अंतर्राष्ट्रीय संबंध
नागोर्नो-करबख क्षेत्र
- 24 May 2022
- 8 min read
प्रिलिम्स के लिये:नागोर्नो-करबख क्षेत्र, INSTC मेन्स के लिये:भारत के हितों पर देशों की नीतियों और राजनीति का प्रभाव |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में,आर्मीनिया और अज़रबैजान के बीच वर्षों से विवादित रहे नागोर्नो-करबख (Nagorno-Karabakh) क्षेत्र पर आर्मेनिया द्वारा संभावित रियायतों का विरोध बढ़ गया है।
- विवादित क्षेत्र नागोर्नो-करबख को लेकर 27 सितंबर, 2020 को आर्मीनिया और अज़रबैजान के बीच पुनः संघर्ष शुरू हो गया था, जो वर्ष 1990 के दशक के बाद से सबसे घातक था।
नागोर्नो-करबख क्षेत्र:
- परिचय:
- नागोर्नो-करबख एक पहाड़ी और भारी वन क्षेत्र है जिसे अंतर्राष्ट्रीय कानून के तहत अज़रबैजान के हिस्से के रूप में मान्यता प्राप्त है।
- हालाँकि मूल अर्मेनियाई जो वहाँ की अधिकांश आबादी का गठन करते हैं, अज़ेरी शासन (अज़रबैजान की कानूनी प्रणाली) को अस्वीकार करते हैं।
- वर्ष 1990 के दशक में एक युद्ध के बाद अज़रबैज़ान की सेना को इस क्षेत्र से बाहर धकेल दिये जाने के पश्चात् ये मूल अर्मेनियाई लोग आर्मेनिया के समर्थन से नागोर्नो-करबख के प्रशासनिक नियंत्रण में रह रहे हैं।
- नागोर्नो-करबख एक पहाड़ी और भारी वन क्षेत्र है जिसे अंतर्राष्ट्रीय कानून के तहत अज़रबैजान के हिस्से के रूप में मान्यता प्राप्त है।
- रणनीतिक महत्त्व:
- ऊर्जा संपन्न अज़रबैजान द्वारा पूरे काकेशस क्षेत्र (काला सागर और कैस्पियन सागर के बीच का क्षेत्र) में तुर्की से लेकर यूरोप तक गैस एवं तेल पाइपलाइनों की स्थापना की गई है।
- इनमें से कुछ पाइपलाइनें संघर्ष क्षेत्र के बहुत ही नज़दीक (सीमा के 16 किमी.) से गुज़रती हैं।
- दोनों देशों के बीच युद्ध की स्थिति में इन पाइपलाइनों को लक्षित किया जा सकता है, जिससे बड़ी दुर्घटना के साथ क्षेत्र से होने वाली ऊर्जा आपूर्ति पर भी प्रभाव पड़ेगा।
संघर्ष का कारण:
- संघर्ष की पृष्ठभूमि: संघर्ष को पूर्व-सोवियत के दौर में देखा जा सकता है जब यह क्षेत्र ओटोमन, रूसी और फारसी साम्राज्यों की सीमा के मिलन बिंदु पर था।
- जब 1921 में अज़रबैजान और आर्मेनिया सोवियत गणराज्य बने तो रूस (तत्कालीन सोवियत संघ) ने विवादित क्षेत्र में स्वायत्तता के बदले अज़रबैज़ान को नागोर्नो-करबख दे दिया।
- 1980 के दशक में जैसे-जैसे सोवियत सत्ता कम होती गई नागोर्नो-करबख में अलगाववादी धाराएँ फिर से उभरीं। राष्ट्रीय सभा ने 1988 में क्षेत्र की स्वायत्तता को समाप्त करने और आर्मेनिया में शामिल होने के लिये मतदान किया।
- हालाँकि अज़रबैज़ान ने ऐसी सूचनाओं को गोपनीय रखा जिसके परिणामस्वरूप एक सैन्य संघर्ष हो गया।
