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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

ताइवान द्वारा भारत की मदद

  • 06 May 2021
  • 9 min read

चर्चा में क्यों?

हाल ही में ताइवान द्वारा भारत को कोविड-19 महामारी का मुकाबला करने हेतु ऑक्सीजन कंसंट्रेटर (Oxygen Concentrators) और सिलेंडर (Cylinders) के रूप में सहायता उपलब्ध कराई गई है।

  • यह सहायता भारत और ताइवान के मध्य बढ़ते संबंधों को दर्शाती है, विशेष रूप से ऐसे समय में जब वास्तविक नियंत्रण रेखा (Line of Actual Control- LAC) पर चीन के साथ गतिरोध की स्थिति बनी हुई है और इस क्षेत्र में चीन द्वारा आक्रामक कार्रवाईयों को अंजाम दिया जा रहा है, जिसमें चीन द्वारा ताइवान के हवाई क्षेत्र का बार-बार उल्लंघन करना भी शामिल है।
  • हालांँकि, भारत ने अभी तक चीन से  किसी भी प्रकार की सहायता के प्रस्ताव को स्वीकार नहीं किया है तथा वाणिज्यिक आधार पर ही चीन से प्राप्त होने वाले चिकित्सा आपूर्ति स्रोतों को प्राथमिकता दी है।

ताइवान

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  • तकरीबन 23 मिलियन लोगों की आबादी वाला रिपब्लिक ऑफ चाइना यानी ताइवान चीन के दक्षिणी तट के पास स्थित द्वीप है, जिसे वर्ष 1949 के बाद से पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना से स्वतंत्र, एक लोकतांत्रिक सरकार द्वारा शासित किया जा रहा है।
  • इसके पश्चिम में चीन (पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना), उत्तर-पूर्व में जापान और दक्षिण में फिलीपींस स्थित है।
  • ताइवान सबसे अधिक आबादी वाला ऐसा राष्ट्र है, जो संयुक्त राष्ट्र (United Nations-UN) का सदस्य नहीं है और साथ ही यह संयुक्त राष्ट्र के बाहर सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था भी है।
  • ताइवान एशिया की 5वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है।
  • यह चिप निर्माण में एक वैश्विक प्रतिनिधि और आईटी हार्डवेयर आदि का दूसरा सबसे बड़ा निर्माता है।
  • चीन और ताइवान के बीच संबंध: 
    • पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना (People’s Republic of China- PRC) ताइवान को अपने एक प्रांत के रूप में देखता है, जबकि ताइवान में अपनी खुद की लोकतांत्रिक रूप से चुनी हुई सरकार है और वहाँ के लोगों ताइवान को मेनलैंड चाइना की राजनीतिक प्रणाली और विचारधारा से अलग मानते हैं।
    • चीन और ताइवान के मध्य संबंध काफी नाज़ुक हैं, जिसमें पिछले सात वर्षों के दौरान सुधार हुआ है, लेकिन समय-समय पर इनके संबंधों में उतार-चढ़ाव देखा जाता है ।
    •  ‘एक चीन नीति’ (One China Policy) का आशय चीन की उस कूटनीतिक से है, जिसमें केवल एक चीनी सरकार को मान्यता दी जाती है।
      • एक नीति के तौर पर इसका अर्थ है कि ‘पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना’ (चीनी जन-गणराज्य (PRC) जो कि चीन का मुख्य भू-भाग है) से कूटनीतिक संबंधों के इच्छुक देशों को ‘रिपब्लिक ऑफ चाइना’ (चीनी गणराज्य या ROC यानी ताइवान) से संबंध तोड़ने होंगे।

प्रमुख बिंदु: 

भारत-ताइवान संबंध:

