भूमि अधिग्रहण बिल पर संसदीय समिति
चर्चा में क्यों?
- भूमि अधिग्रहण विधेयक, 2015 के अवलोकन हेतु गठित संयुक्त संसदीय समिति ने आगामी संसदीय सत्र में आठवीं बार इस चर्चा को विस्तार देने का अनुरोध किया है।
- यह विधेयक वर्ष 2013 के भूमि अधिग्रहण अधिनियम में बदलाव के उद्देश्य से लाया गया था, लेकिन कई दलों द्वारा इसके विरोध को देखते हुए मई 2015 में इस पर विचार-विमर्श के लिये एक संयुक्त संसदीय समिति गठित कर दी गई।
क्या है भूमि अधिग्रहण विधेयक, 2015?
- भूमि अधिग्रहण में उचित मुआवज़ा और पारदर्शिता का अधिकार, पुनर्वास और पुनर्स्थापन (संशोधन) विधेयक 2015, भूमि अधिग्रहण अधिनियम 2013 में संशोधन की मंज़ूरी देता है।
- संभावना व्यक्त की जा रही है कि अधिनियम के प्रावधानों में बदलाव से किसानों को सरकार की ओर से अनिवार्य रूप से अधिग्रहीत भूमि के बदले में बेहतर मुआवज़ा, पुनर्वास और पुनर्स्थापन लाभ मिलेंगे।
भूमि अधिग्रहण अधिनियम 2013 में संशोधन क्यों?
- भूमि अधिग्रहण में उचित मुआवज़ा और पारदर्शिता का अधिकार, पुनर्वास और पुनर्स्थापन अधिनियम, 2013 पहली जनवरी, 2014 से लागू हुआ था।
- हालाँकि अधिनियम को लागू करने में कई मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा था।
- इसके अलावा, राष्ट्रीय परियोजनाओं के लिये अपेक्षित ज़मीन के अधिग्रहण में प्रक्रियागत मुश्किलें भी कम करने की ज़रूरत थी। उन मुश्किलों को दूर करने के लिये अधिनियम में कुछ संशोधन किये गए।
विधेयक में क्या?
- वह विधेयक भूमि उपयोग की पाँच विशेष श्रेणियाँ निर्धारित करता है, वे श्रेणियाँ हैं:
1. रक्षा
2. ग्रामीण बुनियादी ढाँचा
3. किफायती आवास
4. औद्योगिक गलियारे
5. सार्वजनिक-निजी भागीदारी सहित बुनियादी ढाँचा परियोजनाएँ जहाँ केंद्र सरकार ज़मीन की मालिक है।
- 2013 के कानून में प्रावधान था कि कोई भी ज़मीन सिर्फ तभी अधिग्रहीत की जा सकती है जब कम-से-कम 70 प्रतिशत ज़मीन मालिक इसके लिये अनुमति दें, लेकिन इस संशोधन विधेयक में इस प्रावधान को समाप्त कर दिया गया था।
- यह विधेयक उपरोक्त पाँच श्रेणियों से संबंधित परियोजनाओं के लिये सामाजिक प्रभाव आकलन (Social Impact Assessment) से छूट प्रदान करता है, जिसे लेकर काफी विवाद हुआ था।
- यह विधेयक अन्य अधिनियमों जैसे राष्ट्रीय राजमार्ग अधिनियम और रेलवे अधिनियम के तहत पुनर्वास और मुआवजे के प्रावधानों को भूमि अधिग्रहण अधिनियम के तहत लाने की व्यवस्था करता है।
क्यों गठित की जाती है संयुक्त संसदीय समिति?
- संयुक्त संसदीय समिति, संसद द्वारा गठित की जाने वाली एक तदर्थ समिति है। इसका गठन संसद द्वारा किसी विशेष मुद्दे या रिपोर्ट की जाँच के लिये किया जाता है।
- दरअसल, संसद के पास काम की अधिकता होती है तथा समय सीमित होता है, ऐसे में यह सभी विधेयकों एवं रिपोटों की जाँच करने में कठिनाई को देखते हुए विभिन्न विधेयकों, मुद्दों एवं संसद में पेश की गई रिपोर्टों की जाँच तथा परीक्षण के लिये संयुक्त संसदीय समितियाँ गठित की जाती हैं।
- संयुक्त समितियाँ संसद के किसी भी एक सदन द्वारा पारित एवं दूसरे सदन द्वारा सहमति व्यक्त किये जाने पर ही गठित की जाती हैं तथा सदस्यता आदि का निर्णय भी संसद द्वारा ही किया जाता है।