भारत का विमानन क्षेत्र | 08 May 2024

प्रिलिम्स के लिये:

क्षेत्रीय संपर्क योजना-उड़ान (UDAN), ओपन स्काई समझौता, वस्तु एवं सेवा कर (GST), कार्बन तटस्थता, डिजी यात्रा 

मेन्स के लिये:

भारत के विमानन क्षेत्र का परिवर्तन, सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस 

चर्चा में क्यों? 

भारतीय विमानन क्षेत्र में लंबे समय तक अग्रिम भूमिका निभाने वाली कंपनी इंडिगो अब भारतीय हवाई अड्डों से बिना-रुके, लंबी दूरी और कम लागत वाली उड़ानों के साथ विश्वस्तर पर अपनी पहचान बनाने का प्रयास कर रही है।

  • हालाँकि, लंबी दूरी एवं कम लागत वाला एयरलाइन मॉडल कई एयरलाइनों के लिये एक चुनौती रहा है, जिसमें कई एयरलाइनों की विफलताएँ तथा कुछ एयरलाइनों का अपेक्षाकृत स्थिर एवं लाभदायक संचालन शामिल हैं।

लंबी दूरी, कम लागत वाला हवाई यात्रा मॉडल क्या है?

  • परिचय:
    • लंबी दूरी, कम लागत वाला हवाई यात्रा मॉडल कम लागत वाले वाहक विमानों (LCC) द्वारा छोटी दूरी के घरेलू और क्षेत्रीय मार्गों से अलग परिचालन का विस्तार करने तथा न्यूनतम किराए पर नॉन-स्टॉप, लंबी अवधि की उड़ानों का परिचालन करने का एक प्रयास है।
      • इस मॉडल का लक्ष्य लंबी दूरी की यात्रा के संचालन के लिये समान व्यावसायिक रणनीतियों एवं प्रक्रियाओं को लागू करके छोटी दूरी के विमान यात्रा संचालन क्षेत्र में LCC द्वारा प्राप्त की गयी सफलता को दोहराना है।
  • चुनौतियाँ:
    • लंबी दूरी के मार्गों पर बड़े विमानों के संचालन के लिये उच्च ईंधन लागत।
      • बड़े विमानों के लिये परिचालन लागत में वृद्धि, जैसे अधिक चालक दल, रखरखाव तथा हवाईअड्डा शुल्क आदि।
    • विमान संचालन के विस्तार से तीव्र आवागमन तथा विमान उपयोग के उच्च स्तर को बनाए रखने में कठिनता होती है, परंतु यही विशेषता LCC बिज़नेस मॉडल की सफलता के लिये महत्त्वपूर्ण है।
    • लंबी दूरी यात्राओं पर यात्रियों के आराम एवं सुविधाओं की आवश्यकता को LCC की भाँति लागत कम करते हुए संतुलित करना।
    • एक व्यवहारिक नेटवर्क और उड़ान समयसारणी स्थापित करना, जो लंबी दूरी तथा कम घनत्व वाले मार्गों पर यात्रियों की संख्या तथा आर्थिक लाभप्रदता को बनाए रख सके।
    • लंबी दूरी के अंतरराष्ट्रीय मार्गों पर, पूर्वस्थापित मज़बूत ब्रांड पहचान वाले विमाननसेवा वाहकों से प्रतिस्पर्धा करना।
  • उदाहरण:
    • स्कूटर, जेटस्टार और फ्रेंच B जैसे कुछ लंबी दूरी के LCC स्थिर और लाभदायक विमान संचालन करने में सफल रहे हैं।
    • प्रमुख रणनीतियों में प्रीमियम/बिज़नेस क्लास सुविधाओं के साथ उपहार देना, कम यातायात वाले मार्गों को लक्षित करना तथा मज़बूत घरेलू/क्षेत्रीय नेटवर्क का लाभ उठाना शामिल है।

भारत के विमानन क्षेत्र की प्रगति क्या है?