  • कूटनीतिक संबंध: 
    • भारत और ताइवान के बीच औपचारिक राजनयिक संबंध नहीं हैं, लेकिन वर्ष 1995 में दोनों देशों ने एक-दूसरे की राजधानियों में प्रतिनिधि कार्यालय स्थापित किये थे। भारत द्वारा ‘एक चीन नीति’ का समर्थन किया जाता है। 
  • आर्थिक संबंध:
    • वर्ष 2000 में भारत और ताइवान के बीच कुल 1 बिलियन डॉलर का व्यापार हुआ था, वहीं वर्ष 2019 में यह बढ़कर 7.5 बिलियन डॉलर पर पहुँच गया है।
    • वर्ष 2018 में भारत और ताइवान ने द्विपक्षीय निवेश समझौते पर हस्ताक्षर किये।
      • भारत में इलेक्ट्रॉनिक्स, विनिर्माण, पेट्रोकेमिकल, मशीन, सूचना और संचार प्रौद्योगिकी और ऑटो पार्ट्स के क्षेत्र में लगभग 200 ताइवानी कंपनियांँ हैं।
    • दोनों पक्षों के बीच विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में, तीस से अधिक सरकार द्वारा वित्त पोषित संयुक्त अनुसंधान परियोजनाएंँ चल रही हैं।
  • सांस्कृतिक संबंध : 
    • वर्ष 2010 में दोनों पक्षों के मध्य उच्च शिक्षा हेतु हुए’ म्यूच्यूअल डिग्री रिकोगनाइज़ेशन समझौते’ (Mutual Degree Recognition Agreement) के बाद शैक्षिक आदान-प्रदान का विस्तार हुआ है।

संबंधों में चुनौती: 

  • एक चीन नीति: भारत के लिये ताइवान के साथ अपने द्विपक्षीय संबंधों को पूरी तरह से विकसित करना अपेक्षाकृत मुश्किल है। वर्तमान में, विश्व के लगभग 15 देशों द्वारा  ताइवान को एक स्वतंत्र राज्य के रूप में मान्यता दी गई है। भारत मान्यता देने वाले 15 देशों में शामिल नहीं है।
  • आर्थिक सहयोग में बाधाएंँ: भारत में ताइवान का बढ़ता निवेश, सांस्कृतिक चुनौतियों और घरेलू उत्पादकों से दबाव का कारण बना हुआ है।

ताइवान के साथ बढ़ते संबंधों का दायरा

  • ताइवान इंडो-पैसिफिक क्षेत्र की एक महत्त्वपूर्ण भौगोलिक इकाई है। भारत-प्रशांत क्षेत्र में भारत का समावेशी दृष्टिकोण है अत: भारत को ताइवान और अन्य समान विचारधारा वाले देशों की भागीदारी को प्रोत्साहित करना चाहिये।
  •  वर्ष 2016 में शुरू की गई ‘ताइवान न्यू साउथबाउंड पॉलिसी’ (Taiwan’s New Southbound Policy) में भारत पहले से ही एक प्रमुख फोकस देश है। इसके तहत, ताइवान का उद्देश्य राजनीतिक, आर्थिक और पीपल-टू-पीपल संपर्क को बढ़ाकर अपनी अंतरराष्ट्रीय छवि को मज़बूत करना है।
    • सेमीकंडक्टर और इलेक्ट्रॉनिक्स के क्षेत्र में अग्रणी होने के चलते ताइवान, आईटीईएस (सूचना प्रौद्योगिकी-सक्षम सेवा) में भारत का पूरक हो सकता है।
    • यह भारत के मेक इन इंडिया (Make in India), डिजिटल इंडिया (Digital India) और स्मार्ट सिटीज़ (Smart Cities) अभियानों में योगदान दे सकता है।
    • ताइवान की कृषि-प्रौद्योगिकी और खाद्य प्रसंस्करण प्रौद्योगिकी भारत के कृषि क्षेत्र हेतु बहुत फायदेमंद साबित हो सकती है।
  • ताइवान क्षेत्रीय आपूर्ति शृंखला तंत्र का एक अभिन्न हिस्सा है और ताइवान के साथ एक व्यापार समझौता भारत को चीन से अलग कर क्षेत्रीय आर्थिक गतिशीलता से जुड़े रहने में मदद करेगा।

आगे की राह: 

  • दोनों देश एक जीवंत लोकतंत्र का प्रतिनिधित्त्व करते हैं, ऐसी स्थिति में संसदीय वार्ता एवं दोनों देशों के मध्य आयोजित विभिन्न दौरे, कानून के शासन (Rule Of Law) तथा सुशासन (Good Governance) के प्रति दोनों देशों की प्रतिबद्धता को मज़बूत कर सकते हैं।
  • भारत-ताइवान संबंधों के मध्य गहरे जुड़ाव का उद्देश्य ताइवान के साथ संबंधों को चीन के साथ बढ़ती दुश्मनी के साथ प्रतिसंतुलित करना नहीं है, बल्कि भारत-ताइवान संबंधों को चीन से अलग करके देखने की आवश्यकता है। ताइवान अपनी पहुँच भारत तक बना रहा है भारत को भी इस दिशा में एक साथ कदम बढ़ाना चाहिये।

स्रोत: द हिंदू

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