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भारतीय राजव्यवस्था

असम मुस्लिम विवाह अधिनियम का निरस्तीकरण

  • 04 Mar 2024
  • 16 min read

प्रिलिम्स के लिये:

विशेष विवाह अधिनियम, 1954, असम मुस्लिम विवाह और विवाह-विच्छेद रजिस्ट्रीकरण अधिनियम 1935, समान नागरिक संहिता (UCC), तीन तलाक मामला

मेन्स के लिये:

मुस्लिम पर्सनल लॉ से संबंधित मुद्दे, विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप एवं उनकी रूपरेखा तथा कार्यान्वयन से उत्पन्न होने वाले मुद्दे

स्रोत:  इंडियन एक्सप्रेस 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में असम सरकार ने असम मुस्लिम विवाह और विवाह-विच्छेद रजिस्ट्रीकरण अधिनियम, 1935 को निरस्त करते हुए असम निरसन अध्यादेश (Assam Repealing Ordinance), 2024 को मंज़ूरी दी।

  • इस निर्णय के बाद वर्तमान में अब मुस्लिम विवाह अथवा विवाह-विच्छेद का रजिस्ट्रीकरण केवल विशेष विवाह अधिनियम, 1954 के माध्यम से ही किया जा सकता है।

असम मुस्लिम विवाह और विवाह-विच्छेद रजिस्ट्रीकरण अधिनियम, 1935 क्या है?

  • यह अधिनियम 1935 में अधिनियमित मुस्लिम  पर्सनल लॉ (Muslim Personal Law) के अनुरूप है। यह अधिनियम मुस्लिम विवाह और विवाह-विच्छेद के पंजीकरण की प्रक्रिया निर्धारित करता है।
  • वर्ष 2010 में संशोधन के माध्यम से मूल अधिनियम में 'स्वैच्छिक' पद को 'अनिवार्य' से प्रतिस्थापित कर दिया गया जिससे असम राज्य में मुस्लिम विवाह और विवाह-विच्छेद का पंजीकरण अनिवार्य हो गया।
  • यह अधिनियम राज्य को विवाह और विवाह-विच्छेद को पंजीकृत करने के लिये "किसी भी मुस्लिम व्यक्ति को" लाइसेंस प्रदान करने का अधिकार देता है। मुस्लिम रजिस्ट्रार को लोक सेवक की संज्ञा दी है।
  • यह उस प्रक्रिया का वर्णन करता है जिसके माध्यम से विवाह और तलाक के आवेदन रजिस्ट्रार को किये जा सकते हैं तथा इसके साथ ही पंजीकरण की प्रक्रिया भी स्पष्ट की गई है।

असम मुस्लिम विवाह एवं विवाह-विच्छेद रजिस्ट्रीकरण अधिनियम को निरस्त करने के पीछे क्या कारण हैं?

  • समसामयिक मानदंडों के साथ संरेखण: 
    • यह अधिनियम को पुराना है और साथ ही आधुनिक सामाजिक मानदंडों के अनुरूप भी नहीं है। इसमें विवाह के पंजीकरण की अनुमति दी गई थी यदि दूल्हा और दुल्हन क्रमशः 21 तथा 18 वर्ष की कानूनी विवाह योग्य आयु तक नहीं पहुँचे थे, जो विवाह योग्य आयु के संबंध में वर्तमान कानूनी मानकों का खंडन करता था।
  • बाल विवाह पर रोक: 
    • यह निर्णय बाल विवाह को रोकने हेतु सरकार के निरंतर प्रयासों के संयोजन में किया गया था। सरकार द्वारा अधिनियम को निरस्त करके असम में बाल विवाह को समाप्त करने का प्रयास कर रही है, जिसमें बाल विवाह को रिकॉर्ड करने की अनुमति देने वाले प्रावधान शामिल थे।
  • अनौपचारिकता एवं सत्ता का दुरुपयोग: 
    • इस अधिनियम ने विवाह पंजीकरण हेतु एक अनौपचारिक तंत्र प्रदान किया, जिसके कारण काज़ियों (विवाह आयोजित करने के लिये ज़िम्मेदार सरकार-पंजीकृत अधिकारी) द्वारा संभावित दुरुपयोग हुआ।
    • सुधार की आवश्यकता पर प्रकाश डालते हुए,बाल विवाह एवं उचित आधार के बिना तलाक की सुविधा दिये जाने के आरोप लगाए गए थे।
  • समान नागरिक संहिता (UCC) की ओर बढ़ना: 
    • इस अधिनियम को निरस्त करने के निर्णय को उत्तराखंड के हालिया कदम के समान असम में समान नागरिक संहिता लागू करने की दिशा में एक प्रयास के रूप में भी देखा जा रहा है।
    • सरकार का लक्ष्य विभिन्न समुदायों में विवाह कानूनों को सुव्यवस्थित करना और साथ ही उन्हें एक सामान्य कानूनी ढाँचे के तहत लाना भी है।

