शासन व्यवस्था
NHRC और संबद्ध चुनौतियाँ
- 25 Dec 2024
- 17 min read
प्रिलिम्स के लिये:राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, सर्वोच्च न्यायालय, मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम (PHRA), 1993, संयुक्त राष्ट्र (UN) मेन्स के लिये:राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) की भूमिका और कार्य, उभरती मानवाधिकार चुनौतियाँ। |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) वी. रामसुब्रमण्यम को भारत के राष्ट्रपति द्वारा राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) का अध्यक्ष नियुक्त किया गया है।
- न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) अरुण कुमार मिश्रा का 1 जून 2024 को कार्यकाल पूरा होने के बाद से यह पद रिक्त था।
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) क्या है?
- परिचय:
- भारत का NHRC मानव अधिकारों को बढ़ावा और संरक्षण देने के लिये स्थापित एक स्वायत्त वैधानिक निकाय है।
- स्थापना:
- इसका गठन 12 अक्तूबर 1993 को मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम (PHRA), 1993 के तहत किया गया था, जिसे बाद में वर्ष 2006 और वर्ष 2019 में संशोधित किया गया था।
- आयोग की स्थापना पेरिस सिद्धांतों के अनुरूप की गई थी, जो मानव अधिकारों को बढ़ावा देने और संरक्षण के लिये अपनाए गए अंतर्राष्ट्रीय मानक हैं।
- पेरिस सिद्धांत मानव अधिकारों के संवर्द्धन और संरक्षण के लिये पेरिस (अक्तूबर, 1991) में अपनाए गए अंतर्राष्ट्रीय मानकों का समूह है और 20 दिसंबर, 1993 को संयुक्त राष्ट्र (UN) की महासभा द्वारा अनुमोदित किया गया था।
- ये सिद्धांत विश्व भर में राष्ट्रीय मानवाधिकार संस्थाओं (NHRI) के कार्यों का मार्गदर्शन करते हैं।
- भूमिका और कार्य:
- न्यायालय की कार्यवाही में हस्तक्षेप: यह संबंधित न्यायालय की पूर्वानुमति से मानवाधिकार उल्लंघन के आरोपों से जुड़े न्यायालयी मामलों में हस्तक्षेप करता है।
- सुरक्षा उपायों की समीक्षा: यह मानवाधिकार संरक्षण से संबंधित संवैधानिक प्रावधानों और मौजूदा कानूनों का विश्लेषण करता है तथा उनके प्रभावी प्रवर्तन के लिये उपाय प्रस्तावित करता है।
- मानवाधिकारों के अवरोधकों का मूल्यांकन: यह आतंकवाद सहित उन कारकों की जाँच करता है जो मानव अधिकारों के प्रवर्तन में बाधा डालते हैं तथा उचित उपाय सुझाता है।
- अंतर्राष्ट्रीय विषयों का अध्ययन: यह मानव अधिकारों पर संधियों और अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों का भी विश्लेषण करता है, तथा भारतीय संदर्भ में उनके कार्यान्वयन के लिये सिफारिशें प्रस्तुत करता है।
- अनुसंधान एवं संवर्द्धन: यह मानवाधिकारों पर अनुसंधान करता है तथा विभिन्न विषयों में इसके अध्ययन को प्रोत्साहित करता है।
- यह प्रकाशनों, संगोष्ठियों, मीडिया और अन्य माध्यमों से मानवाधिकार साक्षरता और जागरूकता को भी बढ़ावा देता है।
- NHRC की शक्तियाँ: सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 के अनुसार NHRC को सिविल न्यायालय के समकक्ष शक्तियाँ प्राप्त हैं। इन शक्तियों में शामिल हैं:
- दस्तावेज़ों की खोज और प्रस्तुतीकरण का आदेश देना।
- शपथपत्र के माध्यम से प्रस्तुत साक्ष्य प्राप्त करना।
- किसी न्यायालय या कार्यालय से सार्वजनिक अभिलेख या प्रमाणित प्रतियाँ प्राप्त करना।
- गवाहों या दस्तावेज़ों की जाँच के लिये कमीशन जारी करना।
- प्रासंगिक कानूनों के अंतर्गत निर्धारित किसी भी अतिरिक्त शक्तियों का प्रयोग करना।
- NHRC जाँच दल: NHRC का अपना जाँच दल है जिसका नेतृत्व पुलिस महानिदेशक करते हैं।
- यह केंद्र या राज्य सरकार के अधिकारियों की सेवाओं का उपयोग भी कर सकता है तथा जाँच के लिये गैर सरकारी संगठनों के साथ सहयोग भी कर सकता है।
NHRC से संबंधित चुनौतियाँ क्या हैं?
