‘वन हेल्थ’ दृष्टिकोण | 07 Apr 2022

प्रिलिम्स के लिये:

वन हेल्थ, नेशनल डिजिटल लाइवस्टॉक मिशन।

मेन्स के लिये:

‘वन हेल्थ’ अवधारणा और इसका महत्त्व, भारत का ‘वन हेल्थ’ फ्रेमवर्क।

चर्चा में क्यों?

मत्स्य पालन, पशुपालन एवं डेयरी मंत्रालय ने उत्तराखंड राज्य में ‘वन हेल्थ सपोर्ट यूनिट’ द्वारा ‘वन हेल्थ फ्रेमवर्क’ को लागू करने हेतु एक पायलट प्रोजेक्ट शुरू किया है।

  • इस यूनिट का प्राथमिक कार्य पायलट परियोजना कार्यान्वयन के आधार पर ‘वन नेशन, वन हेल्थ’ रोडमैप विकसित करना है।
  • इस पायलट परियोजना के हिस्से के रूप में शुरू की जाने वाली कुछ प्रमुख गतिविधियों में बीमारी के प्रकोप, प्रसार, प्रबंधन और लक्षित निगरानी योजना के विकास पर डेटा संग्रह के तंत्र को संस्थागत बनाना, प्रयोगशालाओं के नेटवर्क को एकीकृत करना, सभी क्षेत्रों में संचार रणनीति विकसित करना और लागू करना शामिल है।

‘वन हेल्थ’ दृष्टिकोण का अर्थ:

  • परिचय:
    • वन हेल्थ एक ऐसा दृष्टिकोण है जो यह मानता है कि मानव स्वास्थ्य, पशु स्वास्थ्य और हमारे चारों ओर के पर्यावरण के साथ घनिष्ठ रूप से जुड़ा हुआ है।
    • वन हेल्थ का सिद्धांत संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO), विश्व पशु स्वास्थ्य संगठन (OIE) के त्रिपक्षीय-प्लस गठबंधन के बीच हुए समझौते के अंतर्गत एक पहल/ब्लूप्रिंट है।
    • इसका उद्देश्य मानव स्वास्थ्य, पशु स्वास्थ्य, पौधों, मिट्टी, पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी तंत्र जैसे विभिन्न विषयों के अनुसंधान और ज्ञान को कई स्तरों पर साझा करने के लिये प्रोत्साहित करना है, जो सभी प्रजातियों के स्वास्थ्य में सुधार, उनकी रक्षा व बचाव के लिये ज़रूरी है।

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  • बढ़ता महत्त्व: यह हाल के वर्षों में और अधिक महत्त्वपूर्ण हो गया है क्योंकि कई कारकों ने लोगों, जानवरों, पौधों और हमारे पर्यावरण के बीच पारस्परिक प्रभाव को बदल दिया है।
    • मानव विस्तार: मानव आबादी बढ़ रही है और नए भौगोलिक क्षेत्रों का विस्तार कर रही है जिसके कारण जानवरों तथा उनके वातावरण के साथ निकट संपर्क की वजह से जानवरों द्वारा मनुष्यों में बीमारियों के फैलने का खतरा बढ़ रहा है।
      • मनुष्यों को प्रभावित करने वाले संक्रामक रोगों में से 65% से अधिक ज़ूनोटिक रोगों की उत्पत्ति के मुख्य स्रोत जानवर हैं।
    • पर्यावरण संबंधी व्यवधान: पर्यावरणीय परिस्थितियों और आवासों में व्यवधान जानवरों में रोगोंका संचार करने के नए अवसर प्रदान कर सकता है।
    • अंतर्राष्ट्रीय यात्रा और व्यापार: अंतर्राष्ट्रीय यात्रा व व्यापार के कारण लोगों, जानवरों और पशु उत्पादों की आवाजाही बढ़ गई है, जिसके कारण बीमारियाँ तेज़ी से सीमाओं एवं दुनिया भर में फैल सकती हैं।
    • वन्यजीवों में वायरस: वैज्ञानिकों के अनुसार, वन्यजीवों में लगभग 1.7 मिलियन से अधिक वायरस पाए जाते हैं, जिनमें से अधिकतर के ज़ूनोटिक होने की संभावना है।
      • इसका तात्पर्य है कि समय रहते अगर इन वायरस का पता नहीं चलता है तो भारत को आने वाले समय में कई महामारियों का सामना करना पड़ सकता है।

भारत का वन हेल्थ फ्रेमवर्क:

  • दीर्घकालिक उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए भारत ने 1980 के दशक के रूप में जूनोज़िस (Zoonoses) पर एक राष्ट्रीय स्थायी समिति की स्थापना की।
  • पशुपालन और डेयरी विभाग (Department of Animal Husbandry and Dairying- DAHD) ने पशु रोगों के प्रसार को कम करने के लिये कई योजनाएँ शुरू की हैं।
    • इसके अलावा DAHD ज़ल्द ही अपने मंत्रालय के भीतर एक एक स्वास्थ्य इकाई स्थापित करेगा।
  • इसके अतिरिक्त, सरकार ऐसे कार्यक्रमों को पुनर्जीवित करने के लिये काम कर रही है जो पशु चिकित्सकों के लिये क्षमता निर्माण पर ध्यान केंद्रित करते हैं एवं पशु स्वास्थ्य निदान प्रणाली जैसे कि, राज्यों को पशु रोग नियंत्रण हेतु सहायता प्रदान करना (Assistance to States for Control of Animal Diseases- ASCAD) हेतु उपयोगी है।
  • हाल ही में नागपुर में 'एक स्वास्थ्य केंद्र' की स्थापना के लिये धनराशि स्वीकृत की गई थी।

आगे की राह

  • कोविड-19 महामारी ने संक्रामक रोगों के दौरान 'वन हेल्थ' सिद्धांत की प्रासंगिकता को विशेष रूप से पूरे विश्व में ज़ूनोटिक रोगों को रोकने और नियंत्रित करने के प्रयास के रूप में प्रदर्शित किया है।
  • भारत को पूरे देश में इस तरह के एक मॉडल को विकसित करने और दुनिया भर में सार्थक अनुसंधान सहयोग स्थापित करने की आवश्यकता है।
  • अनौपचारिक बाज़ार और बूचड़खानों के संचालन (जैसे- निरीक्षण, रोग प्रसार आकलन) हेतु सर्वोत्तम अभ्यास दिशा-निर्देश विकसित करने तथा ग्राम स्तर तक प्रत्येक स्तर पर 'वन हेल्थ' अवधारणा के संचालन के लिये तंत्र बनाने की आवश्यकता है।
  • जागरूकता फैलाना और 'वन हेल्थ' लक्ष्यों को पूरा करने के लिये निवेश बढ़ाना समय की मांग है।

स्रोत: पी.आई.बी.