महिलाओं के लिये मासिक धर्म अवकाश का मुद्दा | 11 Jul 2024

प्रिलिम्स के लिये:

मासिक धर्म स्वास्थ्य, महिलाओं को मासिक धर्म अवकाश और मासिक धर्म स्वास्थ्य उत्पादों तक मुफ्त पहुँच का अधिकार विधेयक, 2022, बच्चों को नि:शुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा का अधिकार अधिनियम (आरटीई), 2009, मासिक धर्म स्वच्छता प्रबंधन पर राष्ट्रीय दिशा-निर्देश।

मेन्स के लिये:

मासिक धर्म स्वास्थ्य- चुनौतियाँ, परिणाम और आगे की राह

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार से महिला कर्मचारियों के लिये मासिक धर्म अवकाश पर एक आदर्श नीति तैयार करने को कहा है।

  • न्यायालय ने इस बात पर बल दिया कि यह मामला नीति-निर्माण के क्षेत्र में आता है, न कि न्यायालय के अधिकार क्षेत्र में।

भारत में मासिक धर्म के अवकाश की स्थिति क्या है?

  • मासिक धर्म (पीरियड) अवकाश: यह एक प्रकार का अवकाश है, जिसमें कामकाजी महिलाओं को मासिक धर्म के दौरान अपने रोज़गार संस्थान से सवेतन या अवैतनिक अवकाश लेने का विकल्प होता है, क्योंकि ऐसी स्थिति में उनकी कार्य करने की क्षमता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
  • नीति का कार्यान्वयन: बिहार और केरल ही ऐसे भारतीय राज्य हैं, जिन्होंने महिलाओं के लिये मासिक धर्म अवकाश नीतियाँ लागू की हैं।
    • बिहार की नीति, वर्ष 1992 में शुरू की गई थी, जिसके तहत महिला कर्मचारियों को हर महीने दो दिन का सवेतन मासिक धर्म अवकाश दिया जाता है।
    • केरल ने वर्ष 2023 में सभी विश्वविद्यालयों और संस्थानों की महिला छात्राओं को मासिक धर्म अवकाश तथा 18 वर्ष से अधिक आयु की महिला छात्राओं को 60 दिनों तक मातृत्व अवकाश की अनुमति दी है।
  • भारत में कुछ कंपनियों ने मासिक धर्म अवकाश नीतियाँ शुरू की हैं, जिनमें ज़ोमैटो भी शामिल है जिसने वर्ष 2020 में प्रतिवर्ष 10-दिवसीय भुगतान वाली मासिक छुट्टी की घोषणा की है
    • स्विगी और बायजूस जैसी अन्य कंपनियों ने भी इसका अनुसरण किया है।
  • किये गये वैधानिक उपाय:
    • भारत में मासिक धर्म अवकाश को नियंत्रित करने वाला कोई कानून नहीं है और साथ ही भारत में ‘भुगतानयुक्त मासिक धर्म अवकाश’ के लिये कोई केंद्रीकृत दिशा-निर्देश भी नहीं है।
    • किये गए प्रयास: संसद में मासिक धर्म अवकाश और मासिक धर्म स्वास्थ्य उत्पादों से संबंधित विधेयक पेश करने के प्रयास किये गए, लेकिन वे अभी तक सफल नहीं हुए हैं।
      • उदाहरण: मासिक धर्म लाभ विधेयक, 2017, महिला यौन, प्रजनन और मासिक धर्म अधिकार विधेयक, 2018।
    • महिलाओं को मासिक धर्म अवकाश का अधिकार और मासिक धर्म स्वास्थ्य उत्पादों तक निशुल्क पहुँच विधेयक, 2022:
      • प्रस्तावित विधेयक मासिक धर्म की अवधि के दौरान महिलाओं और ट्रांस महिलाओं के लिये तीन दिनों के सवैतनिक अवकाश का प्रावधान करता है। 
      • विधेयक में एक शोध का हवाला देते हुए इंगित किया गया कि लगभग 40% लड़कियाँ पीरियड्स के दौरान स्कूल नहीं जाती हैं तथा लगभग 65% ने कहा कि इसका स्कूल में उनकी दैनिक गतिविधियों पर प्रभाव पड़ता है। 

