अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस | 22 Feb 2022

प्रिलिम्स के लिये:

अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस, भारतीय भाषाओं की रक्षा हेतु पहलें, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग, आठवीं अनुसूची।

मेन्स के लिये:

शिक्षा, सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप, अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस का महत्त्व।

चर्चा में क्यों?

संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) प्रतिवर्ष 21 फरवरी को मातृभाषा आधारित बहुभाषी शिक्षा को बढ़ावा देने के लिये ‘अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस’ का आयोजन करता है।

  • वर्ष 2022 के लिये इसकी थीम है: "बहुभाषी शिक्षा हेतु प्रौद्योगिकी का उपयोग: चुनौतियाँ और अवसर।" यह थीम बहुभाषी शिक्षा को आगे बढ़ाने और सभी के लिये गुणवत्तापूर्ण शिक्षण एवं सीखने की क्षमताओं के विकास का समर्थन करने हेतु प्रौद्योगिकी की संभावित भूमिका पर केंद्रित है।
  • दुनिया में 7,000 से अधिक भाषाएँ हैं, जबकि अकेले भारत में लगभग 22 आधिकारिक रूप से मान्यता प्राप्त भाषाएँ, 1635 मातृभाषाएँ और 234 पहचान योग्य मातृभाषाएँ हैं।

अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस’

  • यूनेस्को द्वारा इसकी घोषणा 17 नवंबर, 1999 को की गई थी और वर्ष 2000 से संपूर्ण विश्व में इस दिवस का आयोजन किया जा रहा है।
  • यह दिन बांग्लादेश द्वारा अपनी मातृभाषा बांग्ला की रक्षा के लिये किये गए लंबे संघर्ष को भी रेखांकित करता है।
  • 21 फरवरी को अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के रूप में मनाने का विचार कनाडा में रहने वाले बांग्लादेशी रफीकुल इस्लाम द्वारा सुझाया गया था।
    • उन्होंने बांग्ला भाषा आंदोलन के दौरान ढाका में वर्ष 1952 में हुई हत्याओं को याद करने के लिये उक्त तिथि प्रस्तावित की थी।
  • इस पहल का उद्देश्य विश्व के विभिन्न क्षेत्रों की विविध संस्कृति और बौद्धिक विरासत की रक्षा करना तथा मातृभाषाओं का संरक्षण करना एवं उन्हें बढ़ावा देना है।
    • संयुक्त राष्ट्र (UN) के अनुसार, प्रत्येक दो हफ्ते में एक भाषा लुप्त हो जाती है और मानव सभ्यता अपनी संपूर्ण सांस्कृतिक एवं बौद्धिक विरासत खो रही है।
    • वैश्वीकरण के कारण बेहतर रोज़गार के अवसरों के लिये विदेशी भाषा सीखने की होड़ मातृभाषाओं के लुप्त होने का एक प्रमुख कारण है।

भाषाओं के संरक्षण के लिये वैश्विक प्रयास:

  • संयुक्त राष्ट्र द्वारा वर्ष 2022 से वर्ष 2032 के बीच की अवधि को स्वदेशी भाषाओं के अंतर्राष्ट्रीय दशक के रूप में नामित किया गया है।
    • इससे पहले संयुक्त राष्ट्र महासभा ने वर्ष 2019 को स्वदेशी भाषाओं के अंतर्राष्ट्रीय वर्ष (IYIL) के रूप में घोषित किया था।
  • वर्ष 2018 में चांग्शा (चीन) में यूनेस्को द्वारा की गई येलु उद्घोषणा (Yuelu Proclamation) भाषायी संसाधनों और विविधता की रक्षा के संदर्भ में दुनिया भर के देशों व क्षेत्रों के प्रयासों का मार्गदर्शन करने में एक केंद्रीय भूमिका निभाती है।

मातृभाषाओं की रक्षा के लिये भारत की पहल:

