जैव विविधता और पर्यावरण
भारत में मैंग्रोव
- 17 Mar 2025
- 12 min read
प्रिलिम्स के लिये:मैंग्रोव, भारतीय वन स्थिति रिपोर्ट 2023, सुंदरबन, मिष्टी (तटरेखा आवास और मूर्त आय हेतु मैंग्रोव पहल), मैंग्रोव पारिस्थितिकी तंत्र में सतत् जलीय कृषि (SAIME) पहल मेन्स के लिये:मैंग्रोव का महत्त्व, भारत में मैंग्रोव से संबंधित चुनौतियाँ |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
अन्ना विश्वविद्यालय की हालिया रिपोर्ट में तमिलनाडु के मैंग्रोव पारिस्थितिकी तंत्र में हुए महत्त्वपूर्ण विस्तार पर प्रकाश डाला गया है, जो वर्ष 2021 के 4,500 हेक्टेयर से दोगुना होकर वर्ष 2024 में 9,039 हेक्टेयर हो गया है, जिससे मैंग्रोव चर्चा का विषय बन गया है।
मैंग्रोव क्या हैं?
- परिचय:
- मैंग्रोव तटीय पारिस्थितिकी तंत्र हैं जहाँ लवण सहिष्णु वृक्ष और झाड़ियाँ पाई जाती हैं जिनकी वृद्धि उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों के अंतःज्वारीय क्षेत्रों में होता है।
- ये मंद गति से प्रवाहित होने वाले जल क्षेत्रों के साथ लवणीय, अल्प ऑक्सीजन वाले वातावरण का सामना करने में विशिष्ट रूप से अनुकूलित होते हैं, जहाँ बारीक तलछट का संचयन जारी रहता है।
- कुछ सामान्य मैंग्रोव वृक्षों में लाल मैंग्रोव, ग्रे मैंग्रोव और राइज़ोफोरा शामिल हैं।
- मुख्य विशेषताएँ:
- पर्यावास एवं विकास की स्थितियाँ: मैंग्रोव का विकास ज्वारीय मैदानों, नदियों के मुहाने और उच्च गाद निक्षेपण वाले डेल्टाओं में होता हैं, यहाँ प्रतिदिन दो बार ज्वारीय जलप्लावन होता है।
- वे उच्च सौर विकिरण, अवायवीय पंक के अनुकूल हो जाते हैं, तथा लवणीय जल से से स्वच्छ जल का निष्कर्षण करने में सक्षम होते हैं।
- कार्यिकीय अनुकूलन: इनमें श्वसन के लिये न्यूमेटोफोर (Avicennia), स्थिरता के लिये अवस्तंभ मूल (Rhizophora) और जल की हानि और नमक स्राव के लिये लेंटिसेलेटेड छाल का विकास होता है।
- उनकी लवण-स्रावी ग्रंथियाँ लवण उत्सर्जन में सहायता करती हैं, जबकि इनकी मूल तलछट को प्रग्रहित करती हैं और तटरेखा को स्थिर करती हैं।
- जननीय अनुकूलन: मैंग्रोव में जरायुजता (Viviparity) पाई जाती है, जहाँ बीज ज़मीन पर गिरने से पहले पेड़ के भीतर अंकुरित होते हैं, जिससे लवणीय परिस्थितियों में भी जीवित रहना सुनिश्चित होता है।
- पर्यावास एवं विकास की स्थितियाँ: मैंग्रोव का विकास ज्वारीय मैदानों, नदियों के मुहाने और उच्च गाद निक्षेपण वाले डेल्टाओं में होता हैं, यहाँ प्रतिदिन दो बार ज्वारीय जलप्लावन होता है।
- मैंग्रोव का वितरण: मैंग्रोव की वृद्धि केवल भूमध्य रेखा के समीप उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय अक्षांशों में ही होती है, क्योंकि शून्य से निम्न तापमान इनकी वृद्धि के लिये अनुकूल नहीं होता।
