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भारतीय अर्थव्यवस्था

LRS के तहत भारत के बाहर अंतर्राष्ट्रीय क्रेडिट कार्ड व्यय

  • 20 May 2023
  • 10 min read

प्रिलिम्स के लिये:

विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम, स्रोत पर कर वसूली, भारतीय रिज़र्व बैंक, उदारीकृत प्रेषण योजना (LRS)

मेन्स के लिये:

उदारीकृत प्रेषण योजना,  विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम (FEMA) का महत्त्व

चर्चा में क्यों?  

हाल ही में वित्त मंत्रालय, भारत सरकार ने भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) के परामर्श से उदारीकृत प्रेषण योजना (LRS) के तहत भारत के बहिर्वाह अंतर्राष्ट्रीय क्रेडिट कार्ड खर्च को शामिल करते हुए विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम (FEMA) में महत्त्वपूर्ण संशोधन किये हैं।

  • यह विदेशी यात्रा में खर्च में वृद्धि की पृष्ठभूमि के अंतर्गत आता है। भारतीयों ने वित्त वर्ष 2022-23 के अप्रैल-फरवरी के दौरान विदेशी यात्रा पर 12.51 बिलियन अमेरिकी डाॅलर खर्च किये, जो पिछले वर्ष की इसी अवधि की तुलना में 104% अधिक है।
  • यह समावेशन 1 जुलाई, 2023 से प्रभावी वित्त वर्ष 2022-23 के बजट में घोषित स्रोत पर एकत्रित कर (TCS) की उच्च दर की वसूली को सक्षम बनाता है। 

मुख्य विवरण और निहितार्थ: 

  • LRS में अंतर्राष्ट्रीय क्रेडिट कार्ड व्यय को शामिल करना: 
    • संशोधन से उच्च मूल्य के विदेशी लेन-देन की निगरानी की सुविधा की उम्मीद है, लेकिन यह भारत से विदेशी वस्तुओं/सेवाओं की खरीद के लिये भुगतान पर लागू नहीं होता है।
  • नियम 7 का लोप और LRS का विस्तार: 
    • पहले विदेश यात्रा के दौरान खर्च के लिये अंतर्राष्ट्रीय क्रेडिट कार्ड का उपयोग LRS के अंतर्गत नहीं आता था।
    • विदेशी मुद्रा प्रबंधन (चालू खाता लेन-देन) नियमावली, 2000 के नियम 7, जिसमें LRS से इस तरह के खर्च को बाहर रखा गया है, को हटा दिया गया है।
      • यह संशोधन अंतर्राष्ट्रीय क्रेडिट कार्ड लेन-देन को प्रति वित्तीय वर्ष प्रति व्यक्ति 250,000 अमेरिका डॉलर की समग्र LRS सीमा निर्धारित करने में शामिल करने की अनुमति देता है।
  • कर निहितार्थ:
    • 1 जुलाई, 2023 तक (चिकित्सा और शिक्षा से जुड़े क्षेत्रों को छोड़कर) ऐसे लेन-देन पर 5% की TCS लेवी लागू होगी।
    • 1 जुलाई, 2023 के बाद भारत के बाहर क्रेडिट कार्ड खर्च के लिये TCS की दर बढ़कर 20% हो जाएगी।
      • नए प्रावधान 'शिक्षा' और 'चिकित्सा' उद्देश्यों के लिये भुगतान पर लागू नहीं होंगे और भारत में रहते हुए निवासियों द्वारा अंतर्राष्ट्रीय क्रेडिट कार्ड के उपयोग में परिवर्तन को प्रभावित नहीं करेंगे।
    • विदेशी क्रेडिट कार्ड खर्च पर TCS लगाने की प्रणाली को अभी तक क्रियाशील नहीं किया गया है, जो बैंकों और वित्तीय संस्थानों के लिये अनुपालन चुनौतियों का सामना करती है।
  • अनुपालन और रिफंड पर प्रभाव: 
    • इन परिवर्तनों के कारण बैंकों और वित्तीय संस्थानों के अनुपालन बोझ में वृद्धि का अनुमान है। 
    • करदाता टैक्स रिटर्न दाखिल करते समय TCS लेवी पर रिफंड का दावा कर सकते हैं, जिसके परिणामस्वरूप कर विभाग द्वारा रिफंड शुरू होने तक फंड लॉक हो सकता है।

उदारीकृत प्रेषण योजना क्या है?

