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कोविड-19 पश्चात् भारत में प्रवासन की प्रवृत्ति

  • 25 Mar 2025
  • 14 min read

प्रिलिम्स के लिये:

प्रवासन, स्मार्ट सिटीज़ मिशन, ई-श्रम पोर्टल, विप्रेषण, डंकी रूट

मेन्स के लिये:

कोविड-19 के बाद भारत में प्रवासन की प्रवृत्ति, प्रवासन शासन और नीति कार्यान्वयन में चुनौतियाँ

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों?

कोविड-19 महामारी के पाँच वर्ष पश्चात्, भारत के प्रवासन पैटर्न में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन दर्ज किया गया है। जहाँ ग्रामीण क्षेत्रों से नगरीय क्षेत्रों में पुनः प्रवास शुरू हो गया है, वहीं अंतर्राष्ट्रीय उत्प्रवासन भी अधिक विविध हुआ है।

  • इन प्रवृत्तियों को समझना तथा प्रवासन शासन में सुधार करना, प्रवासियों की चुनौतियों का समाधान करने तथा प्रवासन के लाभों को अधिकतम करने की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है।

कोविड-19 पश्चात् भारत में प्रवासन की प्रमुख प्रवृत्ति क्या है?

  • नगरीय क्षत्रों से ग्रामीण क्षेत्रों में प्रवासन: कोविड-19 संकट के कारण अभूतपूर्व रूप से नगरों से ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों ने प्रवास किया, जिसमें पहले लॉकडाउन के दौरान 44.13 मिलियन व्यक्तियों ने नगरीय क्षेत्रों से ग्रामीण क्षेत्रों में प्रवास किया और दूसरे लॉकडाउन के दौरान 26.3 मिलियन व्यक्तियों ने प्रवास किया।
    • वापस लौटने वाले प्रवासियों, मुख्य रूप से कम-कुशल श्रमिकों को अल्प वेतन, खाद्य असुरक्षा, स्वास्थ्य देखभाल का अभाव, भेदभाव, आर्थिक तनाव और बेरोज़गारी का सामना करना पड़ा क्योंकि नगरीय क्षेत्रों में रोज़गार नहीं था।
  • ग्रामीण क्षेत्र से नगरीय क्षेत्र प्रवासन में पुनः वृद्धि: ग्रामीण अर्थव्यवस्थाएँ वापस लौटने वाले कार्यबल को समायोजित करने की दृष्टि से अनुपयुक्त थीं, क्योंकि अपर्याप्त रोज़गार (मनरेगा से केवल आंशिक राहत प्राप्त हुई), निम्न पारिश्रमिक और नगरीय आकांक्षाओं के कारण प्रवासी व्यक्ति पुनः शहरों की ओर गमन करने के लिये प्रेरित हुए। 
    • स्मार्ट सिटीज़ मिशन (जिसका लक्ष्य 100 नगरों को आधुनिक नगरीय केंद्रों के रूप में विकसित करना है और जो मुख्यतः प्रवासी श्रमिकों पर निर्भर है) के कारण श्रमिक नगरों में प्रवास करने हेतु प्रोत्साहित होते हैं।
    • आर्थिक सर्वेक्षण 2023-24 के अनुसार, वर्ष 2030 तक भारत की 40% से अधिक आबादी का नगरीय क्षेत्रों में निवास होगा।
  • जलवायु-प्रेरित प्रवासन: जलवायु परिवर्तन से विशेष रूप से ओडिशा जैसे कृषि प्रधान राज्यों से आकांक्षी और संकटपूर्ण प्रवासन प्रभावित हो रहा है (FAO-IIMAD रिपोर्ट)।
  • अंतर्राष्ट्रीय प्रवासन में परिवर्तन: हालाँकि कोविड-19 के दौरान, भारतीय प्रवासियों को नौकरी छूटने, वेतन में कटौती और अनुपयुक्त स्वास्थ्य सेवा सुविधाओं का सामना करना पड़ा किंतु विप्रेषण सुदृढ़ रहा (वर्ष 2020 में 83.15 बिलियन अमरीकी डॉलर) तथा इसके साथ ही भारतीय स्वास्थ्य सेवा कर्मियों की वैश्विक माँग में भी वृद्धि हुई है।
    • कोविड के बाद, कई भारतीय प्रवासी बेहतर अवसरों की तलाश में खाड़ी देशों से उन्नत अर्थव्यवस्थाओं (AE) की ओर गमन किया।
      • भारतीय मूल के व्यक्ति सूचना प्रौद्योगिकी, विनिर्माण में अवसरों के लिये यूरोप (कुशल पेशेवरों हेतु वर्ष 2023 के यूरोपीय संघ ब्लू कार्ड कार्यक्रम के माध्यम से) और अफ्रीका में संभावनाओं की खोज कर रहे हैं।
      • कनाडा की एक्सप्रेस एंट्री और ऑस्ट्रेलिया की आव्रजन नीतियों से भारत के कुशल पेशेवर आकर्षित हुए हैं जिसमें उच्च वेतन वाला रोज़गार प्रदान किया जाता है जिससे विप्रेषण में बढ़ोतरी हुई (वर्ष 2023-24 में 118.7 बिलियन अमेरिकी डॉलर)।
    • महामारी के बाद छात्र प्रवास में वृद्धि हुई है जिसमें केरल में छात्र प्रवासियों की संख्या वर्ष 2018 के 1.29 लाख से बढ़कर वर्ष 2023 में 2.5 लाख हो गई है।
    • शिक्षा से संबंधित विप्रेषण वर्ष 2021 में 3,171 मिलियन अमेरिकी डॉलर के उच्चतम स्तर पर रहा, जो अंतर्राष्ट्रीय अध्ययन प्रवृत्तियों में वृद्धि को दर्शाता है।

