अंग प्रत्यारोपण में सुधार | 15 Jan 2024
प्रिलिम्स के लिये:मानव अंग और ऊतक प्रत्यारोपण अधिनियम, 1994, राष्ट्रीय अंग प्रत्यारोपण दिशानिर्देश, राष्ट्रीय अंग और ऊतक प्रत्यारोपण संगठन (NOTTO) मेन्स के लिये:अंग दान और प्रत्यारोपण - संबंधित नैतिक चिंताएँ, अंग प्रत्यारोपण में उभरते मुद्दे। |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
हाल ही में, दिल्ली उच्च न्यायालय ने जीवित दाताओं से जुड़े अंग प्रत्यारोपण प्रक्रियाओं को पूरा करने के लिये 6 से 8 सप्ताह की समय सीमा का प्रस्ताव दिया है।
- उच्च न्यायालय ने सरकार को मानव अंग और ऊतक प्रत्यारोपण अधिनियम {The Transplantation of Human Organs and Tissues (THOT ) Act },1994 और मानव अंग और ऊतक प्रत्यारोपण नियम (THOT नियम), 2014 के अनुसार अंग दान आवेदनों के सभी चरणों के लिये विशिष्ट समय-सीमा स्थापित करने का निर्देश दिया।
मानव अंग और ऊतक प्रत्यारोपण अधिनियम,1994 क्या है?
- परिचय:
- यह कानून भारत में मानव अंगों और ऊतकों के प्रत्यारोपण को नियंत्रित करता है, जिसमें मृत्यु के बाद अंगों का दान भी शामिल है।
- यह स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं और अस्पतालों को नियंत्रित करने वाले नियम बनाता है तथा उल्लंघन के लिये दंड निर्धारित करता है।
- अंग दाता और प्राप्तकर्त्ता:
- प्रत्यारोपण या तो मृत व्यक्तियों के अंगों से हो सकता है जो उनके रिश्तेदारों द्वारा दान किया गया हो या किसी जीवित व्यक्ति से हो सकता है जो प्राप्तकर्त्ता को पता हो।
- अधिकतर मामलों में, अधिनियम माता-पिता, भाई-बहन, बच्चों, पति-पत्नी, दादा-दादी और पोते-पोतियों जैसे करीबी रिश्तेदारों से जीवनयापन के लिये दान की अनुमति देता है।
- दूर के रिश्तेदारों और विदेशियों से दान:
- दूर के रिश्तेदारों, ससुराल वालों या लंबे समय के दोस्तों से परोपकारी दान को अतिरिक्त जाँच के बाद अनुमति दी जाती है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि कोई वित्तीय विनिमय न हो।
- भारतीयों या विदेशियों से जुड़े करीबी रिश्तेदारों से जीवित दान के साथ उनकी पहचान स्थापित करने वाले दस्तावेज़, परिवार और दाता-प्राप्तकर्त्ता संबंध साबित करने फोटोग्राफिक साक्ष्य की शामिल होने चाहिये।
- दानकर्त्ताओं और प्राप्तकर्त्ताओं का भी साक्षात्कार लिया जाता है।
- असंबद्ध व्यक्तियों से दान:
- असंबद्ध व्यक्तियों से दान के लिये प्राप्तकर्त्ता के साथ उनके दीर्घकालिक संबंध या मित्रता को साबित करने के लिये दस्तावेज़ों और फोटोग्राफिक साक्ष्य की आवश्यकता होती है।
- अवैध लेन-देन को रोकने के लिये एक बाहरी समिति द्वारा इनकी जाँच की जाती है।
- ज़ुर्माना एवं दण्ड:
- अंगों के लिये भुगतान की पेशकश करना या भुगतान के लिये उनकी आपूर्ति करना, ऐसी व्यवस्था शुरू करना, बातचीत करना या विज्ञापन करना, अंगों की आपूर्ति के लिये व्यक्तियों की तलाश करना और झूठे दस्तावेज़ तैयार करने में सहयोग करने पर 10 साल तक की जेल तथा 1 करोड़ रुपए तक का ज़ुर्माना हो सकता है।
- NOTTO का गठन:
- राष्ट्रीय अंग और ऊतक प्रत्यारोपण संगठन (National Organ and Tissue Transplant Organization- NOTTO) स्वास्थ्य सेवा महानिदेशालय, स्वास्थ्य तथा परिवार मंत्रालय के तहत स्थापित एक राष्ट्रीय स्तर का संगठन है।
- इसे मानव अंग प्रत्यारोपण (संशोधन) अधिनियम, 2011 के अनुसार अनिवार्य किया गया है।
- NOTTO का राष्ट्रीय नेटवर्क प्रभाग देश में अंगों और ऊतकों की खरीद तथा वितरण एवं अंगों व ऊतकों के दान और प्रत्यारोपण की रजिस्ट्री के लिये समन्वय तथा नेटवर्किंग की अखिल भारतीय गतिविधियों के लिये शीर्ष केंद्र के रूप में कार्य करेगा।
- राष्ट्रीय अंग और ऊतक प्रत्यारोपण संगठन (National Organ and Tissue Transplant Organization- NOTTO) स्वास्थ्य सेवा महानिदेशालय, स्वास्थ्य तथा परिवार मंत्रालय के तहत स्थापित एक राष्ट्रीय स्तर का संगठन है।
THOT नियम, 2014 क्या हैं?
- प्राधिकरण समिति:
- वर्ष 2014 के नियमों का नियम 7 प्राधिकरण समिति के गठन और उसके द्वारा की जाने वाली जाँच तथा मूल्यांकन की प्रकृति का प्रावधान करता है।
- नियम 7(3) में कहा गया है कि समिति को यह सुनिश्चित करना चाहिये कि ऐसे मामलों में कोई वाणिज्यिक लेन-देन शामिल नहीं है जहाँ दाता और प्राप्तकर्त्ता करीबी संबंधी नहीं हैं।
- नियम 7(5) कहता है कि यदि प्राप्तकर्त्ता गंभीर स्थिति में है और एक सप्ताह के भीतर प्रत्यारोपण की आवश्यकता है, तो शीघ्र मूल्यांकन के लिये अस्पताल से संपर्क किया जा सकता है।
- जीवित दाता प्रत्यारोपण:
- जीवित दाता प्रत्यारोपण के लिये नियम 10 आवेदन प्रक्रिया का वर्णन करता है, जिसके लिये दाता और प्राप्तकर्त्ता द्वारा संयुक्त आवेदन की आवश्यकता होती है।
- नियम 21 के अनुसार समिति को आवेदकों का व्यक्तिगत रूप से साक्षात्कार करना होगा और दान देने के लिये उनकी पात्रता निर्धारित करनी होगी।
प्राधिकरण समिति क्या है?