मासिक धर्म अवकाश प्रदान करने वाले देश:

  • स्पेन, जापान, इंडोनेशिया, फिलीपींस, ताइवान, दक्षिण कोरिया, ज़ाम्बिया, दक्षिण कोरिया और वियतनाम।
  • स्पेन पहला यूरोपीय देश है जो महिला कर्मचारियों को मासिक धर्म में सवेतन अवकाश प्रदान करता है, जिसमें प्रतिमाह तीन दिन का अवकाश अधिकार शामिल है, जिसे बढ़ाकर पाँच दिन किया जा सकता है।

महिलाओं के लिये सवेतन मासिक धर्म अवकाश की आवश्यकता क्यों है?

  • स्वास्थ्य और कल्याण: मासिक धर्म के कारण शारीरिक असुविधा (ऐंठन, ब्लोटिंग) और भावनात्मक कष्ट होता है। ऐसे में महिलाओं को सवेतन अवकाश प्रदान करना, उन्हें अपने स्वास्थ्य को प्राथमिकता देने और अवकाश लेने हेतु वेतन में कटौती किये जाने से चिंतामुक्त होकर उक्त लक्षणों का प्रबंधन करने में सहायक सिद्ध हो सकता है। 
  • कार्यस्थल पर समावेशिता और लैंगिक अंतराल: यह अवकाश मासिक धर्म से संबंधित लोगों की रूढ़धारणा में सुधार करते हुए और मासिक धर्म स्वास्थ्य के संबंध में अधिक सहज होकर वार्ता करने में प्रोत्साहन प्रदान के साथ मासिक धर्म के मुद्दे को सामान्य बनाएगा। कार्य प्रदर्शन पर इसका प्रभाव महिला कर्मचारियों को सवेतन अवकाश के साथ कार्यबल में पूर्ण योगदान देने में सक्षम बनाकर लैंगिक वेतन अंतराल को कम करने में मदद करता है।
  • कार्य उत्पादकता और कार्यस्थल पर महिला कर्मचारी: किये गए अध्ययनों के अनुसार मासिक धर्म अवकाश महिलाओं को उनके मासिक धर्म को प्रभावी ढंग से प्रबंधित करने और असुविधा का अनुभव करने की दशा में कार्य न करने की सुविधा प्रदान कर उनके कार्य की उत्पादकता में सुधार कर सकता है। यह कार्यालय में अधिक संख्या में महिला कर्मचारियों का नियोजन बनाए रखने में भी मदद कर सकता है। 
    • IMF के अनुसार, कार्यबल में महिलाओं की समान भागीदारी से भारत के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में 27% की वृद्धि होगी और वर्ष 2025 तक इसकी GDP में 700 बिलियन अमेरीकी डालर की वृद्धि होगी। इस प्रकार आर्थिक विकास और लैंगिक समता में अंतर्संबंध होता है।
  • विधिक परिप्रेक्ष्य:
    • अनुच्छेद 15(3): यह महिलाओं के लिये विशेष प्रावधान करता है तथा महिलाओं को यह अवकाश प्रदान किये जाने को लैंगिक भेदभाव की संज्ञा देने वाले मतों का खंडन करता है।
    • अनुच्छेद 42: इसके अनुसार राज्य काम की न्यायसंगत और मानवोचित दशाओं का तथा मातृत्व सहायता के लिये उपबंध करेगा। मासिक धर्म अवकाश को इस ज़िम्मेदारी के विस्तार के रूप में देखा जाता है जो मासिक धर्म के दौरान महिलाओं के लिये एक मानवोचित कार्य वातावरण को बढ़ावा देता है।