प्रवासन प्रशासन में भारत के समक्ष कौन-सी चुनौतियाँ हैं?

  • अपर्याप्त प्रवासन डेटा प्रणाली: वर्ष 2021 की जनगणना में हुए विलंब और पुराने प्रवासन आँकड़ों से नीति नियोजन सीमित होता है।
    • आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (PLFS) 2020-21 में 28.9% की प्रवासन दर दर्ज की गई, जो वर्ष 2007-08 के 28.5% में हुई सामान्य वृद्धि को दर्शाता है।
    • हालाँकि, कोविड-19 प्रवास प्रवाह के दौरान एकत्र किया गया यह डेटा दीर्घकालिक रुझानों को प्रतिबिंबित करने की दृष्टि से अनुपयुक्त है।
    • विदेश मंत्रालय (MEA) के आँकड़ों में प्रवासियों, विशेषकर अस्थायी और मौसमी प्रवासियों की संख्या को कम करके आँका जाता है। इसके अतिरिक्त, 'डंकी रूट' के माध्यम से अवैध प्रवासन को आधिकारिक रिकॉर्ड में दर्ज नहीं किया गया है।
  • सामाजिक सुरक्षा योजनाओं का कमज़ोर कार्यान्वयन: असंगठित श्रमिकों को कवर करने के उद्देश्य से बनाया गया ई-श्रम पोर्टल (वर्ष 2021) कम जागरूकता और डिजिटल बहिष्कार से ग्रस्त है।
    • वन नेशन वन राशन कार्ड (ONORC) का उद्देश्य प्रवासियों के लिये खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करना है, लेकिन अभी भी एक बड़ा वर्ग इससे वंचित है।
    • अंतर्राज्यीय प्रवासी श्रमिक अधिनियम, 1979 के कमज़ोर कार्यान्वयन के कारण अपर्याप्त निगरानी और गैर-लाइसेंस प्राप्त ठेकेदारों के कारण कई श्रमिक अपंजीकृत और असुरक्षित रह जाते हैं।
    • वर्ष 2020 में शुरू किये गए चार नए श्रम संहिताओं का उद्देश्य प्रवासी श्रमिकों की सुरक्षा का विस्तार करना है, लेकिन नियम बनाने और लागू करने में देरी का सामना करना पड़ रहा है।
  • पात्रता की सीमित पोर्टेबिलिटी: दूसरे क्षेत्रों में जाने पर प्रवासी प्रायः राज्य-विशिष्ट योजनाओं तक पहुँच खो देते हैं। ONORC और आयुष्मान भारत के बावजूद, अंतर-राज्यीय नीति सामंजस्य कमज़ोर बना हुआ है।
  • सुभेद्द समूहों की उपेक्षा: प्रवासन नीतियों में प्रायः महिलाओं और बच्चों की अनदेखी की जाती है। 
    • महिलाओं को तस्करी और शोषण जैसे खतरों का सामना करना पड़ता है, जबकि प्रवासी बच्चों को शिक्षा में व्यवधान, खराब स्वास्थ्य सेवा से जूझना पड़ता है, जिससे उनके हाशिये पर जाने और उनके साथ दुर्व्यवहार होने की संभावना बढ़ जाती है।
  • कम कुशल प्रवासियों के लिये कमज़ोर संरक्षण: खाड़ी देशों के राष्ट्रीयकरण की नीतियों (निताकत, अमीरातीकरण) के कारण रोज़गार के अवसर कम हो रहे हैं, जबकि कम कुशल प्रवासियों को खराब कार्य स्थितियों और वेतन चोरी का सामना करना पड़ रहा है।
    • प्रवासियों को पर्याप्त कौशल और प्रस्थान-पूर्व अभिविन्यास प्रदान करने में कमियाँ हैं, जो विदेश में उनकी तैयारी और सुरक्षा को प्रभावित करती हैं।
  • स्थानीय शासन की सीमित भूमिका: पंचायतों में प्रायः प्रवासी आबादी को सहायता देने के लिये आवश्यक अधिकार, संसाधन और क्षमता का अभाव होता है।
  • जलवायु-प्रेरित प्रवासन की अनदेखी: जलवायु तनाव (जैसे, बाढ़, सूखा, समुद्र-स्तर में वृद्धि) के कारण होने वाले प्रवासन को आपदा या जलवायु अनुकूलन नीतियों में मान्यता नहीं दी जाती है।
    • इससे संकट से प्रेरित गतिशीलता से गुज़र रहे समुदायों के प्रति नीतिगत उपेक्षा होती है।
  • बहिष्करण और भेदभाव: प्रवासियों को प्रायः विशेष रूप से गंतव्य शहरों में विदेशी द्वेष, सांस्कृतिक अलगाव और सामाजिक समावेशन की कमी का सामना करना पड़ता है।