- परिचय:
- प्राधिकरण समिति अंग प्रत्यारोपण प्रक्रियाओं की देखरेख और अनुमोदन करती है जिसमें दाताओं तथा प्राप्तकर्त्ताओं को शामिल किया जाता है जो करीबी संबंधी नहीं हैं।
- यह अनुमोदन महत्त्वपूर्ण है, खासकर उन मामलों में जहाँ स्नेह, लगाव या अन्य विशेष परिस्थितियों के कारण अंगों का दान किया जाता है, ताकि नैतिक अनुपालन सुनिश्चित किया जा सके और अवैध प्रथाओं को रोका जा सके।
- संघटन:
- अधिनियम, 1994 की धारा 9(4) कहती है, "प्राधिकरण समिति की संरचना ऐसी होगी जो केंद्र सरकार द्वारा समय-समय पर निर्धारित की जा सकती है"।
- राज्य सरकार और केंद्रशासित प्रदेश "एक या अधिक प्राधिकरण समिति का गठन करेंगे जिसमें ऐसे सदस्य होंगे जिन्हें राज्य सरकार तथा केंद्रशासित प्रदेशों द्वारा नामित किया जा सकता है।"
- शक्तियाँ:
- धारा 9(5) के तहत, समिति से अपेक्षा की जाती है कि वह प्रत्यारोपण अनुमोदन के लिये आवेदनों की समीक्षा करते समय गहन जाँच करेगी।
- जाँच का एक महत्त्वपूर्ण पहलू दाता और प्राप्तकर्त्ता की प्रामाणिकता को सत्यापित करना है तथा यह सुनिश्चित करना है कि दान व्यावसायिक उद्देश्यों से प्रेरित नहीं है।
- संसद की भूमिका:
- अधिनियम की धारा 24 केंद्र को अधिनियम के विभिन्न उद्देश्यों को पूरा करने के लिये संसदीय अनुमोदन के अधीन नियम बनाने की अनुमति देती है।
- ये वे तरीके तथा शर्तों से संबंधित हो सकते हैं जिसके तहत कोई दाता मृत्यु पूर्व अपने अंगों को प्रतिरोपित करने की अनुमति दे सकता है।
- इसके अतिरिक्त इसमें मस्तिष्क को मृत घोषित करने की पुष्टि कैसे की जानी चाहिये अथवा दाता के शरीर से निकाले गए अंगों को संरक्षित करने के लिये क्या कदम उठाए जाने चाहिये इत्यादि जैसे विषय शामिल हो सकते हैं।
- अधिनियम की धारा 24 केंद्र को अधिनियम के विभिन्न उद्देश्यों को पूरा करने के लिये संसदीय अनुमोदन के अधीन नियम बनाने की अनुमति देती है।
उच्च न्यायालय ने क्या निर्णय लिया?
- प्राधिकरण समितियों का गठन:
- उक्त अधिनियम राज्य सरकारों/केंद्रशासित प्रदेशों को नामांकित सदस्यों से युक्त एक अथवा अधिक प्राधिकरण समितियाँ गठित करने का आदेश देता है।
- उच्च न्यायालय ने अंग प्रतिरोपण प्रोटोकॉल की अखंडता तथा प्रभावशीलता को बनाए रखने की आवश्यकता पर बल दिया।
- जीवित दाता प्रतिरोपण आवेदन हेतु समय-सीमा:
- उच्च न्यायालय के अनुसार जीवित दाता प्रतिरोपण आवेदनों को संसाधित करने की समय-सीमा आवेदन की तिधि से 10 दिनों से अधिक नहीं होनी चाहिये।
- अधिकतम 14 दिनों के भीतर न्यायालय द्वारा ग्राही/प्राप्तकर्त्ता तथा दाता की अधिवास स्थिति से संबंधित दस्तावेज़ों के सत्यापन का आदेश दिया जाता है।
- आवश्यक दस्तावेज़ पूरा करने के लिये दाता अथवा ग्राही को दिये गए किसी भी अवसर को नियमों के तहत निर्धारित समय-सीमा के भीतर सूचित किया जाना चाहिये।
- निर्धारित साक्षात्कार तथा पारिवारिक बैठकें:
- आवेदन प्राप्त होने के चार से छह सप्ताह के बाद साक्षात्कार दो सप्ताह के भीतर निर्धारित किया जाना चाहिये।
- साक्षात्कार तथा पारिवारिक बैठक का आयोजन समिति द्वारा किया जाएगा और साथ ही इस समय-सीमा के भीतर लिये गए निर्णय से अवगत कराना चाहिये।
- न्यायालय इस बात पर ज़ोर देती है कि पूरी प्रक्रिया की अवधि, आवेदन करने से लेकर निर्णय तक, आदर्श रूप से छह से आठ सप्ताह से अधिक नहीं होनी चाहिये।
- सरकार को अनुशंसाएँ:
- उच्च न्यायालय ने प्रासंगिक हितधारकों से परामर्श करने के बाद अंगदान आवेदनों पर विचार करने के सभी चरणों के लिये समय-सीमा निर्धारित करने को सुनिश्चित करते हुए स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के सचिव को निर्णय प्रस्तुत करने को कहा है।