  • संबंध:
    • यह भारतीय रिज़र्व बैंक की योजना है  जिसको वर्ष 2004 में शुरू किया गया था।
    • योजना के अंतर्गत नाबालिगों के साथ-साथ सभी निवासी व्यक्तियों को किसी भी अनुमत चालू या पूंजी खाता लेन-देन या दोनों के संयोजन के लिये प्रति वित्तीय वर्ष (अप्रैल-मार्च) में 2,50,000 अमेरिकी डॉलर तक मुक्त रूप से विप्रेषित करने की अनुमति है।
  • अयोग्यता:
    • यह योजना निगमों, भागीदारी फर्मों, हिंदू अविभाजित परिवार (HUF), ट्रस्टों आदि के लिये उपलब्ध नहीं है।
    • हालाँकि LRS केअंतर्गत प्रेषण की आवृत्ति पर कोई प्रतिबंध नहीं है, एक बार वित्तीय वर्ष के दौरान 2,50,000 अमेरिकी  डॉलर तक की राशि के लिये प्रेषण किया जाता है उस स्थिति में एक निवासी व्यक्ति इस योजना के अंतर्गत आगे के किसी प्रेषण को करने के लिये पात्र नहीं होगा।
  • प्रेषित धन का उपयोग यहाँ किया जा सकता है?
    • यात्रा (निजी या व्यवसाय के लिये), चिकित्सा उपचार, अध्ययन, उपहार और दान, निकट संबंधियों की देखभाल आदि से संबंधित व्यय।
    • शेयरों, ऋण उपकरणों में निवेश और विदेशी बाज़ार में अचल संपत्तियों को खरीदना।
    • योजना के अंतर्गत अनुमत लेन-देन करने के लिये व्यक्ति भारत के बाहर बैंकों के साथ विदेशी मुद्रा खाते खोल सकते हैं और उन्हें बनाए रख सकते हैं ।
  • प्रतिबंधित लेन-देन:
    • अनुसूची-I के अंतर्गत विशेष रूप से निषिद्ध कोई भी उद्देश्य (जैसे लॉटरी टिकटों की खरीद, प्रतिबंधित पत्रिकाएँ आदि) या विदेशी मुद्रा प्रबंधन (चालू खाता लेन-देन) नियम, 2000 की अनुसूची II के तहत प्रतिबंधित कोई भी वस्तु शामिल है।
    • विदेश में विदेशी मुद्रा में व्यापार करना। 
    • फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (FATF) द्वारा समय-समय पर "गैर-सहयोगी देशों और क्षेत्रों" के रूप में पहचाने जाने वाले देशों को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से पूंजीगत खाता प्रेषण करना। 
    • प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से उन व्यक्तियों और संस्थाओं को विप्रेषण करना जिन्हें रिज़र्व बैंक द्वारा बैंकों को अलग से दी गई सलाह के अनुसार आतंकवाद के कृत्यों को महत्त्वपूर्ण जोखिम के रूप में पहचानना है।
  • आवश्यकताएँ:  
    • निवासी व्यक्ति के लिये अधिकृत व्यक्तियों के माध्यम से किये गए LRS के तहत सभी लेन-देन को अपना स्थायी खाता संख्या (PAN) प्रदान करना अनिवार्य है।  

टैक्स कलेक्शन एट सोर्स (TCS):

  • TCS एक विक्रेता द्वारा देय कर है, जिसे वह कुछ वस्तुओं या सेवाओं की बिक्री के समय खरीदार से वसूलता है।
  • TCS आयकर अधिनियम की धारा 206C द्वारा शासित है जो उन वस्तुओं या सेवाओं को निर्दिष्ट करती है जिन पर TCS लागू है और TCS की दरें लागू है।
    • शराब, लकड़ी, तेंदू पत्ते, कबाड़, खनिज, मोटर वाहन, पार्किंग स्थल, टोल प्लाज़ा, खनन एवं उत्खनन, LRS के तहत विदेशी प्रेषण आदि कुछ सामान या सेवाएँ हैं जिन पर TCS लागू है।
  • कर अधिकारियों के पास TCS जमा करने और विक्रेता के पास जमा करने के लिये टैक्स कलेक्शन अकाउंट नंबर (TAN) होना चाहिये।
  • विक्रेता को एक निर्दिष्ट समय-सीमा के अंदर खरीदार को एक TCS प्रमाणपत्र जारी करना चाहिये जिसमें एकत्रित और जमा की गई कर की राशि दर्शाई गई हो।
  • खरीदार अपना आयकर रिटर्न दाखिल करते समय अपनी आय से कटौती की गई TCS की राशि हेतु क्रेडिट का दावा कर सकता है।

विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम, 1999:

  • भारत में विदेशी मुद्रा लेन-देन के प्रशासन के लिये कानूनी ढाँचा विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम, 1999 द्वारा प्रदान किया गया है।
  • FEMA जो कि 1 जून, 2000 से प्रभावी हुआ, के तहत विदेशी मुद्रा से जुड़े सभी लेन-देन को पूंजी या चालू खाता लेन-देन के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
  • चालू खाता लेन-देन: 
    • निवासी द्वारा किये गए सभी लेन-देन जिनके कारण उसकी संपत्ति या देनदारियों (भारत के बाहर आकस्मिक देनदारियों सहित) में कोई परिवर्तन न हो, को चालू खाता लेन-देन के अंतर्गत रखा जाता है।
    • उदाहरणार्थ- विदेशी व्यापार के संबंध में भुगतान, विदेश यात्रा, शिक्षा आदि पर व्यय।
  • पूंजी खाता लेन-देन: 
    • इसमें वे लेन-देन शामिल हैं जो भारत के निवासी द्वारा किये जाते हैं जिससे भारत के बाहर उसकी परिसंपत्ति या देनदारियाँ बदल जाती हैं (या तो बढ़ जाती है या घट जाती है)।
    • उदाहरण: विदेशी प्रतिभूतियों में निवेश, भारत के बाहर अचल संपत्ति का अधिग्रहण आदि।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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