अधिनियम के निरसन के विरुद्ध तर्क क्या हैं?

  • अधिनियम द्वारा विवाह पंजीकरण के लिये एक सरल एवं विकेंद्रीकृत प्रक्रिया प्रदान की (राज्य के 94 काज़ियों के साथ), जबकि, विशेष विवाह अधिनियम की जटिलताएँ हैं, जो कुछ व्यक्तियों, विशेष रूप से गरीबों तथा अशिक्षितों के विवाह पंजीकरण को रोक सकती हैं।
  • अन्य लोगों के साथ विभिन्न समूहों एवं अधिवक्ताओं ने इस अधिनियम की आलोचना की और साथ ही इसे न्यायालय में चुनौती भी दी।
  • पूर्ण निरसन के निहितार्थों के बारे में चिंताएँ व्यक्त की गईं, जिनमें अपंजीकृत विवाहों की बढ़ती घटनाओं की संभावना भी शामिल थी।

हाल के वर्षों में मुस्लिम  पर्सनल लॉ लोगों की नज़रों में क्यों रहा है?

  • कानूनी सुधार एवं न्यायिक हस्तक्षेप: 
    • मुस्लिम  पर्सनल लॉ से संबंधित मामलों में विशेष कानूनी सुधार एवं न्यायिक हस्तक्षेप हुए हैं।
      • वर्ष 2017 में तीन तलाक मामला (शायरा बानो बनाम भारत संघ) जैसे ऐतिहासिक मामलों तथा उसके बाद के मामलों ने तात्कालिक तलाक, बहुविवाह एवं मुस्लिम विवाह में महिलाओं के अधिकारों जैसे मुद्दों को सुर्खियों में ला दिया है।
    • इन मामलों द्वारा समानता के साथ-साथ न्याय के संवैधानिक सिद्धांतों के अनुरूप मुस्लिम  पर्सनल लॉ में सुधारों को उजागर किया है।
  • लैंगिक न्याय एवं महिला अधिकार: 
    • महिलाओं के अधिकरों के साथ-साथ लैंगिक न्याय मुस्लिम  पर्सनल लॉ में प्रमुख मुद्दे बन गए हैं।
      • बहस तीन तलाक जैसे मुद्दों पर केंद्रित है, जो पतियों को कानूनी कार्यवाही के बिना अपनी पत्नियों को तात्कालिक तलाक देने की अनुमति प्रदान करता है और साथ ही निकाह हलाला की प्रथा जहाँ एक महिला को अपने पूर्व पति से दोबारा शादी करने से पहले किसी अन्य पुरुष से शादी करनी होती है उसे तलाक देना होता है।
    • इन प्रथाओं को महिलाओं के प्रति भेदभावपूर्ण एवं अन्यायपूर्ण होने के कारण आलोचना का सामना करना पड़ा है।
  • सामाजिक परिवर्तन एवं सक्रियता: 
    • लैंगिक समानता पर बढ़ती सक्रियता एवं परिवर्तित सामाजिक दृष्टिकोण के कारण मुस्लिम  पर्सनल लॉ की गहन जाँच की गई है।
    • महिला अधिकार कार्यकर्त्ताओं, विद्वानों एवं नागरिक समाज संगठनों द्वारा विवाह, तलाक, भरण-पोषण के साथ-साथ विरासत के मामलों में लैंगिक समानता तथा महिलाओं के अधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये मुस्लिम  पर्सनल लॉ के भीतर सुधारों की वकालत की है।
  • राजनीतिक गतिशीलता: 
    • मुस्लिम  पर्सनल लॉ भी एक राजनीतिक मुद्दा बन गया है, जिसमें विभिन्न राजनीतिक दल और हित समूह तीन तलाक एवं एक समान नागरिक संहिता जैसे मामलों पर विशेष ध्यान दे रहे हैं।
    • इन मुद्दों पर होने वाली बहसें अमूमन व्यापक राजनीतिक एजेंडे से संबंधित होती हैं जिससे जनता का ध्यान आकर्षित होता है और यह चर्चा का विषय बन जाता है।
  • सांविधानिक सिद्धांत:
    •  पर्सनल लॉ से संबंधित मामलों में समता, न्याय और भेदभाव रहित सांविधानिक सिद्धांतों को बनाए रखने की आवश्यकता पर ज़ोर दिया जा रहा है।
    • धार्मिक संबद्धता की परवाह किये बिना सांविधानिक अधिकारों और सभी नागरिकों के लिये समान व्यवहार सुनिश्चित करने की आवश्यकता के संदर्भ में  मुस्लिम  पर्सनल लॉ में सुधार की मांग की जाती है।

