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भारतीय राजनीति

पदोन्नति मौलिक अधिकार नहीं

  • 03 Jun 2024
  • 18 min read

प्रिलिम्स के लिये:

अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, पदोन्नति में आरक्षण, इंद्रा साहनी निर्णय, अनुच्छेद 16 (4), अनुच्छेद 16 (4A), अनुच्छेद 16(4B), एम नागराज केस, सर्वोच्च न्यायालय

मेन्स के लिये:

सार्वजनिक रोज़गार और पदोन्नति में आरक्षण और संबंधित निर्णय

स्रोत: टाइम्स ऑफ इंडिया

चर्चा में क्यों?

सर्वोच्च न्यायालय ने अपने हालिया फैसले में दोहराया है कि भारत में सरकारी कर्मचारियों के लिये पदोन्नति कोई मौलिक अधिकार नहीं है, क्योंकि संविधान में पदोन्नति वाले पदों को भरने हेतु मानदंड निर्धारित नहीं किये गए हैं।

  • इसे विधायिका और कार्यपालिका के विवेक पर छोड़ दिया गया है।

मौलिक अधिकार

  • ये हमारे संविधान में निहित बुनियादी मानवाधिकार हैं जो सभी नागरिकों को गारंटीकृत हैं। ये अधिकार किसी व्यक्ति के विकास और कल्याण के लिये आवश्यक हैं।
  • संविधान के भाग III (अनुच्छेद 12-35) में 6 मौलिक अधिकार निहित हैं।

आरक्षण से संबंधित संवैधानिक प्रावधान क्या हैं?

  • अनुच्छेद 15 (6): यह राज्य को नागरिकों के किसी भी आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्ग की उन्नति के लिये विशेष प्रावधान करने में सक्षम बनाता है, जिसमें शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण भी शामिल है।
    • इसमें कहा गया है कि इस तरह के आरक्षण किसी भी शैक्षणिक संस्थान में दिये जा सकते हैं, जिसमें सहायता प्राप्त और गैर-सहायता प्राप्त निजी संस्थान दोनों शामिल हैं, अनुच्छेद 30(1) के तहत आने वाले अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थानों को छोड़कर।
    • इसमें कहा गया है कि इस तरह के आरक्षण किसी भी शैक्षणिक संस्थान में दिये जा सकते हैं, जिसमें अनुच्छेद 30 (1) के अंतर्गत आने वाले अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थानों को छोड़कर सहायता प्राप्त और गैर-सहायता प्राप्त निजी संस्थान दोनों शामिल हैं।
  • अनुच्छेद 16 (4): इस अनुच्छेद के अनुसार, राज्य सरकारें अपने नागरिकों के उन सभी पिछड़े वर्ग के पक्ष में नियुक्तियों या पदों के आरक्षण हेतु प्रावधान कर सकती हैं, जिनका राज्य की राय में राज्य के अधीन सेवाओं में पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं है।
  • अनुच्छेद 16 (4A): इस अनुच्छेद के अनुसार, राज्य सरकारें अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के पक्ष में पदोन्नति के मामलों में आरक्षण के लिये कोई भी प्रावधान कर सकती हैं यदि राज्य की राय में राज्य के अधीन सेवाओं में उनका पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं है।
  • अनुच्छेद 16 (4B): यह किसी विशेष वर्ष के रिक्त SC/ST कोटे को अगले वर्ष के लिये स्थानांतरित कर दिया गया।
    • अनुच्छेद 16(4A) और 16(4B) दोनों को 77वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1995 द्वारा सम्मिलित किया गया।
  • अनुच्छेद 16 (6): यह राज्य को नियुक्तियों में आरक्षण के लिये प्रावधान करने में सक्षम बनाता है। ये प्रावधान मौज़ूदा आरक्षण के अतिरिक्त 10% की अधिकतम सीमा के अधीन होंगे।
  • अनुच्छेद 335: यह मानता है कि सेवाओं एवं पदों पर अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के दावों पर विचार करने के लिये विशेष उपाय अपनाए जाने की आवश्यकता है, ताकि उन्हें समान स्तर पर लाया जा सके।
  • 82वें संवैधानिक संशोधन अधिनियम, 2000: इस अधिनियम ने अनुच्छेद 335 में एक शर्त सम्मिलित की, जो कि राज्य को किसी भी परीक्षा में अर्हक अंक में छूट प्रदान करने हेतु अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के सदस्यों के पक्ष में कोई भी प्रावधान करने में सक्षम बनाता है।

