अरावली रेंज में खनन | 17 May 2024

प्रिलिम्स के लिये:

अरावली पारिस्थितिकी तंत्र, भारतीय वन सर्वेक्षण (FSI), ग्रेट इंडियन बस्टर्ड, सर्वोच्च न्यायालय, थार रेगिस्तान

मेन्स के लिये:

अरावली रेंज से संबंधित प्रमुख तथ्य, अरावली रेंज में खनन से संबंधित प्रमुख चिंताएँ।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने भारतीय वन सर्वेक्षण (Forest Survey of India-FSI) की एक रिपोर्ट के आधार पर अरावली रेंज में नए खनन लाइसेंस जारी करने और मौजूदा खनन लाइसेंसों के नवीनीकरण पर रोक लगा दी है।

  • पिछले एक दशक में वैध खनन से हरियाणा के राजस्व में महत्त्वपूर्ण वृद्धि (वर्ष 2013-14 में 5.15 करोड़ रुपए से वर्ष 2023-24 में 363.5 करोड़ रुपए) हुई है।

अरावली रेंज के बारे में मुख्य तथ्य क्या हैं?

  • परिचय:
    • अरावली विश्व के सबसे प्राचीनतम वलित अवशिष्ट पर्वतों में से एक है, जो मुख्य रूप से वलित चट्टानों से बना है। यह गठन प्रोटेरोज़ोइक युग (2500-541 मिलियन वर्ष पूर्व) के दौरान टेक्टोनिक प्लेटों के अभिसरण के परिणामस्वरूप हुआ।
    • भारतीय वन सर्वेक्षण (FSI) की रिपोर्ट में अरावली रेंज की पहाड़ियों को और उनके निचले भागों के नज़दीक एक समान 100 मीटर चौड़ा बफर ज़ोन शामिल करने के रूप में परिभाषित किया गया है।
    • इसकी ऊँचाई 300 से 900 मीटर है। राजस्थान में सांभर सिरोही रेंज और सांभर खेतड़ी रेंज दो प्राथमिक श्रेणियाँ हैं जो पर्वतों का निर्माण करती हैं।
    • माउंट आबू पर गुरु शिखर, अरावली रेंज (1,722 मीटर) की सबसे ऊँची चोटी है।
    • इसके आस-पास के प्रमुख जनजातीय समुदायों में भील, भील-मीणा, मीना, गरासिया और अन्य शामिल हैं।
    • सर्वोच्च न्यायालय ने वर्ष 2009 में हरियाणा के फरीदाबाद, गुणगाँव (अब गुरुग्राम) और नूँह ज़िलों की अरावली रेंज में खनन पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने का आदेश दिया।
  • महत्त्व: 
    • जैवविविधता से समृद्ध:
      • यह रेंज पौधों की 300 स्थानिक प्रजातियों, 120 पक्षी प्रजातियों तथा सियार और नेवले जैसे कई विशिष्ट जीवों को आवास प्रदान करती है।
    • मरुस्थलीकरण पर अंकुश लगाता है:
      • अरावली रेंज पूर्व में उपजाऊ मैदानों और पश्चिम में थार रेगिस्तान के मध्य एक अवरोध के रूप में कार्य करती है।
      • अरावली रेंज में अत्यधिक खनन थार रेगिस्तान के विस्तार से जुड़ा हुआ है। 
        • मथुरा और आगरा में लोएस (मरुस्थलीय पवनों द्वारा उड़ा कर लाई तलछट का जमाव) की उपस्थिति इस बात का संकेत है कि अरावली पहाड़ियों द्वारा निर्मित पारिस्थितिक अवरोध के कमज़ोर पड़ने से मरुस्थल का विस्तार हो रहा है।
    • जलवायु पर प्रभावः
      • अरावली रेंज उत्तर पश्चिम भारत की जलवायु को आकार देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। मानसून ऋतु के दौरान, यह रेंज जलवायु अवरोधक के रूप में कार्य करती है, जो नमीयुक्त दक्षिण-पश्चिमी पवनों को शिमला और नैनीताल की ओर निर्देशित करते हैं।
        • परिणामस्वरूप,यह रेंज उप-हिमालयी नदियों के पोषण में सहायक है और उत्तरी भारत के विशाल मैदानों में वर्षा को बढ़ावा देती है। 
      • शीतकाल में यह उपजाऊ जलोढ़ नदी घाटियों को मध्य एशिया से आने वाली शीत पश्चिमी पवनों से सुरक्षित रखने में सहायक है

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अरावली पर्वत रेंज में खनन से संबंधित प्रमुख चिंताएँ क्या हैं?

