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शासन व्यवस्था

चुनाव उम्मीदवार की निजता का अधिकार

  • 13 Apr 2024
  • 10 min read

प्रिलिम्स के लिये:

सर्वोच्च न्यायालय, निर्वाचन आयोग, निजता का अधिकार, जन प्रतिनिधित्व अधिनियम (RPA), 1951 

मेन्स के लिये:

चुनावी प्रक्रिया में निजता के अधिकार एवं पारदर्शिता के बीच संतुलन, चुनावी सुधार, चुनावों को अधिक निष्पक्ष और पारदर्शी बनाना।

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय दिया है कि चुनाव लड़ने वाले प्रत्येक उम्मीदवार को उसके पास मौजूद प्रत्येक चल संपत्ति की घोषणा करने की आवश्यकता नहीं है।

  • न्यायालय ने निर्णय दिया कि उम्मीदवार अपने जीवन के प्रत्येक विवरण को जाँच के लिये उजागर नहीं कर सकते हैं और उनके पास भी मतदाताओं के समान ही निजता का भी अधिकार है।

मामले से जुड़े मुख्य तथ्य क्या हैं?

  • सर्वोच्च न्यायालय, अरुणाचल प्रदेश के एक विधायक द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जिसमें वर्ष 2023 के गुवाहाटी उच्च न्यायालय के निर्णय को चुनौती दी गई थी, जिसमें 1961 के चुनाव संचालन नियमों के साथ संलग्न फॉर्म में दायर अपने हलफनामे में तीन वाहनों को अपनी संपत्ति के रूप में घोषित नहीं करने के कारण उनके चुनाव को अमान्य घोषित कर दिया गया था। 
  • याचिका में कहा गया है कि चुनावी उम्मीदवार ने उक्त वाहनों के स्वामित्व की घोषणा नहीं की जिस कारण उसे जन प्रतिनिधित्व अधिनियम (RPA), 1951 की धारा 123 के तहत "भ्रष्ट आचरण" का माना गया।
  • सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि किसी उम्मीदवार द्वारा उन मामलों पर अपनी गोपनीयता बनाए रखने का विकल्प जो मतदाताओं के लिये कोई चिंता का विषय नहीं थे अथवा सार्वजनिक पद हेतु उसकी उम्मीदवारी के लिये अप्रासंगिक थे, RRA, 1951 की धारा 123 के तहत "भ्रष्ट आचरण" नहीं है।
    • साथ ही इस तरह का गैर-प्रकटीकरण 1951 अधिनियम की धारा 36(4) के तहत "महत्त्वपूर्ण प्रकृति का दोष" नहीं माना जाएगा।
  • न्यायालय ने स्पष्ट किया कि मतदाताओं को उस जानकारी का खुलासा करने का अधिकार है जो उस उम्मीदवार को चुनने के लिये आवश्यक है जिसके लिये वोट डाला जाना चाहिये।

निजता का अधिकार क्या है?

  • निजता का अधिकार एक मौलिक अधिकार है, जो व्यक्ति को राज्य और गैर-राज्य दोनों तत्त्वों के हस्तक्षेप से बचाता है तथा व्यक्ति को स्वायत्त जीवन विकल्प चुनने की अनुमति देता है।
  • सर्वोच्च न्यायालय ने वर्ष 2017 में के.एस. पुट्टास्वामी बनाम भारत संघ के ऐतिहासिक निर्णय में निजता एवं उसके महत्त्व का वर्णन करते हुए कहा कि निजता का अधिकार एक मौलिक व अविभाज्य अधिकार है और यह उस व्यक्ति से जुड़ा है जिसमें उस व्यक्ति तथा उसके द्वारा चुने गए विकल्पों के बारे में संपूर्ण जानकारी शामिल है।
  • निजता का अधिकार अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार के आंतरिक भाग के रूप में संरक्षित है।

RPA 1951 और अधिनियम के तहत भ्रष्ट आचरण क्या है?

