नई इलेक्ट्रिक वाहन नीति 2024 | 21 Mar 2024
प्रिलिम्स के लिये:इलेक्ट्रिक वाहन, मेक इन इंडिया अभियान, प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव, FAME I और II, इलेक्ट्रिक मोबिलिटी प्रमोशन स्कीम (EMPS) 2024 मेन्स के लिये:इलेक्ट्रिक वाहन चुनौतियाँ, सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप, संसाधन जुटाना |
स्रोत: पी.आई.बी.
चर्चा में क्यों?
एक महत्त्वपूर्ण विकास की दिशा में, भारत सरकार ने भारत को इलेक्ट्रिक वाहन के लिये एक प्रमुख विनिर्माण केंद्र के रूप में स्थापित करने के उद्देश्य से एक रणनीतिक योजना को हरी झंडी दी है।
- यह पहल न केवल देश की तकनीकी शक्ति को बढ़ाने के लिये है, बल्कि 'मेक इन इंडिया' अभियान को सुदृढ़ करने के व्यापक लक्ष्य के अनुरूप भी है।
क्या है केंद्र की नई इलेक्ट्रिक वाहन नीति?
- नीति के मुख्य तथ्य:
- EV आयात के लिये शुल्क में कटौती:
- इस नीति में सीमा शुल्क दर को घटाकर 15% कर दिया गया है (पूरी तरह से नॉक्ड डाउन- CKD इकाइयों पर लागू) 5 वर्ष की कुल अवधि के लिये 35,000 अमेरिकी डॉलर या उससे अधिक के न्यूनतम CIF (लागत, बीमा और माल ढुलाई) मूल्य वाले EV पर लगाया जाएगा।
- आयात सीमा और निवेश आवश्यकताएँ:
- कम शुल्क वाले आयात की अनुमति देते हुए, यह नीति आयातित EV की संख्या प्रति वर्ष 8,000 तक सीमित करती है।
- शुल्क रियायतों का लाभ उठाने के लिये निर्माताओं को न्यूनतम 4,150 करोड़ रुपए (∼USD 500 मिलियन) का निवेश करना होगा।
- अधिकतम निवेश की कोई सीमा नहीं है, जिससे क्षेत्र में पर्याप्त पूंजी निवेश को प्रोत्साहन मिलता है।
- विनिर्माण और मूल्य संवर्द्धन आवश्यकताएँ:
- स्थानीय विनिर्माण को बढ़ावा देने के लिये कंपनियों को 3 वर्ष के भीतर परिचालन सुविधाएँ स्थापित करनी होंगी और उसी अवधि के भीतर 25% का न्यूनतम घरेलू मूल्यवर्द्धन (DVA) हासिल करना होगा, जो भारी उद्योग मंत्रालय द्वारा अनुमोदन-पत्र जारी होने की तारीख से 5 वर्ष के भीतर 50% तक बढ़ जाएगा।
- DVA मूल्य का एक प्रतिशत हिस्सा है जो उस मूल्य का प्रतिनिधित्व करता है जो एक अर्थव्यवस्था निर्यात के लिये उत्पादित वस्तुओं और सेवाओं में जोड़ती है।
- स्थानीय विनिर्माण को बढ़ावा देने के लिये कंपनियों को 3 वर्ष के भीतर परिचालन सुविधाएँ स्थापित करनी होंगी और उसी अवधि के भीतर 25% का न्यूनतम घरेलू मूल्यवर्द्धन (DVA) हासिल करना होगा, जो भारी उद्योग मंत्रालय द्वारा अनुमोदन-पत्र जारी होने की तारीख से 5 वर्ष के भीतर 50% तक बढ़ जाएगा।
- EV आयात के लिये शुल्क में कटौती:
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- अधिकतम आयात भत्ता:
- यदि निवेश 800 मिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक है, तो 40,000 EV तक आयात किया जा सकता है, प्रतिवर्ष 8,000 से अधिक नहीं।
- कंपनियाँ किसी भी अप्रयुक्त वार्षिक आयात सीमा को आगे बढ़ा सकती हैं।
- यदि निवेश 800 मिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक है, तो 40,000 EV तक आयात किया जा सकता है, प्रतिवर्ष 8,000 से अधिक नहीं।