- FAO (2023) के अनुसार, वर्ष 2020 में वैश्विक मैंग्रोव का विस्तार 14.8 मिलियन हेक्टेयर था, जिसमें विश्व के सभी उष्णकटिबंधीय वनों के 1% से भी सीमित क्षेत्र शामिल हैं।
- सबसे बृहद मैंग्रोव क्षेत्र दक्षिण और दक्षिण-पूर्व एशिया में अवस्थित हैं, इसके बाद दक्षिण अमेरिका, अफ्रीका, उत्तर और मध्य अमेरिका तथा ओशिनिया का स्थान है।
- इंडोनेशिया, ब्राज़ील, नाइजीरिया, मैक्सिको और ऑस्ट्रेलिया में वैश्विक मैंग्रोव आच्छादन का 47% भाग है।
- भारत में मैंग्रोव आवरण: भारतीय वन स्थिति रिपोर्ट (ISFR) 2023 के अनुसार, भारत का मैंग्रोव आवरण लगभग 4,992 वर्ग किमी. है, जो देश के कुल भौगोलिक क्षेत्र का 0.15% है।
- प्रमुख मैंग्रोव पारिस्थितिकी तंत्र ओडिशा (भितरकनिका), आंध्र प्रदेश (गोदावरी-कृष्णा डेल्टा), गुजरात, केरल और अंडमान द्वीप समूह में पाए जाते हैं।
- सुंदरबन विश्व का सबसे बड़ा सन्निहित मैंग्रोव वन है, जबकि भीतरकनिका भारत का दूसरा सबसे विशाल मैंग्रोव वन है।
सुंदरबन
- सुंदरबन का नाम सुंदरी वृक्ष (Heritiera fomes) के नाम पर रखा गया है।
- यह भारत के पश्चिम बंगाल में हुगली नदी से लेकर बांग्लादेश में बालेश्वर नदी तक विस्तृत है, तथा गंगा, ब्रह्मपुत्र और मेघना डेल्टा को कवर करता है।
- चार संरक्षित क्षेत्र - सुंदरबन राष्ट्रीय उद्यान (भारत), सुंदरबन पश्चिम, सुंदरबन दक्षिण और सुंदरबन पूर्व वन्यजीव अभयारण्य (बांग्लादेश) को यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल के रूप में नामित किया गया है ।
- इस क्षेत्र में समृद्ध जैवविविधता है, जिसमें 260 पक्षी प्रजातियाँ, बंगाल टाइगर, एस्टुरीन क्रोकोडाइल, इंडियन पायथन और अन्य संकटग्रस्त प्रजातियाँ शामिल हैं।
मैंग्रोव का महत्त्व क्या है?
- कार्बन पृथक्करण: मैंग्रोव प्रति हेक्टेयर औसतन 394 टन कार्बन संग्रहित करते हैं। उनकी अद्वितीय अवायवीय और लवणीय स्थितियाँ अपघटन को धीमा कर देती हैं, जिससे वे अत्यधिक प्रभावी ब्लू कार्बन सिंक बन जाते हैं।
- तटीय संरक्षण: मैंग्रोव तूफान, सुनामी और तटीय कटाव के खिलाफ प्राकृतिक बाधाओं के रूप में कार्य करते हैं, जिससे तरंग ऊर्जा 5-35% तक कम हो जाती है।
- वे बाढ़ की गहराई को 15-20% तक तथा कुछ क्षेत्रों में 70% तक कम कर देते हैं, तथा आपदा जोखिम न्यूनीकरण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
- जैवविविधता हॉटस्पॉट: वे भारत में 21 संघों की 5,700 से अधिक प्रजातियों का समर्थन करते हैं, जिनमें बंगाल टाइगर, एस्टुरीन क्रोकोडाइल, इंडियन पायथन और 260 से अधिक पक्षी प्रजातियां शामिल हैं।
- खाद्य सुरक्षा और आजीविका: मैंग्रोव प्रतिवर्ष 800 बिलियन जलीय प्रजातियों का पोषण करके वैश्विक मत्स्य पालन का समर्थन करते हैं और तटीय समुदायों को बनाए रखते हुए शहद, फल और पत्तियाँ प्रदान करते हैं।
मैंग्रोव के लिये प्रमुख खतरे क्या हैं?
