बचत का विरोधाभास | 03 May 2024

प्रिलिम्स के लिये:

बचत का विरोधाभास, मितव्ययिता का विरोधाभास, बचत दरें, जॉन मेनार्ड कीन्स, माइक्रोफाइनेंस, भारतीय रिज़र्व बैंक, सागरमाला, भारतमाला  

मेन्स के लिये:

भारत के संदर्भ में बचत के विरोधाभास का अनुप्रयोग

स्रोत: द हिंदू 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में बचत का विरोधाभास या मितव्ययिता का विरोधाभास आर्थिक चर्चाओं में रुचि का विषय रहा है, क्योंकि इसका निहितार्थ यह है कि व्यक्तिगत बचत व्यवहार व्यापक आर्थिक विकास को किस प्रकार नकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकता है।

  • यह प्रतिकूल आर्थिक अवधारणा समाचारों और विश्लेषणों में पुनः सामने आई है, विशेष रूप से आर्थिक मंदी के समय में, जहाँ बचत एवं खर्चों के बीच संतुलन, इस नीतिगत बहस के लिये महत्त्वपूर्ण हो जाता है कि कैसे सुधार को प्रोत्साहित किया जाए और आर्थिक स्थिरता को बनाए रखा जाए।

बचत के विरोधाभास की अवधारणा क्या है?

  • परिचय:
    • बचत का विरोधाभास, जिसे अर्थशास्त्र के विरोधाभास के रूप में भी जाना जाता है, यह बताता है कि व्यक्तिगत बचत स्पष्ट रूप से सही है, लेकिन एक अर्थव्यवस्था के अंतर्गत समग्र बचत दरों में वृद्धि होने से, देश की कुल आर्थिक बचत में कमी आ सकती है।
    • यह सिद्धांत उस सहज धारणा के विपरीत है कि अधिक व्यक्तिगत बचत, स्पष्ट तौर पर बढ़ी हुई आर्थिक बचत में योगदान करती है।
  • सिद्धांत की उत्पत्ति और विकास:
    • मुख्य ऐतिहासिक अंतर्दृष्टि: इस विचार को जॉन मेनार्ड कीन्स ने अपनी प्रभावशाली 1936 में प्रकाशित पुस्तक, “द जनरल थ्योरी ऑफ एम्प्लॉयमेंट, इंटरेस्ट एंड मनी” में विशेष रूप से लोकप्रिय बनाया था।
    • कीन्सियन परिप्रेक्ष्य: कीन्सियन अर्थशास्त्रियों का तर्क है कि बचत में वृद्धि से वस्तुओं और सेवाओं पर उपभोक्ता व्यय कम हो जाता है, जिसके परिणामस्वरूप समग्र बचत एवं निवेश कम हो जाता है।
      • उनका तर्क है कि उपभोक्ता व्यय आर्थिक विकास को गति देता है और बचत को उपभोक्ता बाज़ारों के लिये सामान तैयार करने के उद्देश्य से निवेश में लगाया जाता है।
      • अपर्याप्त उपभोक्ता व्यय से इन निवेशों में कमी आ सकती है, जिससे आर्थिक विकास को नुकसान पहुँच सकता है।
    • सरकारी भूमिका:
      • कीन्सियन आर्थिक मंदी के समय में सक्रिय सरकारी हस्तक्षेप की वकालत करते हैं।
        • इन उपायों में उपभोक्ता क्रय शक्ति को बढ़ावा देने और मांग को प्रोत्साहित करने के लिये सरकारी व्यय को बढ़ाना शामिल हो सकता है।
  • विपरीत तर्क:
    • विरोधाभास रखने वाले आलोचकों का तर्क है कि बचत, पूंजी के एक पूल में योगदान करती है जिसका उपयोग निवेश के लिये किया जा सकता है, जिससे संभावित रूप से निम्न उपभोक्ता व्यय के संदर्भ में भी आर्थिक विकास हो सकता है।
    • उपभोक्ता मांग में कमी से निवेश अल्पकालिक, उपभोक्ता-संचालित उत्पादन से दीर्घकालिक परियोजनाओं की ओर स्थानांतरित हो जाता है, जो संभावित रूप से पहले से अव्यवहार्य परियोजनाओं को व्यवहार्य बनाता है।

भारतीय संदर्भ में मितव्ययिता का विरोधाभास कैसे चलता है?

  • भारतीय संदर्भ:
    • भारतीयों की उच्च बचत दर, दीर्घकालिक सुरक्षा के लिये लाभदायक मंदी के दौरान आर्थिक विकास में बाधा बन सकती है।
    • सीमित बचत वाला एक बड़ा अनौपचारिक क्षेत्र मामलों को जटिल बनाता है; औपचारिकीकरण को बढ़ावा देने वाली नीतियाँ बचत को बढ़ावा दे सकती हैं और ऋण तक पहुँच बढ़ा सकती हैं।
    • न्यूनतम मांग व्यवसायों को नई परियोजनाओं में निवेश करने से रोक सकती है, जिससे समग्र निवेश पूल घट सकता है, जो भारत के बुनियादी ढाँचे और रोज़गार सृजन की आवश्यकताओं के लिये एक चिंता का विषय है।
  • शमनीय कारक:
    • एक कुशल बैंकिंग प्रणाली बचत को उत्पादक निवेश में बदल सकती है।
    • आर्थिक मंदी के दौरान, सरकार बुनियादी ढाँचे और सामाजिक कार्यक्रमों पर अधिक व्यय करके मांग को प्रोत्साहित कर सकती है तथा नौकरियों का सृजन कर सकती है।
    • आर्थिक मंदी के दौरान उपभोग को प्रोत्साहित करने के लिये व्यवहारिक अर्थशास्त्र के सिद्धांतों का उपयोग किया जा सकता है।

भारत रिकार्डियन तुल्यता प्रस्ताव को कैसे लागू करता है?

