शासन व्यवस्था
भारत में वैवाहिक बलात्कार
- 15 Feb 2025
- 12 min read
प्रिलिम्स के लिये:उच्च न्यायालय (HC), सर्वोच्च न्यायालय (SC), BNS, धारा 377, घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005, अनुच्छेद 14 (समानता), 15 (गैर-भेदभाव), और 21 (जीवन और गरिमा का अधिकार), POCSO अधिनियम, 2012। मेन्स के लिये:भारत में वैवाहिक बलात्कार की कानूनी और न्यायिक स्थिति। वैवाहिक बलात्कार को अपराध बनाने पर चर्चा। |
स्रोत: बिज़नेस स्टैंडर्ड
चर्चा में क्यों?
गोरखनाथ शर्मा बनाम छत्तीसगढ़ राज्य मामले, 2019 में, छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय (HC) ने निर्णय दिया कि यदि पत्नी 15 वर्ष से अधिक उम्र की है, तो पति पर सहमति के बिना भी, उसके साथ बलात्कार या अप्राकृतिक यौन संबंध का आरोप नहीं लगाया जा सकता है।
- यह IPC की धारा 375 के तहत अपवाद 2 पर निर्भर करता है, जो पति को बलात्कार के आरोप से छूट देता है यदि पत्नी 15 वर्ष से कम नहीं है।
- एक अन्य घटनाक्रम में, सर्वोच्च न्यायालय (SC) वैवाहिक बलात्कार को अपराध घोषित करने संबंधी याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा है, जिसका समर्थन महिला अधिकार कार्यकर्त्ताओं द्वारा किया जा रहा है।
वैवाहिक बलात्कार क्या है?
- परिचय: वैवाहिक बलात्कार एक प्रकार की अंतरंग साथी हिंसा है जिसमें पति-पत्नी के बीच जबरन यौन संबंध या यौन उत्पीड़न शामिल होता है। यह भारत में अपराध नहीं है।
- हालाँकि, यदि कोई दंपत्ति विवाहित है, लेकिन अलग-अलग रह रहे हैं, तो यदि उसकी पत्नी यौन संबंध के लिये सहमति नहीं देती है, तो पति बलात्कार का दोषी है।
- विधिक दृष्टिकोण:
- IPC: धारा 375 (2) में कहा गया है कि एक पुरुष और उसकी पत्नी, जो 15 वर्ष से कम उम्र की नहीं है, के बीच यौन संबंध या यौन क्रिया बलात्कार नहीं है।
- BNS ने वैवाहिक बलात्कार के मामलों में पतियों के लिये प्रतिरक्षा बरकरार रखी है, लेकिन इंडिपेंडेंट थॉट बनाम UoI केस, 2017 में सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय का अनुपालन करते हुए सहमति की उम्र 15 से बढ़ाकर 18 वर्ष कर दी गई है।
- घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005: यद्यपि वैवाहिक बलात्कार कोई अपराध नहीं है, फिर भी एक महिला यौन दुर्व्यवहार, अपमान या गरिमा के उल्लंघन के लिये घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 के तहत राहत की मांग कर सकती है।
- IPC: धारा 375 (2) में कहा गया है कि एक पुरुष और उसकी पत्नी, जो 15 वर्ष से कम उम्र की नहीं है, के बीच यौन संबंध या यौन क्रिया बलात्कार नहीं है।
- वैवाहिक बलात्कार पर न्यायिक निर्णय:
- इंडिपेंडेंट थॉट बनाम यूओआई केस, 2017: सर्वोच्च न्यायालय ने 15-18 वर्ष की आयु की पत्नियों के लिये भारतीय दंड संहिता की धारा 375 (BNS की धारा 63) के अपवाद 2 को खारिज कर दिया, जिसके तहत नाबालिग पत्नियों (18 वर्ष से कम) के साथ संभोग को बलात्कार माना गया था।।
- इसने इस अपवाद को मनमाना और असंवैधानिक करार दिया, जो अनुच्छेद 14 (समानता) , 15 (गैर-भेदभाव) और 21 (जीवन और सम्मान का अधिकार) का उल्लंघन करता है ।
- न्यायालय ने निर्णय दिया कि पोक्सो अधिनियम, 2012 भारतीय दंड संहिता से अधिक प्रभावी है, जो नाबालिग (18 वर्ष से कम) के साथ यौन संबंध को बलात्कार बनाता है, भले ही वह विवाहित हो।
- के.एस. पुट्टस्वामी केस, 2017: इसमें गोपनीयता के आंतरिक भाग के रूप में व्यक्तियों के लिये यौन स्वायत्तता के महत्त्व पर बल दिया गया ।
