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भारत की श्रम शक्ति भागीदारी दर

  • 28 Apr 2022
  • 12 min read

प्रिलिम्स के लिये:

भारत की श्रम शक्ति भागीदारी दर (LFPR), भारत में बेरोज़गारी के प्रकार, बेरोज़गारी से निपटने हेतु सरकार द्वारा की गई पहलें।

मेन्स के लिये:

भारत में बेरोज़गारी के प्रकार, भारत में बेरोज़गारी का समाधान।

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में सेंटर फॉर मॉनीटरिंग इंडियन इकाॅनमी (Centre for Monitoring Indian Economy- CMIE) के आंँकड़ों के अनुसार, भारत की श्रम शक्ति भागीदारी दर (Labour Force Participation Rate- LFPR) जो वर्ष 2016 में कम (47%) थी, घटकर सिर्फ 40% रह गई है। 

  • आंँकड़ों से इस बात का भी पता चलता है कि कामकाजी आयु वर्ग (15 वर्ष और उससे अधिक) में भारत की आधी से अधिक आबादी नौकरियों को छोड़ने का फैसला कर रही है, तथा साथ ही ऐसे लोगों का अनुपात बढ़ता जा रहा है। 

Labour-Chart

 प्रमुख बिंदु 

 श्रम शक्ति भागीदारी दर (CMIE):

  • CMIE के अनुसार, श्रम बल में 15 वर्ष या उससे अधिक उम्र के लोग शामिल हैं तथा जो  निम्नलिखित दो श्रेणियों में से किसी एक से संबंधित हैं:
    • रोज़गारयुक्त/कार्यरत।
    • बेरोज़गार तथा कार्य करने के इच्छुक तथा जो सक्रिय रूप से नौकरी की तलाश में हैं।
  • इन दो श्रेणियों में लोग "नौकरी की मांग" करते हैं। यह मांग LFPR को संदर्भित करती है।
  • इस प्रकार LFPR अनिवार्य रूप से कामकाजी उम्र (15 वर्ष या अधिक) की आबादी का प्रतिशत है जो नौकरी की मांग करता है।
    • यह किसी भी अर्थव्यवस्था में नौकरियों हेतु "मांग" का प्रतिनिधित्व करता है।
    • इसमें रोज़गार पाने वाले और जो बेरोज़गार हैं, दोनों शामिल होते हैं। 
  • बेरोज़गारी दर (UER), जिसका नियमित रूप से उल्लेख समाचारों में किया जाता है, श्रम बल के अनुपात के रूप में बेरोज़गारों (श्रेणी 2) की संख्या को दर्शाता है।   
  • भारत में श्रम शक्ति भागीदारी दर न सिर्फ बाकी दुनिया के मुकाबले कम है बल्कि इसमें गिरावट भी  जारी है।
    • भारत में यह पिछले 10 वर्षों में घट रहा है और 2016 में 47% से घटकर दिसंबर 2021 तक केवल 40% रह गया है।

 भारत में श्रम शक्ति भागीदारी दर में गिरावट के कारण: 

  • भारत के श्रम शक्ति भागीदारी दर के कम होने का मुख्य कारण महिला श्रम शक्ति भागीदारी दर   का बेहद निम्न स्तर पर होना है। 
  • CMIE के आँकड़ों के अनुसार, दिसंबर 2021 तक पुरुष श्रम शक्ति भागीदारी दर  67.4% थी, जबकि वहीं महिला श्रम शक्ति भागीदारी दर 9.4% थी।  
  • दूसरे शब्दों में भारत में 10 कामकाजी उम्र की महिलाओं में से केवल एक   काम की मांग कर रही हैं।
  • विश्व बैंक से प्राप्त डेटा के अनुसार भारत की महिला श्रम शक्ति भागीदारी दर लगभग 25% है, जबकि यह वैश्विक औसत श्रम शक्ति भागीदारी 47% के आस-पास है।
  • महिलाओं की  श्रम शक्ति भागीदारी दर कम होने के प्रमुख कारण अनिवार्य रूप से काम करने की परिस्थितियों से संबंधित हैं, जैसे- कानून और व्यवस्था, कुशल सार्वजनिक परिवहन, महिलाओं के खिलाफ हिंसा, सामाजिक मानदंड आदि महिलाओं के लिये अनुकूल नहीं हैं। 
    • इसके अलावा भारत में बहुत सी महिलाएँ विशेष रूप से अपने घर के कार्यों  में शामिल रहती  हैं (जैसे अपने परिवार की देखभाल करना आदि )। 

 श्रम शक्ति भागीदारी दर की गणना से संबंधित सीमाएँ: 

  • बेरोज़गारी दर केवल उस व्यक्ति की गणना करती है जो बेरोज़गार हैं, लेकिन कुल कितने लोगों ने काम की मांग करना बंद कर दिया है यह इस बात की गणना नहीं करता है। 
    • आमतौर पर ऐसा तब होता है जब कामकाजी उम्र के लोग काम न मिलने से निराश हो जाते हैं। 
  • इस प्रकार एक और बिंदु पर ध्यान देना आवश्यक है- रोज़गार दर (ER)।
    • ER कार्यशील आयु की आबादी के प्रतिशत के रूप में नियोजित लोगों की कुल संख्या को संदर्भित करता है।

भारत में बेरोज़गारी के प्रकार: 