- शुल्क सीमा:
- आयातित EV पर माफ किये गए कुल शुल्क की सीमा निवेश पर या 6484 करोड़ रुपए (ऑटोमोबाइल और ऑटो कंपोनेंट्स के लिये प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव योजना के तहत प्रोत्साहन के बराबर), जो भी कम हो, तक सीमित होगी।
- बैंक गारंटी:
- बैंक गारंटी केवल DVA का 50% हासिल करने और कम-से-कम 4,150 करोड़ रुपए अथवा 5 वर्ष की अवधि में छोड़े गए शुल्क के समान निवेश करने पर, जो भी अधिक हो, वापस की जाएगी।
- अधिकतम आयात भत्ता:
- प्रमुख लाभ:
- यह नीति इलेक्ट्रिक वाहन प्रौद्योगिकी में नवाचार और प्रगति को प्रोत्साहित करती है।
- यह नीति सरकार के मेक इन इंडिया अभियान की भाँति स्वदेशी विनिर्माण को प्रोत्साहन देती है।
- इलेक्ट्रिक वाहन के उपयोग को बढ़ावा देते हुए यह नीति कच्चे तेल के आयात को कम करने और व्यापार घाटे को कम करने में मदद करती है।
- इलेक्ट्रिक वाहनों के उपयोग से विशेषकर शहरी क्षेत्रों में वायु प्रदूषण को कम करने में मदद मिलती है।
- यह नई EV नीति वर्ष 2030 तक उत्सर्जन की तीव्रता को 45% तक कम करने और वर्ष 2070 तक शुद्ध-शून्य उत्सर्जन प्राप्त करने के भारत के जलवायु लक्ष्यों के अनुरूप है।
- स्वास्थ्य एवं पर्यावरण पर सकारात्मक प्रभाव।
- प्रभाव:
- इस नीति का लक्ष्य निवेश प्रोत्साहन और आयात शुल्क में कटौती की प्रस्तुति करते हुए Tesla जैसे विश्व प्रमुख अभिकर्त्ताओं को आकर्षित करना है।
- Tesla, Inc., सहित EV के वैश्विक निर्माता भारत में विनिर्माण संयंत्र स्थापित करने के लिये प्रशुल्क रियायतों की अनिवार्यता की मांग कर रहे थे।
- नई नीति इस मांग को प्रभावी ढंग से पूरा करती है जो EV क्षेत्र में विदेशी निवेश आकर्षित करने के लिये भारत की प्रतिबद्धता को दर्शाती है।
- भारत वर्तमान में विश्व का तीसरा सबसे बड़ा ऑटोमोबाइल बाज़ार और सबसे प्रगतिशील बाज़ारों में से एक है तथा EV क्षेत्र ऑटोमोटिव उद्योग के अंतर्गत एक प्रमुख श्रेणी के रूप में उभरने के लिये तैयार है।
- भारत की GDP में ऑटोमोटिव क्षेत्र का महत्त्वपूर्ण योगदान इसके रणनीतिक महत्त्व को रेखांकित करता है।
- इस नीति का लक्ष्य निवेश प्रोत्साहन और आयात शुल्क में कटौती की प्रस्तुति करते हुए Tesla जैसे विश्व प्रमुख अभिकर्त्ताओं को आकर्षित करना है।
भारत में EV बाज़ार
- नियामक परिवर्तनों के बावजूद वर्ष 2024 में EV की बिक्री में 45% की वृद्धि के साथ भारत के EV बाज़ार में तेज़ी से वृद्धि देखी जा रही है।
- वर्ष 2023 के अंत तक EV की कुल पंजीकरण 1.5 मिलियन यूनिट से अधिक रही जो विगत वर्ष में हुए 1 मिलियन के पंजीकरण में हुई उल्लेखनीय वृद्धि को दर्शाता है।
- EV पंजीकरण में वृद्धि से भारत की कुल EV बिक्री में 6.3% की वृद्धि हुई जो EV के उपयोग में हुई महत्त्वपूर्ण प्रगति का संकेत देता है।
- अंततः चरणबद्ध तरीके से सब्सिडी समाप्त करने की सरकार की योजना से प्रोत्साहित होकर, भारतीय वाहन निर्माता विद्युतीकरण में पर्याप्त निवेश कर रहे हैं।
भारत में इलेक्ट्रिक वाहनों से संबंधित अन्य पहल क्या हैं?
