सामाजिक न्याय
खतरनाक अपशिष्ट का प्रबंधन
- 06 Jan 2025
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प्रिलिम्स के लिये:खतरनाक अपशिष्ट, भस्मीकरण, मिथाइल आइसोसाइनेट, फॉसजीन, भोपाल गैस विभीषिका (दावा कार्यवाही) अधिनियम, 1985, पीड़कनाशी, लघु और मध्यम उद्यम (SME), अपशिष्ट जल उपचार, खतरनाक अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016, पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986, बेसल अभिसमय, 1992, पायरोलिसिस मेन्स के लिये:खतरनाक अपशिष्ट का प्रबंधन। |
स्रोत: डाउन टू अर्थ
चर्चा में क्यों?
भोपाल गैस त्रासदी (1984) के चार दशक बाद, मध्य प्रदेश में बंद पड़े यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड (UCIL) कारखाने से खतरनाक अपशिष्ट (विषाक्त अपशिष्ट) को अंततः जला कर भस्म करने के लिये बाहर निकाला गया।
भोपाल गैस त्रासदी क्या थी?
- 2 दिसंबर 1984 की रात को भोपाल स्थित UCIL पीड़कनाशी संयंत्र में विनाशकारी रासायनिक रिसाव हुआ।
- इस रिसाव में मिथाइल आइसोसाइनेट (MIC) गैस शामिल थी, जिससे भोपाल शहर में 5000 से अधिक लोगों की मौत हो गई तथा पाँच लाख से अधिक लोग इस गैस से विषाक्त हुए , जिससे यह विश्व की सबसे विनाशकारी औद्योगिक आपदा में परिणत हुआ।
- फॉसजीन और मिथाइल आइसोसाइनेट सहित रासायनिक रिसाव की सूचना 1984 से पहले के वर्षों में दी गई थी।
- रिसाव का कारण: 1 दिसंबर 1984 को एक असफल रखरखाव प्रयास और अनुपयुक्त सुरक्षा प्रणालियों के कारण, MIC युक्त टैंक में रासायनिक अभिक्रिया शुरू हो गई, जिसके परिणामस्वरूप 2 दिसंबर 1984 की मध्य रात्रि तक लगभग 30 टन MIC गैस वायुमंडल में उत्सर्जित हुई।
- स्वास्थ्य पर प्रभाव:
- तत्काल: इस गैस के संपर्क में आए व्यक्तियों को श्वसन संबंधी समस्याएँ, पेट दर्द, आँखों की समस्याएँ और तंत्रिका संबंधी हानियाँ हुई।
- दीर्घकालिक: प्रभावित लोगों में फेफड़ों की कार्यक्षमता में कमी, आनुवंशिक दोष, गर्भावस्था पर प्रभाव जैसी दीर्घकालिक स्वास्थ्य समस्याएँ उत्पन्न हुई और शिशु मृत्यु दर में आकस्मिक बढ़ोतरी हुई।
- सरकारी और विधिक प्रतिक्रिया : भारत सरकार ने पीड़ितों के कानूनी प्रतिनिधि के रूप में कार्य करने के लिये भोपाल गैस रिसाव आपदा (दावों का प्रसंस्करण) अधिनियम, 1985 पारित किया।
- UCIL ने शुरू में 5 मिलियन अमेरिकी डॉलर की राहत का प्रस्ताव रखा लेकिन भारत सरकार ने 3.3 बिलियन अमेरिकी डॉलर की मांग की। अंततः वर्ष 1989 में न्यायालय के बाहर 470 मिलियन अमेरिकी डॉलर में मामला सुलझाया गया।
- वर्ष 2010 में UCIL में कार्यरत सात भारतीय नागरिकों को लापरवाही से मृत्यु का दोषी ठहराया गया लेकिन उन्हें जमानत पर रिहा कर दिया गया।
- परिणाम और विरासत: इतना समय बीतने के बावजूद, अभी भी बचे हुए लोगों के लिये स्वास्थ्य देखभाल का अभाव है तथा उन्हें फैक्ट्री स्थल पर विषाक्त पदार्थों का जोखिम रहता है।
- विभिन्न कल्याणकारी संगठन बंद फैक्ट्री स्थल से खतरनाक अपशिष्ट को हटाने की मांग करते रहे हैं।
मिथाइल आइसोसाइनेट (MIC)
- परिचय: मिथाइल आइसोसाइनेट एक रंगहीन तरल है जिसका उपयोग कीटनाशक बनाने के लिये किया जाता है ।
- प्रतिक्रियाशीलता: यह रसायन ऊष्मा के प्रति अत्यधिक क्रियाशील है।
- जल के संपर्क में आने पर MIC में उपस्थित यौगिक एक दूसरे के साथ प्रतिक्रिया करते हैं, जिससे ऊष्मा प्रतिक्रिया होती है।
- भंडारण: इसका अब उत्पादन नहीं होता है यद्यपि इसका उपयोग अभी भी कीटनाशकों में किया जाता है।
- अमेरिका के वेस्ट वर्जीनिया स्थित इंस्टीट्यूट में बेयर क्रॉपसाइंस प्लांट वर्तमान में विश्व भर में MIC का एकमात्र भंडारण स्थल है।
खतरनाक अपशिष्ट क्या है?