पदोन्नति में आरक्षण के लाभ और हानि क्या हैं?

आरक्षण के लाभ

आरक्षण के हानि 

सामाजिक न्याय और समावेशन: सेवाओं के उच्च पदों पर ऐतिहासिक रूप से वंचित समूहों (SC, ST, OBC) के प्रतिनिधित्व को बढ़ावा देता है।

योग्यता बनाम आरक्षण: पदोन्नति के लिये सबसे योग्य उम्मीदवार की अनदेखी के बारे में चिंता जताई गई।

जातिगत एवं सामाजिक बाधाओं को तोड़ता है: अधिक विविध एवं समावेशी नेतृत्व संरचना का निर्माण करता है, तथा सामाजिक मुद्दों की बेहतर समझ को बढ़ावा देता है।

हतोत्साहन एवं हताशा: सामान्य श्रेणी के अभ्यर्थियों में हतोत्साहन एवं हताशा उत्पन्न हो सकती है, जो स्वयं को उपेक्षित महसूस करते हैं।

सशक्तीकरण एवं उत्थान: हाशिये पर पड़े समुदायों को आगे बढ़ने और उच्च स्तर पर प्रतिस्पर्द्धा करने के अवसर प्रदान करता है।

क्रीमी लेयर का मुद्दा: आरक्षित श्रेणियों के अंतर्गत "क्रीमी लेयर" को अभी भी लाभ मिल सकता है, जिससे उत्थान का उद्देश्य अस्वीकार किया जा सकता है।

सकारात्मक भेदभाव: अंतर्निहित सामाजिक और आर्थिक बाधाओं को दूर करने में सहायता प्रदान करके अतीत में हुए भेदभाव को संबोधित करता है।

वरिष्ठता एवं दक्षता: पदोन्नति में आरक्षण वरिष्ठता-आधारित पदोन्नति प्रणालियों को बाधित कर सकता है, जिससे समग्र दक्षता प्रभावित हो सकती है।

भारत में आरक्षण संबंधी घटनाक्रम क्या हैं?