- भूमि रूपांतरण: "स्टेट ऑफ द वर्ल्ड्स मैंग्रोव्स 2024" रिपोर्ट के अनुसार, जलीय कृषि (26%), साथ ही पाम-ऑयल के बागान और चावल की कृषि (43%), वर्ष 2000 और वर्ष 2020 के बीच मैंग्रोव क्षति का एक प्रमुख कारण रहे हैं।
- इमारती लकड़ी के निष्कर्षण और चारकोल उत्पादन से मैंग्रोव का गंभीर क्षरण होता है।
- प्रदूषण: तेल रिसाव, विशेष रूप से नाइजर डेल्टा जैसे क्षेत्रों में, मैंग्रोव पुनर्जनन और पारिस्थितिकी तंत्र के स्वास्थ्य को खतरे में डालता है।
- आक्रामक प्रजातियाँ: तमिलनाडु और श्रीलंका के मैंग्रोव में पाई जाने वाली आक्रामक प्रजाति प्रोसोपिस जूलीफ्लोरा का प्रसार, देशी प्रजातियों को समाप्त कर मैंग्रोव पारिस्थितिकी तंत्र को बाधित कर रही है, मृदा की लवणता में बदलाव ला रही है, स्वच्छ जल की उपलब्धता को कम कर रही है, और पुनर्जनन में बाधा उत्पन्न कर रही है।
आगे की राह
- कानूनी ढाँचे को मज़बूत करना: वनोन्मूलन, प्रदूषण और अस्थिर तटीय विकास को रोकने के लिये सख्त कानून और नियामक उपायों लागू करना।
- सामुदायिक भागीदारी: संरक्षण पहलों में स्थानीय समुदायों को शामिल करना और मैंग्रोव संरक्षण से जुड़े स्थायी आजीविका के अवसर प्रदान करना, जैसे मैंग्रोव क्षेत्रों का "एडॉप्शन, उनका रखरखाव, सुरक्षा और पुनरुद्धार सुनिश्चित करना।
- अनुसंधान एवं प्रौद्योगिकी अपनाना: फाइटोरिमेडिएशन, औषधीय अनुप्रयोगों और सतत् मैंग्रोव उपयोगों के लिये अनुसंधान में निवेश करना।
- वास्तविक समय निगरानी और अवैध गतिविधियों से सुरक्षा के लिये ड्रोन निगरानी और कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) का उपयोग करना।
- जैव-पुनर्स्थापना: जलवायु परिवर्तन के प्रति लचीलापन बढ़ाने के लिये प्रजातियों की विविधता सुनिश्चित करते हुए, क्षीण हो चुके मैंग्रोव क्षेत्रों के पुनर्वास के लिये जैव-पुनर्स्थापन तकनीकों को लागू करना।
- सतत् तटीय विकास: पर्यावरण-अनुकूल बुनियादी ढाँचे को बढ़ावा देना, जलीय कृषि को विनियमित करना और मैंग्रोव संरक्षण को शहरी नियोजन में एकीकृत करना।
- अंतर्राष्ट्रीय सहयोग: प्रभावी मैंग्रोव संरक्षण रणनीतियों के लिये रामसर अभिसमय और ब्लू कार्बन इनिशिएटिव जैसे समझौतों के माध्यम से वैश्विक सहयोग को मज़बूत करना।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: Q. भारत में मैंग्रोव के पारिस्थितिक और आर्थिक महत्त्व की जाँच कीजिये। उनके संरक्षण और धारणीय प्रबंधन के लिये एक समग्र रणनीति का सुझाव दीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. भारत के निम्नलिखित क्षेत्रों में से किस एक में मैंग्रोव वन, सदापर्णी वन और पर्णपाती वनों का संयोजन है? (2015) (a) उत्तर तटीय आंध्र प्रदेश उत्तर: (d) मेन्सप्रश्न. मैंग्रोवों के रिक्तीकरण के कारणों पर चर्चा कीजिये और तटीय पारिस्थितिकी का अनुरक्षण करने में इनके महत्त्व को स्पष्ट कीजिये। (2019) |