- खतरनाक अपशिष्ट से तात्पर्य ऐसे अपशिष्ट से है जो विषाक्तता, ज्वलनशीलता, प्रतिक्रियाशीलता या संक्षारकता जैसी विशेषताओं के कारण एकल रूप से या अन्य पदार्थों के साथ मिलकर स्वास्थ्य या पर्यावरण के लिये खतरा उत्पन्न करता है।
- स्रोत:
- खतरनाक अपशिष्ट का उपयोग: अधिकांश खतरनाक अपशिष्ट रासायनिक उत्पादन एवं उपभोग के दौरान उत्पन्न होते हैं, जो उपभोक्ता वस्तुओं की बढ़ती मांग के साथ बढ़ रहे हैं।
- अनुपयुक्त प्रौद्योगिकियाँ: लघु एवं मध्यम उद्यमों (SME) द्वारा प्रयुक्त पुरानी प्रौद्योगिकियों के कारण संसाधनों का अकुशल उपभोग होने के परिणामस्वरूप अधिक मात्रा में अधिक विषाक्त अपशिष्ट उत्पन्न होते हैं।
- उपचार प्रणालियाँ: अपशिष्ट जल उपचार एवं गैसीय उत्सर्जन के परिणामस्वरूप खतरनाक पदार्थ युक्त अवशेष उत्पन्न होते हैं।
- खतरनाक अपशिष्ट विनियमन:
- पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986: खतरनाक अपशिष्ट (प्रबंधन और हैंडलिंग) नियम, 1989 को पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 के अंतर्गत लाया गया।
- इन नियमों को वर्ष 2008, 2009, 2010 और 2016 में संशोधित किया गया ताकि अन्य प्रकार के अपशिष्ट (जैसे- प्रयुक्त इलेक्ट्रॉनिक्स, कागज़ अपशिष्ट, धातु स्क्रैप और अपशिष्ट टायर) को इसमें शामिल किया जा सके।
- पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986: खतरनाक अपशिष्ट (प्रबंधन और हैंडलिंग) नियम, 1989 को पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 के अंतर्गत लाया गया।
- बेसल कन्वेंशन, 1992: भारत बेसल कन्वेंशन, 1992 का हस्ताक्षरकर्त्ता है , जिसका उद्देश्य विभिन्न देशों के बीच खतरनाक अपशिष्ट के आवागमन को कम करना है।
- अपशिष्ट उत्पादन: भारत में उद्योगों से प्रति वर्ष लगभग 7.66 मिलियन टन खतरनाक अपशिष्ट उत्पन्न होता है।
- खतरनाक अपशिष्ट के विश्लेषण से पता चलता है कि 44.3% अपशिष्ट भूमिभरण योग्य है, 47.2% अपशिष्ट पुनर्चक्रण योग्य है, तथा 8.5% अपशिष्ट भस्मीकरण योग्य है।
- 83% खतरनाक अपशिष्ट सात राज्यों अर्थात गुजरात, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, आंध्रप्रदेश, पश्चिम बंगाल और छत्तीसगढ़ में उत्पन्न होता है।
- खतरनाक अपशिष्ट उत्पादन: भारत के पर्यावरण सांख्यिकी संग्रह, 2016 के अनुसार , अधिकांश खतरनाक अपशिष्ट अपशिष्ट जल और फ्लू गैसों के उपचार के अलावा रासायनिक उत्पादन और धातु प्रसंस्करण उद्योगों से उत्पन्न हो रहा है।
खतरनाक अपशिष्ट का निपटान कैसे किया जाता है?
