सड़क सुरक्षा पर भारत स्थिति रिपोर्ट 2024 | 18 Sep 2024
प्रिलिम्स के लिये:सड़क दुर्घटना में मृत्यु , प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) , संयुक्त राष्ट्र का सड़क सुरक्षा के लिये कार्रवाई दशक , विकलांगता-समायोजित जीवन वर्ष (Disability-Adjusted Life Years-DALYs), स्टॉकहोम घोषणा , ग्लोबल बर्डन ऑफ डिज़ीज़ (GBD) अध्ययन , नमूना पंजीकरण प्रणाली (SRS) , मोटर वाहन संशोधन अधिनियम, 2019, सड़क मार्ग द्वारा वहन अधिनियम, 2007 , राष्ट्रीय राजमार्ग नियंत्रण (भूमि और यातायात) अधिनियम, 2000 , भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण अधिनियम, 1998 , वैश्विक लक्ष्य 2030 को प्राप्त करने के लिये सड़क सुरक्षा पर तीसरा उच्च स्तरीय वैश्विक सम्मेलन। मेन्स के लिये:सड़क सुरक्षा 2024 पर भारत स्थिति रिपोर्ट के मुख्य निष्कर्ष, भारत में सड़क दुर्घटनाओं में कमी। |
स्रोत: TH
चर्चा में क्यों?
IIT दिल्ली की सड़क सुरक्षा 2024 पर भारत स्थिति रिपोर्ट में सड़क दुर्घटना मृत्यु दर को कम करने के अंतर्राष्ट्रीय लक्ष्यों को पूरा करने की दिशा में भारत की धीमी प्रगति पर प्रकाश डाला गया है।
रिपोर्ट के मुख्य निष्कर्ष क्या हैं?
- रिपोर्ट की कार्य पद्धति:
- रिपोर्ट के अंतर्गत भारत में सड़क सुरक्षा का मूल्यांकन किया गया है, जिसमें छह राज्यों (हरियाणा, जम्मू-कश्मीर और लद्दाख, पंजाब, राजस्थान, उत्तराखंड एवं उत्तर प्रदेश) में दर्ज प्रथम सूचना रिपोर्टों (FIR) के आँकड़ों के साथ-साथ सड़क सुरक्षा प्रशासन पर सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों के साथ राज्यों के अनुपालन के ऑडिट का उपयोग किया गया है।
- रिपोर्ट के निष्कर्ष:
- विकलांगता-समायोजित जीवन वर्ष (Disability-Adjusted Life Years-DALYs) के अनुसार, वर्ष 2021 में सड़क यातायात दुर्घटनाएँ भारत में मृत्यु दर का 13वाँ प्रमुख कारण और रोग्यता का 12वाँ प्रमुख कारण थीं।
- राज्य में सड़क यातायात दुर्घटनाएँ रोग्यता के लिये शीर्ष 10 कारणों में शामिल हैं।
- सड़क सुरक्षा में राज्यों का प्रदर्शन:
- भारत में सड़क सुरक्षा के संदर्भ में मौजूद व्यापक क्षेत्रीय भिन्नता है तथा विभिन्न राज्यों में प्रति व्यक्ति सड़क यातायात मृत्यु दर में तीन गुना से अधिक का अंतर है।
- तमिलनाडु (21.9), तेलंगाना (19.2) और छत्तीसगढ़ (17.6) में प्रति 1,00,000 व्यक्तियों पर सबसे अधिक मृत्यु दर दर्ज की गई।
- पश्चिम बंगाल और बिहार में वर्ष 2021 में सबसे कम दर 5.9 प्रति 1,00,000 थी।
- उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, कर्नाटक, राजस्थान और तमिलनाडु में सड़क यातायात से होने वाली कुल मौतों में से लगभग 50% मौतें यहाँ होती हैं।
- रिपोर्ट में पैदल यात्रियों, साइकिल चालकों और मोटर चालित दोपहिया वाहन चालकों को सबसे अधिक असुरक्षित सड़क उपयोगकर्त्ता बताया गया है, जबकि ट्रकों के कारण सबसे अधिक दुर्घटनाएँ होती हैं।
- हेलमेट के उपयोग की जीवन-रक्षक क्षमता के बावजूद, केवल सात राज्यों में 50% से अधिक मोटर चालित दोपहिया वाहन चालक हेलमेट का उपयोग करते हैं।
- केवल आठ राज्यों ने अपने राष्ट्रीय राजमार्ग नेटवर्क के आधे से अधिक की ऑडिटिंग की है तथा इससे भी कम राज्यों ने राज्य राजमार्गों के लिये ऑडिटिंग की है।
- अधिकांश राज्यों में यातायात नियंत्रण, सड़क चिह्नांकन और संकेतन जैसे बुनियादी सड़क सुरक्षा उपाय अभी भी अपर्याप्त हैं, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में हेलमेट का उपयोग विशेष रूप से कम है, तथा ट्रॉमा देखभाल सुविधाएँ अपर्याप्त हैं।