  • भारत के विमानन क्षेत्र में अत्यधिक वृद्धि:
    • संयुक्त राज्य अमेरिका और चीन के बाद भारत विश्व का तीसरा सबसे बड़ा घरेलू विमानन बाज़ार बनकर उभरा है।
      • विमानन उद्योग ने एक उल्लेखनीय प्रगति करते हुए अपनी पूर्व सीमाओं को पार कर लिया है तथा यह एक जीवंत और प्रतिस्पर्द्धी क्षेत्र के रूप में विकसित हो रहा है।
    • सरकार की सक्रिय नीतियों और रणनीतिक पहलों ने विमानन क्षेत्र के विकास को प्रेरित किया है, विस्तार एवं नवाचार के लिये अनुकूल वातावरण को बढ़ावा दिया है।
  • बुनियादी ढाँचे का विकास:
    • भारत के हवाई नेटवर्क में एक उल्लेखनीय परिवर्तन देखा गया है, इसके परिचालन हवाई अड्डों की संख्या वर्ष 2014 में 74 की तुलना में दोगुनी होकर अप्रैल 2023 में 148 हो गई है, जिससे लोगों की हवाई यात्रा तक पहुँच में वृद्धि हुई है।
      • क्षेत्रीय कनेक्टिविटी योजना-UDAN: 
        • क्षेत्रीय संपर्क योजना-उड़े देश का आम नागरिक (RCS-UDAN) वर्ष 2016 में शुरू की गई थी ताकि देश में वायुसेवा का विस्तार किया जा सके। 
        • इस योजना का उद्देश्य मौजूदा हवाई पट्टियों और हवाई अड्डों को पुनर्जीवित करना, अलग-थलग समुदायों तक आवश्यक हवाई यात्रा की पहुँच में वृद्धि करना और क्षेत्रीय आर्थिक विकास को बढ़ावा देना है।
        • 517 RCS मार्गों के संचालन और 76 हवाई अड्डों को जोड़ने के साथ, उड़ान ने 1.30 करोड़ से अधिक लोगों के लिये हवाई यात्रा की सुविधा प्रदान की है, जिससे आर्थिक विकास को बढ़ावा मिला है।
  • यात्री वृद्धि:
    • यात्री मांग में वृद्धि के साथ, विमानन उद्योग कोविड के बाद उल्लेखनीय पुनरुत्थान का अनुभव कर रहा है।
      • जनवरी से सितंबर 2023 तक, घरेलू एयरलाइंस ने 112.86 मिलियन यात्रियों का परिवहन किया, जो वर्ष 2022 से इसी अवधि की तुलना में 29.10% अधिक है।
      • अंतर्राष्ट्रीय एयरलाइंस ने जनवरी और सितंबर 2023 के बीच 45.99 मिलियन यात्रियों का परिवहन किया, जो वर्ष 2022 से इसी अवधि की तुलना में 39.61% अधिक है।
  • कार्बन तटस्थता:
    • नागरिक उड्डयन मंत्रालय (MoCA) ने देश में हवाई अड्डों पर कार्बन तटस्थता और शुद्ध शून्य कार्बन उत्सर्जन प्राप्त करने की दिशा में काम करने की पहल की है।
      • हवाईअड्डा संचालकों को कार्बन उत्सर्जन का मानचित्रण करने और चरणबद्ध तरीके से कार्बन तटस्थता एवं शुद्ध शून्य उत्सर्जन की दिशा में कार्य करने की सलाह दी गई है।
    • ग्रीनफील्ड हवाई अड्डों को अपनी विकास योजनाओं में कार्बन तटस्थता और शुद्ध शून्य उत्सर्जन को प्राथमिकता देने के लिये प्रोत्साहित किया जा रहा है।
      • दिल्ली, मुंबई, हैदराबाद और बंगलूरू जैसे हवाई अड्डों ने लेवल 4+ ACI मान्यता प्राप्त कर ली है तथा कार्बन तटस्थ बन गए हैं।
      • 66 भारतीय हवाई अड्डे 100% हरित ऊर्जा पर काम कर रहे हैं।

भारत के विमानन उद्योग के सामने क्या चुनौतियाँ हैं?

