शासन व्यवस्था
न्यायिक लंबित मामलों के समाधान के रूप में मध्यस्थता
- 26 Feb 2025
- 10 min read
प्रिलिम्स के लिये:मध्यस्थता, जनहित याचिका, वैकल्पिक विवाद समाधान तंत्र, SUPACE मेन्स के लिये:भारत में न्यायिक लंबित मामले, मध्यस्थता प्रावधान, लाभ और चुनौतियाँ |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
भारत की न्यायिक प्रणाली में लंबित मामलों का बोझ चिंताजनक स्तर पर पहुँच गया है, सर्वोच्च न्यायालय में 82,000 से अधिक मामले, उच्च न्यायालयों में 62 लाख और अधीनस्थ न्यायालयों में लगभग 5 करोड़ मामले लंबित हैं।
- न्यायिक विलंब पर बढ़ती चिंताओं के बीच, मध्यस्थता न्यायालयों पर बोझ कम करने और विवादों के त्वरित समाधान के लिये एक व्यवहार्य विकल्प के रूप में उभर रही है।
भारत में न्यायिक लंबित मामलों के क्या कारण हैं?
- कम न्यायाधीश-जनसंख्या अनुपात: भारत में प्रति दस लाख व्यक्तियों पर केवल 21 न्यायाधीश हैं, जो विश्व स्तर पर सबसे कम अनुपातों में से एक है। इसके परिणामस्वरूप न्यायाधीशों पर काम का बोझ बढ़ता है, जिससे मामलों के निपटान में विलंब होता है।
- वाद में वृद्धि: बढ़ती कानूनी जागरूकता और जनहित याचिका (PIL) जैसी व्यवस्थाओं के कारण दर्ज मामलों की संख्या में वृद्धि हुई है।
- वादी प्रायः प्रत्येक छोटे विवाद के लिये न्यायालयों का दरवाजा खटखटाते हैं, जिसमें गैर-योग्य मामले भी शामिल हैं जो न्यायपालिका को और बाधित करते हैं।
- सभी लंबित मामलों में से लगभग आधे में सरकार वादी के रूप में शामिल है, जिससे न्यायालयों पर बोझ बढ़ रहा है।
- प्रतिकूल कानूनी प्रणाली: भारतीय न्यायिक प्रणाली अनेक अंतरिम आवेदनों और क्रमिक अपीलों को प्रोत्साहित करती है, जिससे वाद प्रक्रिया लंबी हो जाती है।
- इसके अतिरिक्त, बिहार मद्यनिषेध और उत्पाद अधिनियम, 2016 जैसे अधिनियमों से उच्च न्यायालयों में जमानत आवेदनों का बोझ और बढ़ गया है।
- बुनियादी ढाँचा और प्रक्रियागत अभाव: पर्याप्त न्यायालय कक्षों और डिजिटल बुनियादी ढाँचे के अभाव के कारण कार्यवाही में देरी होती है। बजटीय बाधाओं के कारण न्यायिक क्षमता का विस्तार सीमित हो जाता है।
- स्थगन, गवाहों को ढूँढने में कठिनाई तथा साक्ष्य प्राप्त करने में देरी के कारण लंबित मामलों की संख्या बढ़ती है।
- अल्पप्रयुक्त ADR तंत्र: यद्यपि मध्यकता, माध्यस्थम् और सुलह जैसे वैकल्पिक विवाद समाधान (ADR) तंत्र उपलब्ध हैं, लेकिन उनका व्यापक रूप से उपयोग नहीं किया जाता है।
न्यायिक लंबित मामलों को कम करने में मध्यकता किस प्रकार सहायक है?
- मध्यकता: यह एक ADR प्रक्रिया है जिसमें एक तटस्थ तृतीय पक्षकार (मध्यस्थ) विवाद के पक्षकारों के बीच संवाद को सुगम बनाता है ताकि उन्हें पारस्परिक रूप से स्वीकार्य समाधान प्राप्त करने में मदद मिल सके।
- मध्यकता स्वैच्छिक, गोपनीय और लागत प्रभावी होती है, जिसमें मध्यस्थ पक्षकारों को आपसी समाधान के लिये मार्गदर्शन करते हैं।
- विधिक ढाँचा:
- मध्यस्थता अधिनियम, 2023: अत्यावश्यक मामलों के अतिरिक्त, सिविल और वाणिज्यिक विवादों के संदर्भ में मुकदमा-पूर्व मध्यस्थता को अनिवार्य किये जाने का अधिदेश दिया गया।
- मध्यस्थता अधिनियम, 2023 के अंतर्गत मध्यस्थता समझौतों को न्यायालय के आदेश के समान ही विधिक दर्जा प्रदान किया गया है तथा 120 दिनों के भीतर समाधान किया जाना अनिवार्य किया गया है, जिसमें आवश्यकता पड़ने पर 60 दिनों का विस्तार किया जा सकता है।
- हालाँकि, दांडिक अपराधों, तृतीय पक्ष के अधिकारों और कराधान से संबंधित मामलों को मध्यस्थता से छूट दी गई है।
- वाणिज्यिक न्यायालय अधिनियम 2015: पक्षकारों को न्यायालय का रुख करने से पहले मध्यस्थता का प्रयास करना अनिवार्य किया गया।
- सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908: इसमें पारंपरिक अदालती कार्यवाही के बाहर विवादों को सुलझाने के लिये मध्यकता, मध्यस्थता और सुलह जैसी ADR पद्धतियाँ शामिल हैं ।
- मध्यस्थता अधिनियम, 2023: अत्यावश्यक मामलों के अतिरिक्त, सिविल और वाणिज्यिक विवादों के संदर्भ में मुकदमा-पूर्व मध्यस्थता को अनिवार्य किये जाने का अधिदेश दिया गया।
- न्यायिक लंबित मामलों को कम करने में भूमिका: मध्यकता से सिविल, वाणिज्यिक, पारिवारिक, उपभोक्ता और संपत्ति विवादों का समाधान करने में सहायता मिलती है, जिससे अदालतों को दांडिक और संवैधानिक मामलों पर ध्यान केंद्रित करने में मदद मिलती है, जिससे उनका कार्यभार कम हो जाता है।
- नीति आयोग (राष्ट्रीय भारत परिवर्तन संस्थान) ने न्यायालय में भीड़ को कम करने और कानूनी विवादों को न्यूनतम करने के लिये सरकारी मामलों में मुकदमा-पूर्व मध्यस्थता का सुझाव दिया है।
- मध्यस्थता से व्यापारिक, पारिवारिक और सामुदायिक विवादों को सुलझाने में मदद मिलती है, साथ ही रिश्तों को भी सुरक्षित रखा जाता है, जिससे अक्सर वैवाहिक मामलों में सौहार्दपूर्ण समाधान निकलता है।
वैकल्पिक विवाद समाधान तंत्र क्या हैं?
और पढ़ें.. वैकल्पिक विवाद समाधान तंत्र
भारत में मध्यस्थता से संबंधित चुनौतियाँ क्या हैं?
- जागरूकता का अभाव: मध्यस्थता के लाभों के संबंध में ज्ञान के अभाव के कारण, कई वादी और वकील पारंपरिक वाद को प्राथमिकता देते हैं।
- प्रवर्तन तंत्र: यद्यपि मध्यस्थता अधिनियम, 2023 में भारतीय मध्यस्थता परिषद (MCI) को अनिवार्य बनाया गया है, लेकिन प्रभावी कार्यान्वयन के लिये अभी तक ऐसा कोई निकाय की स्थापना नहीं की गई है।
- 50% मामलों में शामिल सरकारी एजेंसियाँ, त्वरित मध्यस्थता निपटान की अपेक्षा अक्सर लंबी मुकदमेबाजी को प्राथमिकता देती हैं।
- गैर-बाध्यकारी प्रकृति: चूँकि मध्यस्थता स्वैच्छिक है तथा समझौते तक गैर-बाध्यकारी है, इसलिये पक्षकार बिना समाधान के ही पीछे हट सकते हैं।
- सीमित संस्थागत सहायता : न्यायालय से संबद्ध मध्यस्थता केंद्र सभी न्यायालयों में उपलब्ध नहीं हैं, जिससे मध्यस्थता सेवाओं तक पहुँच सीमित हो जाती है।
आगे की राह:
- सर्वोत्तम प्रथाओं को अपनाना: भारत न्यायिक लंबित मामलों को कम करने के लिये ब्रिटेन के मध्यस्थता अधिदेश और इटली के अनिवार्य मध्यस्थता जैसे सर्वोत्तम वैश्विक प्रथाओं को अपना सकता है।
- संस्थागत उन्नयन: मध्यस्थता को विनियमित करने, मध्यस्थों को अधिकृत करने और मानकीकृत प्रथाओं को लागू करने के लिये MCI की स्थापना करना।
- न्यायालय द्वारा संलग्न मध्यस्थता का विस्तार करने से लंबित मामलों में कमी आ सकती है तथा ऋण-योग्यता में वृद्धि हो सकती है।
- इसके अतिरिक्त, समय पर न्याय सुनिश्चित करने और न्यायिक लंबित मामलों के व्यापक मुद्दों को प्रभावी ढंग से हल करने के लिये न्यायाधीश-जनसंख्या अनुपात को 21 से बढ़ाकर 50 प्रति मिलियन (विधि आयोग की वर्ष 1987 की रिपोर्ट के अनुसार) किया जाना चाहिये।
- ऑनलाइन मध्यस्थता: ऑनलाइन मध्यस्थता: मध्यस्थों की सहायता के लिए ऑनलाइन संसाधन बनाकर ऑनलाइन मध्यस्थता को बढ़ावा देना, जिसमें सर्वोच्च न्यायालय का SUPACE कानूनी अनुसंधान पोर्टल भी शामिल है।
- व्यवसायों के विवादों को कुशलतापूर्वक सुलझाने के लिए संस्थागत मध्यस्थता को बढ़ावा देना।
- प्रशिक्षण: मध्यस्थों के लिये व्यवस्थित प्रशिक्षण कार्यक्रम लागू करना तथा वादियों और कानूनी पेशेवरों के लिये जागरूकता अभियान चलाना।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न: भारत में न्यायिक लंबित मामलों को कम करने के लिये मध्यस्थता एक प्रभावी उपकरण के रूप में कैसे कार्य कर सकता है? |