- संघर्ष का तात्कालिक कारण: सोवियत संघ के सन्निकट पतन की पृष्ठभूमि में सितंबर 1991 में नागोर्नो-करबख द्वारा स्वतंत्रता की स्व-घोषणा के परिणामस्वरूप अज़रबैज़ान और नागोर्नो-करबख के बीच युद्ध हुआ जो आर्मेनिया द्वारा समर्थित था।
- युद्धविराम: लंबे संघर्ष के बाद रूस की मध्यस्थता के माध्यम से 1994 में युद्धविराम समझौता हुआ। तब से यूरोप में सुरक्षा और सहयोग संगठन (OSCE) मिन्स्क समूह, संयुक्त राज्य अमेरिका, रूस एवं फ्रांँस की सह-अध्यक्षता में संघर्ष को हल करने के लिये अज़रबैज़ान तथा आर्मेनिया के साथ बड़े पैमाने पर काम किया गया है।
- तब तक आर्मेनिया ने नागोर्नो-करबख पर कब्ज़ा कर लिया था और इसे अर्मेनियाई विद्रोहियों को सौंप दिया था।
भारत की भूमिका:
- आर्मेनिया के साथ भारत की मित्रता और सहयोग संधि (1995 में हस्ताक्षरित) है, जो भारत द्वारा अज़रबैजान को सैन्य या कोई अन्य सहायता प्रदान करने के लिये प्रतिबंधित करेगी।
- अज़रबैजान में ONGC/OVL ने एक तेल क्षेत्र परियोजना में निवेश किया है, जबकि गेल (GAIL) LNG में सहयोग की संभावनाएँ तलाश रहा है।
- अज़रबैजान की अवस्थिति अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन कॉरिडोर (INSTC) मार्ग पर पड़ती है, जो भारत को मध्य एशिया के माध्यम से रूस से जोड़ता है।
- यह कॉरिडोर बाकू-त्बिलिसी-कार पैसेंजर और फ्रेट रेल लिंक के माध्यम से भारत को तुर्की से भी जोड़ सकता है।
- आर्मेनिया कश्मीर मुद्दे पर भारत को अपना स्पष्ट समर्थन देता है, जबकि अज़रबैजान न केवल इसका विरोध करता है बल्कि इस मुद्दे पर पाकिस्तान के वक्तव्यों का समर्थन भी करता है।
- "नेबरहुड फर्स्ट", "एक्ट ईस्ट" या “भारत-मध्य एशिया वार्ता” के विपरीत भारत में दक्षिण काकेशस के लिये सार्वजनिक रूप से स्पष्ट नीति का अभाव है।
- यह क्षेत्र अपनी विदेश नीति के रडार की परिधि पर बना हुआ है
आगे की राह
- संघर्ष अनिवार्य रूप से दो अंतर्राष्ट्रीय सिद्धांतों के बीच का एक संघर्ष है। क्षेत्रीय अखंडता का सिद्धांत अज़रबैजान द्वारा समर्थित और आत्मनिर्णय के अधिकार का सिद्धांत नागोर्नो-करबख द्वारा लागू किया गया एवं आर्मेनिया द्वारा समर्थित है।
- भारत के पास अज़रबैजान की क्षेत्रीय अखंडता का समर्थन नहीं करने के पर्याप्त कारण हैं क्योंकि अज़रबैजान जम्मू-कश्मीर के मुद्दे पर पाकिस्तान द्वारा भारत की क्षेत्रीय अखंडता का उल्लंघन करने के मामले में पाकिस्तान के रुख का समर्थन करता रहा है।
- साथ ही भारत के लिये नागोर्नो कारबख का सार्वजनिक रूप से समर्थन करना मुश्किल है, जो भारत के लिये संभावित नतीजों को देखते हुए आत्मनिर्णय के आधार पर सही भी है, क्योंकि पाकिस्तान जैसे भारत के विरोधी देश न केवल कश्मीर के साथ संबंध स्थापित कर इसका दुरुपयोग कर सकते हैं, बल्कि भारत के कुछ हिस्सों में अलगाववादी आंदोलन को फिर से बढ़ावा दे सकते हैं।