मुस्लिम  पर्सनल लॉ क्या है?

  • परिचय:
    • मुस्लिम  पर्सनल लॉ (Muslim Personal Law) का आशय इस्लाम धर्म के अनुयायियों के वैयक्तिक मामलों को नियंत्रित करने वाले विधियों के समूह से है।
    • ये कानून/विधि वैयक्तिक जीवन के विभिन्न पहलुओं से संबंधित होते हैं जिनमें विवाह, तलाक, विरासत/उत्तराधिकार और पारिवारिक नातेदारी शामिल हैं।
    • मुस्लिम  पर्सनल लॉ मुख्य रूप से कुरान, हदीस (पैगंबर मुहम्मद की उक्तियाँ और कार्य) और इस्लामी विधिशास्त्र पर आधारित है।
  • मुस्लिम  पर्सनल लॉ से संबंधित मुद्दे:
    • शरिया अथवा मुस्लिम  पर्सनल लॉ के अनुसार पुरुषों को बहुविवाह की अनुमति है जिसके तहत वे एक ही समय में एक से अधिक, कुल चार विवाह कर सकते हैं।
    • 'निकाह हलाला' एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें एक मुस्लिम महिला को अपने विच्छिन्न विवाह पति से पुनः विवाह करने से पूर्व उसे किसी अन्य व्यक्ति से विवाह करना होता है और उससे तलाक लेना होता है।
    • कोई भी मुस्लिम व्यक्ति तीन माह तक एक बार तलाक बोलकर अपनी पत्नी को तलाक दे सकता है। इस प्रथा को तलाक-ए-हसन कहा जाता है।
      • "तीन तलाक" के तहत कोई संबद्ध व्यक्ति ईमेल अथवा टेक्स्ट संदेश सहित किसी भी रूप में "तलाक" शब्द को तीन बार दोहराकर अपनी पत्नी को तलाक दे सकता है।
      • इस्लाम में तलाक और खुला क्रमशः पुरुषों तथा महिलाओं के लिये विवाह विच्छेद को संदर्भित किये जाने वाले दो शब्द हैं। एक पुरुष 'तलाक' के माध्यम से अपनी पति से अलग हो सकता है जबकि एक महिला 'खुला' के माध्यम से अपने पति से अलग हो सकती है।
  • भारत में अनुप्रयोग:
    • मुस्लिम  पर्सनल लॉ (शरीयत) अधिनियम वर्ष 1937 में पारित किया गया था जिसका उद्देश्य भारत में मुस्लिम समुदाय के लोगों के लिये एक इस्लामिक विधि कूट तैयार करना था।
    • अंग्रेज़ जो तत्कालीन समाय में शासन कर रहे थे यह सुनिश्चित करने का प्रयास कर रहे थे कि भारतीयों पर उनके अपने सांस्कृतिक मानदंडों के अनुसार शासन किया जाए।
    • हिंदू धर्मं के लोगों और मुस्लिम समुदायों के लिये बनाए गए कानूनों के बीच भेद करते हुए उन्होंने बयान दिया कि हिंदुओं के मामले में "उपयोग का स्पष्ट प्रमाण विधि के लिखित पाठ से अधिक महत्त्वपूर्ण होगा" जबकि मुस्लिम समुदाय के लोगों के लिये कुरान में उल्लिखित बातें सबसे महत्त्वपूर्ण होंगी।
    • इसलिये वर्ष 1937 से, मुस्लिम स्वयीय विधि (शरीयत) अधिनियम मुस्लिम सामाजिक जीवन के पहलुओं जैसे- विवाह, तलाक, विरासत और पारिवारिक संबंधों को अनिवार्य बनाता है
    • अधिनियम में कहा गया है कि व्यक्तिगत विवाद के मामलों में राज्य हस्तक्षेप नहीं करेगा।
  • अन्य धर्मों में व्यक्तिगत कानून:
    • हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 जो हिंदुओं, बौद्धों, जैनियों और सिखों के बीच संपत्ति विरासत के लिये दिशा-निर्देश देता है।
    • पारसी विवाह और तलाक अधिनियम, 1936 पारसियों द्वारा उनकी धार्मिक परंपराओं के अनुसार पालन किये जाने वाले नियमों को निर्धारित करता है।
    • हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 ने हिंदुओं के बीच विवाह से संबंधित कानूनों को संहिताबद्ध किया था।

