भारतीय अर्थव्यवस्था
डिजिटल रूप से समावेशी भारत के लिये नीति आयोग की रिपोर्ट
- 12 May 2021
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चर्चा में क्यों?
हाल ही में नीति आयोग और मास्टरकार्ड ने ‘कनेक्टेड कॉमर्स: क्रिएटिंग ए रोडमैप फॉर ए डिजिटल इन्क्लूसिव भारत’ (Connected Commerce: Creating a Roadmap for a Digitally Inclusive Bharat) शीर्षक नाम से एक रिपोर्ट जारी की।
- यह रिपोर्ट भारत में डिजिटल वित्तीय समावेशन (Digital Financial Inclusion) की राह में आने वाली चुनौतियों की पहचान करती है और साथ ही 1.3 अरब नागरिकों तक डिजिटल सेवाओं को सुलभ बनाने के लिये जरूरी सिफारिशें प्रदान करती है।
डिजिटल वित्तीय समावेशन
- इसे औपचारिक वित्तीय सेवाओं के उपयोग और उन तक डिजिटल पहुँच के रूप में परिभाषित किया जा सकता है। इस तरह की सेवाएँ ग्राहकों की आवश्यकताओं के अनुकूल होनी चाहिये और ग्राहकों के लिये सस्ती कीमत पर ज़िम्मेदारी से वितरित की जानी चाहिये।
प्रमुख बिंदु
चुनौतियाँ:
- मांग पक्ष अंतराल:
- डिजिटल वित्तीय समावेशन को प्राप्त करने के लिये बहुत प्रयास किये गए हैं, जिससे इसके आपूर्ति पक्ष, जैसे- ई-गवर्नेंस, गुड्स एंड सर्विसेज़ टैक्स, डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर योजनाओं आदि में बहुत सफलता मिली है।
- हालाँकि डिजिटल वित्तीय प्रवाह में ठहराव अंत में आता है, जहाँ ज़्यादातर खाताधारक अपने अंतिम उपयोग के लिये नकदी निकालते हैं।
- असफल एग्री-टेक:
- कृषि अपने संबद्ध क्षेत्रों के साथ भारतीय आबादी के एक बड़े हिस्से को आजीविका प्रदान करती है। राष्ट्रीय सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में कृषि का योगदान वर्ष 1983-84 के 34% से घटकर वर्ष 2018-19 में केवल 16% रह गया है।
- अधिकांश कृषि तकनीक किसानों के लिये वित्तीय लेन-देन का डिजिटलीकरण करने या लेन-देन के आँकड़ों का लाभ उठाकर कम ब्याज दर पर औपचारिक ऋण देने में सफल नहीं हुए हैं।
- एमएसएमई की औपचारिक वित्त तक सीमित पहुँच:
- सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (Micro, Small and Medium Enterprises- MSME) भारतीय अर्थव्यवस्था के एक प्रमुख अंग रहे हैं। वर्ष 2020 की एक रिपोर्ट के अनुसार, इस क्षेत्र में लगभग 110 मिलियन लोग या गैर-कृषि कार्यबल के 40% से अधिक लोग कार्यरत हैं।
- इन्हें उचित प्रलेखन, बैंक के स्वीकार्य योग्य संपार्श्विक, ऋण इतिहास और गैर-मानक वित्त की कमी अनौपचारिक ऋण का उपयोग करने के लिये मज़बूर करती है।
- डिजिटल कॉमर्स में विश्वास और सुरक्षा:
- डिजिटल लेनदेन में वृद्धि से उपभोक्ताओं और व्यवसायों दोनों के लिये संभावित सुरक्षा उल्लंघनों का जोखिम बढ़ गया है।
- जून 2020 की एक मेडिसी (Medici) रिपोर्ट में कहा गया था कि भारत में लगभग 40,000 हज़ार साइबर हमलों ने बैंकिंग क्षेत्र के आईटी बुनियादी ढाँचे को लक्षित किया।
- डिजिटल एक्सेसिबल ट्रांज़िट सिस्टम:
- महामारी की शुरुआत के साथ भारत में संपर्क रहित भुगतान के साथ पारगमन प्रणालियों को और अधिक एकीकृत करने की आवश्यकता है।
- वैश्विक स्तर पर रुझान ओपन-लूप ट्रांज़िट सिस्टम (Open-Loop Transit System) की ओर है, जो यात्रियों को भुगतान योग्य समाधान के माध्यम से परिवहन के विभिन्न तरीकों को उपयोग करने की अनुमति देता है।
सिफारिशें:
- बाज़ार से संबंधित लोगों के लिये उपयोगकर्त्ता के अनुकूल डिजिटल उत्पादों और सेवाओं को बनाकर मांग के अंतर को पूरा करना महत्त्वपूर्ण है जो नकदी से डिजिटल तक व्यवहारिक परिवर्तन को प्रोत्साहित करते हैं।
- फास्टटैग (FASTag) इसका एक सफल उदाहरण है।
- गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (Non-Banking Financial Companies) और बैंकों को बढ़ावा देने के लिये भुगतान संबंधित बुनियादी ढाँचे को मज़बूत करना।