  • परिचय: 
    • वर्ष 1951 का RPA निर्वाचन के संचालन और निर्वाचित प्रतिनिधियों की योग्यता व अयोग्यता को नियंत्रित करता है।
  • प्रावधान:
    • यह निर्वाचन के संचालन को नियंत्रित करता है।
    • यह संसद के विधायी सदनों की सदस्यता के लिये योग्यता और अयोग्यताएँ निर्दिष्ट करता है,
    • यह भ्रष्ट आचरण और अन्य अपराधों पर अंकुश लगाने का भी प्रावधान करता है।
    • यह निर्वाचन से उत्पन्न होने वाले संदेहों और विवादों को निपटाने की प्रक्रिया निर्धारित करता है।
    • 1951 के अधिनियम की धारा 36(4) में उल्लेख है कि रिटर्निंग अधिकारी किसी भी दोष के आधार पर किसी भी नामांकन पत्र को अस्वीकार नहीं करेगा जो सही चरित्र का नहीं है।
  • RPA, 1951 के तहत भ्रष्ट आचरण:
    • भ्रष्ट आचरण: अधिनियम की धारा 123 'भ्रष्ट आचरण' को परिभाषित करती है जिसमें रिश्वतखोरी, अनुचित प्रभाव, गलत जानकारी और निर्वाचन में अपनी संभावनाओं को आगे बढ़ाने के लिये एक उम्मीदवार द्वारा "धर्म, नस्ल, जाति, समुदाय या भाषा के आधार पर भारत के नागरिकों के विभिन्न वर्गों के बीच शत्रुता या घृणा की भावनाओं" को बढ़ावा देना। 
      • अभिराम सिंह बनाम सी. डी. कॉमाचेन मामले (2017) में सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय सुनाया कि उम्मीदवारों को न केवल अपने धर्म के आधार पर बल्कि मतदाताओं के धर्म के आधार पर भी वोट की अपील करने से प्रतिबंधित किया गया है
    • अनुचित प्रभाव: यह धारा अनुचित प्रभाव को धमकियों सहित किसी भी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष हस्तक्षेप के रूप में परिभाषित करती है, जो चुनावी अधिकारों के स्वतंत्र अभ्यास में बाधा डालती है।
    • अयोग्यता: धारा 123(4) कुछ अपराधों, भ्रष्ट आचरण, चुनावी खर्चों की घोषणा करने में विफलता, या सरकारी अनुबंधों या कार्यों में रुचि रखने के लिये एक निर्वाचित प्रतिनिधि को अयोग्य घोषित करने की अनुमति देती है।
  • महत्त्व:
    • यह अधिनियम भारतीय लोकतंत्र के सुचारू कामकाज के लिये महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यह आपराधिक पृष्ठभूमि वाले व्यक्तियों के प्रतिनिधि निकायों में प्रवेश पर रोक लगाता है, और इस प्रकार भारतीय राजनीति को अपराधमुक्त कर देता है।
    • अधिनियम के अनुसार प्रत्येक उम्मीदवार को अपनी संपत्ति और देनदारियों की घोषणा करनी होगी तथा चुनाव के खर्चों का लेखा-जोखा रखना होगा।
      • यह प्रावधान सार्वजनिक धन के उपयोग में उम्मीदवार की जवाबदेही और पारदर्शिता सुनिश्चित करता है।
    • यह बूथ कैप्चरिंग, रिश्वतखोरी या शत्रुता को बढ़ावा देने आदि जैसी भ्रष्ट प्रथाओं पर रोक लगाता है, जो चुनावों की वैधता और स्वतंत्र व निष्पक्ष आचरण सुनिश्चित करती हैं।
    • अधिनियम में प्रावधान है कि केवल वे राजनीतिक दल जो RPA अधिनियम, 1951 की धारा 29A के तहत पंजीकृत हैं, चुनावी बॉण्ड प्राप्त करने के पात्र हैं, और चुनावी फंडिंग में पारदर्शिता सुनिश्चित करते हैं।

दृष्टि मुख्य प्रश्न:

प्रश्न. संपत्ति के प्रकटीकरण के संबंध में चुनाव उम्मीदवारों की निजता के अधिकार पर सर्वोच्च न्यायालय के हालिया निर्णय के निहितार्थ पर चर्चा कीजिये।

 UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न 

प्रिलिम्स:

प्रश्न. 'निजता का अधिकार' भारत के संविधान के किस अनुच्छेद के तहत संरक्षित है?

(a) अनुच्छेद 15
(b) अनुच्छेद 19
(c) अनुच्छेद 21
(d) अनुच्छेद 29

उत्तर: (c)


प्रश्न 2. निजता के अधिकार को जीवन एवं व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार के अंतर्भूत भाग के रूप में संरक्षित किया जाता है। भारत के संविधान में निम्नलिखित में से किससे उपर्युक्त कथन सही एवं समुचित ढंग से अर्थित होता है? (2018)

(a) अनुच्छेद 14 एवं संविधान के 42वें संशोधन के अधीन उपबंध।
(b) अनुच्छेद 17 एवं भाग IV में  दिये राज्य के नीति के निर्देशक तत्त्व।
(c) अनुच्छेद 21 एवं भाग III में गारंटी की गई स्वतंत्रताएँ।
(d) अनुच्छेद 24 एवं संविधान के 44वें संशोधन के अधीन उपबंध।

उत्तर: (c)


मेन्स:

प्रश्न. निजता के अधिकार पर सर्वोच्च न्यायालय के नवीनतम निर्णय के आलोक में मौलिक अधिकारों के विस्तार का परीक्षण कीजिये। (2017)

प्रश्न. "लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम के अंतर्गत भ्रष्ट आचरण के दोषी व्यक्तियों को अयोग्य ठहराने की प्रक्रिया के सरलीकरण की आवश्यकता है"। टिप्पणी कीजिये। (2020)

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