  • क्राउडिंग-आउट प्रभाव: आर्थिक सर्वेक्षण, (2021) क्राउडिंग-आउट प्रभाव पर चर्चा करता है, जहाँ सरकारी खर्च बढ़ने से संभावित रूप से उच्च ब्याज दरों के कारण निजी निवेश कम हो जाता है।
  • यह घटना रिकार्डियन तुल्यता प्रस्ताव (REP) से जुड़ी है, जो आदर्श पूंजी बाज़ार की परिकल्पना करती है और उपभोक्ताओं को संभावित कर देनदारियों के लिये अलग से धन की बचत करने की वकालत करती है, जिससे सरकारी व्यय के नकारात्मक प्रभावों को दूर किया जा सके।
    • हालाँकि, भारत जैसी जटिल और उभरती अर्थव्यवस्थाओं में REP की कठोर धारणाएँ लागू नहीं हो सकती हैं।
  • भारत का आर्थिक परिदृश्य: भारत, एक उभरती हुई अर्थव्यवस्था, आय विकास के साथ बचत आपूर्ति में वृद्धि का अनुभव कर रहा है, जो कि क्राउडिंग-आउट परिकल्पना में अपेक्षित स्थिर बचत आपूर्ति के विपरीत है।
  • इससे सरकारी खर्च मांग और रोज़गार को बढ़ावा मिल सकता है, जिससे बचत में वृद्धि हो सकती है तथा निजी निवेश को बढ़ावा मिल सकता है।
  • निजी क्षेत्र की बचत और निवेश क्षमताओं का समर्थन करने वाले सार्वजनिक व्यय वास्तव में निजी निवेश को बढ़ावा दे सकते हैं, विशेषकर तब, जब उन्हें बुनियादी ढाँचे एवं विकास की ओर निर्देशित किया जाता है।
  • आर्थिक सर्वेक्षण अंतर्दृष्टि: भारत का आर्थिक सर्वेक्षण (2020-21) संभावित अल्पकालिक क्राउडिंग-आउट प्रभाव  को स्वीकार करता है, परंतु दीर्घकालिक लाभों पर ज़ोर देता है जहाँ सार्वजनिक निवेश, निजी निवेश को प्रोत्साहित करते हैं।
  • यह ‘महत्त्वपूर्ण आर्थिक विकास कारक’ के रूप में MSME क्षेत्र के ऋण में वृद्धि तथा सरकार द्वारा बढ़े हुए पूंजीगत व्यय पर प्रकाश डालता है।
  • सर्वेक्षण से पता चलता है कि भारत में, सार्वजनिक व्यय निजी निवेश का पूरक है, जिससे देश की समग्र आर्थिक प्रगति में सहायता मिलती है।

Ricardian_equivalence_proposition_and_keynesian_economy

निष्कर्ष: 

  • बचत दरों पर यह विरोधाभास पारंपरिक आर्थिक ज्ञान के लिये एक महत्त्वपूर्ण सैद्धांतिक चुनौती प्रस्तुत करता है जो स्पष्ट रूप से बचत का समर्थन करता है।
  • जबकि कीनेसियन अर्थशास्त्री आर्थिक गतिविधियों पर बचत दरों में वृद्धि के संभावित नकारात्मक प्रभावों को चिह्नित करते हैं, आलोचक एक पृथक दृष्टिकोण प्रस्तुत करते हैं जो बचत को समय-समय पर आर्थिक उत्पादन और निवेश को समायोजित करने के लिये एक लचीले उपाय के रूप में देखते हैं, जिससे संभावित रूप से स्थायी दीर्घकालिक विकास सुनिश्चित हो सकता है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्र. भारतीय अर्थव्यवस्था के संदर्भ में बचत  के विरोधाभास की प्रासंगिकता पर चर्चा करें। व्यक्तिगत बचत व्यवहार समग्र आर्थिक विकास और कुल मांग को कैसे प्रभावित करता है? 

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, गत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. भारत में सभी राष्ट्रीयकृत वाणिज्यिक बैंकों में बचत खातों पर ब्याज दर किसके द्वारा निर्धारित की जाती है (2010)

(a) केंद्रीय वित्त मंत्रालय
(b) केंद्रीय वित्त आयोग
(c) भारतीय बैंक संघ
(d) उपरोक्त में से कोई नहीं

उत्तर: (d)


प्रश्न . किसी अर्थव्यवस्था में यदि ब्याज की दर को घटाया जाता है, तो वह(2014)

(a) अर्थव्यवस्था में उपभोग व्यय घटाएगा
(b) सरकार के कर-संग्रह को बढ़ाएगा
(c) अर्थव्यवस्था में निवेश व्यय को बढ़ाएगा
(d) अर्थव्यवस्था में कुल बचत को बढ़ाएगा

उत्तर : (c)      


मेन्स :

प्रश्न. भारत की संभावित वृद्धि के कई कारकों में से बचत दर सबसेअधिक प्रभावी है। क्या आप सहमत हैं? विकास क्षमता के लिए अन्य कौन से कारक उपलब्ध हैं?