- एमएसएमई के विकास के अवसरों को बढ़ाने के लिये पंजीकरण और अनुपालन प्रक्रियाओं का डिजिटलीकरण करना तथा ऋण स्रोतों में विविधता लाना।
- ‘फ्रॉड रिपॉज़िटरी’ सहित सूचना साझाकरण प्रणाली का निर्माण और यह सुनिश्चित करना कि ऑनलाइन डिजिटल कॉमर्स प्लेटफॉर्म उपभोक्ताओं को धोखाधड़ी के जोखिम के प्रति सचेत करने के लिये चेतावनी दे।
- कृषि एनबीएफसी को कम लागत वाली पूंजी तक पहुँच बनाने के लिये सक्षम करना और बेहतर दीर्घकालिक डिजिटल परिणामों को प्राप्त करने हेतु एक 'फिजिटल' (भौतिक+डिजिटल) मॉडल को विस्तार करना। भू-अभिलेखों का डिजिटलीकरण भी इस क्षेत्र को बढ़ावा देगा।
- न्यूनतम भीड़-भाड़ के साथ शहरों में ट्रांज़िट को सुलभ बनाने के लिये मौज़ूदा स्मार्टफोन और कॉन्टेक्टलेस कार्ड का लाभ उठाते हुए एक समावेशी, इंटरऑपरेबल और पूरी तरह से खुली प्रणाली बनाने का लक्ष्य होना चाहिये।
भारत में डिजिटल वित्तीय समावेशन हेतु पहलें
जन धन-आधार-मोबाइल (JAM) ट्रिनिटी:
- आधार, प्रधानमंत्री जन-धन योजना (Pradhan Mantri Jan-Dhan Yojana) के संयोजन और मोबाइल संचार में वृद्धि ने सरकारी सेवाओं के उपयोग के तरीके को बदल दिया है।
- एक अनुमान के अनुसार, मार्च 2020 में जन धन योजना के तहत लाभार्थियों की कुल संख्या लगभग 380 मिलियन से अधिक थी।
ग्रामीण और अर्द्ध-शहरी क्षेत्रों में वित्तीय सेवाओं का विस्तार:
- भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) और राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (NABARD) ने ग्रामीण क्षेत्रों में वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देने के लिये कई पहलें की हैं:
- दूरस्थ क्षेत्रों में बैंक शाखाएँ खोलना।
- किसान क्रेडिट कार्ड (KCC) जारी करना।
- बैंकों के साथ स्व-सहायता समूहों (SHGs) को जोड़ना।
- एटीएम की संख्या में वृद्धि करना।
- बिजनेस कॉरपोरेट्स बैंकिंग मॉडल।
- भुगतान अवसंरचना विकास कोष (PIDF) योजना आदि।
सुरक्षित डिजिटल भुगतान को बढ़ावा देना:
- नेशनल पेमेंट्स कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (NPCI) द्वारा एकीकृत भुगतान प्रणाली (UPI) को मज़बूत करके पूर्व की तुलना में डिजिटल भुगतान को सुरक्षित बनाया गया है।
- आधार-सक्षम भुगतान प्रणाली (Aadhar-Enabled Payment System), आधार सक्षम बैंक खाता (Aadhar Enabled Bank Account) को किसी भी स्थान पर और किसी भी समय माइक्रो एटीएम का उपयोग करने में सक्षम बनाती है।
- ऑफलाइन लेनदेन-सक्षम करने वाले प्लेटफॉर्म जैसे अनस्ट्रक्चर्ड सप्लीमेंट्री सर्विस डेटा (Unstructured Supplementary Service Data- USSD) के कारण भुगतान प्रणाली को और अधिक सुलभ बनाया गया है, जिससे सामान्य मोबाइल फोन पर भी इंटरनेट के बिना मोबाइल बैंकिंग सेवाओं का उपयोग करना संभव हो सके।
वित्तीय साक्षरता बढ़ाना:
- भारतीय रिज़र्व बैंक ने "परियोजना वित्तीय साक्षरता" (Project Financial Literacy) नामक एक परियोजना शुरू की है।
- इस परियोजना का उद्देश्य केंद्रीय बैंक और सामान्य बैंकिंग अवधारणाओं के विषय में विभिन्न लक्षित समूहों, जिनमें स्कूल और कॉलेज जाने वाले बच्चे, महिलाएँ, ग्रामीण और शहरी गरीब, रक्षा कर्मी और वरिष्ठ नागरिक शामिल हैं, के विषय में जानकारी का प्रसार करना है।
- पॉकेट मनी (Pocket Money) स्कूली छात्रों के बीच वित्तीय साक्षरता बढ़ाने के उद्देश्य से भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (Securities and Exchange Board of India- SEBI) और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ सिक्योरिटीज मार्केट (National Institute of Securities Market) का एक प्रमुख कार्यक्रम है।