NH भूमि अधिग्रहण में योगदान हेतु केरल देश में अग्रणी | 30 Dec 2023
प्रिलिम्स के लिये:भूमि अधिग्रहण, भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (NHAI), भारतमाला परियोजना मेन्स के लिये:भूमि अधिग्रहण लागत साझा करने से छूट में भारतमाला परियोजना की भूमिका |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय (MoRT&H) ने संसद में एक दस्तावेज़ प्रस्तुत किया, जिसके अनुसार केरल पर सबसे अधिक वित्तीय बोझ है तथा इसके बाद हरियाणा एवं उत्तर प्रदेश का स्थान है।
- इसका कारण राष्ट्रीय राजमार्ग विकास के लिये भूमि अधिग्रहण लागत का 25% राज्य द्वारा वहन करने जैसे मानदंड हैं।
दस्तावेज़ के प्रमुख बिंदु क्या हैं?
- भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (NHAI) ने विगत पाँच वर्षों में महाराष्ट्र में भूमि अधिग्रहण तथा संबंधित गतिविधियों पर सबसे अधिक हिस्सा व्यय किया है तथा इसके बाद उत्तर प्रदेश एवं केरल का स्थान है।
- केरल ने NHAI की दो परियोजनाओं– एर्नाकुलम बाईपास तथा कोल्लम-शेनकोट्टई खंड के लिये भूमि अधिग्रहण के लिये 25% हिस्सेदारी की छूट एवं परियोजना को भारतमाला परियोजना के तहत सूचीबद्ध करके आउटर रिंग रोड परियोजना की भूमि अधिग्रहण लागत को साझा करने से छूट का प्रस्ताव प्रस्तुत किया है।
- उक्त दस्तावेज़ के अनुसार हरियाणा व उत्तर प्रदेश को क्रमशः ₹3,114 करोड़ तथा ₹2,301 करोड़ का योगदान देना होगा।
भारत में सड़क नेटवर्क से संबंधित मुख्य तथ्य
- वर्ष 2018-19 में भारत का सड़क घनत्व 1,926.02 प्रति 1,000 वर्ग किमी. क्षेत्र था जो कई विकसित देशों की तुलना में अधिक था, हालाँकि सड़क की कुल लंबाई का 64.7% हिस्सा सतही/पक्की सड़क है, जो विकसित देशों की तुलना में तुलनात्मक रूप से कम है।
- वर्ष 2019 में देश की कुल सड़क लंबाई का 2.09% हिस्सा राष्ट्रीय राजमार्गों का था।
- शेष सड़क नेटवर्क में राज्य राजमार्ग (2.9%), ज़िला सड़कें (9.6%), ग्रामीण सड़कें (7.1%), शहरी सड़कें (8.5%) और परियोजना सड़कें (5.4%) शामिल हैं।
भारत में भूमि अधिग्रहण से संबंधित चुनौतियाँ क्या हैं?
- उच्च वित्तीय लागत: भारत में भूमि अधिग्रहण की वित्तीय लागत वर्ष 2013 के संशोधित भूमि अधिग्रहण अधिनियम के कारण काफी बढ़ गई है, जो भूमि मालिकों के लिये उच्च मुआवज़ा और सहमति आवश्यकताओं का प्रावधान करता है।
- पर्यावरण मंज़ूरी: पर्यावरण मंज़ूरी और भूमि अधिग्रहण अधिसूचना प्राप्त करने में विलंब तथा अनिश्चितताएँ, जो परियोजना की समय-सीमा एवं लागत को प्रभावित करती हैं।
- संघर्ष और विरोध: प्रभावित समुदाय पर्यावरणीय, सामाजिक या सांस्कृतिक प्रभावों के आधार पर परियोजनाओं का विरोध करते हैं।
- भूमि अधिग्रहण प्रक्रिया में पारदर्शिता और दायित्व का अभाव: चूँकि कई भूमि मालिक अपने अधिकारों और स्वामित्व के बारे में नहीं जानते हैं तथा कम कीमतों पर अपनी ज़मीन बेचने के लिये मजबूर हैं।
- भूमि अधिग्रहण में लगी सरकारी एजेंसियों को ऐसे कार्यों का प्रदर्शन करते देखा गया है जो कभी-कभी प्राकृतिक न्याय और उचित मुआवज़े के सिद्धांतों से विचलित हो जाते हैं।
- भूमि अधिग्रहण के लिये अपर्याप्त कानूनी ढाँचा और प्रवर्तन तंत्र: भूमि अधिग्रहण को नियंत्रित करने वाले मौजूदा कानून पुराने और जटिल हैं, जो सरकार तथा भूमि मालिकों दोनों के लिये भ्रम व अनिश्चितता उत्पन्न करते हैं। कानूनों में भूमि अधिग्रहण के विभिन्न पहलुओं, जैसे– वित्तीय लागत, पर्यावरणीय मंज़ूरी, विवाद समाधान तंत्र आदि पर भी स्पष्टता का अभाव है।
भूमि अधिग्रहण प्रक्रिया में सुधार के लिये सरकार ने क्या पहल की है?
- भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनर्स्थापन में उचित मुआवज़ा तथा पारदर्शिता का अधिकार अधिनियम, 2013 (Right to Fair Compensation and Transparency in Land Acquisition, Rehabilitation and Resettlement Act, 2013 (LARR Act of 2013)) ने वर्ष 1894 के भूमि अधिग्रहण अधिनियम को प्रतिस्थापित कर दिया और मुआवज़े, सहमति सामाजिक प्रभाव मूल्यांकन तथा प्रभावित व्यक्तियों के पुनर्वास एवं पुनर्वास के लिये नए प्रावधान पेश किये।
- ग्रामीण भूस्वामियों को संपत्ति कार्ड प्रदान करने और उन्हें अपनी भूमि को वित्तीय संपत्ति के रूप में उपयोग करने में सक्षम बनाने के लिये वर्ष 2020 में स्वामित्व (SVAMITVA) योजना शुरू की गई थी।
- विशेष आर्थिक क्षेत्र (SEZ) अधिनियम, 2005 भारत में SEZ की स्थापना को सुविधाजनक बनाने और निर्यात-उन्मुख उद्योगों के विकास के लिये प्रोत्साहन तथा छूट प्रदान करने के लिये अधिनियमित किया गया था।
- भूमि राशि पोर्टल सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय की एक ई-गवर्नेंस पहल है। पोर्टल का इरादा राष्ट्रीय राजमार्गों के लिये भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया में तेज़ी लाना है। इसने भूमि अधिग्रहण की पूरी प्रक्रिया को पूरी तरह से डिजिटल और स्वचालित कर दिया है।
- पीएम गति शक्ति योजना
- भारतमाला योजना
आगे की राह
- ऑनलाइन मैपिंग सिस्टम, सार्वजनिक सुनवाई, सामाजिक प्रभाव आकलन, शिकायत निवारण तंत्र आदि जैसी सर्वोत्तम प्रथाओं को अपनाकर भूमि अधिग्रहण प्रक्रिया में पारदर्शिता और जवाबदेही में सुधार करना।
- बाज़ार मूल्य, वैकल्पिक स्थल, आजीविका सहायता, सामाजिक सुरक्षा आदि जैसे मानदंडों को अपनाकर प्रभावित लोगों के लिये उचित मुआवज़ा और पुनर्वास सुनिश्चित करना।
- पर्यावरणीय मंज़ूरी, पर्यावरणीय प्रभाव मूल्यांकन, शमन उपाय, निगरानी तंत्र आदि जैसे उपायों को अपनाकर भूमि अधिग्रहण के पर्यावरणीय प्रभावों को कम करना।
- कानूनों को सरल बनाना, कानूनों को अद्यतन करना, कानूनों में सामंजस्य बनाना, प्रवर्तन तंत्र को मज़बूत करना आदि जैसे उपायों को अपनाकर भूमि अधिग्रहण के लिये कानूनी ढाँचे में सुधार करना।
यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न1: ‘राष्ट्रीय निवेश और बुनियादी ढाँचा कोष’ के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (2017)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (A) केवल 1 उत्तर: D
मेन्स:प्रश्न1. “अधिक तीव्र और समावेशी आर्थिक विकास के लिये बुनियादी ढाँचे में निवेश आवश्यक है।” भारत के अनुभव के आलोक में चर्चा कीजिये।(2021) |