  • इंद्रा साहनी निर्णय, 1992:
    • नौ न्यायाधीशों की पीठ ने अपने फैसले में कहा कि संविधान का अनुच्छेद 16(4), जो नियुक्तियों में आरक्षण की अनुमति देता है, पदोन्नति तक विस्तारित नहीं होता है।
    • न्यायालय ने 27% आरक्षण की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा, लेकिन आरक्षण की सीमा 50% तय कर दी, जब तक कि असाधारण परिस्थितियाँ उल्लंघन का कारण न बनें, ताकि अनुच्छेद 14 के तहत संविधान द्वारा प्रदत्त समानता का अधिकार सुरक्षित रहे।
    • आगे बढ़ाने का नियम वैध है लेकिन यह 50% सीमा के अधीन है। यह निर्णय कहता है कि पदोन्नति में कोई आरक्षण नहीं होना चाहिये।
    • न्यायालय ने स्पष्ट किया कि अनुच्छेद 16(4) कोई अलग नियम नहीं है और यह अनुच्छेद 16(1) को रद्द नहीं करता है। अनुच्छेद 16(1) एक मौलिक अधिकार है, जबकि अनुच्छेद 16(4) एक सक्षम प्रावधान है।
      • अनुच्छेद 16(1): इसमें कहा गया है कि राज्य के अधीन किसी भी कार्यालय में रोज़गार या नियुक्ति से संबंधित मामलों में सभी नागरिकों के लिये अवसर की समानता होगी।
    • इसके अलावा, न्यायालय ने अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के क्रीमी लेयर (आर्थिक रूप से संपन्न) को आरक्षण लाभ से बाहर रखने का निर्देश दिया।
      • हालाँकि, इसने विशेष रूप से अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों को इस अवधारणा से बाहर रखा।
  • 77वाँ संशोधन अधिनियम (1995):
    • इस अधिनियम ने राज्यों को अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के कर्मचारियों को पदोन्नति के लिये मौज़ूदा आरक्षण नीतियों को बनाए रखने का अधिकार दिया।
    • इसने एक नया अनुच्छेद 16(4A) प्रस्तुत किया, जो राज्यों को पदोन्नति में आरक्षण देने की अनुमति देता है, जब तक कि उनका मानना ​​है कि SC/ST का प्रतिनिधित्व कम है।
  • 85वाँ संशोधन अधिनियम (2001):
    • इसने आरक्षण के माध्यम से पदोन्नत अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के उम्मीदवारों के लिये परिणामी वरिष्ठता की अवधारणा शुरू की। यह जून 1995 से व्यापक रूप से लागू हुआ।
      • "परिणामी वरिष्ठता" से तात्पर्य आरक्षण नियमों के माध्यम से पदोन्नति के मामलों में अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) से संबंधित सरकारी कर्मचारियों को वरिष्ठता प्रदान करने की अवधारणा से है।
    • यह प्रावधान जून 1995 से पूर्वव्यापी प्रभाव से लाया गया।
  •  एम. नागराज निर्णय, 2006:
    • इस निर्णय ने इंद्रा साहनी निर्णय को आंशिक रूप से पलट दिया। 
    • इसने सरकारी नौकरियों में पदोन्नति चाहने वाले अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति समुदायों के लिये "क्रीमी लेयर" अवधारणा का सशर्त विस्तार प्रस्तुत किया।
      • यह अवधारणा पहले केवल अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) पर लागू होती थी।
    • निर्णय में राज्यों को अनुसूचित जातियों/अनुसूचित जनजातियों के लिये पदोन्नति में आरक्षण प्रदान करने की अनुमति देने के लिये 3 शर्तें निर्धारित की गईं:
      • प्रतिनिधित्व की अपर्याप्तता: राज्य को यह प्रदर्शित करना होगा कि पदोन्नति में अनुसूचित जातियों/अनुसूचित जनजातियों का प्रतिनिधित्व अपर्याप्त है।
      • क्रीमी लेयर का बहिष्कार: आरक्षण का लाभ अनुसूचित जातियों/अनुसूचित जनजातियों के "क्रीमी लेयर" तक नहीं पहुँचना चाहिये।
      • दक्षता बनाए रखना: आरक्षण से समग्र प्रशासनिक दक्षता प्रभावित नहीं होनी चाहिये।
  • जरनैल सिंह बनाम भारत संघ, 2018:
    • इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय (SC) ने डेटा संग्रहण पर अपना रुख बदल दिया।
    • राज्यों को अब मात्रात्मक डेटा की आवश्यकता नहीं: सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला दिया कि पदोन्नति के लिये आरक्षण कोटा लागू करते समय राज्यों को अब SC/ST समुदाय के पिछड़ेपन को साबित करने के लिये मात्रात्मक डेटा एकत्र करने की आवश्यकता नहीं है। 
    • इसने सरकार को SC/ST के सदस्यों के लिये "परिणामी वरिष्ठता के साथ त्वरित पदोन्नति" को सरलता से लागू करने की अनुमति दी। 
  • जनहित अभियान बनाम भारत संघ, 2022
    • इसने 103वें संविधान संशोधन को चुनौती दी, जिसमें शैक्षणिक संस्थानों और सरकारी नौकरियों में आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्गों (EWS) के लिये 10% आरक्षण लागू किया गया था।
      • 3-2 के बहुमत से फैसले में न्यायालय ने संशोधन को बरकरार रखा।
    • इसने सरकार को वंचित सामाजिक समूहों के लिये मौज़ूदा आरक्षण के साथ-साथ आर्थिक स्थिति के आधार पर आरक्षण लाभ प्रदान करने की अनुमति दी।