भारत अपनी प्रवासन प्रशासन को कैसे मज़बूत कर सकता है?

  • राष्ट्रीय प्रवासन डेटा मॉडल: केरल प्रवासन सर्वेक्षण मज़बूत डेटा प्रदान करते हैं, जिससे बेहतर नीतियाँ बनती हैं। ओडिशा, तमिलनाडु, गुजरात और पंजाब जैसे राज्य इस मॉडल को अपना रहे हैं। 
    • राष्ट्रीय स्तर पर इसे अपनाने से प्रवासन शासन को मानकीकृत और उन्नत किया जा सकेगा।
  • राष्ट्रीय प्रवासन नीति: प्रवासी श्रमिकों पर नीति आयोग की राष्ट्रीय नीति के मसौदे को शीघ्र लागू करना, जो उनके समग्र विकास पर केंद्रित है। 
    • आंतरिक और अंतर्राष्ट्रीय प्रवासन दोनों को संबोधित करने के लिये एक एकीकृत ढाँचा तैयार करने पर विचार करना, अधिकार-आधारित और लैंगिक-संवेदनशील प्रावधानों के साथ अंतर-मंत्रालयी समन्वय (श्रम, विदेश मंत्रालय, शहरी मामले) सुनिश्चित करना।
  • अंतर्राष्ट्रीय प्रवासन ढाँचे को बढ़ाना: यूरोपीय संघ (EU) और अफ्रीका में उभरते गंतव्यों के साथ श्रम गतिशीलता समझौतों का विस्तार करना।
    • भारत प्रवासन केंद्र (विदेश मंत्रालय का शोध थिंक टैंक) प्रस्थान-पूर्व अभिविन्यास प्रशिक्षण (PDOT) और कौशल निर्माण कार्यक्रमों को मज़बूत बनाने में मदद कर सकता है, तथा उन्हें गंतव्य-विशिष्ट मांगों के साथ संरेखित कर सकता है।
  • सामाजिक सुरक्षा पहुँच और पोर्टेबिलिटी में सुधार: लाभों की अंतर-राज्य पोर्टेबिलिटी सहित सभी असंगठित और प्रवासी श्रमिकों की कवरेज़ सुनिश्चित करने के लिये सामाजिक सुरक्षा संहिता, 2020 को प्रभावी ढंग से लागू करना।
    • डिजिटल प्लेटफॉर्म के माध्यम से राज्यों में पात्रताओं (राशन, स्वास्थ्य बीमा, पेंशन) की पोर्टेबिलिटी सुनिश्चित करना।

    • नामांकन, कानूनी सहायता और शिकायत निवारण के लिये शहरी क्षेत्रों में वन-स्टॉप प्रवासी सुविधा केंद्र स्थापित करना।

प्रवासन क्या है?

और पढ़ें: प्रवासन

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न: कोविड-19 के बाद भारत के प्रवासन शासन में प्रमुख चुनौतियों पर चर्चा कीजिये और सुधार के लिये नीतिगत उपाय सुझाइए।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

मेन्स

प्रश्न. भारत के प्रमुख शहरों में आई.टी. उद्योगों के विकास से उत्पन्न होने वाले मुख्य सामाजिक-आर्थिक प्रभाव क्या हैं? (2021)

प्रश्न. पिछले चार दशकों में भारत के अंदर और बाहर श्रम प्रवास के रुझानों में बदलाव पर चर्चा कीजिये। (2015)

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