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विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

तमिलनाडु में नया रॉकेट लॉन्चपोर्ट

  • 11 Mar 2024
  • 12 min read

प्रिलिम्स के लिये:

तमिलनाडु में नया रॉकेट लॉन्चपोर्ट, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन, सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र (SDSC) SHAR (श्रीहरिकोटा रेंज), लघु उपग्रह प्रक्षेपण यान

मेन्स के लिये:

तमिलनाडु में नया रॉकेट लॉन्चपोर्ट, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी में भारतीयों की उपलब्धियाँ।

स्रोत: इंडियन एक्स्प्रेस

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारतीय प्रधानमंत्री ने तमिलनाडु के कुलसेकरापट्टिनम में  भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन के दूसरे रॉकेट लॉन्चपोर्ट की आधारशिला रखी।

नए लॉन्चपोर्ट की क्या आवश्यकता है?

  • क्षमता एवं अतिभार: 
    • अंतरिक्ष क्षेत्र को निजी कंपनियों के लिये खोलने से वाणिज्यिक प्रक्षेपण में उल्लेखनीय वृद्धि होने की आशा है।
    • मांग में यह वृद्धि संभावित रूप से श्रीहरिकोटा में सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र (SDSC) SHAR (श्रीहरिकोटा रेंज) जैसी मौजूदा प्रक्षेपण सुविधाओं को प्रभावित कर सकती है।
    • इसलिये, एक नया लॉन्चपोर्ट स्थापित करने से यह सुनिश्चित होता है कि मौजूदा सुविधाओं पर अधिक बोझ डाले बिना प्रक्षेपणों की बढ़ी हुई संख्या को समायोजित करने की पर्याप्त क्षमता है।
  • प्रक्षेपण सेवाओं का विविधीकरण: 
    • SDSC SHAR को मुख्य रूप से वृहद एवं भारी-लिफ्ट-ऑफ मिशनों के लिये समर्पित करके एवं छोटे पेलोड हेतु कुलसेकरपट्टिनम लॉन्चपोर्ट का निर्माण करके, इसरो अपनी प्रक्षेपण सेवाओं में विविधता ला सकता है।
    • यह विशेषज्ञता विशिष्ट मिशन आवश्यकताओं के अनुरूप संसाधनों और बुनियादी ढाँचे का अधिक कुशल उपयोग करने की अनुमति प्रदान करता है।
  • निजी अभिकर्त्ताओं का समर्थन: 
    • एक नए लॉन्चपोर्ट की स्थापना निजी अभिकर्त्ताओं को अंतरिक्ष-योग्य उप-प्रणाली विकसित करने, उपग्रह निर्मित करने तथा वाहनों को प्रक्षेपित करने के लिये समर्पित बुनियादी ढाँचा प्रदान करती है।
    • यह अंतरिक्ष क्षेत्र में निजी निवेश एवं भागीदारी को प्रोत्साहित करता है, साथ ही यह नवाचार एवं प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ावा भी देता है।

कुलसेकरपट्टिनम लॉन्चपोर्ट का महत्त्व क्या है?

