भारत की वि-वैश्वीकृत खाद्य मुद्रास्फीति | 01 May 2024

प्रिलिम्स के लिये:

खाद्य मुद्रास्फीति, संयुक्त राष्ट्र खाद्य और कृषि संगठन, ब्लैक सी ग्रेन पहल, जैव ईंधन उत्पादन, खाद्य तेल, गैर-बासमती सफेद चावल पर निर्यात प्रतिबंध, आयातित मुद्रास्फीति

मेन्स के लिये:

वैश्विक खाद्य कीमतों में गिरावट में योगदान देने वाले कारक, भारत की वि-वैश्वीकृत खाद्य मुद्रास्फीति के लिये ज़िम्मेदार कारक

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों?  

वर्ष 2023 में, विश्व खाद्य कीमतें अपने वर्ष 2022 के उच्चतम स्तर से काफी कम हो गईं। हालाँकि, दिसंबर, 2023 में भारत की खाद्य मुद्रास्फीति 9.5% के उच्च स्तर पर रही, जो कि -10.1% की वैश्विक अपस्फीति के विपरीत थी।

वैश्विक खाद्य कीमतों में गिरावट में कौन-से कारक योगदान दे रहे हैं?

  • प्रमुख फसलों की प्रचुर आपूर्ति: वर्ष 2023 में गेहूँ जैसी प्रमुख फसलों की पैदावार के कारण वैश्विक बाज़ार में अधिशेष हो गया।
    • यह प्रचुरता वर्ष 2022 की चिंताओं के विपरीत है, जब एक प्रमुख अनाज निर्यातक देश यूक्रेन, में युद्ध के कारण आपूर्ति में व्यवधान की चिंताओं के कारण कीमतें बढ़ गईं।
  • रूस और यूक्रेन से बेहतर आपूर्ति: जुलाई 2023 में ब्लैक सी ग्रेन पहल के विघटन के बावजूद, रूस और यूक्रेन दोनों गेहूँ निर्यात को बनाए रखने में सफल रहे हैं।
    • क्षेत्र से अनाज के इस निरंतर प्रवाह ने आपूर्ति संबंधी कुछ चिंताओं को कम करने में सहायता की है।
  • वनस्पति तेलों की कम मांग: संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन के वनस्पति मूल्य सूचकांक में वर्ष 2023 में सबसे बड़ी गिरावट (32.7% तक) दर्ज़ की गई।
    • यह गिरावट कई कारकों के संयोजन के कारण हुई है, जिसमें वनस्पति तेल की आपूर्ति में सुधार और जैव ईंधन उत्पादन के लिये इसके उपयोग में कमी शामिल है।
    • जैसे-जैसे खाद्य प्रयोजनों के लिये अधिक तेल उपलब्ध हो जाता है और जैव ईंधन के लिये कम उपयोग किया जाता है, वनस्पति तेल की कुल मांग कम हो जाती है, जिससे कीमतें कम हो जाती हैं।
  • मांग का कम होना: उच्च मुद्रास्फीति और आर्थिक मंदी की आशंकाओं ने प्रमुख खाद्य-आयात क्षेत्रों सहित विश्व के कई भागों में उपभोक्ता मांग को कम कर दिया है, जिससे कुछ खाद्य वस्तुओं की आयात मांग में गिरावट आई है तथा तेल की वैश्विक कीमतों पर दबाव पड़ा है।

वैश्विक खाद्य कीमतों में गिरावट के बावजूद भारत उच्च खाद्य मुद्रास्फीति का अनुभव क्यों कर रहा है?

  • वैश्विक कीमतों का सीमित संचरण: जबकि वैश्विक खाद्य कीमतों में गिरावट आई, घरेलू बाज़ारों में अंतर्राष्ट्रीय कीमतों के सीमित संचरण के कारण भारत की खाद्य कीमतें ऊँची बनी रहीं।
    • भारत की आयात निर्भरता केवल खाद्य तेलों (खपत का 60%) और दालों के लिये महत्त्वपूर्ण है।
    • अनाज, चीनी, डेयरी उत्पाद एवं फलों और सब्ज़ियों सहित अधिकांश अन्य कृषि-उत्पादों के लिये, भारत आत्मनिर्भर या निर्यातक है।
  • निर्यात प्रतिबंध और आयात शुल्क: भारत सरकार ने गेहूँ, गैर-बासमती सफेद चावल, चीनी और प्याज जैसे कुछ खाद्य पदार्थों के निर्यात पर प्रतिबंध लगाया तथा अन्य पर आयात शुल्क में छूट प्रदान की, जिससे घरेलू कीमतों पर वैश्विक बाज़ार के प्रभाव को प्रभावी ढंग से कम किया गया।
  • घरेलू उत्पादन चुनौतियाँ: विशेष रूप से अनाज, दालों और चीनी के लिये फसल की पैदावार को प्रभावित करने वाली मौसम की स्थिति जैसे मुद्दों ने घरेलू स्तर पर आपूर्ति की कमी एवं उच्च कीमतों में योगदान दिया।
    • दिसंबर 2023 में अनाज व दाल की मुद्रास्फीति दर क्रमशः 9.9% और 20.7% थी।
  • निम्न भण्डारण स्तर: गेहूँ और चीनी जैसी वस्तुओं के लिये कम भण्डारण स्तर ने कीमतों के दबाव को और बढ़ा दिया है।

