भारत में एक साथ चुनाव की मांग | 07 Dec 2023

प्रिलिम्स के लिये:

एक साथ चुनाव, लोकसभा, आदर्श आचार संहिता, इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन, मतदाता सत्यापनकर्त्ता पेपर ऑडिट ट्रेल (VVPAT) मशीन

मेन्स के लिये:

एक साथ चुनाव से लाभ और चुनौतियाँ, एक साथ चुनाव पर विधि आयोग का रुख

स्रोत: द हिंदू 

चर्चा में क्यों? 

चुनाव सुधार की दिशा में एक कदम बढ़ाते हुए केंद्र सरकार ने सितंबर 2023 में छह सदस्यीय पैनल का गठन करके इसे गति दी, जिसे लोकसभा, राज्य विधानसभाओं और स्थानीय निकायों के लिये एक साथ चुनाव की व्यवहार्यता की जाँच करने की बड़ी ज़िम्मेदारी सौंपी गई।

एक साथ चुनाव क्या है?

  • संदर्भ: 
    • एक साथ चुनाव, पूरे देश में एक ही समय में लोक सभा (संसद का निचला सदन), राज्य विधानसभाओं और नगर पालिकाओं एवं पंचायतों जैसे स्थानीय निकायों के चुनाव कराने के विचार को संदर्भित करता है।
    • यह अवधारणा शासन के इन विभिन्न स्तरों के चुनावी चक्रों को साथ-साथ करवाने का प्रस्ताव प्रस्तुत करती है, जिसका उद्देश्य आदर्श रूप से हर पाँच साल में एक बार सभी चुनाव एक साथ आयोजित करना है।
  • भारत में एक साथ चुनाव का इतिहास: भारत में शुरुआती चार आम चुनावों में लोकसभा और राज्य विधानसभा चुनाव एक साथ हुए।
    • वर्तमान में लोकसभा चुनाव आंध्र प्रदेश, ओडिशा, अरुणाचल प्रदेश और सिक्किम में विधानसभा चुनावों के साथ संरेखित हैं।
  • एक साथ/समकालिक चुनाव के लाभ: 
    • संसाधन दक्षता: विभिन्न स्तरों पर चुनाव कराने के लिये महत्त्वपूर्ण वित्तीय संसाधनों की आवश्यकता होती है। चुनावों को एक साथ कराने से ये खर्च समेकित हो जाएंगे, जिससे सरकार की लागत में काफी बचत होगी।
    • अनुकूलित प्रशासन: एक साथ चुनाव से सुरक्षा बलों और प्रशासनिक कर्मचारियों की तैनाती सुव्यवस्थित होगी, चुनाव-संबंधी कर्त्तव्यों के कारण होने वाले व्यवधान कम होंगे और अधिकारियों को शासन एवं विकास पर निरंतर ध्यान केंद्रित करने की अनुमति मिलेगी।
    • नीतियों में निरंतरता: एक साथ चुनाव होने से आदर्श आचार संहिता के कारण नीति कार्यान्वयन में रुकावटें कम होंगी, जिससे अधिक निरंतर और सुशासन सुनिश्चित होगा।
    • मतदान प्रतिशत में वृद्धि: चुनावों की आवृत्ति कम करने से मतदाताओं की थकान दूर हो सकती है और मतदाताओं की भागीदारी बढ़ सकती है, जिससे अधिक प्रतिनिधिक परिणाम प्राप्त होंगे तथा निर्वाचित प्रतिनिधियों के लिये वैधता बढ़ेगी।
    • जवाबदेही में वृद्धि: जब मतदाता शासन के विभिन्न स्तरों के लिये एक साथ मतदान करते हैं, तो राजनेताओं को विभिन्न स्तरों पर उनके कार्यों के लिये जवाबदेह ठहराया जाता है, जिससे अधिक व्यापक जवाबदेही संरचना को बढ़ावा मिलता है।
    • ध्रुवीकरण में कमी: एक साथ चुनाव संभावित रूप से राष्ट्रीय मुद्दों को सामने लाकर क्षेत्रीय, जाति-आधारित या सांप्रदायिक राजनीति के प्रभाव को कम कर सकते हैं, जिससे अधिक समावेशी अभियान और नीति-निर्माण को बढ़ावा मिलेगा।
  • संबद्ध चुनौतियाँ:
    • संवैधानिक संशोधन: चुनावों को सिंक्रनाइज़ करने के लिये विभिन्न संवैधानिक अनुच्छेदों में संशोधन की आवश्यकता होती है।
      • कार्यकाल के प्रावधानों में बदलाव, विधायी निकायों का विघटन और विभिन्न चुनाव चक्रों को संरेखित करना पर्याप्त कानूनी चुनौतियाँ उत्पन्न करता है।
      • उदाहरण के लिये अनुच्छेद 83(2), 85(2), 172(1) और 174(2) जैसे अनुच्छेद लोकसभा एवं राज्य विधानसभाओं की अवधि तथा विघटन को नियंत्रित करते हैं, कुछ परिस्थितियों में ये समय से पहले विघटन की अनुमति देते हैं, जिन्हें एक साथ चुनाव के लिये निरस्त करने की आवश्यकता होगी।

