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सामाजिक न्याय

साक्षी संरक्षण हेतु समर्पित कानून की आवश्यकता

  • 26 Sep 2024
  • 15 min read

प्रारंभिक परीक्षा के लिये:

सर्वोच्च न्यायालय, साक्षी संरक्षण योजना 2018, ज़िला एवं सत्र न्यायाधीश, कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (CSR), अनुच्छेद 142, ड्रग्स एवं अपराध पर संयुक्त राष्ट्र कार्यालय (UNODC), मलिमथ समिति (2003), व्हिसल ब्लोअर संरक्षण अधिनियम, 2011, भूल जाने का अधिकार

मुख्य परीक्षा के लिये:

आपराधिक न्याय प्रणाली के सुचारू संचालन हेतु एक समर्पित साक्षी संरक्षण कानून की आवश्यकता है।

स्रोत: पी.टी.आई

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने साक्षी संरक्षण योजना, 2018 के प्रभावी कार्यान्वयन न होने पर चिंता व्यक्त करते हुए एक समर्पित साक्षी संरक्षण कानून की आवश्यकता पर प्रकाश डाला।

न्यायालय ने यह टिप्पणी एक मामले में CBI जाँच का आदेश देते हुए की, जिसमें याचिकाकर्त्ता ने अपील दायर करने से मना कर दिया था और दावा किया था कि उसने न्यायालय में मौजूद वकीलों में से किसी को भी कभी नियुक्त नहीं किया था।

साक्षी संरक्षण योजना, 2018 के बारे में मुख्य तथ्य क्या हैं? 

  • परिचय: यह आपराधिक मामलों में शामिल गवाहों की सुरक्षा के लिये गृह मंत्रालय द्वारा विकसित एक विधिक ढाँचा है।
    • इसे सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अनुमोदित किया गया और यह गवाहों को धमकी, भय या क्षति से बचाने के उद्देश्य से बनाई गई पहली योजना है।
    • इसके सुरक्षा उपायों में गवाह/साक्षी की पहचान बदलना, स्थानांतरण करना, सुरक्षा उपकरण लगाना और सुनवाई के दौरान गवाहों की सुरक्षा के लिये विशेष रूप से डिज़ाइन किये गए न्यायालय कक्षों का उपयोग करना शामिल है।
  • गवाह की परिभाषा: गवाह ऐसा व्यक्ति होता है जो न्यायाधिकरण के समक्ष साक्ष्य प्रस्तुत करता है या गवाही देता है।
    • आपराधिक न्याय प्रणाली के सुचारू रूप से कार्य करने हेतु गवाहों की स्वतंत्र एवं निष्पक्ष गवाही महत्त्वपूर्ण है।
    • दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC या भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता) में "गवाह" शब्द को स्पष्ट रूप से परिभाषित नहीं किया गया है लेकिन न्यायालय किसी भी व्यक्ति को गवाह के रूप में बुला सकता है, यदि उसका साक्ष्य किसी मामले के निर्णय के लिये आवश्यक हो। 
      • रितेश सिन्हा बनाम उत्तर प्रदेश राज्य मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि सामान्य व्याकरणिक अर्थ में गवाह होने का अर्थ न्यायालय में मौखिक गवाही देना है।
  • गवाहों की श्रेणियाँ: थ्रेट मूल्यांकन रिपोर्ट (TAR) के अनुसार, गवाहों की तीन श्रेणियाँ हैं: 
    • श्रेणी 'A': गवाह या उसके परिवार के सदस्यों के जीवन को खतरा।
    • श्रेणी 'B': गवाह या उसके परिवार के सदस्यों की सुरक्षा, प्रतिष्ठा, संपत्ति को खतरा।
    • श्रेणी 'C': सामान्य धमकी जिससे गवाह या उसके परिवार के सदस्यों की प्रतिष्ठा या संपत्ति को खतरा हो।
  • योजना के लक्ष्य और उद्देश्य: इसका मुख्य उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि गवाहों को डराया या धमकाया न जाए, जिससे अपराधों की जाँच, अभियोजन या मुकदमे पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।
    • इसका उद्देश्य न्याय प्रणाली में अनुचित हस्तक्षेप के साथ गवाहों को धमकी से बचाने के लिये कानून प्रवर्तन को बढ़ावा देना है।
  • साक्षी संरक्षण के लिये सक्षम प्राधिकारी: सक्षम प्राधिकारी का आशय प्रत्येक ज़िले में स्थापित एक स्थायी समिति है, जिसकी अध्यक्षता ज़िला एवं सत्र न्यायाधीश करते हैं तथा ज़िला पुलिस प्रमुख और ज़िला अभियोजन अधिकारी इसके सदस्य होते हैं।
    • यह समिति अपने अधिकार क्षेत्र में साक्षी संरक्षण उपायों की देखरेख के लिये ज़िम्मेदार है।
  • राज्य साक्षी संरक्षण निधि: संरक्षण आदेशों के कार्यान्वयन में होने वाले व्यय को कवर करने के लिये राज्य साक्षी संरक्षण निधि की स्थापना की गई है।
  • सुरक्षा उपायों के प्रकार: सुरक्षा उपाय खतरे के स्तर पर निर्भर करते हैं और उनकी नियमित रूप से समीक्षा की जाती है। 
    • जाँच या परीक्षण के दौरान गवाह और अभियुक्त के बीच आमने-सामने संपर्क को रोकना।
  • गवाह का फोन नंबर बदलना या उनके निवास पर सुरक्षा उपकरण लगाना।
    • गवाह की पहचान छिपाना, एस्कॉर्ट उपलब्ध कराना, बंद कमरे में सुनवाई करना तथा विशेष रूप से डिज़ाइन किये गए न्यायालयों में सुनवाई करना।
    • अन्य विशिष्ट सुरक्षा उपायों का अनुरोध गवाह द्वारा किया जा सकता है या सक्षम प्राधिकारी द्वारा आवश्यक उपायों को अपनाया जा सकता है।
  • व्यय की समीक्षा और वसूली: यदि किसी गवाह ने झूठी शिकायत दर्ज कराई है तो राज्य सरकार उसकी सुरक्षा पर किये गए व्यय की वसूली कर सकती है।
  • सर्वोच्च न्यायालय द्वारा समर्थन: सर्वोच्च न्यायालय ने महेंद्र चावला एवं अन्य बनाम भारत संघ एवं अन्य मामला, 2018 में साक्षी संरक्षण योजना का समर्थन किया तथा निर्देश दिया कि इसे सभी राज्यों एवं केंद्रशासित प्रदेशों द्वारा लागू किया जाए।
  • न्यायालय ने फैसला सुनाया कि इस योजना को संविधान के अनुच्छेद 141 और 142 के तहत तब तक “विधि” माना जाना चाहिये जब तक कि इसके लिये औपचारिक कानून नहीं बन जाता है।
  • अनुच्छेद 141 में कहा गया है कि सर्वोच्च न्यायालय द्वारा घोषित कानून भारत के राज्यक्षेत्र के तहत सभी न्यायालयों पर बाध्यकारी होगा।
  • अनुच्छेद 142 के तहत सर्वोच्च न्यायालय को अपने समक्ष किसी भी मामले या विषय के संबंध में पूर्ण न्याय सुनिश्चित करने के क्रम में आदेश या डिक्री पारित करने की शक्ति प्राप्त है।