- इलेक्ट्रिक मोबिलिटी प्रोत्साहन योजना (EMPS) 2024:
- भारत सरकार ने इलेक्ट्रिक दोपहिया वाहनों (e2W) और तिपहिया वाहनों (e3W) की खरीद को बढ़ावा देने के लिये EMPS 2024 पेश किया। 500 करोड़ रुपए के कुल परिव्यय के साथ, यह योजना FAME-2 योजना को प्रतिस्थापित करेगी और अप्रैल से जुलाई 2024 तक प्रभावी रहेगी, उसके बाद इसमें परिवर्तन अथवा विस्तार किये जाने की संभावना है।
- इसका मुख्य उद्देश्य उद्योग की सब्सिडी पर निर्भरता को धीरे-धीरे कम करते हुए e2Ws और e3Ws को अपनाने हेतु प्रोत्साहन देना है।
- FAME-II के तहत कीमत में 15% की कमी के बाद, सब्सिडी अब केवल अधिकतम 10,000 रुपए प्रति e2W के लिये उपलब्ध है और साथ ही अब यह बैटरी क्षमता 5,000 रुपए प्रति किलोवाट-घंटे तक सीमित है। इसके 3,33,387 e2W को कवर करने का अनुमान है।
- इस योजना में इलेक्ट्रिक चार पहिया वाहन (e4Ws) एवं ई-बसें शामिल नहीं हैं।
- इसका मुख्य उद्देश्य उद्योग की सब्सिडी पर निर्भरता को धीरे-धीरे कम करते हुए e2Ws और e3Ws को अपनाने हेतु प्रोत्साहन देना है।
- भारत सरकार ने इलेक्ट्रिक दोपहिया वाहनों (e2W) और तिपहिया वाहनों (e3W) की खरीद को बढ़ावा देने के लिये EMPS 2024 पेश किया। 500 करोड़ रुपए के कुल परिव्यय के साथ, यह योजना FAME-2 योजना को प्रतिस्थापित करेगी और अप्रैल से जुलाई 2024 तक प्रभावी रहेगी, उसके बाद इसमें परिवर्तन अथवा विस्तार किये जाने की संभावना है।
- चरणबद्ध विनिर्माण कार्यक्रम (PMP):
- भारी उद्योग मंत्रालय ने समय के साथ इलेक्ट्रिक वाहनों एवं उनके घटकों के स्वदेशी विनिर्माण को बढ़ावा देने के लिये एक PMP की शुरुआत की है।
- स्थानीय विनिर्माण को प्रोत्साहित करने के लिये एक वर्गीकृत शुल्क संरचना की कल्पना की गई है।
- परिवर्तनकारी गतिशीलता और भंडारण पर राष्ट्रीय मिशन
- मिशन का उद्देश्य इलेक्ट्रिक वाहनों, इलेक्ट्रिक वाहन घटकों एवं बैटरियों के लिये परिवर्तनकारी गतिशीलता तथा चरणबद्ध विनिर्माण कार्यक्रमों के लिये रणनीतियों को विकसित करना है।
- EV30@30 अभियान:
- भारत उन मुट्ठी भर देशों में से एक है जो वैश्विक EV30@30 अभियान का समर्थन करता है, जिसका लक्ष्य वर्ष 2030 तक कम-से-कम 30% नए वाहन बिक्री को इलेक्ट्रिक बनाना है।
- हाइब्रिड और इलेक्ट्रिक वाहनों को तेज़ी से अपनाना और विनिर्माण करना- I और II
- ऑटोमोबाइल और ऑटो कंपोनेंट्स के लिये प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव योजना
- राष्ट्रीय विद्युत गतिशीलता मिशन योजना
भारत में EV बाज़ार के लिये चुनौतियाँ क्या हैं?
- चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर:
- सीमित उपलब्धता:
- पर्याप्त चार्जिंग स्टेशन नहीं हैं, विशेष रूप से बड़े शहरों के बाहर।
- इससे पहुँच की कमी प्रदर्शित होती है और कई EV मालिकों के लिये लंबी दूरी की यात्रा अव्यवहारिक हो जाती है।
- उच्च स्थापना एवं रखरखाव लागत:
- चार्जिंग स्टेशन स्थापित करने के लिये महत्त्वपूर्ण निवेश की आवश्यकता होती है और उनके रखरखाव से परिचालन लागत भी बढ़ जाती है।
- इससे निवेश करने के इच्छुक ऑपरेटरों की संख्या सीमित हो सकती है, जिससे बुनियादी ढाँचे के विकास में बाधा आ सकती है।
- रेंज की चिंता और लंबे समय तक चार्जिंग:
- चार्जिंग स्टेशनों की सीमित उपलब्धता, गैसोलीन वाहनों की तुलना में EV की अपेक्षाकृत कम ड्राइविंग रेंज के साथ संभावित खरीदारों के लिये चिंता उत्त्पन्न करती है। गैस टैंक भरने में तुरंत समय लगता है जबकि EV को चार्ज करने में घंटों लग सकते हैं।
- सीमित उपलब्धता:
- लागत:
- EV की उच्च अग्रिम लागत:
- बैटरी और प्रौद्योगिकी लागत के कारण इलेक्ट्रिक वाहन स्वयं तुलनीय गैसोलीन मॉडल की तुलना में अधिक महँगे हैं। बजट के प्रति जागरूक भारतीय उपभोक्ताओं के लिये यह एक बड़ी बाधा है।
