भारतीय राजव्यवस्था
निजी क्षेत्र में स्थानीय लोगों के लिये आरक्षण
- 20 Jul 2024
- 13 min read
प्रिलिम्स के लिये:अनुच्छेद 16(4), अनुच्छेद 16(2), अनुच्छेद 19(1)(g), अनुच्छेद 19(1)(d) एवं (e), संवैधानिक नैतिकता, आरक्षण नीति मेन्स के लिये:निवास के आधार पर आरक्षण: वैधता, पक्ष और विपक्ष में तर्क, आगे की राह |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
हाल ही में कर्नाटक सरकार ने उद्योग जगत की आलोचना के बाद निजी क्षेत्र में स्थानीय लोगों के लिये आरक्षण अनिवार्य करने वाले “उद्योगों, कारखानों और अन्य प्रतिष्ठानों में स्थानीय उम्मीदवारों के कर्नाटक राज्य रोज़गार विधेयक, 2024” पर प्रतिबंध लगा दिया है।
- सरकार ने अब राज्य विधानसभा में विधेयक को पुनः प्रस्तुत करने से पहले इसकी व्यापक समीक्षा करने का निर्णय लिया है।
हरियाणा में 10% अग्निवीर कोटा
- हाल ही में हरियाणा सरकार ने वर्ष 2022 में केंद्र सरकार द्वारा शुरू की गई अग्निपथ योजना के तहत भर्ती होने वाले अग्निवीरों के लिये रोज़गार के अवसर प्रदान करने की घोषणा की है। इसमें निम्नलिखित प्रावधान किये गए हैं-
- कांस्टेबल, माइनिंग गार्ड, फॉरेस्ट गार्ड, जेल वार्डर और एसपीओ भर्तियों में 10% आरक्षण।
- ग्रुप-बी और ग्रुप-सी के पदों के लिये आयु में छूट।
- ग्रुप-सी में 5% और ग्रुप-बी की सीधी भर्तियों में 1% आरक्षण।
- अग्निवीरों को काम पर रखने वाली निजी फर्मों के लिये सब्सिडी।
- बिज़नेस स्टार्टअप के लिये ऋण ब्याज लाभ।
- अग्निवीरों के लिये शस्त्र लाइसेंस और सरकारी नौकरियों में प्राथमिकता।
कर्नाटक का निजी क्षेत्र में स्थानीय लोगों के लिये आरक्षण विधेयक क्या है?
- आरक्षण नीति: विधेयक कर्नाटक में निजी क्षेत्र की कंपनियों, उद्योगों और उद्यमों के भीतर गैर-प्रबंधन पदों में 'स्थानीय उम्मीदवारों' के लिये 75% तथा प्रबंधन पदों पर 50% का पर्याप्त आरक्षण अनिवार्य करता है।
- 'स्थानीय उम्मीदवार' की परिभाषा: यह "स्थानीय उम्मीदवारों" को ऐसे व्यक्तियों के रूप में परिभाषित करता है जो राज्य में पैदा हुए हैं या कम-से-कम 15 वर्षों से कर्नाटक में रह रहे हैं एवं कन्नड़ बोलने, पढ़ने और लिखने में सक्षम हैं।
- कार्य वर्गीकरण: यह कार्यों को प्रबंधन और गैर-प्रबंधन भूमिकाओं में वर्गीकृत करता है।
- प्रबंधन भूमिकाओं में पर्यवेक्षी, प्रबंधकीय, तकनीकी, संचालनात्मक और प्रशासनिक पद शामिल होंगे।
- गैर-प्रबंधन भूमिकाओं में आईटी-आईटीईएस सेक्टर में लिपिक, अकुशल, अर्द्ध-कुशल और कुशल पद शामिल होंगे।
- कौशल विकास प्रावधान: उद्योगों को स्थानीय उम्मीदवारों के लिये कौशल अंतर को दूर करने के लिये प्रशिक्षण कार्यक्रम प्रदान करने की आवश्यकता होती है, योग्य स्थानीय उम्मीदवारों की अनुपस्थिति में कार्यान्वयन के लिये 3 वर्ष की समय-सीमा होती है।
- लचीले प्रावधान: यह विशिष्ट परिस्थितियों में गैर-प्रबंधन पदों पर आरक्षण कोटा में कमी करके 50% तथा प्रबंधन पदों पर 25% करने का प्रावधान करता है।
नोट:
- आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश एवं झारखंड सहित कई राज्यों ने भी नौकरी में आरक्षण के लिये मूल निवासियों से संबंधित विधेयक या विनियमन की घोषणा की है।
- आंध्र प्रदेश विधानसभा में वर्ष 2019 में पारित जॉब कोटा बिल में स्थानीय लोगों के लिये तीन-चौथाई निजी नौकरियाँ भी आरक्षित की गईं।
निवास-आधारित आरक्षण से संबंधित विधिक चुनौतियाँ क्या हैं?
