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मरीन क्लाउड ब्राइटनिंग

  • 24 Apr 2024
  • 9 min read

प्रिलिम्स के लिये:

मरीन क्लाउड ब्राइटनिंग, प्रवाल विरंजन, ग्लोबल वार्मिंग, ग्रेट बैरियर रीफ, जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल

मेन्स के लिये:

मरीन क्लाउड ब्राइटनिंग की विधि और संबंधित चुनौतियाँ एवं जोखिम, पर्यावरण प्रदूषण तथा क्षरण, संरक्षण

स्रोत: सीएटल टाइम्स

चर्चा में क्यों?

हाल ही में वैज्ञानिकों द्वारा मरीन क्लाउड ब्राइटनिंग नामक जियोइंजीनियरिंग तकनीक का परीक्षण किया गया।

  • इस विधि में समुद्री स्ट्रैटोक्यूम्यलस बादलों में सूक्ष्म लवणीय जल के कणों को डालने के लिये मशीनों का उपयोग करना शामिल है, जिसका उद्देश्य उनकी परावर्तनशीलता को बढ़ाना और पृथ्वी को ठंडा करना है।

Coastal_Study

मरीन क्लाउड ब्राइटनिंग क्या है?

  • परिचय:
    • मरीन क्लाउड ब्राइटनिंग एक वैज्ञानिक पहल है जिससे यह पता चलता है कि बदलते वायुमंडलीय कण (एरोसोल) बादल की परावर्तनशीलता को कैसे प्रभावित कर सकते हैं।
    • वायुमंडल में छोटे एयरोसोल कणों को उत्पन्न करके शोधकर्त्ताओं का लक्ष्य बादलों की चमक को बढ़ाना है, जिससे सूर्य के प्रकाश का प्रतिबिंब बढ़ सके।
    • उचित आकार और सघनता वाले एरोसोल विशिष्ट प्रकार के बादलों की परावर्तन क्षमता को उल्लेखनीय रूप से बढ़ा सकते हैं।
    • यह घटना जहाज़ से उत्सर्जन या शिप एमिसन (जिसे "जहाज ट्रैक" के रूप में जाना जाता है) के चलते  चमकते बादलों की उपग्रह छवियों में दिखाई देती है।

Principle_Behind_MCB

  • मरीन क्लाउड ब्राइटनिंग कार्यक्रम के लक्ष्य:
    • बादलों पर एरोसोल प्रदूषण के वर्तमान प्रभावों को कम करने की बेहतर समझ विकसित करना।
    • यह जाँच करना कि क्या समुद्री नमक से बने एयरोसोल कणों का उपयोग ग्लोबल वार्मिंग को कम करने के लिये किया जा सकता है जबकि ग्रीनहाउस गैस सांद्रता को सुरक्षित स्तर पर लाया जा सकता है।
    • मरीन क्लाउड ब्राइटनिंग के विभिन्न कार्यान्वयनों के माध्यम से ग्लोबल वार्मिंग को कम करने के लिये एरोसोल उपयोग के लाभ, जोखिम एवं प्रभावकारिता को समझना

एयरोसोल एवं जलवायु प्रभाव:

  • वायु गुणवत्ता नियमों के विस्तार के कारण एरोसोल सांद्रता में गिरावट आ रही है, जिससे वायुमंडल में कण कम हो रहे हैं।
  • अधिकांश एयरोसोल कणों के कारण जलवायु पर शीतलन प्रभाव पड़ता है, इसलिये उनकी कमी से ग्लोबल वार्मिंग में वृद्धि होती है।
  • वैज्ञानिकों का अनुमान है कि मानवीय गतिविधियों द्वारा उत्सर्जन से निकलने वाले एरोसोल ग्लोबल वार्मिंग के 0.5 डिग्री सेल्सियस की भरपाई कर रहे हैं, लेकिन वास्तविक शीतलन प्रभाव 0.2 डिग्री सेल्सियस से 1.0 डिग्री सेल्सियस तक हो सकता है।
  • बादलों पर एयरोसोल के प्रभावों के बारे में अनिश्चितता भविष्य में ग्लोबल वार्मिंग के अनुमानों को लेकरअनिश्चितता की स्थिति उत्पन्न कर सकती है।

MCB से संबद्ध चुनौतियाँ एवं जोखिम क्या हैं?