- रिपोर्ट में भारत में सड़क सुरक्षा संबंधी विविध चुनौतियों को संबोधित करने के लिये राज्य-विशिष्ट रणनीतियों की आवश्यकता पर ज़ोर दिया गया है।
- भारत में सड़क सुरक्षा के संदर्भ में मौजूद व्यापक क्षेत्रीय भिन्नता है तथा विभिन्न राज्यों में प्रति व्यक्ति सड़क यातायात मृत्यु दर में तीन गुना से अधिक का अंतर है।
- भारत का विश्व स्तर पर प्रदर्शन:
- अधिकांश भारतीय राज्यों के लिये संयुक्त राष्ट्र का सड़क सुरक्षा के लिये कार्रवाई दशक के उद्देश्यों को पूरा करना संभव नहीं है, जिसका लक्ष्य 2030 तक यातायात से संबंधित मौतों को आधा करना है।
- रिपोर्ट में भारत और स्वीडन तथा अन्य स्कैंडिनेवियाई देशों जैसे विकसित देशों के बीच तुलना प्रस्तुत की गई है, जिन्होंने सड़क सुरक्षा प्रशासन में अनुकरणीय प्रदर्शन किया है।
- वर्ष 1990 में सड़क दुर्घटना में किसी भारतीय की मृत्यु की संभावना इन देशों की तुलना में 40% अधिक थी; वर्ष 2021 तक, यह असमानता बढ़कर 600% हो गई है, जो भारत में सड़क दुर्घटनाओं में होने वाली मौतों में उल्लेखनीय वृद्धि को दर्शाती है।
नोट:
- सड़क सुरक्षा के लिये कार्रवाई दशक 2021-2030: संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 2030 तक कम-से-कम 50% सड़क यातायात से होने मौतों और चोटों को रोकने के महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य के साथ "वैश्विक सड़क सुरक्षा में सुधार" संकल्प अपनाया।
- यह वैश्विक योजना स्टॉकहोम घोषणा के अनुरूप है, जो सड़क सुरक्षा के लिये समग्र दृष्टिकोण के महत्त्व पर ज़ोर देती है।
स्वास्थ्य मंत्रालय की अनभिप्रेत (अनजाने में होने वाली) क्षतियों की रोकथाम हेतु राष्ट्रीय रणनीति
- भारत में सड़क यातायात दुर्घटनाएँ (RTC) अनभिप्रेत (अनजाने में होने वाली) क्षतियों के कारण होने वाली मौतों का सबसे बड़ा कारण हैं, जो कुल मौतों का 43.7% है।
- इन मौतों में 75.2% मौतें तेज़ गति से वाहन चलाने के कारण होती हैं, इसके बाद गलत दिशा में वाहन चलाने (5.8%) और शराब या नशीली दवाओं के प्रभाव में वाहन चलाने (2.5%) का स्थान आता है।
- सड़क यातायात दुर्घटनाएँ (RTI):
- RTI से होने वाली मौतों में 86% पुरुष हैं, जबकि 14% महिलाएँ हैं ।
- RTI से होने वाली 67.8% मौतें ग्रामीण क्षेत्रों में और 32.2% शहरी क्षेत्रों में होती हैं ।
- राष्ट्रीय राजमार्ग (कुल सड़क मार्ग का केवल 2.1%) सर्वाधिक सड़क दुर्घटनाओं के लिये ज़िम्मेदार हैं, वर्ष 2022 में प्रति 100 किमी. पर 45 मौतें हुईं।
सड़क सुरक्षा पर सर्वोच्च न्यायालय का हस्तक्षेप
- भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने अप्रैल 2014 में सड़क सुरक्षा पर तीन सदस्य वाले न्यायमूर्ति के.एस. राधाकृष्णन पैनल का गठन किया था, जिसने नशे में वाहन चलाने पर रोक लगाने के लिये राजमार्गों पर शराब की बिक्री पर प्रतिबंध लगाने की सिफारिश की थी।
- इसने राज्यों को हेलमेट पहनने संबंधी कानून लागू करने का भी निर्देश दिया।
- इस समिति ने सड़क सुरक्षा नियमों के बारे में लोगों में जागरूकता उत्पन्न करने के महत्त्व पर ज़ोर दिया।
- सर्वोच्च न्यायालय ने वर्ष 2017 में सड़क सुरक्षा के संबंध में कई निर्देश जारी किये थे, जिनमें अन्य बातों के साथ-साथ कुछ उपाय भी शामिल थे।
- राज्य सड़क सुरक्षा परिषद का गठन
- सड़क सुरक्षा कोष की स्थापना
- सड़क सुरक्षा कार्य योजना की अधिसूचना
- ज़िला सड़क सुरक्षा समिति का गठन
- आघात देखभाल केंद्रों की स्थापना
- स्कूलों के शैक्षणिक पाठ्यक्रम में सड़क सुरक्षा शिक्षा को शामिल करना
सड़क सुरक्षा से संबंधित सरकारी पहल क्या हैं?
