मॉरीशस के अगलेगा द्वीप समूह में भारतीय बेस | 12 Aug 2021
प्रिलिम्स के लियेअगलेगा द्वीप, स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स, सागर पहल मेन्स के लियेभारत और मॉरीशस के बीच व्यापक आर्थिक सहयोग तथा साझेदारी समझौता |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में मॉरीशस ने एक रिपोर्ट का खंडन किया है कि उसने भारत को अगलेगा (Agalega) के दूरस्थ द्वीप पर एक सैन्य अड्डा बनाने की अनुमति दी है।
- इससे पूर्व एक समाचार प्रसारक द्वारा यह बताया गया था कि अगलेगा द्वीप पर एक भारतीय सैन्य अड्डे के लिये एक हवाई पट्टी और दो जेटी निर्माणाधीन हैं।
प्रमुख बिंदु
पृष्ठभूमि:
- वर्ष 2015 में भारत ने अगलेगा द्वीप समूह के विकास के लिये मॉरीशस के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किये।
- यह बाहरी द्वीप में अपने हितों की रक्षा करने में मॉरीशस रक्षा बलों की क्षमताओं को बढ़ाने के लिये समुद्री और हवाई संपर्क में सुधार हेतु बुनियादी ढाँचे की स्थापना तथा उन्नयन के लिये प्रदान करता है।
- हालाँकि तब से ट्रांसपोंडर सिस्टम और निगरानी बुनियादी ढाँचे को स्थापित करने में भारतीय नौसेना और तटरक्षकों के हितों के बारे में रिपोर्टें बढ़ रही हैं, जिसके कारण कुछ स्थानीय विरोध हुए हैं।
अगलेगा परियोजना:
- इस परियोजना में एक जेटी का निर्माण, पुनर्निर्माण और रनवे का विस्तार तथा अगलेगा द्वीप पर एक हवाई अड्डे के टर्मिनल का निर्माण शामिल है।
- 87 मिलियन अमेरिकी डाॅलर की इन परियोजनाओं को भारत द्वारा वित्तपोषित किया जाता है।
- परियोजना में एक नया हवाई अड्डा, बंदरगाह, लाॅजिस्टिक और संचार सुविधाएँ तथा संभावित परियोजना से संबंधित कोई अन्य सुविधाएँ शामिल होंगी।
- अगलेगा द्वीप दक्षिण-पश्चिमी हिंद महासागर में मॉरीशस से 1,122 किमी. उत्तर में स्थित है।
- इसका कुल क्षेत्रफल 27 वर्ग मील (70 वर्ग किमी.) है।
महत्त्व:
- भारत की उपस्थिति को मज़बूत करना:
- यह दक्षिण-पश्चिम हिंद महासागर में भारत की उपस्थिति को मज़बूत करेगा तथा इस क्षेत्र में अपनी शक्ति प्रदर्शन की आकांक्षाओं को सुविधाजनक बनाएगा।
- भारत दक्षिण-पश्चिम हिंद महासागर में और एक खुफिया पोस्ट के रूप में हवाई तथा सतही समुद्री गश्त दोनों की सुविधा के लिये नए आधार को आवश्यक मानता है।
- भू-आर्थिक:
- एक "केंद्रीय भौगोलिक बिंदु" के रूप में मॉरीशस हिंद महासागर में वाणिज्य और कनेक्टिविटी के लिये महत्त्व रखता है।
- अफ्रीकी संघ, हिंद महासागर रिम एसोसिएशन और हिंद महासागर आयोग के सदस्य के तौर पर भी मॉरीशस की भौगोलिक अवस्थिति बहुत महत्त्वपूर्ण है।
- 'छोटे विकासशील द्वीपीय देश' (SIDS) के संस्थापक सदस्य के रूप में इसे एक महत्त्वपूर्ण पड़ोसी के रूप में देखा गया है।
- सुरक्षित विदेश व्यापार :
- भारत का 95% व्यापार मात्रात्मक रूप में तथा 68% व्यापार मूल्य के रूप में हिंद महासागर से होता है।
- भारत की कच्चे तेल की आवश्यकता का लगभग 80% हिंद महासागर के माध्यम से समुद्र द्वारा आयात किया जाता है। इसलिये हिंद महासागर में उपस्थिति भारत के लिये महत्त्वपूर्ण है।
- चीन का सामना:
- चीन के 'स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स' का मुकाबला करने, जो कि हमारे रणनीतिक हितों के लिये खतरा साबित हो सकता है, के लिये भारत को हिंद महासागर के बड़े क्षेत्र में उपस्थिति दर्ज करना बेहद ज़रूरी हो गया है।
- क्षेत्र में सभी के लिये सुरक्षा और विकास:
- इस परियोजना को सागर पहल (Security and Growth for All in the Region-SAGAR) के तहत अपने पड़ोसी की विकास यात्रा में योगदान करने के भारत के प्रयासों के एक भाग के रूप में देखा जा सकता है।
- इस परियोजना को भारत और उसके पड़ोसियों के बीच सहयोग बढ़ाने के तरीके के रूप में देखा जा सकता है।
- मॉरीशस के सुरक्षा ढाँचे को बढ़ाना:
- यह परियोजना अपने बुनियादी ढाँचे में उन्नयन के माध्यम से मॉरीशस सुरक्षा बलों की क्षमताओं को बढ़ाएगी।
चुनौतियाँ:
- विपक्ष का विरोध :
- मॉरीशस में विपक्ष परियोजना में पारदर्शिता को लेकर चिंता जताता रहा है।
- मॉरीशस सरकार ने परियोजना को पर्यावरण लाइसेंस प्रक्रिया (EIA clearances) में छूट प्रदान की है।
- स्थानीय लोगों का विरोध :
- वर्ष 1965 में मॉरीशस की स्वतंत्रता से पूर्व ब्रिटेन ने चागोस द्वीपों को मॉरीशस से अलग कर दिया और यहाँ के निवासियों को ज़बरन स्थानांतरित कर दिया। यहाँ के स्थानीय लोग ऐसी घटनाओं को लेकर चिंतित है।
- फ्राँस, चीन, अमेरिका और यूके जैसी सभी प्रमुख सैन्य शक्तियों के हिंद महासागर में नौसैनिक अड्डे हैं, जिससे यह आशंका पैदा हो रही है कि उनके शांतिपूर्ण द्वीप क्षेत्र का भी सैन्यीकरण किया जाएगा।
- चीन केंद्रित नीतियाँ:
- हिंद महासागर के उत्तरी हिस्से में चीन की तेज़ी से बढ़ती उपस्थिति के साथ-साथ इस क्षेत्र में चीनी पनडुब्बियों और जहाज़ों की तैनाती भारत के लिये एक चुनौती है।
- अति-उत्साही सुरक्षा नीति:
- अपने पड़ोसियों के प्रति भारत की एक अति-उत्साही सुरक्षा-संचालित नीति ने अतीत में मदद नहीं की है।
- मॉरीशस के प्रति भारत को अपने दृष्टिकोण में जलवायु परिवर्तन, सतत् विकास और नीली अर्थव्यवस्था जैसी कुछ सामान्य चुनौतियों पर पुनर्विचार करना चाहिये।
अन्य हालिया घटनाक्रम:
- जुलाई 2021 में भारत और मॉरीशस के प्रधानमंत्रियों ने संयुक्त रूप से मॉरीशस में एक सर्वोच्च न्यायालय भवन का उद्घाटन किया।
- फरवरी 2021 में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने भारत और मॉरीशस के बीच व्यापक आर्थिक सहयोग और भागीदारी समझौते (CECPA) पर हस्ताक्षर करने को मंज़ूरी दी।
- भारत और मॉरीशस ने 100 मिलियन अमेरिकी डाॅलर के रक्षा ऋण समझौते पर हस्ताक्षर किये।
- मॉरीशस को एक डोर्नियर विमान और एक उन्नत हल्का हेलीकॉप्टर ध्रुव पट्टे पर मिलेगा जो इसकी समुद्री सुरक्षा क्षमताओं का निर्माण करेगा।
- दोनों पक्षों ने चागोस द्वीप समूह विवाद पर भी चर्चा की, जो संयुक्त राष्ट्र (UN) के समक्ष संप्रभुता और सतत् विकास का मुद्दा था।
- वर्ष 2019 में भारत ने इस मुद्दे पर मॉरीशस की स्थिति के समर्थन में संयुक्त राष्ट्र महासभा में मतदान किया। भारत उन 116 देशों में से एक था, जिसने इस द्वीप समूह पर ब्रिटेन के "औपनिवेशिक प्रशासन" को समाप्त करने के लिये वोटिंग की मांग की थी।
- भारत द्वारा मॉरीशस को 1,00,000 कोविशील्ड के टीके प्रदान किये गए हैं।
आगे की राह
- अन्य देशों द्वारा संचालित सैन्य ठिकानों के विपरीत भारतीय ठिकाने सॉफ्ट बेस पर आधारित हैं, जिसका अर्थ है कि स्थानीय लोग किसी भी भारतीय-निर्मित परियोजना के माध्यम से आगे बढ़ सकते हैं। इसलिये स्थानीय सरकारें अपनी संप्रभुता को कम किये बिना अपने डोमेन पर अधिक नियंत्रण प्राप्त करती हैं।
- भारत को प्रभावित सभी पक्षों के डर को दूर करते हुए अधिक प्रेरक तरीके से खुद को एक विश्वसनीय और दीर्घकालिक साझेदार के रूप में पेश करने की ज़रूरत है।
- मॉरीशस में पंजीकृत कंपनियाँ भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) का सबसे बड़ा स्रोत हैं, जिससे भारत के लिये अपनी द्विपक्षीय कर संधि को उन्नत करना महत्त्वपूर्ण हो जाता है, नवीनतम अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्थाओं को अपनाना जो कि बहुराष्ट्रीय कंपनियों को कृत्रिम रूप से मुनाफे को कम कर वाले देशों में स्थानांतरित करने से रोकती हैं।
- जैसा कि भारत दक्षिण-पश्चिमी हिंद महासागर में सुरक्षा सहयोग के लिये एक एकीकृत दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है जिसमें मॉरीशस का स्वाभाविक रूप से एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण स्थान है, इसलिये भारत की नेबरहुड फर्स्ट पॉलिसी (Neighbourhood First policy) में सुधार करना आवश्यक हो गया है।