साक्षी संरक्षण योजना अप्रभावी क्यों है?

  • संरक्षित अपराधों की संकीर्ण परिभाषा: इस योजना में मृत्यु या आजीवन कारावास जैसे दंडनीय अपराधों के साथ महिलाओं के विरुद्ध विशिष्ट अपराधों से संबंधित गवाहों तक संरक्षण प्रक्रिया को सीमित किया गया है।
    • इसमें कई अन्य अपराधों को शामिल नहीं किया गया है जिससे गवाहों को जोखिम हो सकता है।
  • गवाहों के वर्गीकरण से संबंधित मुद्दे: इसमें गवाहों को श्रेणी A (प्रत्यक्ष खतरा), श्रेणी B (सुरक्षा के लिये खतरा) और श्रेणी C (मध्यम खतरा) में वर्गीकृत करने में वस्तुनिष्ठ मानदंडों का अभाव है और यह विधि प्रवर्तन अधिकारियों के व्यक्तिपरक निर्णय पर निर्भर करता है, जिससे खतरे के वास्तविक स्तर का सटीक आकलन नहीं भी हो सकता है।
  • खतरा आकलन रिपोर्ट संबंधी चिंताएँ: प्रशिक्षित पुलिस अधिकारियों की खतरे की धारणा एवं सामान्य नागरिकों की वास्तविकताओं के बीच विसंगति होने के कारण गवाहों के समक्ष आने वाले खतरों को कम करके देखा जा सकता है।
  • गवाहों द्वारा दी जाने वाली जानकारी की गोपनीयता: यह योजना गोपनीयता के उल्लंघन से बचाने के लिये प्रवर्तन तंत्र प्रदान करने में विफल रही है। भारतीय विधिक प्रणाली की अप्रभाविता से गोपनीयता के उल्लंघन का जोखिम बना रहता है, जिससे गवाहों को अनिश्चित परिस्थितियों में रहना पड़ता है।
  • अंतर्राष्ट्रीय मानकों के साथ तुलना: अंतर्राष्ट्रीय ढाँचे (जिनमें ड्रग्स और अपराध पर संयुक्त राष्ट्र कार्यालय' (UNODC) के ढाँचे भी शामिल हैं) के तहत गवाहों के मनोवैज्ञानिक स्वास्थ्य एवं उनकी गवाही के महत्त्व पर विचार करते हुए उनके व्यापक मूल्यांकन पर बल दिया गया है।
    • इस योजना का प्रमुख बल केवल खतरों पर केंद्रित है तथा इसमें जोखिम मूल्यांकन के महत्त्वपूर्ण पहलू की अनदेखी की गई है।

समर्पित साक्षी संरक्षण कानून की आवश्यकता क्यों है?