नोट

  • अनुच्छेद 85 (1) और 174 (2) राष्ट्रपति व राज्यपाल को संविधान में उल्लिखित परिस्थितियों के तहत पाँच वर्ष का कार्यकाल पूर्ण होने से पूर्व लोकसभा एवं राज्य विधानसभा को भंग करने की अनुमति प्रदान करते हैं।
  • अनुच्छेद 83(2), अनुच्छेद 352 के तहत आपातकाल घोषित होने की स्थिति में लोकसभा के कार्यकाल को एक बार में एक वर्ष के लिये बढ़ाने की अनुमति देता है।
  • वर्तमान में 10वीं अनुसूची (52वाँ संशोधन अधिनियम, 1985) में निहित दल-बदल विरोधी कानून के पारित होने तथा तदोपरांत एस.आर. बोम्मई मामले (1994) में सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय तथा रामेश्वर प्रसाद मामले (2006) में उच्च न्यायालय के निर्णय के बाद राज्य विधानसभा को भंग करने एवं अनुच्छेद 356 के तहत राष्ट्रपति शासन लगाने का निर्णय न्यायिक समीक्षा के अधीन है।
    • यदि न्यायालय को राष्ट्रपति शासन का आधार संवैधानिक रूप से विधिमान्य नहीं लगता है, तो वह विधानसभा को प्रवर्तित कर सकता है एवं सरकार को बहाल कर सकता है जैसा कि हाल के वर्षों में नगालैंड, उत्तराखंड एवं अरुणाचल प्रदेश के मामले में हुआ है।
  • संघीय शासन संबंधी चिंताएँ: भारत की संघीय संरचना में विभिन्न राजनीतिक परिदृश्य वाले कई राज्य शामिल हैं।
    • एक साथ चुनाव की दिशा में किसी भी निर्णय लेने के लिये राज्यों के बीच व्यापक सहमति की आवश्यकता होती है, जिसके विभिन्न राजनीतिक एजेंडे हो सकते हैं।
    • इसके अतिरिक्त स्थानीय प्रशासन राज्य का विषय होने के कारण संयुक्त रूप से आम तथा स्थानीय निकाय चुनाव कराने में बाधाएँ आती हैं, जिसके लिये विभिन्न राज्य विधियों (28 राज्यों के पंचायती राज अधिनियमों एवं नगरपालिका अधिनियमों के 56 विधिक प्रावधान) में बदलाव की आवश्यकता होती है।
  • प्रौद्योगिकी और बुनियादी ढाँचा: इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM) तथा मतदाता सत्यापनकर्त्ता पेपर ऑडिट ट्रेल (VVPAT) जैसे तकनीकी बुनियादी ढाँचे को बड़े पैमाने पर अद्यतन करने से खरीद, रखरखाव तथा विश्वसनीयता सुनिश्चित करने में चुनौतियाँ उत्पन्न होती हैं।
  • उप-चुनाव और विधानपरिषद: सभी चुनावों को एक साथ कराने से उप-चुनाव तथा विधानपरिषदों के चुनाव बाहर हो सकते हैं, जिससे प्रतिनिधित्व एवं शासन में संभावित अंतराल पैदा हो सकता है।
  • विविध राजनीतिक परिदृश्य: भारत की बहुदलीय प्रणाली में विविध राजनीतिक विचारधाराएँ एवं क्षेत्रीय प्राथमिकताएँ शामिल हैं।
    • एक साथ चुनाव कराने से क्षेत्रीय मुद्दों की अनदेखी हो सकती है एवं छोटे अथवा क्षेत्रीय दलों का प्रतिनिधित्व कम हो सकता है।