- इंडिपेंडेंट थॉट बनाम यूओआई केस, 2017: सर्वोच्च न्यायालय ने 15-18 वर्ष की आयु की पत्नियों के लिये भारतीय दंड संहिता की धारा 375 (BNS की धारा 63) के अपवाद 2 को खारिज कर दिया, जिसके तहत नाबालिग पत्नियों (18 वर्ष से कम) के साथ संभोग को बलात्कार माना गया था।।
- अन्य महत्त्वपूर्ण निर्णय:
- वर्ष 2023 में, बॉम्बे हाईकोर्ट ने निर्णय दिया कि नाबालिग पत्नी के साथ सहमति से बनाया गया यौन संबंध बलात्कार है, और ऐसे मामलों में सहमति के बचाव को खारिज कर दिया।
- वर्ष 2024 में मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि पत्नी के साथ अप्राकृतिक यौन संबंध बलात्कार नहीं है और ऐसे मामलों में पत्नी की सहमति अप्रासंगिक है ।
- अप्राकृतिक यौन संबंध पर न्यायिक निर्णय:
- नवतेज सिंह जौहर केस, 2018: सर्वोच्च न्यायालय ने सहमति से समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर करते हुए आईपीसी की धारा 377 को आंशिक रूप से निरस्त कर दिया।
- सरकार का रुख: गृह मंत्रालय ने सर्वोच्च न्यायालय को बताया कि यद्यपि पति अपनी पत्नी की सहमति का उल्लंघन नहीं कर सकता, लेकिन इसे "बलात्कार" कहना अत्यधिक कठोर और असंगत है।
वैवाहिक बलात्कार को अपराध घोषित करने के पक्ष और विपक्ष में तर्क क्या हैं?
अपराधीकरण के लिये |
अपराधीकरण के विरुद्ध |
स्वायत्तता का उल्लंघन: हर व्यक्ति को यौन संबंध बनाने से इंकार करने का अधिकार है, यहाँ तक कि विवाह के बाद भी। नवतेज जौहर मामले, 2018 में सर्वोच्च न्यायालय ने यौन स्वायत्तता को बनाए रखा और इसे विवाह के बाद तक बढ़ाया जाना चाहिये। |
विवाह को खतरा: अपराधीकरण से वैवाहिक संबंध अस्थिर हो सकते हैं। |
सर्वोच्च न्यायालय निर्णय: इंडिपेंडेंट थॉट केस, 2017 ने नाबालिगों के लिये वैवाहिक बलात्कार को मान्यता दी, जिससे सहमति को बल मिला। |
मौजूदा कानून पर्याप्त : घरेलू हिंसा कानून पहले से ही यौन उत्पीड़न से सुरक्षा प्रदान करते हैं। |
कानून के समक्ष समानता : पतियों को छूट देना संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन है (अनुच्छेद 14, 15, 21)। |
संभावित दुरुपयोग: तलाक और हिरासत के मामलों में झूठे आरोप लग सकते हैं । |
POCSO एवं बाल संरक्षण: नाबालिगों के साथ गैर-सहमति से यौन संबंध अपराध है; यह विवाहित वयस्कों पर भी लागू होना चाहिये। |
सामाजिक एवं सांस्कृतिक मानदंड: पारंपरिक रूप से विवाह में यौन संबंध शामिल होते हैं, जिससे विधिक परिवर्तन जटिल हो जाता है। |
कानूनी विरोधाभास: धारा 377 को हटाने के बावजूद BNS में पतियों के लिये प्रतिरक्षा को बनाए रखा गया है। |
विधायी क्षेत्र: सरकार का तर्क है कि इस संबंध में न्यायालय को नहीं, बल्कि विधायिका को निर्णय लेना चाहिये। |
विश्व स्तर पर वैवाहिक बलात्कार का अपराधीकरण
- 77 देशों में वैवाहिक बलात्कार को स्पष्ट रूप से अपराध घोषित किया गया है, 74 देशों में सामान्य प्रावधानों के तहत पति-पत्नी के विरुद्ध मामले चलाने की अनुमति दी गई है तथा 34 देशों में इसे अपराधमुक्त कर दिया गया है या इसमें छूट दी गई है।
- वैवाहिक बलात्कार 50 अमेरिकी राज्यों, 3 ऑस्ट्रेलियाई राज्यों, न्यूज़ीलैंड, कनाडा, इजरायल, फ्राँस , स्वीडन, डेनमार्क, नॉर्वे, सोवियत संघ, पोलैंड और चेकोस्लोवाकिया तथा कई अन्य देशों में अवैध है।
- ब्रिटेन (जहाँ से IPC काफी हद तक प्रेरित है) ने वर्ष 1991 में वैवाहिक बलात्कार के अपवाद को हटा दिया था।
वैवाहिक बलात्कार को रोकने के लिये क्या किया जा सकता है?