  • "न्यायिक प्रणाली की आँख और कान" के रूप में गवाह: दार्शनिक और विधिवेत्ता जेरेमी बेन्थम ने कहा था कि "गवाह न्यायिक प्रणाली की आँख और कान हैं"।
    • गवाहों की सुरक्षा के लिये विधिक दायित्वों के अभाव से न्यायिक प्रणाली के साथ राज्य के सहयोग की अनिच्छा प्रदर्शित होती है।
    • सर्वोच्च न्यायालय की टिप्पणियाँ: गुजरात राज्य बनाम अनिरुद्ध सिंह मामले, 1997 में सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि प्रत्येक गवाह का (जिसे किसी अपराध की जानकारी है) यह वैधानिक कर्त्तव्य है कि वह साक्ष्य उपलब्ध कराने के माध्यम से राज्य की सहायता करे।
      • ज़ाहिरा हबीबुल्ला एच. शेख बनाम गुजरात राज्य मामले, 2004 में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि यदि गवाहों को धमकाया जाता है या झूठी गवाही देने के लिये मजबूर किया जाता है तो इससे निष्पक्ष सुनवाई से समझौता होता है।
    • समिति की सिफारिशें: आपराधिक न्याय संबंधी सुधार पर मलिमथ समिति (2003) ने दोहराया कि साक्ष्य देना एक पवित्र कर्त्तव्य है क्योंकि इससे न्यायालय को सच का पता लगाने में मदद मिलती है।
      • राष्ट्रीय पुलिस आयोग की चतुर्थ रिपोर्ट, 1980 में कहा गया कि अभियुक्त के दबाव में गवाह अक्सर अपने बयान से पलट जाते हैं जिससे न्यायिक प्रणाली की अखंडता को बनाए रखने के लिये एक मज़बूत साक्षी संरक्षण कानून की तत्काल आवश्यकता पर प्रकाश पड़ता है।
  • विधि आयोग की रिपोर्ट: विधि आयोग की 154 वीं, 178 वीं और 198 वीं रिपोर्टों में साक्षी संरक्षण मुद्दे पर चर्चा की गई और औपचारिक साक्षी संरक्षण कार्यक्रम की शुरुआत की सिफारिश की गई।
  • विधि आयोग की 198 वीं रिपोर्ट, विशेष रूप से साक्षी पहचान संरक्षण और साक्षी संरक्षण कार्यक्रम, 2006 को समर्पित थी।
  • अपर्याप्त संरक्षण: भारतीय दंड संहिता (भारतीय न्याय संहिता) की धारा 195A, किशोर न्याय अधिनियम (2015), पोक्सो अधिनियम (2012) और व्हिसल ब्लोअर्स संरक्षण अधिनियम, 2011 गवाहों के लिये सुरक्षा उपाय प्रदान करते हैं लेकिन यह समय के साथ अपर्याप्त साबित हुए हैं।
  • उग्रवाद और संगठित अपराध: उग्रवाद, आतंकवाद और संगठित अपराध के बढ़ने से गवाहों की सुरक्षा की आवश्यकता बढ़ गई है क्योंकि विधि प्रवर्तन के लिये उनका सहयोग महत्त्वपूर्ण है। 

निष्कर्ष

भारत में साक्षी सुरक्षा उपाय अपर्याप्त हैं। साक्षी सुरक्षा योजना, 2018 इस दिशा में सराहनीय कदम है। विशेष इकाइयों के साथ एक स्तरीय मॉडल से इस दिशा में प्रभावशीलता को बढ़ावा मिल सकता है। भूल जाने के अधिकार को एकीकृत करने से गवाहों की व्यक्तिगत जानकारी की रक्षा हो सकती है जिससे न्यायिक प्रक्रिया में उनके अधिकार एवं सुरक्षा को सुनिश्चित किया जा सकता है। इसके आधार पर न्यायिक प्रक्रिया की अखंडता को बनाए रखने के लिये एक व्यापक साक्षी सुरक्षा कानून बनाया जाना चाहिये।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

प्रश्न: साक्षी संरक्षण योजना, 2018 की सीमाओं का आलोचनात्मक विश्लेषण करते हुए एक समर्पित साक्षी संरक्षण कानून की आवश्यकता पर विचार कीजिये।


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