एक साथ चुनाव पर विधि आयोग का रुख क्या है? 

  • एक साथ चुनावों पर विधि आयोग की अगस्त 2018 में जारी मसौदा रिपोर्ट में भारत में एक साथ चुनाव कराने की चुनौतियों और प्रस्तावित समाधानों की जाँच की गई थी।
  • चुनाव के समन्वय के लिये प्रस्तावित रूपरेखा:
    • चुनावी चक्र को कम करना: पाँच वर्षों में दो बार चुनाव कराने की सिफारिश।
    • एक कैलेंडर वर्ष में सभी चुनाव कराना: यदि एक साथ चुनाव कराना संभव नहीं है, तो एक कैलेंडर वर्ष में सभी चुनाव एक साथ कराने का प्रस्ताव प्रस्तुत किया जाना चाहिये।
    • रचनात्मक अविश्वास मत: मौजूदा सरकार के विघटित होने से पूर्व वैकल्पिक सरकार में विश्वास सुनिश्चित करने के लिये 'अविश्वास मत' को 'रचनात्मक अविश्वास मत' में बदलने की सिफारिश की गई है।
    • त्रिशंकु सभा प्रस्ताव: यह उन स्थितियों को हल करने के लिये एक प्रक्रिया का प्रस्ताव करता है, जहाँ किसी भी दल को सरकार बनाने के लिये बहुमत प्राप्त नहीं होता है, जिसमें मध्यावधि चुनाव से पहले सबसे बड़ा दल/गठबंधन को सरकार बनाने का प्रयास करने का अवसर शामिल होता है।
    • समयबद्ध अयोग्य सिद्ध किया जाना: इसमें पीठासीन अधिकारी को छह महीने के भीतर अयोग्यता के मुद्दों का त्वरित समाधान सुनिश्चित करने के लिये दल-बदल विरोधी कानूनों में संशोधन का सुझाव दिया गया है।
  • अक्तूबर 2023 के अंत में एक साथ चुनावों की व्यवहार्यता का आकलन करने के लिये गठित पैनल ने वर्ष 2029 तक संसदीय और विधानसभा चुनावों को समन्वित करने पर चर्चा के लिये विधि आयोग के समक्ष अपने सुझाव प्रस्तुत किये हैं।

निष्कर्ष:

भारत में एक साथ चुनाव कराने के लिये यह आवश्यक है कि विविध क्षेत्रीय गतिशीलता की जटिलताओं और सुव्यवस्थित शासन व्यवस्था के बीच समन्वय बनाने हेतु एक संतुलित, परामर्शात्मक दृष्टिकोण अपनाया जाए। वृद्धिशील कदम, हितधारक परामर्श तथा अनुकूलनीय ढाँचे एक समकालिक चुनावी प्रक्रिया का मार्ग प्रशस्त कर सकते हैं जो प्रशासनिक दक्षता को बढ़ाते हुए संघीय संरचनाओं की मर्यादा को बनाए रखती हो।