- गैर-बाध्यकारी अनुशंसाएँ: NHRC सरकार को केवल अनुशंसाएँ कर सकता है, जो कानूनी रूप से बाध्यकारी नहीं हैं। इससे उसके निर्णयों को लागू करने और अनुपालन सुनिश्चित करने की क्षमता सीमित हो जाती है।
- पूर्व मुख्य न्यायाधीश एच.एल. दत्तू, जो वर्ष 2016 में इसके अध्यक्ष थे, ने मानवाधिकार उल्लंघनों के मामले में आयोग की कथित निष्क्रियता के कारण इसे "दंतविहीन बाघ" कहा था।
- क्षेत्राधिकार संबंधी सीमाएँ: NHRC का क्षेत्राधिकार सार्वजनिक और निजी प्राधिकारियों द्वारा किये गए मानवाधिकार उल्लंघनों तक सीमित है।
- यह निजी व्यक्तियों या संस्थाओं द्वारा किये गए उल्लंघनों को संबोधित नहीं कर सकता है। सशस्त्र बलों से संबंधित मामलों पर भी इसका अधिकार क्षेत्र सीमित है।
- प्रवर्तन शक्ति का अभाव: NHRC के पास उन प्राधिकारियों को दंडित करने का अधिकार नहीं है जो इसकी सिफारिशों को लागू करने में विफल रहते हैं।
- संसाधन की कमी: NHRC को प्रायः अपर्याप्त धन और स्टाफिंग सहित संसाधन की कमी का सामना करना पड़ता है, जो मानवाधिकार उल्लंघनों की जाँच करने और प्रभावी ढंग से उनका समाधान करने की इसकी क्षमता बाधित होती है।
- अत्यधिक कार्यभार: NHRC को बड़ी संख्या में शिकायतें और याचिकाएँ प्राप्त होती हैं, जिससे मामलों को शीघ्रता एवं पूरी तरह से निपटाने की उसकी क्षमता पर असर पड़ सकता है।
- जागरूकता और पहुँच: बहुत से लोग NHRC के अस्तित्व और इसके अधिदेश से अनभिज्ञ हैं, जिसके कारण इसमें प्राप्त होने वाली शिकायतों की संख्या सीमित है।
- इसके अतिरिक्त, शिकायत दर्ज करने की प्रक्रिया बोझिल हो सकती है तथा हाशिये पर पड़े समुदायों के लिये यह पहुँच से बाहर हो सकती है।
- वैश्विक स्तर पर मान्यता का अभाव: जिनेवा स्थित संयुक्त राष्ट्र से संबद्ध निकाय, ग्लोबल अलायंस ऑफ नेशनल ह्यूमन राइट्स इंस्टीट्यूशंस (GANHRI) ने अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अनुपालन के संबंध में चिंताओं को उज़ागर करते हुए भारत के NHRC की मान्यता को स्थगित कर दिया है।
- अपवाद: NHRC एक वर्ष से पुराने, गुमनाम, छद्मनाम या अस्पष्ट मामलों पर विचार नहीं करता है।
- इसमें महत्त्वहीन मामलों और सेवा संबंधी मामलों को भी शामिल नहीं किया गया है, क्योंकि वे इसके अधिकार क्षेत्र या अधिदेश से बाहर हैं।
- यह भी देखा गया है कि कभी-कभी NHRC राजनीतिक रूप से प्रभावित मामलों को लेता है और दूसरे को छोड़ देता है।
NHRC की प्रभावशीलता बढ़ाने के लिये क्या उपाय किये जाने चाहिये?
