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शासन व्यवस्था

भारत के फ्रंटलाइन वनकर्मियों की सुरक्षा

  • 27 Jun 2023
  • 12 min read

प्रिलिम्स के लिये:

भारतीय वन अधिनियम, 1927, वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972, वन संरक्षण अधिनियम, 1980, सिमलीपाल बाघ अभयारण्य

मेन्स के लिये:

वनकर्मियों की सुरक्षा से संबंधित मुद्दे- आवश्यक कदम

चर्चा में क्यों?

हाल ही में ओडिशा के सिमलीपाल टाइगर रिज़र्व में शिकारियों द्वारा एक वनकर्मी की गोली मारकर हत्या कर दी, इस प्रकार की यह दूसरी घटना है।

  • भारत के फ्रंटलाइन वन कर्मचारी, जिनमें अनुबंध मज़दूर, गार्ड, वनपाल और रेंजर शामिल हैं, लंबे समय से शिकारियों, अवैध खनन करने वालों, पेड़ काटने वालों, बड़े पैमाने पर अतिक्रमण करने वालों तथा विद्रोहियों के विरुद्ध संघर्ष करते रहे हैं।

वन अधिकारी:

  • वन अधिकारी सरकार द्वारा नियुक्त लोक सेवक हैं जो पूरे भारत के वन क्षेत्रों के प्रशासन और शासन का कार्यभार संभालते हैं।
  • भारत में सभी राज्यों ने भारतीय वन अधिनियम, 1927 के आधार (वन 7वीं अनुसूची के तहत समवर्ती सूची का विषय है) पर अपने क्षेत्र में वनों के प्रशासन के लिये अपने कानून बनाए हैं।
  • वन अधिकारियों को शक्ति प्रदान करने वाले तीन प्राथमिक अधिनियम निम्नलिखित हैं:
    • भारतीय वन अधिनियम, 1927।
    • वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972।
    • वन संरक्षण अधिनियम, 1980।
  • वन कर्मचारियों की प्राथमिक ज़िम्मेदारी लुप्तप्राय पशुओं, पेड़ों, रेत, पत्थरों, खनिजों और वन भूमि जैसे मूल्यवान तथा सीमित संसाधनों की सुरक्षा करना है। इस प्रकार के कार्य में उन्हें लगातार एवं निरंतर ही शिकारियों, अवैध खनन करने वालों, पेड़ काटने वालों के हमले का सामना करना पड़ता है।

वन कर्मियों की सुरक्षा से संबंधित चिंताएँ:

  • वन रक्षकों की सशर्त सशस्त्र स्थिति: वन रक्षक हमेशा निहत्थे नहीं होते हैं। राज्य के आधार पर वे विभिन्न हथियारों से सुसज्जित हो सकते हैं। हालाँकि अनिश्चित कानून तथा व्यवस्था की स्थिति के कारण वन रक्षकों को अक्सर हथियारों को ले जाने पर प्रतिबंध का सामना करना पड़ता है विशेष रूप से उग्रवाद प्रभावित क्षेत्रों में।
    • सिमलीपाल के मामले में, जो छत्तीसगढ़ के इंद्रावती से बिहार के वाल्मिकी बाघ अभयारण्य तक फैले लाल गलियारे के अंतर्गत आता है, इसी कारण वन कर्मचारियों ने बंदूकें ले जाना बंद कर दिया था।
  • हथियारों के सक्रिय उपयोग के लिये सीमित प्राधिकरण: इसके अतिरिक्त वन अधिकारियों के पास अपने हथियारों का सक्रिय रूप से उपयोग करने का अधिकार नहीं है। किसी भी अन्य नागरिक की तरह वे केवल भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 96 से 106 में उल्लिखित निजी रक्षा के अपने अधिकार का प्रयोग करने के हकदार हैं।
    • इसका मतलब यह है कि वे हथियार सहित बल का प्रयोग केवल स्वयं को या दूसरों को आसन्न नुकसान या खतरे से बचाने के लिये कर सकते हैं।
  • आग्नेयास्त्र ले जाने का जोखिम और विचार: हथियार वास्तव में विद्रोहियों की उपस्थिति के बिना भी विभिन्न स्थितियों में जोखिम उत्पन्न कर सकते हैं क्योंकि जब आग्नेयास्त्र ले जाने तथा उपयोग करने का समय आता है तो कुछ चुनौतियाँ (संभावित दुर्घटनाएँ या हथियारों का दुरुपयोग) एवं विचार उत्पन्न होते हैं।
  • वन्यजीव-मानव संघर्ष: वनवासियों को अक्सर वन्यजीवों और मानव आबादी के बीच संघर्ष का सामना करना पड़ता है। इसमें फसलों पर हमला करने वाले जानवरों, मनुष्यों पर हमला करने वाले जंगली जानवरों और वन आवासों पर अतिक्रमण करने वाली मानव बस्तियों के उदाहरण शामिल हैं।
  • जनशक्ति की कमी: भारत में वन प्रतिष्ठान अग्रिम पंक्ति के कार्यबल के कल्याण और समर्थन पर जटिल नौकरशाही प्रक्रियाओं एवं प्रशासनिक मामलों को प्राथमिकता देते हैं।
    • यह संदिग्ध हो सकता है क्योंकि यह एक ऐसी स्थिति पैदा करता है जहाँ देश भर के वन विभागों में बहुत अधिक रिक्त पद हैं।
    • परिणामस्वरूप वनों की प्रभावी ढंग से रक्षा करने और अपनी सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये कर्मियों की संख्या अपर्याप्त है।
  • प्रभावी सुरक्षा की कमी: इंटरनेशनल रेंजर फेडरेशन के अनुसार, वर्ष 2021 में भारत में ड्यूटी के दौरान कुल 31 वन फील्ड स्टाफ सदस्यों की मृत्यु हो गई। इनमें से केवल 8 मामलों को हत्या के रूप में निर्धारित किया गया था, बाकी के लिये जंगल की आग, हाथी/गैंडे के हमले और मोटर दुर्घटनाएँ जैसे कारक ज़िम्मेदार थे।
    • कुछ मामलों में हताहत इसलिये नहीं हुए क्योंकि वे निहत्थे थे, बल्कि इसलिये कि उन्हें हथियारों को चलाना नहीं आता था।