  • हाल ही में घोषित राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2020 क्षेत्रीय भाषाओं में शिक्षा को बढ़ावा देने हेतु एक मुख्य पहल  है।
  • वैज्ञानिक और तकनीकी शब्दावली आयोग (Commission for Scientific and Technical Terminology-CSTT) क्षेत्रीय भाषाओं में विश्वविद्यालय स्तरीय पुस्तकों के प्रकाशन को बढ़ावा देने हेतु प्रकाशन अनुदान प्रदान कर रहा है।
    • इसकी स्थापना वर्ष 1961 में सभी भारतीय भाषाओं में तकनीकी शब्दावली विकसित करने के लिये की गई थी।
  • केंद्रीय भारतीय भाषा संस्थान (Central Institute of Indian Languages- CIIL), मैसूर के माध्यम से राष्ट्रीय अनुवाद मिशन (National Translation Mission- NTM) का क्रियान्वयन किया जा रहा है, जिसके तहत विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में निर्धारित विभिन्न विषयों की पाठ्य पुस्तकों का आठवीं अनुसूची में शामिल सभी भाषाओं में अनुवाद किया जा रहा है।
  • संकटग्रस्त भाषाओं के संरक्षण हेतुलुप्तप्राय भाषाओं की सुरक्षा और संरक्षण के लिये योजना’
  • विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) देश में उच्च शिक्षा पाठ्यक्रमों में क्षेत्रीय भाषाओं को बढ़ावा देने का प्रयास करता है और केंद्रीय विश्वविद्यालयों में लुप्तप्राय भाषाओं हेतु केंद्र की स्थापना से संबंधित योजना के तहत कुल नौ केंद्रीय विश्वविद्यालयों को वित्तीय सहायता प्रदान करता है।
  • भारत सरकार की अन्य पहलों में भारतवाणी परियोजना और भारतीय भाषा विश्वविद्यालय (BBV) की स्थापना का प्रस्ताव शामिल है।
  • हाल ही में केरल राज्य सरकार की एक पहल नमथ बसई कार्यक्रम (Namath Basai Programme) आदिवासी क्षेत्रों के बच्चों को स्थानीय भाषाओं में शिक्षित करना बहुत फायदेमंद साबित हुई है।
  • मातृभाषा की सुरक्षा के लिये गूगल की परियोजना नवलेखा (Navlekha) प्रौद्योगिकी का उपयोग करती है। इस परियोजना का उद्देश्य भारतीय स्थानीय भाषाओं में ऑनलाइन सामग्री की उपलब्धता को बढ़ाना है।

संबंधित संवैधानिक और कानूनी प्रावधान:

  • संविधान का अनुच्छेद 29 (Article 29- अल्पसंख्यकों के हितों का संरक्षण) सभी नागरिकों को अपनी भाषा के संरक्षण का अधिकार देता है और भाषा के आधार पर भेदभाव को रोकता है।
  • अनुच्छेद 120 (Article 120- संसद में प्रयोग की जाने वाली भाषा) के अनुसार, संसद की कार्यवाहियों के लिये हिंदी या अंग्रेज़ी का उपयोग किया जा सकता है, लेकिन संसद सदस्यों को अपनी मातृभाषा में स्वयं के विचार व्यक्त करने का अधिकार है।
  • भारतीय संविधान का भाग XVII (अनुच्छेद 343 से 351) आधिकारिक भाषाओं से संबंधित है।
    • अनुच्छेद 350A (Article 350A- प्राथमिक स्तर पर मातृभाषा में शिक्षा की सुविधा) के अनुसार, देश के प्रत्येक राज्य और प्रत्येक स्थानीय प्राधिकारी का प्रयास होगा कि वह भाषायी अल्पसंख्यक समूहों के बच्चों को शिक्षा के प्राथमिक चरण में मातृभाषा में शिक्षा प्राप्त करने के लिये पर्याप्त सुविधाएँ प्रदान करें।
    • अनुच्छेद 350B (भाषायी अल्पसंख्यकों के लिये विशेष अधिकारी): राष्ट्रपति को भाषायी अल्पसंख्यकों के लिये संवैधानिक सुरक्षा उपायों से संबंधित सभी मामलों की जाँच और रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिये भाषायी अल्पसंख्यकों हेतु एक विशेष अधिकारी नियुक्त करने का प्रावधान है।
      • राष्ट्रपति को ऐसी सभी रिपोर्ट संसद के सामने रखने तथा संबंधित राज्य सरकार को भेजने का प्रावधान।
  • आठवीं अनुसूची में 22 भाषाएँ यथा- असमिया, बांग्ला, गुजराती, हिंदी, कन्नड़, कश्मीरी, कोंकणी, मलयालम, मणिपुरी, मराठी, नेपाली, उड़िया, पंजाबी, संस्कृत, सिंधी, तमिल, तेलुगू, उर्दू, बोडो, संथाली, मैथिली और डोगरी शामिल हैं।
  • शिक्षा का अधिकार अधिनियम (Right to Education Act), 2009 के अनुसार शिक्षा का माध्यम, जहाँ तक व्यावहारिक हो बच्चे की मातृभाषा ही होनी चाहिये।

स्रोत: पी.आई.बी.