- प्रवर्तन शक्तियाँ प्रदान करना: NHRC को अपनी सिफारिशों को लागू करने के लिये सशक्त बनाने से अनुपालन में वृद्धि होगी और मानवाधिकार उल्लंघनों को संबोधित करने में अधिक जवाबदेही सुनिश्चित होगी।
- जाँच प्राधिकार का विस्तार: NHRC के अधिकार क्षेत्र का विस्तार करके इसमें निजी व्यक्तियों या संस्थाओं, विशेष रूप से कॉर्पोरेट और स्वास्थ्य सेवा क्षेत्रों में किये गए उल्लंघनों को भी शामिल किया जाना चाहिये।
- समयबद्ध जाँच: जाँच पूरी करने के लिये समय-सीमा लागू करने से पीड़ितों को न्याय मिलने में तेज़ी आएगी तथा शिकायतों का समय पर समाधान सुनिश्चित होगा।
- वित्तीय स्वायत्तता में वृद्धि: NHRC के लिये सरकारी नियंत्रण से मुक्त एक समर्पित, स्वतंत्र बजट आवंटित करने से इसकी परिचालन दक्षता बढ़ेगी और बाहरी प्रभाव कम होगा।
- उभरते मुद्दों पर ध्यान देना: NHRC को डिजिटल गोपनीयता, कृत्रिम बुद्धिमत्ता और पर्यावरण अधिकार जैसी उभरती मानवाधिकार चुनौतियों के अनुकूल होना चाहिये।
- इन मुद्दों के समाधान के लिये NHRC के भीतर विशेष समितियों या अनुसंधान प्रभागों की स्थापना से समकालीन चुनौतियों का सक्रिय जवाब देने में मदद मिलेगी।
- नियमित प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण: NHRC के सदस्यों और कर्मचारियों के लिये निरंतर प्रशिक्षण और कौशल विकास यह सुनिश्चित करेगा कि वे जटिल और उभरते मानवाधिकार मामलों को प्रभावी ढंग से संभालने के लिये अच्छी तरह से सुसज्जित हों।
- संस्थागत जवाबदेही: भारत को UNHRC जैसे वैश्विक निकायों से अंतर्राष्ट्रीय मानकों और मान्यताओं को अपनाने की आवश्यकता है।
- इससे यह सुनिश्चित होगा कि NHRC के प्रदर्शन का निरंतर मूल्याँकन किया जाएगा, जिससे इसके अधिदेश को प्राप्त करने में इसकी प्रभावशीलता में सुधार होगा।
कमज़ोर वर्गों के संरक्षण से संबंधित विभिन्न राष्ट्रीय आयोग
- राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग (NCSC):
- NCSC की स्थापना अनुच्छेद 338 द्वारा की गई थी। इसमें एक अध्यक्ष, एक उपाध्यक्ष और राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त तीन अन्य सदस्य होते हैं।
- राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (NCST): NCST की स्थापना अनुच्छेद 338A के तहत की गई थी।
- इसमें एक अध्यक्ष, एक उपाध्यक्ष और राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त तीन अन्य सदस्य होते हैं।
- राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग (NCBC): वर्ष 2018 के 102 वें संशोधन अधिनियम ने अनुच्छेद 338B को सम्मिलित करके आयोग को एक वैधानिक निकाय से संवैधानिक निकाय बना दिया।
- आयोग में एक अध्यक्ष, एक उपाध्यक्ष और 3 अन्य सदस्य होते हैं।
नोट: उपर्युक्त तीनों आयोगों (NCSC, NCST, NCBC) के पास सिविल न्यायालय के समकक्ष प्राधिकार हैं।