गुजरात में जनजातीय जनसंख्या के लिये मातृ स्वास्थ्य देखभाल पहुँच पर केस स्टडी

  • अध्ययन के बारे में:
    • यह अध्ययन गुजरात में आदिवासी जनसंख्या पर केंद्रित है, जो राज्य की कुल जनसंख्या का 14.8% है। यह 14 जनजातीय-केंद्रित ज़िलों में मातृ देखभाल के लिये स्वास्थ्य देखभाल सुविधाओं की पहुँच की जाँच करता है।
  • देखभाल पहुँच असमानताओं का मानचित्रण: 
    • गुजरात के आदिवासी ज़िलों में गर्भावस्था देखभाल का औसत कवरेज 88% है, जिसमें से 80% को प्रसवपूर्व देखभाल (ANC) प्राप्त होती है, 90% स्वास्थ्य देखभाल सुविधाओं में जन्म देती हैं और 92% को प्रसवोत्तर देखभाल (PNC) प्राप्त होती है। 
    • हालाँकि बनासकांठा, महिसागर, साबरकांठा, दाहोद एवं भरूच जैसे ज़िलों में ANC कवरेज उल्लेखनीय रूप से कम है, जो विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा निर्धारित सीमा से नीचे है।
  • परिवहन संबंधी बाधाएँ: 
    • 50% से अधिक परिवार तृतीयक देखभाल सुविधाओं से 25 किलोमीटर से अधिक दूर निवास करते हैं और लगभग 30% सामुदायिक स्वास्थ्य सेवा केंद्रों तथा प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा केंद्रों से दूर रहते हैं। इसके अतिरिक्त, सीमित संसाधन एवं सामाजिक कलंक प्राय: महिलाओं को, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में उपलब्ध सार्वजनिक परिवहन का उपयोग करने से प्रतिबंधित करते हैं।

मातृ मृत्यु पर संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट

  • संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2020 में वैश्विक मातृ मृत्यु में भारत की हिस्सेदारी 17% से अधिक थी, जो मातृ, मृत जन्म (स्टिलबर्थ) और नवजात मृत्यु के लिये ज़िम्मेदार 10 देशों में सबसे अधिक हिस्सेदारी है।
  • इसमें बेहतर मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य परिणामों के साथ ही स्वास्थ्य देखभाल तक पहुँच के लिये सतत् विकास लक्ष्यों (SDG) को प्राप्त करने के लिये मातृ स्वास्थ्य देखभाल पर ध्यान केंद्रित करने के महत्त्व पर बल दिया गया।

मासिक धर्म की अवकाश के विरुद्ध तर्क क्या हैं?

  • महिला कर्मचारियों को नियुक्त करने में हतोत्साहन: मासिक धर्म अवकाश के लिये भुगतान किये जाने से कंपनियाँ महिलाओं की अनुपस्थिति के कारण उन्हें नियुक्त करने से हतोत्साहित हो सकती हैं।
    • प्रत्येक महीने सवैतनिक अवकाश के अतिरिक्त बोझ के कारण नियोक्ता महिला कर्मचारियों को एक दायित्व के रूप में समझ सकते हैं।
  • कार्यस्थल पर भेदभाव: मासिक धर्म अवकाश की सुविधा देने से कार्यप्रवाह बाधित हो सकता है, अन्य टीम सदस्यों पर कार्यभार बढ़ सकता है, अथवा उन कर्मचारियों में असंतोष उत्पन्न हो सकता है जिन्हें समान लाभ प्राप्त नहीं होता है।
  • प्रवर्तन संबंधी मुद्दे: मासिक धर्म के लिये सवैतनिक अवकाश लागू करने से वैध उपयोग का निर्धारण, दुरुपयोग को रोकना तथा नियोक्ताओं के लिये स्वीकार्य प्रवर्तन विधियों को परिभाषित करने जैसी चुनौतियाँ उत्पन्न होती हैं।
    • यह बात भुज वर्ष 2020 में हुई घटनाओं से उजागर हुई है, जहाँ 66 लड़कियों के मासिक धर्म की स्थिति की जाँच करने के लिये कपड़े उतारने पर विवश किया गया था और मुज़फ्फरनगर में भी ऐसी ही घटनाएँ हुई थीं।
    • मासिक धर्म से संबंधित नीतियाँ विकसित करने में संवेदनशीलता एवं सम्मान अत्यंत महत्त्वपूर्ण हैं।
  • कलंक/लाँछन (Stigma) को बढ़ावा देना: विशेष अवकाश नीतियाँ मासिक धर्म को एक नकारात्मक पहलू के रूप में उजागर कर सकती हैं, जिससे मासिक धर्म के प्रति शर्मिंदगी और भेदभाव की संभावना बढ़ सकती है।