  • भौगोलिक लाभ:
    • भौगोलिक, वैज्ञानिक और रणनीतिक रूप से, कुलसेकरपट्टिनम लॉन्चपोर्ट ISRO के लघु उपग्रह प्रक्षेपण यान से संबंधित आगामी लॉन्च के लिये एक अनुकूल भौगोलिक स्थिति प्रदान करता है।
    • कम ईंधन वहन करने वाले हल्के SSLV के लिये सीधे दक्षिण की ओर और लघु प्रक्षेपण के प्रक्षेप पथ की उपलब्धता के साथ कुलसेकरपट्टिनम-सुविधा पेलोड क्षमताओं को बढ़ाने के ISRO के प्रयासों में सहायक साबित होगा।
  • अनुकूलित प्रक्षेपवक्र:
    • कुलसेकरपट्टिनम से प्रक्षेपण सीधे दक्षिण की ओर प्रक्षेप पथ का अनुसरण कर सकते हैं, जो कि सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र (SDSC) SHAR से प्रक्षेपण के बाद लंबे प्रक्षेपवक्र, जिसके लिये श्रीलंका के चारों ओर पूर्व की ओर उड़ान भरने (डॉगलेग मैन्युवरिंग) की आवश्यकता होती है, के विपरीत है।
    • यह अनुकूलित प्रक्षेप पथ ईंधन की खपत को कम करता है जो विशेष रूप से सीमित ऑनबोर्ड ईंधन क्षमता वाले SSLV के लिये महत्त्वपूर्ण है।
  • भूमध्यरेखीय स्थान:
    • SDSC SHAR की तरह, कुलसेकरपट्टिनम भी भूमध्य रेखा के निकट स्थित है।
    • भूमध्य रेखा के निकट प्रक्षेपण स्थल को पृथ्वी के घूर्णन से बहुत सहायता मिलती है, जो प्रक्षेपण के दौरान रॉकेटों के महत्त्वपूर्ण वेग को गति देती है।
    • वेग में वृद्धि से पेलोड क्षमता में वृद्धि होती है, विशेष रूप से भू-स्थैतिक कक्षा के लक्ष्य वाले मिशनों के लिये फायदेमंद है।

लघु उपग्रह प्रक्षेपण यान क्या है?

  • परिचय:
    • लघु उपग्रह प्रक्षेपण यान (SSLV) एक तीन चरणों वाला प्रक्षेपण यान है जिसे तीन ठोस प्रणोदन चरणों और एक टर्मिनल चरण के रूप में तरल प्रणोदन-आधारित वेग ट्रिमिंग मॉड्यूल (VTM) के साथ कॉन्फिगर किया गया है।
      • SSLV सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र (SDSC) से 500 किमी. की कक्षीय तल में 500 किलोग्राम के उपग्रहों को लॉन्च करने में सक्षम है।
        • कक्षीय तल, जिसे निम्न भू-कक्षा (Low Earth orbit- LEO) के रूप में भी जाना जाता है, पृथ्वी के चारों ओर एक कक्षा है जो पृथ्वी के भूमध्यरेखीय तल के निकट स्थित है। इस प्रकार की कक्षा में उपग्रह का पथ पृथ्वी के चारों ओर एक अपेक्षाकृत समतल पृष्ठ बनाता है।
  • प्रमुख विशेषताएँ:
    • कम लागत,
    • कम टर्न-अराउंड समय,
    • एकाधिक उपग्रहों को समायोजित करने की सुविधा,
    • लॉन्च मांग व्यवहार्यता,
    • न्यूनतम प्रक्षेपण अवसंरचना आवश्यकताएँ आदि।
  • महत्त्व:
    • लघु उपग्रहों का युग:
      • पहले, बड़े उपग्रह पेलोड को काफी महत्त्व दिया जाता था, किंतु इस क्षेत्र के विकास व विस्तार के साथ, व्यवसाय, सरकारी एजेंसियाँ, विश्वविद्यालय तथा प्रयोगशालाएँ जैसे कई अभिकर्त्ताओं का उदय हुआ, जिन्होंने उपग्रह भेजना शुरू कर दिया।
        • इनमें से अधिकांश सभी लघु उपग्रहों की श्रेणी में आते हैं।
    • मांग में वृद्धि:
      • अंतरिक्ष-आधारित डेटा, संचार, निगरानी और वाणिज्य की लगातार बढ़ती आवश्यकता के कारण, विगत आठ से दस वर्षों में छोटे उपग्रहों के प्रक्षेपण की मांग तेज़ी से बढ़ी है।
    • लागत में कमी:
      • सैटेलाइट विनिर्माताओं और ऑपरेटरों के पास उच्च यात्रा शुल्क का भुगतान करने का विकल्प नहीं है।
        • इसलिये, विभिन्न संगठन तेज़ी से अंतरिक्ष में उपग्रहों का एक समूह विकसित करने में लगे हुए हैं।
        • स्पेसएक्स के स्टारलिंक और वन वेब जैसी परियोजनाएँ सैकड़ों उपग्रहों का एक समूह तैयार कर रही हैं।
    • व्यवसाय के अवसर:
      • मांग में वृद्धि के साथ, इस प्रकार के रॉकेट का निर्माण कार्य काफी प्रगति पर है जिन्हें कम लागत के साथ बार-बार लॉन्च किया जा सकता है, इससे इसरो जैसी अंतरिक्ष एजेंसियों को इस क्षेत्र की क्षमता का दोहन करने का व्यावसायिक अवसर प्राप्त होता है क्योंकि अधिकांश मांग उन कंपनियों से आती है जो वाणिज्यिक उद्देश्यों के लिये उपग्रह लॉन्च कर रहे हैं।
  • SSLV:
    • अगस्त 2022 में, पहले SSLV मिशन (SSLV-D1) को विफलता का सामना करना पड़ा था जब इसने दो उपग्रहों, EOS-02 और आज़ादीसैट को ले जाने का प्रयास किया था।
    • हालाँकि छह महीने बाद, SSLV-D2 के प्रक्षेपण के साथ फरवरी 2023 में इसरो अपने दूसरे प्रयास में सफल हुआ।
      • इस रॉकेट ने 15 मिनट की यात्रा के बाद प्रभावी ढंग से तीन उपग्रहों को 450 किमी. की वृत्ताकार कक्षा में स्थापित कर दिया। दोनों लॉन्च SHAR से किये गए।