- जया जेटली समिति की सिफारिशें: लैंगिक समानता को बढ़ावा देने, मातृ स्वास्थ्य में सुधार लाने और गैर-सहमति वाले यौन संबंध (वैवाहिक बलात्कार) के जोखिम को कम करने के लिये महिलाओं के लिये विवाह की न्यूनतम आयु 18 से बढ़ाकर 21 वर्ष की जाए।
- विधायी सुधार: वैवाहिक बलात्कार से छूट को हटाने के लिये BNS में संशोधन करना चाहिये तथा वैवाहिक सहमति को विधिक आवश्यकता के रूप में मान्यता देनी चाहिये।
- वैकल्पिक कानूनी ढाँचा: घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 का विस्तार करके इसमें वैवाहिक यौन उत्पीडन को स्पष्ट रूप से शामिल किया जाना चाहिये, तथा दंडात्मक आदेश और मुआवज़े जैसे मज़बूत नागरिक उपचारों की पेशकश की जानी चाहिये।
- वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाएँ: भारत ब्रिटेन, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया के कानूनों का अध्ययन कर सकता है ताकि सांस्कृतिक रूप से अनुकूल वैवाहिक बलात्कार कानून विकसित किया जा सके, जो सामाजिक-सांस्कृतिक वास्तविकताओं पर विचार करते हुए वैश्विक मानवाधिकारों के साथ संरेखित हो।
निष्कर्ष
वैवाहिक बलात्कार पर चर्चा व्यक्तिगत स्वायत्तता, विधिक समानता और सामाजिक-सांस्कृतिक मानदंडों के बीच भेद प्रकट करती है। विभिन्न देशों ने इसे अपराध घोषित कर दिया है, भारत में पतियों के लिये कानूनी प्रतिरक्षा बरकरार है। यहाँ न्यायिक फैसले सहमति और गरिमा पर ज़ोर देते हैं, लेकिन विधायी अनिच्छा बनी हुई है। इस मुद्दे पर विधिक स्पष्टता की आवश्यकता है, जिसमें व्यक्तिगत अधिकारों को सामाजिक चिंताओं के साथ संतुलित किये जाने की आवश्यकता है।
दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: प्रश्न: भारत में वैवाहिक बलात्कार को अपराध घोषित करने के पक्ष और विपक्ष में तर्कों का आलोचनात्मक विश्लेषण कीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)मेन्सQ. महिलाएँ जिन समस्याओं का सार्वजानिक एवं निज़ी दोनों स्थलों का सामना कर रही हैं, क्या राष्ट्रीय महिला आयोग उनका समाधान निकालने की रणनीति बनाने में सफल रहा है? अपने उत्तर के समर्थन में तर्क प्रस्तुत कीजिये। (2017) Q. हमें देश में महिलाओं के प्रति यौन उत्पीडन के बढ़ते हुए दृष्टांत दिखाई दे रहे हैं। इस कुकृत्य के विरुद्ध विद्यमान विधिक उपबंधों के होते हुए भी ऐसी घटनाओं की संख्या बढ़ रही है। इस संकट से निपटने के लिये कुछ नवाचारी उपाय सुझाइये। (2014) |