  • तकनीकी व्यवहार्यता: MCB में अत्यधिक ऊँचाई पर वायुमंडल में समुद्री जल का बड़े पैमाने पर छिड़काव शामिल है, जो छिड़काव हेतु उपकरणों के निर्माण, लागत, रखरखाव एवं संचालन के संदर्भ में अभियांत्रिकी जटिलताओं को प्रस्तुत करता है।
  • पर्यावरणीय प्रभाव: MCB के कारण बादलों के प्रारूप और वर्षा क्षेत्रीय जलवायु एवं जल विज्ञान चक्रों को प्रभावित कर सकती है, जिससे संभावित रूप से शुष्कता या बाढ़ जैसे अनपेक्षित परिणाम हो देखे जा सकते हैं।
    • व्यापक क्षेत्रों में बादलों में होने वाला परिवर्तन वायुमंडल, मौसम और वर्षा के परिसंचरण को प्रभावित करता है।
    • मरीन क्लाउड ब्राइटनिंग (MCB) और प्रदूषण एरोसोल दोनों ही बादलों के प्रारूप को परिवर्तित कर सकते हैं, जिसके परिणामस्वरूप ब्राइटनिंग वाले स्थान के नज़दीक और दूरस्थ दोनों क्षेत्र प्रभावित होते हैं।
  • नैतिक मुद्दे: MCB प्राकृतिक प्रक्रियाओं में मानवीय हस्तक्षेप और इसके कार्यान्वयन एवं निर्णय लेने की प्रक्रियाओं के बारे में नैतिक दुविधाओं को जन्म देता है।
  • नैतिक संकट: MCB नीति निर्माताओं और सामान्य जन के बीच आत्मसंतुष्टि (Complacency) की भावना उत्पन्न कर सकता है, जिससे ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने और जलवायु परिवर्तन के प्रति अनुकूलन की उनकी प्रतिबद्धता कम हो सकती है।

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निष्कर्ष:

  • मरीन क्लाउड ब्राइटनिंग (MCB), वर्तमान में जलवायु अंतःक्षेप (Climate Intervention) के साथ-साथ अपने प्रारंभिक अनुसंधान एवं विकास अवस्था में है। हालाँकि वैज्ञानिक इसकी व्यवहार्यता, प्रभावकारिता और संभावित प्रभावों की खोज कर रहे हैं।
  • ग्लोबल वार्मिंग को कम करने, संबंधित जोखिमों और अनिश्चितताओं को स्वीकार करने के साथ जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिये विभिन्न भू-अभियांत्रिकी तरीकों के बीच सतत् मानव अनुकूलन को एकमात्र नया दृष्टिकोण माना जाता है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. जलवायु परिवर्तन और वैश्विक जलवायु प्रणालियों पर उनके संभावित प्रभावों को कम करने के लिये प्रस्तावित विभिन्न जियोइंजीनियरिंग तकनीकों पर चर्चा कीजिये। इस संदर्भ में स्थायी मानव अनुकूलन एक अद्वितीय दृष्टिकोण के रूप में कैसे सामने आता है?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स

प्रश्न. निम्नलिखित में से किसके संदर्भ में कुछ वैज्ञानिक पक्षाभ मेघ विरलन तकनीक तथा समतापमंडल में सल्फेट वायुविलय अंत:क्षेपण के उपयोग का सुझाव देते हैं? (2019)

(a) कुछ क्षेत्रों में कृत्रिम वर्षा करवाने के लिये
(b) उष्णकटिबंधीय चक्रवातों की बारंबारता और तीव्रता को कम करने के लिये
(c) पृथ्वी पर सौर पवनों के प्रतिकूल प्रभाव को कम करने के लिये
(d) भूमंडलीय तापन को कम करने के लिये

उत्तर: (d)


प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2012)

क्लोरोफ्लोरोकार्बन, जिसे ओज़ोन-ह्रासक पदार्थों के रूप में जाना जाता है, उनका प्रयोग:

  1.  सुघट्य फोम के निर्माण में होता है   
  2.  ट्यूबलेस टायरों के निर्माण में होता है   
  3.  कुछ विशिष्ट इलेक्ट्रॉनिक अवयवों की सफाई में होता है   
  4.  एयरोसोल कैन में दाबकारी एजेंट के रूप में होता है  

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1, 2 और 3
(b) केवल 4
(c) केवल 1, 3 और 4
(d) 1, 2, 3 और 4

उत्तर: (c)


मेन्स:

प्रश्न. भारतीय उप-महाद्वीप में घटती हुई हिमालयी हिमनदियों (ग्लेसियर्स) और जलवायु परिवर्तन के लक्षणों के बीच संबंध उजागर कीजिये। (2014)

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