- मोटर वाहन संशोधन अधिनियम, 2019
- सड़क परिवहन अधिनियम, 2007
- राष्ट्रीय राजमार्ग नियंत्रण (भूमि एवं यातायात) अधिनियम, 2000
- भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण अधिनियम, 1998
- वैश्विक लक्ष्य 2030 को प्राप्त करने के लिये सड़क सुरक्षा पर तीसरा उच्च स्तरीय वैश्विक सम्मेलन
आगे की राह
- सड़क सुरक्षा पहलों को प्राथमिकता देना: इसके लिये परिवहन, स्वास्थ्य और विधि प्रवर्तन जैसे कई क्षेत्रों में समन्वित दृष्टिकोण की आवश्यकता है ताकि समग्र रणनीति विकसित की जा सके जिससे मृत्यु एवं चोटों को काफी हद तक कम किया जा सके।
- इस क्रम में छोटे-छोटे कदम भी उठाए जा सकते हैं, जैसे- हेलमेट का अनिवार्य उपयोग, यातायात नियमों का पालन करना तथा वाहनों का रखरखाव आदि।
- घातक दुर्घटनाओं के संबंध में राष्ट्रीय डेटाबेस की स्थापना: राष्ट्रीय डाटाबेस आँकड़ों से नीति निर्माताओं, शोधकर्त्ताओं और प्रवर्तन एजेंसियों को वास्तविक समय के रुझानों का विश्लेषण करने तथा उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों की पहचान करने में मदद मिलेगी।
- सार्वजनिक पहुँच और पारदर्शिता: राष्ट्रीय दुर्घटना डेटाबेस तक सार्वजनिक पहुँच प्रदान करने से पारदर्शिता बढ़ेगी तथा हितधारकों के बीच जवाबदेही को बढ़ावा मिलेगा।
- निगरानी और मूल्यांकन: समय के साथ दुर्घटना दर और मृत्यु दर पर नज़र रखकर, सरकारें सड़क सुरक्षा अभियानों, विधियों एवं बुनियादी ढाँचे में सुधार के प्रभाव का आकलन कर सकती हैं।
- सड़क सुरक्षा के लिये प्रौद्योगिकी का लाभ उठाना: उभरती प्रौद्योगिकियों जैसे कि एआई-संचालित यातायात निगरानी, स्मार्ट साइनेज तथा डेटा एनालिटिक्स टूल को अपनाकर, सड़क सुरक्षा को और बेहतर बनाने के क्रम में राष्ट्रीय डेटाबेस के साथ इसे एकीकृत किया जा सकता है।
दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: प्रश्न: भारत में सड़क सुरक्षा सुनिश्चित करने से संबंधित प्रमुख चुनौतियों का आलोचनात्मक विश्लेषण करते हुए इसके समाधान हेतु उपाय बताइये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)मेन्स:Q. राष्ट्रीय शहरी परिवहन नीति वाहनों को चलाने के बजाय लोगों को ले जाने पर ज़ोर देती है। इस संबंध में सरकार की विभिन्न रणनीतियों की सफलता की आलोचनात्मक विवेचना कीजिये। (2014) |