मानसिक स्वास्थ्य को प्राथमिकता | 30 Jan 2023
प्रिलिम्स के लिये:राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य और स्नायु-विज्ञान संस्थान, राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम (NMHP), मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम 2017, किरण हेल्पलाइन, मानसिक स्वास्थ्य और सामान्यता वृद्धि प्रणाली (MANAS), गरीबी, आयुष्मान भारत। मेन्स के लिये:भारत में मानसिक स्वास्थ्य देखभाल की स्थिति, मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े मुद्दे, भारत सरकार की मानसिक स्वास्थ्य से संबंधित पहल। |
चर्चा में क्यों?
विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organisation- WHO) के अनुसार, वर्ष 2019 में भारत में आत्महत्या दर 12.9/1,00,000 थी, जो क्षेत्रीय औसत 10.2 और वैश्विक औसत 9.0 से अधिक थी।
- भारत में 15 से 29 वर्ष के बीच के लोगों की मृत्यु दर का मुख्य कारण आत्महत्या है। हालाँकि आत्महत्या के कारण खोया गया प्रत्येक जीवन बहुत अधिक कीमती है, लेकिन यह मुश्किल से ही देश के मानसिक स्वास्थ्य विशेष रूप से युवा वयस्कों को प्रभावित करने वाले मुद्दों को उजागर करता है। महिलाएँ इस समस्या से आमतौर पर अधिक प्रभावित होती हैं।
भारत में मानसिक स्वास्थ्य सेवा की स्थिति:
- परिचय:
- मानसिक स्वास्थ्य में भावनात्मक, मनोवैज्ञानिक और सामाजिक कल्याण शामिल है।
- यह अनुभूति, धारणा और व्यवहार को प्रभावित करता है। साथ ही यह भी निर्धारित करता है कि कोई व्यक्ति तनाव, पारस्परिक संबंधों और निर्णय लेने की स्थिति का सामना कैसे करता है।
- भारत में राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य और स्नायु-विज्ञान संस्थान (National Institute of Mental Health and Neuro-Sciences) के आँकड़ों के अनुसार, कई कारणों से 80% से अधिक लोगों की मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुँच नहीं है।
- मानसिक स्वास्थ्य में भावनात्मक, मनोवैज्ञानिक और सामाजिक कल्याण शामिल है।
- मानसिक स्वास्थ्य से संबंधित भारत सरकार की पहल:
- राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम (National Mental Health Program- NMHP): मानसिक विकारों की संख्या में वृद्धि तथा मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों की कमी को देखते हुए सरकार द्वारा वर्ष 1982 में NMHP को अपनाया गया था।
- मानसिक स्वास्थ्य अधिनियम: मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम, 2017 के एक भाग के रूप में प्रत्येक प्रभावित व्यक्ति के लिये सरकारी संस्थानों में मानसिक स्वास्थ्य देखभाल और उपचार की सुविधा एवं पहुँच उपलब्ध है।
- किरण हेल्पलाइन: वर्ष 2020 में सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय ने मानसिक स्वास्थ्य सहायता प्रदान करने के लिये 24/7 टोल-फ्री हेल्पलाइन 'किरण' शुरू की।
- मानस मोबाइल एप: भारत सरकार ने सभी आयु समूहों में मानसिक स्वास्थ्य को बढ़ावा देने के लिये वर्ष 2021 में मानस (मानसिक स्वास्थ्य और सामान्यता वृद्धि प्रणाली) लॉन्च किया।
- मानसिक स्वास्थ्य से संबंधित मुद्दे:
- सोशल मीडिया: गिने-चुने सोशल मीडिया के बढ़ते उपयोग के साथ युवाओं में तनाव और मानसिक अस्वस्थता के मामलों में वृद्धि देखी जा रही है।
- सोशल मीडिया वास्तविक दुनिया से परे है और यह सार्थक गतिविधियों में निवेश को कम करता है।
- इससे भी महत्त्वपूर्ण बात यह है कि यह प्रतिकूल सामाजिक तुलना के माध्यम से आत्मसम्मान में कमी लाता है।
- कोविड-19 महामारी: कोविड-19 महामारी के बाद से इस समस्या में और वृद्धि हुई है। लैंसेट में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, वर्ष 2020 और 2021 के बीच केवल एक वर्ष में वैश्विक स्तर पर इस महामारी के कारण अवसाद में 28% तथा चिंता संबंधी मामलों में 26% तक की वृद्धि हुई है।
