जैव विविधता और पर्यावरण
रैट-होल माइनिंग
- 28 Jan 2025
- 13 min read
प्रिलिम्स के लिये:रैट-होल माइनिंग, राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT), अनुच्छेद 371A, कोयला मेन्स के लिये:अनुच्छेद 371A की सीमाएँ और चुनौतियाँ, सतत् खनन प्रथाएँ, रैट-होल खनन, पर्यावरण प्रदूषण और गिरावट |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
वर्तमान प्रतिबंधों के बावजूद, असम के दीमा हसाओ ज़िले में हुई रैट-होल माइनिंग की दुर्घटना, जिसमें बाढ़ के बाद नौ खनिक एक अवैध कोयला खदान में फंस गए थे, अनियमित खनन के लगातार जारी खतरों को उजागर करती है।
- इसके अलावा, केरल के पलक्कड़ में कुट्टुपथ ट्रेंचिंग ग्राउंड में बायोमाइनिंग का कार्य किया जा रहा है।
रैट-होल माइनिंग क्या है?
- परिचय:
- रैट-होल माइनिंग कोयला खनन की एक आदिम, अपरिष्कृत, श्रम-प्रधान तथा खतरनाक तकनीक है।
- इसमें ज़मीन में बहुत छोटी सुरंगें खोदी जाती हैं, जो आमतौर पर केवल 3-4 फीट गहरी और 2 से 3 फीट चौड़ी होती हैं, जिसमें श्रमिक, अधिकतर बच्चों कि मदद कोयला निकाला जाता हैं।
- यह प्रथा आमतौर पर पूर्वोत्तर भारत, विशेषकर मेघालय और असम में प्रचलित है।
- निष्कर्षण की विधियाँ:
- साइड-कटिंग प्रक्रिया: इसमें पतली कोयला परतों तक पहुँचने के लिये पहाड़ी ढलानों में संकरी सुरंगें खोदना शामिल है, जो आमतौर पर 2 मीटर से कम ऊँचाई की होती हैं तथा क्षेत्र के पहाड़ी इलाकों में पाई जाती हैं।
- बॉक्स-कटिंग: इस विधि में, पहले एक आयताकार होल बनाया जाता है, उसके बाद एक ऊर्ध्वाधर गड्ढा खोदा जाता है।
- फिर कोयला निकालने के लिये चूहे के बिल जैसी क्षैतिज सुरंगें खोदी जाती हैं।
- रैट-होल माइनिंग के कारण:
- गरीबी: सीमित आजीविका विकल्पों के कारण, स्थानीय जनजातीय समुदाय अक्सर जीवित रहने के साधन के रूप में रैट-होल माइनिंग की ओर रुख करते हैं।
- उच्च जोखिम के बावजूद, निकाले गए कोयले को बेचने से होने वाला तत्काल वित्तीय लाभ, आर्थिक रूप से संघर्ष कर रहे लोगों के लिये एक महत्त्वपूर्ण आकर्षण है।
- भूमि स्वामित्व संबंधी मुद्दे: भूमि के स्वामित्व में अस्पष्टता और उचित विनियमन का अभाव, अवैध खनन परिचालनों के लिये शासन में खामियों का फायदा उठाने तथा बिना किसी जवाबदेही के जारी रहने के अवसर उत्पन्न करता है।
- कोयले की मांग: कोयले की कानूनी और अवैध दोनों तरह की निरंतर मांग इस प्रथा को कायम रखती है।
- बिचौलिये और अवैध व्यापारी अवैध रूप से खनन किये गए कोयले के लिये बाज़ार बनाकर इस चक्र को और आगे बढ़ाते हैं।
- गरीबी: सीमित आजीविका विकल्पों के कारण, स्थानीय जनजातीय समुदाय अक्सर जीवित रहने के साधन के रूप में रैट-होल माइनिंग की ओर रुख करते हैं।
रैट-होल खनन से संबंधित चुनौतियाँ क्या हैं?