- समानता एवं सकारात्मक कार्रवाई में संतुलन: निवास-आधारित आरक्षण भारत के संविधान के अंर्तगत एक विधिक चुनौती प्रस्तुत करता है।
- अनुच्छेद 14 कानून के समक्ष समानता की गारंटी देता है, जबकि अनुच्छेद 15 (धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव का निषेध) तथा अनुच्छेद 16 (सार्वजनिक रोज़गार में अवसर की समानता) गैर-निवासी उम्मीदवारों के प्रति पूर्वाग्रह के बिना पिछड़े वर्गों को लाभ पहुँचाने के लिये विशेष प्रावधान की अनुमति प्रदान करते हैं।
- सर्वोच्च न्यायालय एवं उच्च न्यायालय के निर्णय:
- डॉ. प्रदीप जैन बनाम भारत संघ (1984) मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि यद्यपि स्थानीय उम्मीदवारों को कुछ वरीयता दी जा सकती है, लेकिन यह पूर्णतः नहीं होनी चाहिये और गैर-स्थानीय उम्मीदवारों को पूरी तरह से इससे वंचित नहीं किया जाना चाहिये।
- सर्वोच्च न्यायालय ने मध्य प्रदेश सरकार से बी.एड सीटों में 75% अधिवास कोटा की समीक्षा करने को कहा।
- नवंबर 2023 में पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने निजी क्षेत्र में स्थानीय लोगों के लिये 75% आरक्षण अनिवार्य करने वाले हरियाणा के कानून को असंवैधानिक माना।
- न्यायालय ने नागरिकों के बीच कृत्रिम विभाजन पैदा करने और अहस्तक्षेप सिद्धांतों को बाधित करने के लिये कानून की आलोचना की। इसके बाद, हरियाणा सरकार ने इस निर्णय के विरुद्ध सर्वोच्च न्यायालय में अपील की।
- डॉ. प्रदीप जैन बनाम भारत संघ (1984) मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि यद्यपि स्थानीय उम्मीदवारों को कुछ वरीयता दी जा सकती है, लेकिन यह पूर्णतः नहीं होनी चाहिये और गैर-स्थानीय उम्मीदवारों को पूरी तरह से इससे वंचित नहीं किया जाना चाहिये।
- कोटे की सीमा: इंद्रा साहनी मामले (1992) में सर्वोच्च न्यायालय के फैसले में कहा गया था कि कुल आरक्षण, जिसमें स्थानीय आरक्षण भी शामिल है, उपलब्ध सीटों या पदों के 50% से अधिक नहीं होना चाहिये। यह सीमा आरक्षण की सभी श्रेणियों पर लागू होती है, जैसा कि मुख्य रूप से अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के लिये आरक्षण को संबोधित करने वाले फैसले पर ज़ोर दिया गया है।
निजी क्षेत्र आरक्षण विधेयक के पक्ष में तर्क क्या हैं?
