भारत-ब्रिटेन मुक्त व्यापार समझौता वार्ता | 21 Jul 2023
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चर्चा में क्यों
भारत और ब्रिटेन वर्तमान में भारत-ब्रिटेन मुक्त व्यापार समझौते (FTA) के लिये चल रही वार्ता में विवादास्पद मुद्दों को हल करने में लगे हुए हैं।
- यह व्यापक व्यापार सौदा भारत के लिये अत्यधिक महत्त्व रखता है क्योंकि यह आगामी व्यापार समझौतों के लिये एक टेम्पलेट के रूप में काम करेगा, जिसमें यूरोपीय संघ और यूरोपीय मुक्त व्यापार संघ (EFTA) देशों (जैसे, आइसलैंड, लिकटेंस्टीन, नॉर्वे और स्विट्ज़रलैंड) के साथ समझौते शामिल होंगे।
वार्ता के अंतर्गत विवादास्पद मुद्दे:
- बौद्धिक संपदा अधिकार: बौद्धिक संपदा अधिकार (IPR) में भारत जीवन रक्षक जेनरिक दवाओं के उत्पादन पर कोई समझौता नहीं करना चाहता है।
- वैश्विक मूल्य शृंखला (GVC): वैश्विक मूल्य शृंखलाओं से जुड़ी जटिलताओं को दूर करने एवं भारत के लिये अनुकूल परिणाम सुनिश्चित करने पर चर्चा चल रही है।
- डिजिटल व्यापार: डिजिटल व्यापार और डेटा संरक्षण के क्षेत्र में भारत द्वारा अभी भी अपने घरेलू कानूनों को मज़बूत किया जाना शेष है, इसलिये वह प्रतिबद्धताओं को पूरा नहीं करना चाहता है।
- उत्पत्ति के नियम (ROO): ROO, जो किसी उत्पाद का राष्ट्रीय स्रोत निर्धारित करता है, FTA वार्ता में एक विवादास्पद मुद्दा रहा है।
- ये व्यापार वार्ताओं हेतु महत्त्वपूर्ण हैं क्योंकि देश आयात के स्रोत के आधार पर उत्पादों पर शुल्क या प्रतिबंध लगाते हैं।
- भारत यह सुनिश्चित करने के लिये सख्त नियम बनाना चाहता है कि तीसरे देश FTA का अनुचित लाभ न उठाएँ।
- श्रम और पर्यावरण: श्रम और पर्यावरण प्रतिबद्धताएँ पहली बार की जा रही हैं तथा उन्हें ऐसे तरीके से किया जाना चाहिये जो भारत के लिये प्रतिकूल न हो।
- भारत ने अकेले बहुत प्रगति की है और वह अतिरिक्त शर्तें नहीं चाहता।
- दूसरी ओर ब्रिटेन अधिक कठोर IPR, मुक्त सीमा पार डेटा प्रवाह एवं डेटा स्थानीयकरण के खिलाफ नियम, उदार ROO तथा श्रम और पर्यावरण के क्षेत्रों में प्रतिबद्धता चाहता है।
भारत-ब्रिटेन मुक्त व्यापार समझौते की पृष्ठभूमि:
- वर्ष 2022 में भारत और ब्रिटेन ने औपचारिक मुक्त व्यापार समझौता (FTA) वार्ता शुरू की थी। दोनों देश एक अंतरिम मुक्त व्यापार क्षेत्र पर विचार कर रहे हैं, जिसके परिणामस्वरूप अधिकांश वस्तुओं पर टैरिफ कम हो जाएगा।
- दोनों देश चुनिंदा सेवाओं के लिये नियमों को आसान बनाने के अलावा वस्तुओं के एक छोटे समूह पर टैरिफ कम करने हेतु शीघ्र फसल योजना या सीमित व्यापार समझौते पर सहमत हुए।
- इसके अलावा वे "संवेदनशील मुद्दों" से बचने और उन क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करने पर सहमत हुए जहाँ अधिक पूरकता है।
- व्यापार वार्ता में कृषि और डेयरी क्षेत्र को भारत के लिये संवेदनशील क्षेत्र माना जाता है।
- साथ ही वर्ष 2030 तक भारत और ब्रिटेन (UK) के बीच व्यापार को दोगुना करने का लक्ष्य भी रखा गया।
मुक्त व्यापार समझौता:
- यह दो या दो से अधिक देशों के बीच आयात और निर्यात की बाधाओं को कम करने के लिये एक समझौता है।
- मुक्त व्यापार नीति के तहत वस्तुओं और सेवाओं को अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं के पार बहुत कम या बिना किसी सरकारी टैरिफ, कोटा, सब्सिडी या विनिमय के साथ खरीदा और बेचा जा सकता है।