- राष्ट्रीय महिला आयोग (NCW): NCW की स्थापना वर्ष 1992 में राष्ट्रीय महिला आयोग अधिनियम, 1990 के तहत महिलाओं के लिये संवैधानिक और कानूनी सुरक्षा उपायों की समीक्षा करने के लिये एक वैधानिक निकाय के रूप में की गई थी।
- आयोग में एक अध्यक्ष, 5 सदस्य, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति से कम से कम 1 सदस्य और केंद्र सरकार द्वारा नामित एक सदस्य-सचिव शामिल होंगे।
- राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR): NCPCR का गठन बाल अधिकार संरक्षण आयोग (CPCR) अधिनियम, 2005 के तहत किया गया है।
- आयोग में एक अध्यक्ष और 6 सदस्य हैं, जिनमें से कम से कम 2 महिलाएँ हैं।
- राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग (NCM): अल्पसंख्यक आयोग का नाम बदलकर राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम, 1992 के तहत एक वैधानिक निकाय बना दिया गया।
- NCM अधिनियम, 1992 की धारा 2(c) में प्रावधान है कि अधिनियम के प्रयोजनों के लिये 'अल्पसंख्यक' का तात्पर्य केंद्र सरकार द्वारा अधिसूचित समुदाय से है।
- सरकार ने मुस्लिम, ईसाई, सिख, बौद्ध, पारसी और जैन को अल्पसंख्यक समुदाय के रूप में मान्यता दी।
- आयोग में एक अध्यक्ष, एक उपाध्यक्ष तथा 5 सदस्य होते हैं।
- प्रत्येक सदस्य 3 वर्ष की अवधि के लिये पद पर रहता है।
- NCM अधिनियम, 1992 की धारा 2(c) में प्रावधान है कि अधिनियम के प्रयोजनों के लिये 'अल्पसंख्यक' का तात्पर्य केंद्र सरकार द्वारा अधिसूचित समुदाय से है।
- दिव्यांग व्यक्तियों के लिये मुख्य आयुक्त का कार्यालय: दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम, 2016 की धारा 74 में दिव्यांगजनों के लिये एक मुख्य आयुक्त तथा केंद्र में मुख्य आयुक्त की सहायता के लिये दो आयुक्तों की नियुक्ति का प्रावधान है।
दृष्टि मेन्स प्रश्न राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) की कार्यप्रणाली में अपनी सिफारिशों को लागू करने के संबंध में प्रमुख सीमाएँ क्या हैं? इन सीमाओं को कैसे दूर किया जा सकता है? |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. मूल अधिकारों के अतिरिक्त भारत के संविधान का निम्नलिखित में से कौन-सा/से भाग मानव अधिकारों की सार्वभौम घोषणा 1948 (Universal Declaration of Human Rights 1948) के सिद्धांतों एवं प्रावधानों को प्रतिबिंबित करता/करते है/हैं? (2020)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (d) प्रश्न. निम्नलिखित पर विचार कीजिये: (2011)
उपर्युक्त में से कौन-सा/से "मानव अधिकारों की सार्वभौम घोषणा" के अंतर्गत मानवाधिकार है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (d) मेन्स:प्रश्न. यद्यपि मानवाधिकार आयोगों ने भारत में मानव अधिकारों के संरक्षण में काफी हद तक योगदान दिया है, फिर भी वे ताकतवर और प्रभावशालियों के विरुद्ध अधिकार जताने में असफल रहे हैं। इनकी संरचनात्मक और व्यावहारिक सीमाओं का विश्लेषण करते हुए सुधारात्मक उपायों के सुझाव दीजिये। (2021) |