- स्थानीय रोज़गार सृजन: इस नीति का उद्देश्य स्थानीय निवासियों के लिये रोज़गार के अवसर बढ़ाना, बेरोज़गारी को कम करना तथा यह सुनिश्चित करना है कि आर्थिक लाभ राज्य के भीतर ही बरकरार रहें।
- आर्थिक समता एवं संतुलित क्षेत्रीय विकास: इस नीति का उद्देश्य राज्य के भीतर संसाधन वितरण में असमानताओं को दूर करके आर्थिक समानता को बढ़ावा देना है।
- इसके अतिरिक्त यह आर्थिक अवसरों को केवल कुछ शहरी केंद्रों तक ही सीमित रखने के बजाय विभिन्न क्षेत्रों में फैलाकर संतुलित क्षेत्रीय विकास का समर्थन करता है।
- कौशल विकास: अनिवार्य प्रशिक्षण कार्यक्रम स्थानीय कार्यबल के कौशल को बढ़ा सकते हैं, जिससे वे अधिक प्रतिस्पर्द्धी बन सकते हैं तथा उद्योग की मांगों को पूरा करने के लिये बेहतर ढंग से सक्षम हो सकते हैं।
- सामाजिक स्थिरता: स्थानीय लोगों को अधिक रोज़गार के अवसर प्रदान करने से उनमें अपनत्व की भावना को बढ़ावा मिलेगा, सामाजिक तनाव कम होगा तथा सामुदायिक सद्भाव को बढ़ावा मिलेगा।
- प्रतिभा प्रतिधारण: यह नीति राज्य के भीतर कुशल व्यक्तियों संलग्न रखने, प्रतिभा पलायन को रोकने और उनकी विशेषज्ञता को स्थानीय अर्थव्यवस्था में योगदान सुनिश्चित करने में मदद कर सकती है।
- सांस्कृतिक संरक्षण: भाषा दक्षता की आवश्यकता स्थानीय भाषा और संस्कृति को संरक्षित तथा बढ़ावा देने में मदद करती है, जिससे एक मज़बूत सांस्कृतिक पहचान को बढ़ावा मिलता है।
निजी क्षेत्र आरक्षण विधेयक के विरुद्ध तर्क क्या हैं?
- व्यावसायिक प्रतिस्पर्द्धा पर प्रभाव: यह नीति कंपनियों की सर्वोत्तम प्रतिभाओं को नियुक्त करने की क्षमता को सीमित कर सकती है, जिससे उनकी कार्यकुशलता और प्रतिस्पर्द्धात्मकता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।
- कौशल की कमी: स्थानीय कार्यबल में विशिष्ट भूमिकाओं के लिये आवश्यक कौशल का अभाव हो सकता है, जिसके परिणामस्वरूप परिचालन अक्षमताएँ और प्रशिक्षण लागत में वृद्धि हो सकती है।
- निवेश निरोधक: स्थानीय स्तर पर नियुक्ति संबंधी प्रतिबंध घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय निवेशकों को हतोत्साहित कर सकते हैं, जिससे राज्य के आर्थिक विकास तथा रोज़गार सृजन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
- विधिक एवं प्रशासनिक बोझ: नीति का अनुपालन सुनिश्चित करने के क्रम में कंपनियों को अतिरिक्त विधिक एवं प्रशासनिक लागत का सामना करना पड़ सकता है।
- भेदभाव संबंधी चिंताएँ: इस नीति की आलोचना इस आधार पर की गई है कि इसमें गैर-स्थानीय उम्मीदवारों के प्रति भेदभाव किया गया है तथा यह समान अवसर के सिद्धांत का उल्लंघन करती है।
- आर्थिक प्रभाव: अधिवास-आधारित आरक्षण व्यवसायों को रोककर और नौकरी के अवसरों को सीमित करके राज्य की आर्थिक वृद्धि पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है।
- इसके अलावा, जिन क्षेत्रों में बड़ी मात्रा में आंतरिक प्रवास हो रहा है, वहाँ ऐसी नीतियाँ राष्ट्रीय एकीकरण और आर्थिक गतिशीलता में बाधा उत्पन्न कर सकती हैं।
- सामाजिक तनाव: यह नीति स्थानीय और गैर-स्थानीय निवासियों के बीच सामाजिक तनाव को बढ़ा सकती है, विभाजनकारी माहौल पैदा कर सकती है तथा सामाजिक एकता को कमज़ोर कर सकती है।
आगे की राह
- आरक्षण नीति को इस तरह से लागू किया जा सकता है कि देश में जनशक्ति संसाधनों की मुक्त आवाजाही में बाधा न आए।
- राज्य में अर्थव्यवस्था और उद्योगों पर इसके प्रभाव का आकलन करने के लिये आरक्षण नीति की समय-समय पर समीक्षा की जा सकती है।
- यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि लिया गया कोई भी नीतिगत निर्णय भारत के संविधान के अनुपालन में हो और नागरिकों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन न करे।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न: भारत में निजी रोज़गार में राज्य द्वारा लगाए गए अधिवास आरक्षण के पक्ष और विपक्ष में तर्कों का आकलन कीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. क्या राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग (NCSC) धार्मिक अल्पसंख्यक संस्थानों में अनुसूचित जातियों के लिये संवैधानिक आरक्षण के क्रियान्वयन का प्रवर्तन करा सकता है? परीक्षण कीजिये। (2018) |