  • उच्च ईंधन लागत:
    • विमान टर्बाइन ईंधन (ATF) का खर्च किसी एयरलाइन की परिचालन लागत का 50-70% हो सकता है और आयात कर वित्तीय बोझ को बढ़ाते हैं।
  • डॉलर पर निर्भरता:
    • डॉलर की दर में उतार-चढ़ाव का असर लाभ पर पड़ता है क्योंकि विमान अधिग्रहण और रखरखाव जैसे प्रमुख खर्च डॉलर में होते हैं।
  • आक्रामक मूल्य निर्धारण:
    • यात्रियों को आकर्षित करने के लिये एयरलाइंस अक्सर आक्रामक मूल्य प्रतिस्पर्धा में संलग्न रहती हैं, जिससे उच्च परिचालन लागत के बीच लाभ मार्जिन कम हो जाता है।
  • सीमित प्रतिस्पर्धा: 
    • वर्तमान में इंडिगो और एयर इंडिया के पास विमानन सेवा क्षेत्र में बहुमत हिस्सेदारी है, संभवतः संयुक्त रूप से लगभग 70% के करीब। शक्ति का यह संकेंद्रण इनमें से निम्न को जन्म दे सकता है:
      • सीमित प्रतिस्पर्धाः कम अभिकर्त्ताओं के साथ, मार्गों पर कम प्रतिस्पर्धा का जोखिम है, जिससे संभावित रूप से उपभोक्ताओं के लिये अधिक किराया हो सकता है। 
      • मूल्य निर्धारण शक्तिः प्रमुख एयरलाइनों के पास टिकट की कीमतों को प्रभावित करने के लिये अधिक अर्जित लाभ हो सकता है, खासकर अगर वे रणनीतियों का समन्वय करते हैं।
  • जमींदोज जहाज़ी बेड़ा: 
    • सुरक्षा चिंताओं और क्षमता में बाधा बनने वाले वित्तीय मुद्दों के कारण भारतीय हवाई जहाज़ों का एक बड़ा हिस्सा (एक चौथाई से अधिक) उड़ान से बाहर है।
  • पर्यावरणीय चिंता:
    • कार्बन उत्सर्जन को कम करने और सतत् प्रथाओं को अपनाने का दबाव विकास रणनीतियों में कठिनाई उत्पन्न कर सकता है।

विमानन उद्योग से संबंधित भारत की पहल:

Udan_Scheme

आगे की राह

  • ईंधन स्रोतों का विविधीकरण: ईंधन मिश्रण में जैव ईंधन को शामिल करने, पारंपरिक ATF पर निर्भरता और आयात करों के प्रभाव को कम करने के लिये पहल करने की आवश्यकता है।
    • ईंधन की कीमतों की अस्थिरता को प्रबंधित करने के लिये ईंधन के बचाव (fuel hedging) की रणनीतियों को लागू करना, जो कई अंतर्राष्ट्रीय एयरलाइनों द्वारा उपयोग की जाने वाली व्यवस्था है।
  • सहायक राजस्व धाराएँ: लाभ बढ़ाने के लिये कार्गो सेवाओं, इन-फ्लाइट बिक्री और प्रीमियम सेवाओं जैसी सहायक राजस्व धाराएँ विकसित करने की आवश्यकता है।
  • प्रतिस्पर्धी मूल्य निर्धारण रणनीतियाँ: मूल्य निर्धारण को अनुकूलित करने के लिये उन्नत उपज प्रबंधन प्रणालियों का उपयोग करना और नुकसानदेह मूल्य प्रतिस्पर्द्धा (detrimental price wars) में शामिल हुए बिना लाभप्रदता बनाए रखना है।
    • दोबारा व्यापार को प्रोत्साहित करने और आक्रामक मूल्य निर्धारण रणनीति की आवश्यकता को कम करने के लिये ग्राहक निष्ठा कार्यक्रमों को मज़बूत करने की आवश्यकता है ।
  • विनियामक सुधार: विनियामक सुधारों की वकालत करना जो नए प्रवेशकों को प्रोत्साहित करने और उद्योग में एकाधिकारवादी प्रथाओं को नियंत्रित करने की आवश्यकता है। 
  • मार्ग युक्तिकरण: एयरलाइनों को कम सेवा वाले मार्गों का पता लगाने के लिये प्रोत्साहित करना, जिससे प्रतिस्पर्द्धा बढ़ेगी और उपभोक्ताओं को अधिक विकल्प प्राप्त हो सकेंगे।
    • परिचालन को लचीला बनाए रखने और जहाज़ी बेड़े के स्वामित्व की वित्तीय बोझ को कम करने के लिये, विमानों के लिये पट्टे की संभावनाओं को ध्यान में रखना।
  • कार्बन ऑफसेट कार्यक्रम: पर्यावरणीय प्रभाव को मापने और कम करने के लिये कार्बन उत्सर्जन कैलकुलेटर जैसे कार्बन ऑफसेट कार्यक्रम को लागू करना।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. बुनियादी ढाँचे के विकास, यात्री वृद्धि और सरकारी नीतियों के प्रभाव जैसे कारकों पर विचार करते हुए भारत के विमानन क्षेत्र की प्रगति का मूल्यांकन कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

मेन्स

प्रश्न. सार्वजनिक-निज़ी भागीदारी (पीपीपी) मॉडल के तहत संयुक्त उद्यमों के माध्यम से भारत में हवाई अड्डों के विकास की जाँच कीजिये। इस संबंध में अधिकारियों के सामने क्या चुनौतियाँ हैं?  (2017)