नोट:

  • लाल सागर मार्ग में समस्याओं के कारण अंतर्राष्ट्रीय आपूर्ति शृंखला में व्यवधान से भारत मुख्यतः अप्रभावित रहता है क्योंकि अरहर और उड़द का आयात मुख्य रूप से मोज़ाम्बिक, तंज़ानिया, मलावी तथा म्याँमार से होता है, जो हाल ही में बाधित हुए स्वेज़ जलमार्ग-लाल सागर मार्ग को दरकिनार कर देता है।
  • ऑस्ट्रेलिया और कनाडा से मसूर का आयात, उत्तरी प्रशांत-हिंद महासागर मार्ग से होता है।
  • खाद्य तेलों का आयात अधिकतर इंडोनेशिया, मलेशिया, अर्जेंटीना तथा ब्राज़ील से होता है, जो दक्षिण अटलांटिक एवं हिंद महासागर के मार्ग द्वारा होता है और हूती संघर्ष से अप्रभावित रहता है।
  • इसके अतिरिक्त, वैश्विक कीमतों में गिरावट, जैसे रूसी गेहूँ 240-245 अमेरिकी डॉलर प्रति टन और इंडोनेशियाई पाम ऑयल 940 अमेरिकी डॉलर प्रति टन, ने भारत में आयातित मुद्रास्फीति के संकट को समाप्त कर दिया है।

आयातित मुद्रास्फीति क्या है?

  • परिचय: आयातित मुद्रास्फीति का तात्पर्य आयात की कीमत या लागत में वृद्धि के कारण किसी देश में वस्तुओं और सेवाओं की कीमतों में वृद्धि से है।
  • लाभ सीमा बनाये रखने के लिये, कंपनियाँ अक्सर अपनी वस्तुओं और सेवाओं की कीमतें बढ़ाकर उपभोक्ताओं के बढ़ी हुई आयात प्रस्तुत करती हैं।
  • उत्तरदायी कारक:
    • मुद्रा मूल्यह्रास कारक: किसी देश की मुद्रा में मूल्यह्रास को अक्सर आयातित मुद्रास्फीति के प्राथमिक चालक के रूप में देखा जाता है।
      • जब किसी मुद्रा का मूल्यह्रास होता है, तो विदेशी वस्तुओं या सेवाओं को खरीदने के लिये अधिक स्थानीय मुद्रा की आवश्यकता होती है, जिससे आयात लागत प्रभावी रूप से बढ़ जाती है।
      • एशियाई विकास बैंक ने हाल ही में चेतावनी दी थी कि पश्चिम में बढ़ती ब्याज दरों के बीच रुपए के संभावित मूल्यह्रास के कारण भारत को आयातित मुद्रास्फीति का सामना करना पड़ सकता है।
    • मुद्रा मूल्यह्रास के बिना आयात लागत में वृद्धि: मुद्रा मूल्यह्रास के बिना भी, अंतर्राष्ट्रीय कच्चे तेल की कीमतों में वृद्धि जैसे कारकों के कारण आयात लागत में वृद्धि से आयातित मुद्रास्फीति प्रभावी हो हो सकती है।
      • यह लागत-प्रेरित मुद्रास्फीति का एक प्रकार है, जो बताता है कि बढ़ती इनपुट लागत अंतिम वस्तुओं और सेवाओं की कीमतों में मुद्रास्फीति का कारण बन सकती है।

भारत में खाद्य मुद्रास्फीति की गणना कैसे की जाती है?