आगे की राह  

  • मुस्लिम  पर्सनल लॉ सहित व्यक्तिगत कानूनों में सुधार के लिये एक क्रमिक दृष्टिकोण, उन्हें आधुनिक सामाजिक दृष्टिकोण के साथ संरेखित करने के लिये महत्त्वपूर्ण है। इसमें व्यापक समीक्षा, हितधारकों के साथ परामर्श और जन जागरूकता पहल शामिल हैं।
  • विधायी सुधारों में धार्मिक विविधता का सम्मान करते हुए संवैधानिक मूल्यों को कायम रखा जाना चाहिये।
  • वैकल्पिक विवाद समाधान तंत्र को बढ़ावा देने के साथ-साथ महिलाओं को सशक्त बनाना और उनके प्रतिनिधित्व को बढ़ाव देना प्रमुख प्राथमिकताएँ हैं।
  • संस्थागत क्षमता को मज़बूत करना और कार्यान्वयन की निगरानी करना प्रभावी सुधार सुनिश्चित करता है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. भारत के संविधान का कौन-सा अनुच्छेद अपनी पसंद के व्यक्ति से विवाह करने के किसी व्यक्ति के अधिकार को संरक्षण देता है? (2019)

(a) अनुच्छेद 19
(b) अनुच्छेद 21
(c) अनुच्छेद 25
(d) अनुच्छेद 29

उत्तर: (b)

व्याख्या:

  • विवाह का अधिकार भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के अधिकार का एक घटक है जिसमें कहा गया है कि "कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अलावा किसी भी व्यक्ति को उसके जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित नहीं किया जाएगा"।
  • लता सिंह बनाम  उत्तर प्रदेश राज्य मामला, 2006 में सर्वोच्च न्यायालय ने विवाह के अधिकार को भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के अधिकार के एक घटक के रूप में निर्णय सुनाया।

अतः विकल्प (b) सही उत्तर है।


मेन्स:

प्रश्न.रीति-रिवाज़ और परंपराएँ तर्क को दबा देती हैं जिससे रूढ़िवादिता पैदा होती है। क्या आप सहमत हैं? (2020)

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