधुनिकीकरण का प्रतिरोध: कुछ मदरसों में प्रौद्योगिकी को एकीकृत करने के क्रम में आधुनिक शैक्षिक प्रथाओं को अपनाने का प्रतिरोध हो सकता है, जिससे छात्रों के समग्र विकास में बाधा उत्पन्न हो सकती है।
आगे की राह
- व्यावसायिक प्रशिक्षण: मदरसों में व्यावसायिक और कौशल विकास कार्यक्रम शुरू करना ताकि छात्रों को व्यावहारिक कौशल से युक्त किया जा सके, जिससे वे नौकरी के बाज़ार में प्रभावी रूप से प्रतिस्पर्द्धा करने में सक्षम हो सकें।
- समग्र विकास: सभी के लिये शिक्षा के अधिकार को सुनिश्चित करने के क्रम में सार्वजनिक संस्थानों को गुणवत्तापूर्ण औपचारिक शिक्षा का विस्तार करना चाहिये, जिसमें नैतिक शिक्षा एवं कौशल विकास को शामिल किया जाए। इसके साथ ही अनौपचारिक और धार्मिक शिक्षा प्रणालियों पर निर्भरता में कमी लानी चाहिये।
- गुणवत्ता मानक और मान्यता: आधुनिक शैक्षिक प्रथाओं के अनुपालन को सुनिश्चित करने के लिये मान्यता प्रणाली सहित मदरसों के लिये नियामक ढाँचे और गुणवत्ता मानकों की स्थापना करना।
- न्यायसंगत वित्तपोषण: सभी शैक्षणिक संस्थानों को सहायता प्रदान करने वाली निष्पक्ष वित्तपोषण नीतियों को लागू करना तथा यह सुनिश्चित करना कि सार्वजनिक निधियों से धार्मिक विचारधाराओं को बढ़ावा दिये बिना शैक्षणिक गुणवत्ता और बुनियादी ढाँचे में वृद्धि हो।
- सामुदायिक सहभागिता: समग्र शिक्षा और साक्षरता के महत्त्व पर ज़ोर देने के लिये माता-पिता, सामुदायिक नेताओं तथा गैर सरकारी संगठनों के साथ जागरूकता एवं सहयोग को बढ़ावा देना, परिवारों को अपने बच्चों के लिये औपचारिक शिक्षा को प्राथमिकता देने के लिये प्रोत्साहित करना।
दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: प्रश्न: भारत में मदरसों के वित्तपोषण और प्रशासन में सरकारों की भूमिका की जाँच करें। आधुनिक शिक्षा को धार्मिक शिक्षा के साथ एकीकृत करने में मदरसों को किन चुनौतियों का सामना करना पड़ता है? |
यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. सरकार के समावेशित वृद्धि लक्ष्य को आगे ले जाने में निम्नलिखित में से कौन-सा/से कार्य सहायक साबित हो सकता/सकते है/हैं? (2011)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 उत्तर: (d) मेन्स:प्रश्न. उच्च संवृद्धि के लगातार अनुभव के बावजूद, भारत के मानव विकास के निम्नतम संकेतक चल रहे हैं। उन मुद्दों का परीक्षण कीजिये, जो संतुलित और समावेशी विकास को पकड़ में आने नहीं दे रहे हैं। (2019) प्रश्न. “शिक्षा एक निषेधाज्ञा नहीं है, यह व्यक्ति के समग्र विकास और सामाजिक बदलाव के लिये एक प्रभावी एवं व्यापक साधन है”। उपर्युक्त कथन के आलोक में नई शिक्षा नीति, 2020 (एन.ई.पी., 2020) का परीक्षण कीजिये। (2020) |