- सह-प्रसंस्करण: इसमें अपशिष्ट पदार्थों, जैसे औद्योगिक उप-उत्पादों या खतरनाक अपशिष्टों को उद्योगों, विशेष रूप से सीमेंट निर्माण या अन्य उच्च तापमान वाले उद्योगों में वैकल्पिक कच्चे माल या ईंधन के रूप में उपयोग करना शामिल है।
- भारत में लगभग 25 सीमेंट संयंत्रों ने सह-प्रसंस्करण आरंभ कर दिया है।
- सामग्री एवं ऊर्जा की पुनर्प्राप्ति: सामग्री पुनर्प्राप्ति में अपशिष्ट में निहित भौतिक मूल्य का उपयोग किया जाता है, जबकि ऊर्जा पुनर्प्राप्ति में इसके कैलोरी मान का उपयोग किया जाता है।
- उदाहरण के लिये केबल अवशेषों से ताँबे को पुनः प्राप्त करना और ताँबे को पुनः पिघलाना या प्रयुक्त बैटरियों से सीसा को पुनः प्राप्त करना।
- प्रयुक्त स्नेहक तेल, विलायक, ठोस और अर्द्ध-ठोस ग्रीस तथा मोम का उपयोग औद्योगिक प्रक्रियाओं के लिये वैकल्पिक ईंधन के रूप में किया जा सकता है, जिनमें तापीय ऊर्जा की आवश्यकता होती है।
- भस्मीकरण: भस्मीकरण उच्च तापमान पर बड़ी भट्टियों में अपशिष्ट को दहन करने की प्रक्रिया है। यह अपशिष्ट पदार्थों की राख, फ्लू गैसों, कणों और ऊष्मा में परिवर्तित करता है, जिसका उपयोग विद्युत उत्पादन के लिये किया जा सकता है।
- पायरोलिसिस: पायरोलिसिस में अपशिष्ट पदार्थों का ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में या सीमित ऑक्सीजन के साथ आमतौर पर 300°C से 900°C तक के तापमान पर ऊष्मीय अपघटन शामिल होता है।
- यह अपशिष्ट पदार्थों को उपयोगी उत्पादों जैसे बायो-ऑयल, सिंथेटिक गैस (सिनगैस) और चारकोल में परिवर्तित करता है।
नोट:
- बायो-ऑयल एक तरल ईंधन है जो जैव ईंधन (लकड़ी, कृषि अवशेष, शैवाल) और अन्य वनस्पति पदार्थों जैसे कार्बनिक पदार्थों के ताप-अपघटन के माध्यम से उत्पादित होता है।
- सिंथेटिक गैस एक ईंधन गैस है जो मुख्य रूप से हाइड्रोजन (H₂), कार्बन मोनोऑक्साइड (CO), तथा अल्प मात्रा में कार्बन डाइऑक्साइड (CO₂) और मीथेन (CH₄) से बनी होती है।
- चारकोल एक ठोस, कार्बन-समृद्ध उपोत्पाद है जो पाइरोलिसिस जैसी प्रक्रियाओं में कार्बनिक पदार्थों के ऊष्मीय अपघटन के दौरान उत्पन्न होता है।
निष्कर्ष
भोपाल गैस त्रासदी औद्योगिक सुरक्षा लापरवाही के भयावह परिणामों को उज़ागर करती है। हानिकारक अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016 और बेसल कन्वेंशन जैसी नियामक प्रगति के बावजूद, सुरक्षित अपशिष्ट निपटान में चुनौतियाँ बनी हुई हैं, जिससे भारत में सख्त अनुपालन, तकनीकी उन्नयन और खतरनाक अपशिष्ट के प्रभावी उपचार की तत्काल आवश्यकता पर बल मिलता है।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न: भारत में खतरनाक अपशिष्ट को नियंत्रित करने वाले प्रमुख नियामक ढाँचे क्या हैं? |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्सप्रश्न. भारत में निम्नलिखित में से किसमें एक महत्त्वपूर्ण विशेषता के रूप में 'विस्तारित उत्पादक दायित्व' आरंभ किया गया था? (2019) (a) जैव चिकित्सा अपशिष्ट (प्रबंधन और हस्तन) नियम, 1998 उत्तर: (c) प्रश्न. भारत में ठोस अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016 के अनुसार, निम्नलिखित में से कौन-सा एक कथन सही है? (2019) (a) अपशिष्ट उत्पादक को पाँच कोटियों में अपशिष्ट अलग-अलग करने होंगे। उत्तर: (c) मेन्सप्रश्न. भारत की राष्ट्रीय जल नीति की परिगणना कीजिये। गंगा नदी का उदाहरण लेते हुए, नदियों के जल प्रदूषण नियंत्रण व प्रबंधन के लिये अंगीकृत की जाने वाली रणनीतियों की विवेचना कीजिये। भारत में खतरनाक अपशेषों के प्रबंधन और संचालन के लिये क्या वैधानिक प्रावधान हैं? (2013) |