- सुरक्षा जोखिम: संकरी सुरंगों के ढहने का खतरा रहता है, जिससे प्रायः खनिक फंस जाते हैं, जबकि खराब वेंटिलेशन के कारण दम घुटने की समस्या होती है। सुरक्षा उपायों के अभाव के कारण अक्सर दुर्घटनाएँ होती हैं, खनिकों को चोट लगती है और प्राण घातक रोग होते हैं।
- उदाहरण: नगालैंड में वर्ष 2024 के वोखा खदान विस्फोट में 6 लोगों की मृत्यु हुई, जबकि मेघालय में वर्ष 2018 के कसन खदान में बाढ़ आने से 17 खनिकों की मृत्यु हुई।
- पर्यावरणीय प्रभाव: रैट-होल खनन से वनोन्मूलन, मृदा अपरदन और जल प्रदूषण में वृद्धि होती है।
- खनन कार्यों से उत्पन्न अपशिष्ट का उचित निपटान न करने से अम्लीय अपवाह (एसिड माइन ड्रेनेज, या AMD) होता है, जो जल की गुणवत्ता को प्रभावित करता है और समीपवर्ती पारिस्थितिकी तंत्र में जैवविविधता को नुकसान पहुँचाता है।
- उदाहरण: मेघालय में, AMD से लुखा जैसी नदियाँ अम्लीय हो गई हैं, जबकि नगालैंड में, खनन से वोखा और मोन ज़िलों की उपजाऊ भूमि का नाश हुआ तथा जल प्रदूषित हुआ।
- सामाजिक मुद्दे: इससे बाल श्रम और अल्प वेतन वाले श्रमिकों का शोषण होता है। इसके साथ ही, स्थानीय समुदायों का विस्थापन भी होता है।
- गैर सरकारी संगठन इम्पल्स की रिपोर्ट के अनुसार 70,000 बाल श्रमिक, मुख्य रूप से बांग्लादेश और नेपाल के, खदानों के छोटे आकार के कारण संकरी सुरंगों में से कोयले निकालने हेतु नियोजित किये गए थे।
रैट होल खनन का विनियमन किस प्रकार किया जाता है?
- भारत में विनियमन:
- भारत में स्थिति:
- रैट होल खनन अवैध है और विधि तथा व्यवस्था के विषय के रूप में इसका समाधान किये जाने पर राज्य/ज़िला प्रशासन की अधिकारिता है।
- राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) द्वारा प्रतिबंध:
- वर्ष 2014 में राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) ने अनेक दुर्घटनाएँ होने के कारण, विशेषकर मानसून ऋतु में, रैट-होल खनन पर प्रतिबंध लगा दिया था।
- जुलाई 2019 में भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने मेघालय में रैट होल खनन पर प्रतिबंध को मान्य ठहराया, जो मूल रूप से NGT द्वारा वर्ष 2014 में लगाया गया था।
- सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि खान और खनिज (विकास एवं विनियमन) अधिनियम, 1957 के तहत इस प्रकार खनन विधिविरुद्ध था।
- नगालैंड में रैट-होल खनन का विनियमन: नगालैंड कोयला नीति, 2006 के अंतर्गत कठोर शर्तों के तहत व्यक्तिगत भू स्वामियों को लघु पॉकेट डिपॉज़िट लाइसेंस (SPDL) प्रदान कर रैट-होल खनन का विनियमन किया जाता है।
- अनुच्छेद 371A के तहत नगालैंड को भूमि, संसाधनों और प्रथागत कानूनों की रक्षा के लिये स्वायत्तता प्रदान की गई है, जिससे खनन प्रथाओं को विनियमित करने में विधिक बाधाएँ उत्पन्न होती हैं।
- भारत में स्थिति:
- छठी अनुसूची: छठी अनुसूची स्वायत्त ज़िला परिषदों (ADC) के माध्यम से मेघालय, मिज़ोरम, त्रिपुरा और असम में जनजातीय क्षेत्रों को स्वायत्तता प्रदान करती है, जिससे खनन विनियमन जटिल हो जाता है।
- स्थानीय जनजातीय समुदायों के पास भूमि और खनिज दोनों का स्वामित्व है, जिससे राष्ट्रीय खनन और पर्यावरण कानूनों पर केंद्रीय निगरानी तथा प्रवर्तन सीमित हो जाता है।
- भूमि और संसाधनों पर विधान निर्मित करने के ADC के अधिकार का प्रायः MMDR अधिनियम, 1957 के तहत केंद्रीय विनियमनों के साथ संघर्ष होता है, जिससे विनियामक अस्पष्टताएँ उत्पन्न होती हैं।
- अंतर्राष्ट्रीय संदर्भ: रैट-होल खनन से संबंधित कोई विशिष्ट अंतर्राष्ट्रीय कानून नहीं है।
- हालाँकि, अंतर्राष्ट्रीय नियमों में सतत् खनन विधियों को बढ़ावा दिया गया है और श्रमिक सुरक्षा को प्राथमिकता दी गई है, जिससे अप्रत्यक्ष रूप से सदस्य देश समान प्रथाओं को अपनाने के लिये प्रभावित होते हैं।
बायोमाइनिंग क्या है?