आगे की राह

  • मासिक धर्म स्वास्थ्य साक्षरता को बढ़ावा देना: सुनिश्चित कीजिये कि नियोक्ताओं, कर्मचारियों और चिकित्सा पेशेवरों को मासिक धर्म स्वास्थ्य तथा प्रभावी उपचार विकल्पों के संबंध में उच्च गुणवत्ता वाली जानकारी तक पहुँच हो।
  • पर्याप्त विश्राम अवकाश शामिल करना: श्रमिकों, विशेष रूप से मासिक धर्म वाले श्रमिकों को विश्राम लेने और स्वच्छ शौचालय की सुविधा उपलब्ध कराना। इससे सभी श्रमिकों को लाभ होता है और कार्यस्थल पर चोट लगने तथा बीमार होने का जोखिम कम होता है।
  • मासिक धर्म अवकाश नीतियों को प्रोत्साहित करना: सरकार मासिक धर्म अवकाश देने वाली कंपनियों को कर छूट प्रदान करके और सभी कर्मचारियों के लिये लिंग-तटस्थ अवकाश नीतियाँ शुरू करके इसे प्रोत्साहित कर सकती है।
    • प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (Direct Benefit Transfer- DBT) के माध्यम से छुट्टी की लागत को कवर करने के लिये सरकारी सहायता पर भी विचार किया जा सकता है।
  • प्रभावी उपचार तक पहुँच: कार्यस्थलों पर कर्मचारियों को निशुल्क आपातकालीन मासिक धर्म उत्पाद, दर्द निवारक दवाएँ तथा गंभीर मासिक धर्म संबंधी लक्षणों के लिये गुणवत्तापूर्ण चिकित्सा सलाह और उपचार तक पहुँच हेतु सहायता उपलब्ध कराई जानी चाहिये।
  • अनुकूल कार्य स्थितियाँ: अनुकूल कार्य व्यवस्था की अनुमति दें, जैसे कि पूरे दिन की छुट्टी की अपेक्षा घर से काम करने या कम समय के अवकाश लेने की क्षमता।
  • कार्य स्थितियों और श्रम अधिकारों के लिये पर्याप्त मानक: कार्य के घंटे, मज़दूरी, स्वास्थ्य और सुरक्षा तथा समान अवसरों के संबंध में वैश्विक न्यूनतम श्रम मानकों में सुधार करना, जिससे अलग मासिक धर्म अवकाश नीतियों की आवश्यकता समाप्त हो जाएगी।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न: महिलाओं के लिये मासिक धर्म अवकाश पर नीतिगत उपाय की आवश्यकता पर चर्चा कीजिये। लैंगिक समानता और कार्यबल गतिशीलता पर इसके क्या निहितार्थ हैं? कौन-से उपाय इसके प्रभावी कार्यान्वयन को सुनिश्चित कर सकते हैं?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

मेन्स:

प्रश्न. भारत में महिलाओं के समक्ष समय और स्थान संबंधित निरंतर चुनौतियाँ क्या-क्या हैं? (2019)

प्रश्न. महिला संगठनों को लिंग-भेद से मुक्त करने के लिये पुरुषों की सदस्यता को बढ़ावा मिलना चाहिये। टिप्पणी कीजिये। (2013)