आगे की राह

  • डेटा-संचालित दृष्टिकोण: विभिन्न स्तरों और विभागों में SC/ST/OBC के वर्तमान प्रतिनिधित्व का आकलन करना आवश्यक है। इस डेटा का उपयोग आरक्षण कोटा भरने के लिये ठोस लक्ष्य निर्धारित करने में किया जा सकता है।
  • योग्यता पर ध्यान देना: एक ऐसी प्रणाली को बढ़ावा देना जो पदोन्नति में SC/ST/OBC के उम्मीदवारों के लिये अर्हता अंकों में कुछ छूट देते हुए योग्यता पर अधिक ज़ोर देती है, जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि इन समुदायों के योग्य उम्मीदवारों को स्वीकार्य योग्यता स्तर बनाए रखते हुए बेहतर अवसर मिलें।
  • चिंताओं को संबोधित करना: आरक्षण के कारण अयोग्य उम्मीदवारों के पदोन्नत होने की चिंताओं को स्वीकार किया जाना चाहिये।
    • पदोन्नत SC/ST/OBC कर्मचारियों के लिये कठोर प्रशिक्षण और मार्गदर्शन कार्यक्रम जैसे समाधान प्रस्तावित किये जाने चाहिये, ताकि कौशल संबंधी किसी भी अंतर को कम किया जा सके, साथ ही यह भी सुनिश्चित किया जा सके कि वे अपनी नई भूमिकाओं में उत्कृष्टता हासिल कर सकें।
  • दीर्घकालिक दृष्टि: इस बात पर ज़ोर दिया जाना चाहिये कि आरक्षण दीर्घकालिक सामाजिक न्याय और पदोन्नति में समान अवसर प्राप्त करने के लिये एक अस्थायी उपाय है।
    • ऐसे समानांतर पहलों की वकालत की जानी चाहिये जो इन समुदायों के लिये शिक्षा और संसाधनों तक पहुँच में सुधार करें, जिससे अंततः ऐसी स्थिति उत्पन्न हो जहाँ आरक्षण की आवश्यकता न हो।

निष्कर्ष:

पदोन्नति में आरक्षण पर सर्वोच्च न्यायालय का दृष्टिकोण समय के साथ विकसित हुआ है, जो समानता और सकारात्मक कार्रवाई के प्रतिस्पर्धी सिद्धांतों को संतुलित करता है। जबकि न्यायालय ने राज्यों को इस तरह का आरक्षण प्रदान करने की अनुमति दी है, इसने यह सुनिश्चित करने के लिये कुछ शर्तें भी लगाई हैं कि इससे प्रशासनिक दक्षता एवं समग्र सार्वजनिक हित से समझौता न हो।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

SC,ST और OBC के लिये पदोन्नति में आरक्षण नौकरशाही दक्षता के साथ समावेशिता को संतुलित करने में एक चुनौती पेश करता है। भारतीय प्रशासनिक प्रणाली में दोनों उद्देश्यों को प्रभावी ढंग से पूरा करने के लिये रणनीतियों की आलोचनात्मक जाँच करें।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न.निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये:

  1. भारत का संविधान अपने 'मूल ढाँचे' को संघवाद, पंथनिरपेक्षता, मूल अधिकारों तथा लोकतंत्र के रूप में परिभाषित करता है।
  2. भारत का संविधान, नागरिकों की स्वतंत्रता तथा उन आदर्शों जिन पर संविधान आधारित है, की सुरक्षा हेतु 'न्यायिक पुनरवलोकन' की व्यवस्था करता है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1, न ही 2

उत्तर: (d)

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