- परिचय:
- बायोमाइनिंग का तात्पर्य सूक्ष्मजीवों जैसे बैक्टीरिया, आर्किया, कवक या पौधों का उपयोग करके अयस्कों और अन्य ठोस पदार्थों से धातुओं के निष्कर्षण से है।
- यह एक पर्यावरण-अनुकूल तकनीक है जिसका प्रयोग धातु प्रदूषकों से प्रदूषित स्थलों के उपचार के लिये भी किया जा सकता है।
- इससे धातुओं को ऑक्सीकरण द्वारा निकाला जाता है जिससे ये अधिक घुलनशील हो जाती हैं और उन्हें पुनः प्राप्त करना आसान हो जाता है। इसकी दो मुख्य प्रक्रियाएँ हैं:
- बायोलीचिंग: सूक्ष्मजीव लक्षित धातु को सीधे ही घोल देते हैं, जिससे निष्कर्षण आसान हो जाता है।
- जैवऑक्सीकरण: सूक्ष्मजीव आसपास के खनिजों को तोड़ते हैं, जिससे लक्षित धातु का निष्कर्षण सुगम हो जाता है।
- बायोमाइनिंग के माध्यम से निष्कर्षित धातुएँ
- बायोमाइनिंग से मुख्य रूप से तांबा, यूरेनियम, निकल और सोना जैसी धातुओं का निष्कर्षण किया जाता है, जो आमतौर पर सल्फाइड खनिजों में पाई जाती हैं।
- बायोमाइनिंग के लाभ:
- पर्यावरणीय स्थिरता: पारंपरिक खनन की तुलना में इससे न्यूनतम खतरनाक अपशिष्ट के साथ कार्बन का कम उत्सर्जन होता है।
- ऊर्जा दक्षता: इसमें कम ऊर्जा की आवश्यकता के साथ ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन कम होता है।
- जल का कम उपयोग: इसमें जल का अधिक कुशलतापूर्वक उपयोग होता है, जिससे यह जल की कमी वाले क्षेत्रों के लिये लाभदायक है।
- बायोमाइनिंग की चुनौतियाँ:
- धीमी निष्कर्षण दर: पारंपरिक खनन की तुलना में बायोमाइनिंग एक धीमी प्रक्रिया है, जिससे यह बड़े पैमाने पर संचालन के लिये कम उपयुक्त है।
- सीमित दायरा: सभी अयस्क जैवखनन के लिये उपयुक्त नहीं होते हैं, विशेष रूप से वे जिनमें ऐसी धातुएँ नहीं होती हैं जिन्हें सूक्ष्मजीवों द्वारा आसानी से ऑक्सीकृत किया जा सके।
- तकनीकी चुनौतियाँ: इस प्रक्रिया के लिये सूक्ष्म जीव विज्ञान से संबंधित तकनीकी की आवश्यकता होती है और इसमें जटिल परिचालन स्थितियाँ शामिल हो सकती हैं, जिससे इसका संचालन जटिल हो जाता है।
इलेक्ट्रोकाइनेटिक प्रौद्योगिकी
- परिचय:
- इलेक्ट्रोकाइनेटिक माइनिंग (EKM) दुर्लभ मृदा तत्त्वों के निष्कर्षण के लिये एक नवीन, पर्यावरण-अनुकूल तकनीक है।
- इसमें विद्युत का उपयोग करके कुशलतापूर्वक माइनिंग को सक्षम किया जाता है।
- महत्त्व:
- इससे निक्षालन एजेंट का उपयोग 80% तथा ऊर्जा खपत 60% कम हो जाती है तथा इसमें 95% से अधिक की रिकवरी दर प्राप्त होती है, जो धारणीय खनन में एक महत्त्वपूर्ण सफलता है।
- यह नवाचार पर्यावरणीय अनुकूल होने के साथ दुर्लभ मृदा तत्त्वों (REE) की पुनःप्राप्ति को सक्षम बनाता है।
दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: प्रश्न: भारत में रैट-होल खनन से उत्पन्न पर्यावरणीय और सुरक्षा चुनौतियों का परीक्षण कीजिये। इन मुद्दों को कम करने एवं धारणीय खनन प्रथाओं को बढ़ावा देने के उपाय बताइये। |
यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)Q. “पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव के बावजूद, कोयला खनन अभी भी विकास के लिये अपरिहार्य है” चर्चा कीजिये। (2017) |