SHAR से संबंधित प्रमुख विशेषताएँ क्या हैं?

  • SHAR चेन्नई से 80 किमी. दूर, आंध्र प्रदेश के पूर्वी तट पर स्थित है।
    • यह वर्तमान में ISRO के सभी मिशनों के प्रमोचन (Launch) हेतु अवसंरचना प्रदान करता है।
  • इसमें एक ठोस प्रणोदक प्रसंस्करण सेटअप, स्थैतिक परीक्षण और प्रमोचन रॉकेट एकीकरण सुविधाओं, टेलीमेट्री सेवाओं, प्रमोचन के अनुवीक्षण के लिये ट्रैकिंग तथा कमांड नेटवर्क के साथ एक मिशन नियंत्रण केंद्र शामिल है।
  • SHAR के दो प्रमोचन परिसर हैं जिनका उपयोग नियमित रूप से पोलर सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल, जियोसिंक्रोनस स्पेस लॉन्च व्हीकल और जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल Mk-III (परिवर्तित नाम- LVM3) के प्रमोचन के लिये किया जाता है।
  • 1990 के दशक की शुरुआत में निर्मित फर्स्ट लॉन्च पैड का पहला लॉन्च सितंबर 1993 में हुआ था।
  • वर्ष 2005 से परिचालनरत, दूसरे लॉन्च पैड का पहला लॉन्च मई 2005 में हुआ।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. भारत के उपग्रह प्रमोचित करने वाले वाहनों के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2018)

  1. PSLV से वे उपग्रह प्रमोचित किये जाते हैं जो पृथ्वी संसाधनों की निगरानी के लिये उपयोगी हैं, जबकि GSLV को मुख्यतः संचार उपग्रहों को प्रमोचित करने के लिये अभिकल्पित किया गया है। 
  2. PSLV द्वारा प्रमोचित किये गए उपग्रह आकाश में एक ही स्थिति में स्थायी रूप से स्थिर प्रतीत होते हैं जैसा कि पृथ्वी पर एक विशिष्ट स्थान से देखा जाता है। 
  3. GSLV MK III एक चार चरण वाला प्रमोचन वाहन है, जिसमे प्रथम एवं तृतीय चरणों में ठोस रॉकेट मोटरों का तथा दूसरा और चौथे चरण में द्रव्य रॉकेट इंजनों का उपयोग किया जाता है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 2
(d) केवल 3

उत्तर: (a)


मेन्स:

प्रश्न. भारत का अपना अंतरिक्ष स्टेशन बनाने की क्या योजना है और इससे भविष्य में हमारे अंतरिक्ष कार्यक्रम को क्या लाभ होगा? (2019)

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