- मुक्त व्यापार की अवधारणा व्यापार संरक्षणवाद या आर्थिक अलगाववाद के विपरीत है।
- FTA को अधिमान्य व्यापार समझौते, व्यापक आर्थिक सहयोग समझौते, व्यापक आर्थिक साझेदारी समझौते (CEPA) के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है।
भारत-ब्रिटेन व्यापार संबंध:
- वर्ष 2007 और 2019 के बीच भारत और ब्रिटेन के बीच व्यापार "दोगुने से अधिक" हुआ।
- भारत वर्ष 2022 के अंत तक ब्रिटेन का 12वाँ सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार था। यह ब्रिटेन के कुल व्यापार का 2.0% था।
- भारत वस्तुओं के मामले में ब्रिटेन का 13वाँ सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार था तथा सेवाओं के मामले में यह 10वाँ सबसे बड़ा भागीदार था।
- वर्ष 2022-23 में भारत-ब्रिटेन द्विपक्षीय व्यापार 16% बढ़कर 20.36 बिलियन अमेरिकी डॉलर का हो गया।
भारत और ब्रिटेन के बीच FTA का महत्त्व:
- वस्तुओं का निर्यात बढ़ाना: ब्रिटेन के साथ व्यापार सौदे में वस्त्र, चमड़े का सामान और जूते जैसे व्यापक स्तर पर रोज़गार उत्पन्न करने वाले क्षेत्रों में निर्यात को बढ़ावा दिया जा सकता है।
- भारत की 56 समुद्री इकाइयों को मान्यता मिलने से समुद्री उत्पादों के निर्यात में भी भारी उछाल आने की उम्मीद है।
- सेवा व्यापार पर स्पष्टता: FTA से निश्चितता, पूर्वानुमेयता और पारदर्शिता की उम्मीद है तथा यह एक अधिक उदार, सुविधाजनक और प्रतिस्पर्द्धी सेवा व्यवस्था बनाएगा।
- आयुष और ऑडियो-विज़ुअल सेवाओं सहित IT/ITES, नर्सिंग, शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा जैसे क्षेत्रों में निर्यात बढ़ाने की भी काफी संभावनाएँ हैं।
- RCEP से बाहर होना: भारत नवंबर 2019 में क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (Regional Comprehensive Economic Partnership-RCEP) से बाहर हो गया।
- इसलिये अमेरिका, यूरोपीय संघ और ब्रिटेन के साथ व्यापार सौदों पर नए सिरे से ध्यान केंद्रित किया जा रहा है, जो भारतीय निर्यातकों के लिये प्रमुख बाज़ार हैं तथा अपने निष्कर्षण/सोर्सिंग में विविधता लाने के इच्छुक हैं।
- रणनीतिक लाभ: ब्रिटेन, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य है और भारत के रणनीतिक साझेदारों में से एक है।
- व्यापार के साथ संबंधों को मज़बूत करने से वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) के लद्दाख क्षेत्र में चीन के साथ गतिरोध और UNSC में स्थायी सीट के दावे जैसे वैश्विक मुद्दों पर ब्रिटेन का समर्थन मिलेगा।
आगे की राह
- भारत-ब्रिटेन मुक्त व्यापार समझौते के लिये चल रही वार्ता भारत के व्यापार संबंधों के लिये महत्त्वपूर्ण है।
- बौद्धिक संपदा अधिकार (IPR), वैश्विक मूल्य शृंखला, डिजिटल व्यापार और उत्पत्ति के नियमों जैसे विवादास्पद मुद्दों को संबोधित करने पर ध्यान केंद्रित किया गया है।
- सतर्क दृष्टिकोण और वार्ता की धीमी गति अपने हितों की रक्षा करते हुए एक व्यापक सौदा हासिल करने की भारत की प्रतिबद्धता को दर्शाती है।
- इन वार्ताओं के निष्कर्ष भारत में भविष्य के व्यापार समझौतों को आकार देंगे, जिससे यह सावधानीपूर्वक विचार और रणनीतिक निर्णय लेने में सक्षम बन जाएगा।
यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. निम्नलिखित देशों पर विचार कीजिये: (2018)
उपर्युक्त में से कौन-कौन आसियान (ए.एस.इ.ए.एन.) के 'मुक्त-व्यापार भागीदारों' में से हैं? (a) केवल 1, 2, 4 और 5 उत्तर: (c) |