- बैटरी की उच्च लागत:
- बैटरी तकनीक अभी भी विकसित हो रही है, साथ ही उत्पादन लागत अभी भी ऊँची बनी हुई है। इसका EV की कुल कीमत पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है।
- EV की उच्च अग्रिम लागत:
- ग्राहक सहायता एवं जागरूकता:
- सेवा विकल्पों का अभाव:
- EV के लिये सेवा नेटवर्क अभी भी विकसित हो रहा है। EV के लिये प्रशिक्षित तकनीशियन एवं सेवा केंद्र ढूँढना कुछ मालिकों के लिये चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
- उपभोक्ता जागरूकता का अभाव:
- कुछ संभावित EV खरीदार इलेक्ट्रिक वाहनों के लाभों से परिचित नहीं हो सकते हैं अथवा उनके बारे में गलत धारणाएँ हो सकती हैं।
- इससे उन्हें गैसोलीन से स्विच करने के लिये मनाना कठिन हो सकता है।
- सेवा विकल्पों का अभाव:
- आपूर्ति शृंखला और नीति:
- आपूर्ति शृंखला चुनौतियाँ:
- भारत लिथियम और कोबाल्ट जैसे महत्त्वपूर्ण EV घटकों के लिये आयात पर निर्भर है। वैश्विक आपूर्ति शृंखला में व्यवधान EV उत्पादन और लागत को प्रभावित कर सकता है।
- नीतिगत अनिश्चितता:
- सरकारी नीतियाँ और नियम स्थिर नहीं हैं। इससे वाहन निर्माताओं तथा उपभोक्ताओं के लिये भविष्य की योजना बनाना मुश्किल हो सकता है।
- हालाँकि EMPS जैसी हालिया पहल का उद्देश्य कुछ स्थिरता प्रदान करना और EV अपनाने को प्रोत्साहित करना है, हालाँकि दीर्घकालिक प्रभाव देखा जाना बाकी है।
- सब्सिडी पर निर्भरता:
- जबकि EMPS 2024 जैसी पहल EV की अग्रिम लागत को कम करने में मदद कर सकती है, सब्सिडी पर अत्यधिक निर्भरता भविष्य में कम होने या चरणबद्ध होने पर बाज़ार में अनिश्चितता उत्पन्न कर सकती है।
- आपूर्ति शृंखला चुनौतियाँ:
- अन्य चुनौतियाँ:
- अनिश्चित उपभोक्ता व्यवहार: EV के दीर्घकालिक आर्थिक और पर्यावरणीय लाभ स्पष्ट हैं, लेकिन यह अनिश्चित है कि उपभोक्ता इस नई तकनीक को कितनी जल्दी अपनाएंगे।
- मानकीकरण का अभाव: मानकीकृत चार्जिंग प्रोटोकॉल की कमी उपभोक्ताओं के लिये भ्रम पैदा कर सकती है और विभिन्न EV मॉडल तथा चार्जिंग स्टेशनों के बीच अंतर-संचालनीयता को सीमित कर सकती है।
आगे की राह
- अविकसित बुनियादी ढाँचे की चुनौतियों का समाधान करने के लिये शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में चार्जिंग बुनियादी ढाँचे के नेटवर्क का विस्तार करना। बढ़ती EV मांग को पूरा करने हेतु हाई-स्पीड, वाणिज्यिक-ग्रेड चार्जर में निजी निवेश को प्रोत्साहित करना।
- सरकार की योजना केंद्रीय बजट 2022 में घोषित बैटरी स्वैपिंग पॉलिसी को लागू करने की है, जिससे चार्जिंग बुनियादी ढाँचे को बढ़ाया जा सके।
- इस नीति में डिस्चार्ज की गई बैटरियों को पूरी तरह से चार्ज की गई बैटरियों से बदलना शामिल है, जिससे EV चार्जिंग पारंपरिक वाहनों में ईंधन भरने जितनी तेज़ हो जाएगी।
- EV ड्राइविंग रेंज में सुधार के लिये हल्के और उच्च ऊर्जा घनत्व वाली बैटरियों में निजी क्षेत्र के नवाचार को बढ़ावा देना। बैटरी प्रौद्योगिकी अनुसंधान और विकास हेतु प्रोत्साहन तथा टैक्स क्रेडिट प्रदान करें।
- जनता को इलेक्ट्रिक वाहनों के लाभों और सतत् परिवहन विकल्पों में परिवर्तन के महत्त्व के बारे में सूचित करने के लिये शैक्षिक अभियान चलाना।
- EV तक आसान पहुँच की सुविधा और परिवर्तन के प्रतिरोध को कम करने के लिये आकर्षक पट्टे तथा किराये की योजनाएँ प्रस्तुत करना।
- EV और चार्जिंग बुनियादी ढाँचे की सुरक्षा तथा गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिये नियामक ढाँचे एवं मानकों को लागू करना।
- बेड़े प्रबंधन प्रणालियों और चार्जर प्रबंधन प्लेटफॉर्मों सहित EV पारिस्थितिकी तंत्र को बढ़ाने के लिये स्मार्ट डिजिटल समाधानों को अपनाने को बढ़ावा देना।
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