नए आईटी कानून की आवश्यकता | 28 Apr 2022

प्रिलिम्स के लिये:

सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000, साइबर अपराध, स्प्लिंटरनेट, आईटी अधिनियम की धारा 66A, डेटा संरक्षण कानून

मेन्स के लिये:

सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000, साइबर सुरक्षा, आईटी और कंप्यूटर, सरकारी नीतियों और हस्तक्षेपों की समीक्षा की आवश्यकता

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री (IT) ने 22 वर्ष पुराने सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 में विधायी संशोधन (Overhaul) की आवश्यकता पर बात की।

नए आईटी कानून की आवश्यकता क्यों?

  • डिजिटल युग में भारत का प्रवेश: भारत कुछ ही वर्षों में एक ट्रिलियन-डॉलर की डिजिटल अर्थव्यवस्था बनने की राह पर अग्रसर है और बड़ी संख्या में भारतीय व्यवसाय इंटरनेट के माध्यम से संचालित होंगे। 
    • इसलिये एक खुला और सुरक्षित इंटरनेट हमारे देश का एक महत्त्वपूर्ण आर्थिक घटक बन गया है।
  • स्प्लिंटरनेट का उदय: जैसा कि हम जानते हैं, वैश्विक इंटरनेट आक्रामक राष्ट्रीय नीतियों, व्यापार विवादों, सेंसरशिप और बड़ी तकनीकी कंपनियों के असंतोष के कारण राष्ट्रीय नेटवर्क छोटे-छोटे भागों में विखंडित होने की कगार पर है।  
    • एक विखंडित इंटरनेट या 'स्प्लिंटरनेट', नवाचार की संभावनाओं को कम करने का प्रयास   करता है, जो एक प्रमुख डिजिटल शक्ति बनने के क्रम में भारत के लक्ष्यों को बाधित कर सकता है।
    • इसके दूरगामी परिणाम होंगे जो अंतर्रष्ट्रीय यूनियनों, डेटा उद्यमों और व्यक्तिगत उपभोक्ताओं को समान रूप से प्रभावित करेगा।
    • वर्तमान में विखंडित इंटरनेट का सबसे परिष्कृत उदाहरण चीन का ग्रेट फायरवॉल है।  
    • गूगल सर्च, मैप्स और पश्चिमी सोशल मीडिया तथा इसी तरह की अन्य आवश्यक सेवाओं को चीन द्वारा साइबर संप्रभुता के नाम पर वीबो जैसे चीनी विकल्पों द्वारा पूर्ण रूप से प्रतिस्थापित और प्रतिबंधित किया गया है।

नए आईटी कानून (आंतरिक मुद्दे) की आवश्यकता: 

  • भारत में अधिकांश साइबर अपराध ज़मानती अपराध हैं: एक ऐतिहासिक त्रुटि तब हुई जब आईटी (संशोधन) अधिनियम, 2008 में कुछ ही अपराधों को छोड़कर लगभग सभी साइबर अपराधों को ज़मानती अपराध बना दिया गया।
    • नागरिक उत्तरदायित्व को बढ़ाने और सज़ा को कम करने पर अधिक ध्यान केंद्रित किया गया है, जो यह दर्शाता है कि देश में साइबर अपराध के दोषियों की संख्या एकल अंकों में क्यों है।
  • प्रतिबंधित साइबर सुरक्षा उपाय: आईटी अधिनियम मुंबई, दिल्ली, हैदराबाद, भोपाल, बंगलूरू आदि जैसे महानगरीय शहरों में प्रभावी है, लेकिन यह दूसरे स्तर के शहरों में कमज़ोर है क्योंकि प्रवर्तन एजेंसियों द्वारा कानून के बारे में जागरूकता बढ़ाना एक बड़ी चुनौती बनी हुई है।
    • आईटी अधिनियम मोबाइल के माध्यम से किये गए अधिकांश अपराधों पर प्रभावी नहीं है। इसमें सुधार की आवश्यकता है।

साइबर सुरक्षा के लिये वर्तमान सरकारी पहल:

आगे की राह 

  • सरकार नए नियम बनाने की क्षमताओं के साथ एक नए विधायी ढाँचे के निर्माण पर विचार कर रही है जो डिजिटल स्पेस से संबंधित विभिन्न मुद्दों से निपटने में सक्षम होगा। इसमें निम्नलिखित प्रावधान शामिल होने चाहिये:
    • अधिकांश साइबर अपराधों को गैर-जमानती अपराध बनाने की आवश्यकता है।
    • इसे और अधिक प्रभावी बनाने के लिये एक व्यापक डेटा सुरक्षा व्यवस्था को कानून में शामिल करने की आवश्यकता है।
    • साइबर युद्ध को एक अपराध के रूप में आईटी अधिनियम के तहत लाने  की आवश्यकता है।
    • आईटी अधिनियम की धारा 66 ए भारत के संविधान के तहत भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर उचित प्रतिबंधों से स्वतंत्र हैं। अतः नए प्रावधानों को कानूनी रूप से मज़बूती प्रदान करने के लिये पुराने प्रावधानों समन्वय की ज़रूरत है। 
    • देशों के बीच बढ़ती द्विपक्षीय या बहुपक्षीय व्यवस्थाओं को इस तरह से विकसित करना होगा कि वे इंटरनेट के संबंध में एक-दूसरे पर आश्रित रहें। (जैसे चीन का ग्रेट फ़ायरवॉल)। 

यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, पिछले वर्ष के प्रश्न (पीवाईक्यू):

प्रश्न: भारत में निम्नलिखित में से किसके लिये साइबर सुरक्षा घटनाओं पर रिपोर्ट करना कानूनी रूप से अनिवार्य है? (2017) 

  1. सेवा प्रदाता
  2. डेटा केंद्र
  3. बॉडी कॉर्पोरेट 

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 
(b) केवल 1 और 2
(c) केवल 3 
(d) 1, 2 और 3 

उत्तर: (d) 

व्याख्या:  

  • सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम (IT Act), 2000 की धारा 70 B के अनुसार, केंद्र सरकार की  अधिसूचना द्वारा घटना की प्रतिक्रिया हेतु राष्ट्रीय एजेंसी के रूप में कार्य करने के लिये भारतीय कंप्यूटर आपातकालीन प्रतिक्रिया टीम (CERTIn) का गठन किया गया है। 

स्रोत: द हिंदू