- स्कूल बंद होने और सामाजिक अलगाव के अतिरिक्त भविष्य संबंधी अनिश्चितता, वित्तीय एवं रोज़गार का नुकसान, दुख, बच्चों की देखभाल का बढ़ता बोझ आदि सभी के कारण भी युवा आयु समूहों के बीच अवसाद तथा चिंता में वृद्धि देखी गई है।
- निर्धनता: मानसिक स्वास्थ्य का निर्धनता से करीबी रिश्ता होता है। गरीबी में रहने वाले लोगों को मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं की स्थिति का अनुभव होने का खतरा अधिक होता है।
- दूसरी ओर गंभीर मानसिक स्वास्थ्य स्थितियों का सामना करने वाले लोगों को रोज़गार के नुकसान और स्वास्थ्य पर व्यय में वृद्धि के कारण गरीबी की ओर बढ़ने की अधिक संभावना है।
- मानसिक स्वास्थ्य बुनियादी ढाँचे की कमी: वर्तमान में मानसिक बीमारियों वाले केवल 20-30% लोगों को पर्याप्त उपचार मिल पाता है।
- इतने बड़े उपचार अंतराल का एक प्रमुख कारण संसाधनों की अपर्याप्तता है। सरकार के स्वास्थ्य बजट का 2% से भी कम मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों के लिये उपलब्ध है।
- साथ ही आवश्यक दवाओं की सूची में WHO द्वारा निर्धारित मानसिक स्वास्थ्य दवाओं की सीमित संख्या ही शामिल है।
- सोशल मीडिया: गिने-चुने सोशल मीडिया के बढ़ते उपयोग के साथ युवाओं में तनाव और मानसिक अस्वस्थता के मामलों में वृद्धि देखी जा रही है।
भारत में मानसिक स्वास्थ्य संवर्द्धन की पुनर्कल्पना:
हमारे लोगों के मानसिक स्वास्थ्य की रक्षा, संवर्द्धन और देखभाल के लिये एक तत्काल और अच्छी तरह से संसाधन युक्त "संपूर्ण समाज" के दृष्टिकोण की आवश्यकता है। यह निम्नलिखित चार स्तंभों पर आधारित होना चाहिये:
- मानसिक स्वास्थ्य को कलंक न समझना: मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों को कलंक मानना, जो रोगियों को समय पर इलाज कराने से रोकता है और उन्हें शर्मनाक, अलग-थलग एवं कमज़ोर महसूस कराता है।
- सार्वजनिक स्वास्थ्य कार्यक्रम में मानसिक स्वास्थ्य को शामिल करना: तनाव को कम करने, स्वस्थ जीवनशैली को बढ़ावा देने, उच्च जोखिम वाले समूहों की जाँच और पहचान करने एवं परामर्श सेवाओं जैसे मानसिक स्वास्थ्य हस्तक्षेपों को मज़बूत करने के लिये उन्हें मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम का एक अभिन्न अंग बनाना।
- स्कूलों पर विशेष ध्यान देना होगा।
- इसके अलावा हमें उन समूहों पर विशेष ध्यान देना चाहिये जो मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों के प्रति अत्यधिक संवेदनशील हैं जैसे कि घरेलू या यौन हिंसा के शिकार, बेरोज़गार युवा, सीमांत किसान, सशस्त्र बलों के कर्मी तथा कठिन परिस्थितियों में कार्य करने वाले कर्मी।
- मेंटल हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर: मेंटल हेल्थ केयर और इलाज के लिये एक मज़बूत इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार करना। मानसिक स्वास्थ्य के बुनियादी ढाँचे और मानव संसाधनों में अंतराल को दूर करने के लिये पर्याप्त निवेश की आवश्यकता होगी।
- कियायती पहलुओं पर काम करना: मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं को सभी के लिये किफायती बनाया जाना चाहिये। वित्तीय सुरक्षा के बिना बेहतर कवरेज से असमान परिणाम उभरकर सामने आएंगे।
- आयुष्मान भारत सहित सभी सरकारी स्वास्थ्य गारंटी योजनाओं में मानसिक स्वास्थ्य स्थितियों की व्यापक संभव सीमा को शामिल किया जाना चाहिये।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न:प्रश्न. जब तक हम अपने भीतर शांति प्राप्त नहीं करते, तब तक हम बाहरी दुनिया में कभी भी शांति प्राप्त नहीं कर सकते। (2021) |