  • परिचय: भारत में खाद्य मुद्रास्फीति मुख्य रूप से खाद्य और पेय पदार्थों के लिये उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (Consumer Price Index- CPI) द्वारा मापी जाती है। CPI भारत में मुद्रास्फीति का एक प्रमुख माप है जो समय के साथ वस्तुओं एवं सेवाओं के एक समूह हेतु विशिष्ट उपभोक्ताओं द्वारा भुगतान की जाने वाली कीमतों में हो रहे बदलावों को चिह्नित करता है।
  • हाल के रुझान: उपभोक्ता मूल्य सूचकांक में भोजन का भार 45.9% है, परंतु समग्र मुद्रास्फीति में इसका योगदान अप्रैल वर्ष 2022 में 48% से बढ़कर नवंबर 2023 में 67% हो गया।
    • हाल ही में जारी सरकार के पहले घरेलू उपभोग सर्वेक्षण के अनुसार ग्रामीण क्षेत्रों में खाद्य की खपत पहली बार 50% से कम होकर 46% रह गई और जबकि शहरी क्षेत्र में यह स्तर 39% रहा।
    • RBI के अनुसार, लगभग 90% खाद्य मुद्रास्फीति मौसम, आपूर्ति की स्थिति, अंतर्राष्ट्रीय कीमतों और उपलब्धता जैसे गैर-चक्रीय कारकों से निर्धारित होती है।
      • हालाँकि, औसतन 10% खाद्य मुद्रास्फीति महत्त्वपूर्ण समय भिन्नता के साथ मांग कारकों से प्रेरित होती है।

भारत खाद्य मुद्रास्फीति को प्रभावी ढंग से कैसे संबोधित कर सकता है?

  • कृषि उत्पादकता को बढ़ाना: फसल की पैदावार में वृद्धि तथा उत्पादन लागत को कम करने के लिये कृषि बुनियादी ढाँचे, प्रौद्योगिकी और अनुसंधान में निवेश करने से आपूर्ति को बढ़ावा मिल सकता है तथा कीमतें स्थिर हो सकती हैं।
  • कुशल आपूर्ति शृंखला प्रबंधन: रसद, भंडारण सुविधाओं और वितरण नेटवर्क को बढ़ाने से बर्बादी को कम किया जा सकता है तथा बाज़ार में खाद्य पदार्थों की स्थिर आपूर्ति सुनिश्चित की जा सकती है, जिससे कीमतों में उतार-चढ़ाव कम हो सकता है।
  • कृषि का विविधीकरण: विभिन्न प्रकार की फसलों की खेती को प्रोत्साहित और वैकल्पिक कृषि पद्धतियों का समर्थन करके विविधीकरण को बढ़ावा देना कुछ वस्तुओं पर निर्भरता को कम कर सकता है तथा  बाज़ार की गतिशीलता को संतुलित कर सकता है।
  • मूल्य निगरानी और विनियमन: खाद्य कीमतों की नियमित रूप से निगरानी करने और प्रभावी मूल्य विनियमन तंत्र को लागू करने से मूल्य में हो रहे बदलावों को नियंत्रित किया जा सकता है तथा उपभोक्ताओं एवं उत्पादकों के लिये उचित मूल्य सुनिश्चित किया जा सकता है।
  • जलवायु लचीलापन: टिकाऊ कृषि पद्धतियों, जल प्रबंधन रणनीतियों और फसल विविधीकरण के माध्यम द्वारा जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों का समाधान करने से उत्पादन जोखिमों को कम किया जा सकता है तथा दीर्घकालिक रूप से खाद्य सुरक्षा को बढ़ाया जा सकता है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

भारत की वि-वैश्वीकृत खाद्य मुद्रास्फीति की प्रवृत्ति को संचालित करने वाले प्रमुख कारक क्या हैं और देश की अर्थव्यवस्था के संदर्भ में इस असमानता को दूर करने के लिये कौन-सी रणनीतियाँ लागू की जा सकती हैं?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स: 

प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये : (2020)

  1. खाद्य वस्तुओं का 'उपभोक्ता मूल्य सूचकांक' (CPI) में भार (weightage) उनके 'थोक मूल्य सूचकांक' (WPI) में दिये गए भार से अधिक है।
  2. WPI, सेवाओं के मूल्यों में होने वाले परिवर्तनों को नहीं पकड़ता, जैसा कि CPI करता है।
  3. भारतीय रिज़र्व बैंक ने अब मुद्रास्फीति के मुख्य मान हेतु तथा प्रमुख नीतिगत दरों के निर्धारण और परिवर्तन हेतु WPI को अपना लिया है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2
(c) केवल 3
(d) 1, 2 और 3 

उत्तर: (a)


मेन्स: 

प्रश्न. एक दृष्टिकोण यह भी है कि राज्य अधिनियमों के अधीन स्थापित कृषि उत्पादन बाज़ार समितियों (APMCs) ने भारत में न केवल कृषि के विकास को बाधित किया है, बल्कि वे खाद्य वस्तु महँगाई का कारण भी रही हैं। समालोचनापूर्वक परीक्षण कीजिये। (2014)