वन अधिकारियों के लिये कानूनी सुरक्षा बढ़ाना:

  • जुलाई 2010 में असम ने सभी वन अधिकारियों के लिये आपराधिक प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 197(2) के प्रावधानों को लागू करके एक महत्त्वपूर्ण कदम उठाया।
    • इस प्रावधान ने उन्हें तब तक गिरफ्तारी और आपराधिक कार्यवाही से सुरक्षा प्रदान की, जब तक कि मजिस्ट्रेट जाँच द्वारा यह निर्धारित नहीं किया गया हो कि आग्नेयास्त्रों "अनावश्यक, अनुचित और अत्यधिक" उपयोग हुआ। राज्य को जाँच के निष्कर्षों की समीक्षा करनी थी, साथ ही उन्हें स्वीकार भी करना था।
  • वर्ष 2012 में बाघों के अवैध शिकार के लगातार मामलों के बाद महाराष्ट्र ने भी इसी तरह का आदेश लागू किया था।

वनवासियों को हथियारों के प्रयोग करने के मामले में अतिरिक्त अधिकार क्यों नहीं: पारिस्थितिकी तंत्र और वन्यजीवों की सुरक्षा: वनों, वन्यजीवों और उनके आवासों की सुरक्षा में वनवासियों की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। यदि आग्नेयास्त्रों का अंधाधुंध या उचित औचित्य के बिना उपयोग किया जाता है तो पारिस्थितिक तंत्र और वन्य जीवन को अप्रत्याशित हानि हो सकती है।

  • दुरुपयोग की संभावना: अत्यधिक शक्तियों के फलस्वरूप वनवासियों द्वारा दुरुपयोग या कदाचार का खतरा बढ़ सकता है। आग्नेयास्त्रों के दुरुपयोग को रोकने के लिये नियंत्रण और संतुलन बनाए रखने के साथ ही यह सुनिश्चित करना महत्त्वपूर्ण है कि वनवासी कानून के अनुसार कार्य करें।
  • नागरिक कानून का प्रवर्तन: वनवासियों को मुख्य रूप से कानून प्रवर्तन के स्थान पर संरक्षण और पर्यावरण संरक्षण का कार्य दिया जाता है।
    • उन्हें हथियारों का प्रयोग करने की अत्यधिक शक्तियाँ प्रदान किये जाने से उनकी संरक्षण भूमिकाओं और कानून प्रवर्तन एजेंसियों की ज़िम्मेदारियों के बीच की रेखा धुँधली हो सकती है, जिससे संभावित रूप से उनके समक्ष कर्तव्यों के निर्वहन में भ्रम और संघर्ष की स्थिति पैदा हो सकती है।
  • सुरक्षा और संभावित जोखिमों को संतुलित करना: सुदूर वन क्षेत्रों में वनवासियों को बंदूकों से लैस करने से स्थानीय आबादी की भेद्यता बढ़ सकती है।
    • वनवासियों के हाथों में आग्नेयास्त्रों की उपस्थिति संभावित रूप से संघर्ष को बढ़ा सकती है और इसके अनपेक्षित परिणाम हो सकते हैं, खासकर उन क्षेत्रों में जहाँ वनवासियों एवं स्थानीय निवासियों के मध्य पहले से ही तनाव व्याप्त हो।

आगे की राह

  • व्यावसायिक प्रशिक्षण: भारत में वन फ्रंटलाइन कर्मचारियों को अपने कर्तव्यों को प्रभावी ढंग से पूरा करने के लिये व्यापक प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है।
    • इस प्रशिक्षण से उन्हें अपने काम से जुड़ी जटिलताओं और जोखिमों को संभालने के लिये आवश्यक कौशल एवं ज्ञान से लैस किया जाना चाहिये।
    • वनवासियों को अपने कर्तव्यों को प्रभावी ढंग से पूरा करने के लिए संसाधनों और बुनियादी ढाँचे दोनों के संदर्भ में पर्याप्त समर्थन की आवश्यकता है।
  • उचित मुआवज़ा: वन कर्मचारियों को उनकी सेवाओं के लिये उचित और पर्याप्त मुआवज़ा तथा प्रोत्साहन प्रदान किया जाना चाहिये।
    • उनकी नौकरी प्रकृति की मांग और उनके सामने आने वाले जोखिमों को ध्यान में रखते हुए यह सुनिश्चित करना महत्त्वपूर्ण है कि उन्हें उनके प्रयासों के लिये पर्याप्त रूप से पुरस्कृत किया जाए।
  • कानूनी ढाँचे को मज़बूत बनाना: एक मज़बूत कानूनी ढाँचा सुनिश्चित करना जो वनवासियों की रक्षा करता हो, साथ ही उन्हें अनावश्यक हस्तक्षेप या धमकी के बिना अपने कर्तव्यों का पालन करने में सक्षम बनाना आवश्यक है।
    • हालाँकि रूपरेखा इस तरह बनाई जानी चाहिये कि वनवासियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के अलावा यह भी सुनिश्चित हो कि अधिकारी अपनी शक्ति का दुरुपयोग और वन समुदायों पर अनावश्यक बल प्रयोग नहीं कर रहे हैं।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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