  • पर्यावास का विनाश और जैवविविधता हानि:
    • खनन गतिविधियाँ अरावली पारिस्थितिकी तंत्र को नष्ट करती हैं, जिससे तेंदुए, लकड़बग्घे और विभिन्न पक्षी प्रजातियों जैसे वन्यजीव विस्थापित हो जाते हैं। 
    • इससे खाद्य शृंखला और पारिस्थितिक संतुलन बाधित होता है।
    • राजस्थान के पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्रों में खनन के कारण गंभीर रूप से लुप्तप्राय पक्षी प्रजाति ग्रेट इंडियन बस्टर्ड के वास-स्थानों के लिये जोखिम उत्पन्न हो गया हैI 
  • जल की कमी और वायु प्रदूषण:
    • अरावली रेंज एक प्राकृतिक जल भंडार के रूप में कार्य करती है। खनन से प्राकृतिक जल प्रवाह और टेबल रिचार्ज बाधित होता है, जिसके परिणामस्वरूप नीचे की ओर जल प्रवाह कम हो जाता है और यह कृषि तथा मानव आबादी को प्रभावित करता है।
    • वर्ष 2018 के एक शोध-पत्र में हरियाणा में खनन के कारण स्प्रिंग रिचार्ज में गिरावट का उल्लेख किया गया है।
    • खनन गतिविधियों के कारण धूल में वृद्धि होती है और सिलिका जैसे हानिकारक प्रदूषक मुक्त होते हैं, जिससे वायु की गुणवत्ता प्रभावित होती है तथा आस-पास के समुदायों में श्वसन संबंधी समस्याएँ उत्पन्न होती हैं।
  • भूमि क्षरण और मरुस्थलीकरण: 
    • खनन से वनस्पति आवरण नष्ट हो जाता है, जिससे भूमि का क्षरण होता है।
    • हवा और वर्षा उपजाऊ ऊपरी मृदा को बहा ले जाती है, जिससे मरुस्थलीकरण होता है। 
    • सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (CSE) के एक अध्ययन से पता चला है कि 2001 और 2016 के बीच हरियाणा के अरावली वन क्षेत्र में 37% की कमी आई है, जिसका मुख्य कारण संभवतः खनन गतिविधियाँ हैं।

आगे की राह 

  • सख्त नियम बनाने तथा उन्हें प्रभावी ढंग से लागू करने से पर्यावरणीय क्षति को कम करने में सहायता मिल सकती है।
    • राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (National Clean Air Programme) उद्योगों से धूल के उत्सर्जन पर सख्त नियमों को प्रोत्साहित करता है।
    • इसे खनन कार्यों पर भी लागू किया जा सकता है ताकि उनके लिये भी धूल कम करने वाली तकनीकों (जैसे- जल छिड़काव करना तथा संचयों/भंडारों को कवर करना) को लागू करना अनिवार्य हो जाए।
  • आस-पास के क्षेत्रों में खनन के कारण पर्यावरणीय प्रभावों को कम करने के लिये ग्रीन वॉल और ग्रीन मफलर (हरित क्षेत्रों ) जैसे अभिनव समाधानों का उपयोग किया जा सकता है।
    • ग्रीन वॉल ऊर्ध्वाधर संरचनाएँ होती हैं जिनमें विभिन्न प्रकार के पौधे या अन्य प्रकार की संबद्ध हरियाली होती है। ये मरुस्थलीकृत भूमि क्षेत्रों को पृथक करने में सहायता कर सकती हैं।
    • ग्रीन मफलर, हरे पौधे लगाकर ध्वनि प्रदूषण को नियंत्रित करने का एक उपाय है।
  • दीर्घकालिक पारिस्थितिक क्षति को कम करने के लिये खनन क्षेत्रों का पुनरुत्थान किया जाना चाहिये।
  • पर्यावरण-अनुकूल खनन तकनीकों और प्रौद्योगिकियों को अपनाने से खनन गतिविधियों के पर्यावरणीय प्रभाव को कम किया जा सकता है।
    • खनन से जुड़े पर्यावरणीय क्षरण को कम करने के लिये एम-सैंड जैसी पर्यावरण-अनुकूल तकनीकों का उपयोग किया जा सकता है।
  • सरकार को स्थायी क्षेत्रों में वैकल्पिक आजीविका के अवसर उत्पन्न कर खनन पर निर्भर समुदायों की सहायता करनी चाहिये।

निष्कर्ष:

  • अरावली रेंज, एक महत्त्वपूर्ण पारिस्थितिक क्षेत्र है जिसे व्यापक संरक्षण की आवश्यकता है। पर्यावरणीय स्थिरता के साथ आर्थिक विकास को संतुलित करने के लिये एक बहु-आयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता होती है जिसमें कठोर नियम, उत्तरदायित्त्व खनन प्रथाएँ तथा प्रभावित समुदायों के लिये आय के वैकल्पिक स्रोतों की खोज शामिल है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न: 

प्रश्न. अरावली पर्वत रेंज की प्रमुख विशेषताएँ लिखिये। अरावली पर्वत रेंज में खनन से संबंधित प्रमुख चिंताओं पर चर्चा कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. भारत में गौण खनिज के प्रबंधन के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2019)

  1. इस देश में विद्यमान विधि के अनुसार रेत एक ‘गौण खनिज’ है।
  2. गौण खनिजों के खनन पट्टे प्रदान करने की शक्ति राज्य सरकारों के पास है, किंतु गौण खनिजों को प्रदान करने से संबंधित नियमों को बनाने के बारे में शक्तियाँ केंद्र सरकार के पास हैं।
  3. गौण खनिजों के अवैध खनन को रोकने के लिये नियम बनाने की शक्ति राज्य सरकारों के पास है।

उपर्युक्त में से कौन-सा/से कथन सही है/हैं?

(a) केवल 1 और 3
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (a)


प्रश्न. भारत में ज़िला खनिज फाउंडेशन का/के क्या उद्देश्य है/हैं? (2016)

  1. खनिज समृद्ध ज़िलों में खनिज अन्वेषण गतिविधियों को बढ़ावा देना,  
  2. खनन कार्यों से प्रभावित व्यक्तियों के हितों की रक्षा करना,  
  3. राज्य सरकारों को खनिज अन्वेषण के लिये लाइसेंस जारी करने हेतु अधिकृत करना,

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (b)


मेन्स:

प्रश्न: गोंडवानालैंड के देशों में से एक होने के बावजूद भारत के खनन उद्योग का देश के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में बहुत कम प्रतिशत योगदान है। चर्चा कीजिये। (2021)