  • प्रच्छन्न बेरोजगारी: यह एक ऐसी घटना है जिसमें वास्तव में आवश्यकता से अधिक लोगों को रोज़गार दिया जाता है।
    • यह मुख्य रूप से भारत के कृषि और असंगठित क्षेत्रों में पाई जाती है।
  • मौसमी बेरोज़गारी: यह एक प्रकार की बेरोज़गारी है, जो वर्ष के कुछ निश्चित मौसमों के दौरान देखी जाती है।
    • भारत में खेतिहर मज़दूरों के पास वर्ष भर काफी कम काम होता है।
  • संरचनात्मक बेरोज़गारी: यह बाज़ार में उपलब्ध नौकरियों और श्रमिकों के कौशल के बीच असंतुलन होने से उत्पन्न बेरोज़गारी की एक श्रेणी है।
    • भारत में बहुत से लोगों को आवश्यक कौशल की कमी के कारण नौकरी नहीं मिलती है और शिक्षा के खराब स्तर के कारण उन्हें प्रशिक्षित करना मुश्किल हो जाता है।
  • चक्रीय बेरोज़गारी: यह व्यापार चक्र का परिणाम है, जहाँ मंदी के दौरान बेरोज़गारी बढ़ती है और आर्थिक विकास के साथ घटती है।
    • भारत में चक्रीय बेरोज़गारी के आँकड़े नगण्य हैं। यह एक ऐसी घटना है जो अधिकतर पूंजीवादी अर्थव्यवस्थाओं में पाई जाती है।
  • तकनीकी बेरोज़गारी: यह प्रौद्योगिकी में बदलाव के कारण नौकरियों का नुकसान है।
    • वर्ष 2016 में विश्व बैंक के आँकड़ों ने भविष्यवाणी की थी कि भारत में ऑटोमेशन से खतरे में पड़ी नौकरियों का अनुपात साल-दर-साल 69% है।
  • घर्षण बेरोज़गारी: घर्षण बेरोज़गारी का आशय ऐसी स्थिति से है, जब कोई व्यक्ति नई नौकरी की तलाश कर रहा होता है या नौकरियों के बीच स्विच कर रहा होता है, तो यह नौकरियों के बीच समय अंतराल को संदर्भित करता है।
  • सुभेद्य रोज़गार: इसका मतलब है कि लोग बिना उचित नौकरी अनुबंध के अनौपचारिक रूप से काम कर रहे हैं और इस प्रकार इनके लिये कोई कानूनी सुरक्षा नहीं है।
    • इन व्यक्तियों को 'बेरोज़गार' माना जाता है क्योंकि उनके कार्य का रिकॉर्ड कभी भी बनाया नहीं जाता हैं।
    • यह भारत में बेरोज़गारी के मुख्य प्रकारों में से एक है

सरकार की पहल:

आगे की राह

  • श्रम गहन उद्योगों को बढ़ावा देना: भारत में खाद्य प्रसंस्करण, चमड़ा और जूते, लकड़ी के निर्माता और फर्नीचर, कपड़ा तथा परिधान एवं वस्त्र जैसे कई श्रम गहन विनिर्माण क्षेत्र हैं।
    • रोज़गार सृजित करने हेतु प्रत्येक उद्योग के लिये व्यक्तिगत रूप से डिज़ाइन किये गए विशेष पैकेजों की आवश्यकता होती है।
  • उद्योगों का विकेंद्रीकरण: औद्योगिक गतिविधियों का विकेंद्रीकरण आवश्यक है ताकि हर क्षेत्र के लोगों को रोज़गार मिल सके।
    • ग्रामीण क्षेत्रों के विकास से शहरी क्षेत्रों में ग्रामीण लोगों के प्रवास को कम करने में मदद मिलेगी जिससे शहरी क्षेत्र की नौकरियों पर दबाव कम होगा।
  • राष्ट्रीय रोज़गार नीति का मसौदा तैयार करना: एक राष्ट्रीय रोज़गार नीति (एनईपी) की आवश्यकता है जिसमें बहुआयामी हस्तक्षेपों का एक समूह शामिल हो जिसमें कई नीति क्षेत्रों को प्रभावित करने वाले सामाजिक और आर्थिक मुद्दों की एक पूरी शृंखला शामिल हो, न कि केवल श्रम और रोज़गार के क्षेत्र।
    • राष्ट्रीय रोज़गार नीति के अंतर्निहित सिद्धांतों में शामिल हो सकते हैं:
      • कौशल विकास के माध्यम से मानव पूंजी में वृद्धि करना।
        • औपचारिक और अनौपचारिक क्षेत्रों में काम करने के इच्छुक नागरिकों के लिये पर्याप्त अच्छी गुणवत्ता वाली नौकरियांँ पैदा करना।
        • श्रम बाज़ार में सामाजिक एकता और समता को मज़बूत करना।
        • सरकार द्वारा शुरू की गई विभिन्न पहलों में अभिसरण और सामंजस्य स्थापित करना।
        • उत्पादक उद्यमों में प्रमुख निवेशक बनने के लिये निजी क्षेत्र की सहायता करना।
        • स्व-नियोजित व्यक्तियों का समर्थन करते हुए उनकी क्षमताओं को मज़बूत कर आय को बढ़ावा देना।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs): (2013)

प्रच्छन्न बेरोज़गारी का आमतौर पर अर्थ होता है:

(a) बड़ी संख्या में लोग बेरोज़गार रहते हैं
(b) वैकल्पिक रोज़गार उपलब्ध नहीं है
(c) श्रम की सीमांत उत्पादकता शून्य है
(d) श्रमिकों की उत्पादकता कम है

उत्तर: C

  • एक अर्थव्यवस्था प्रच्छन्न बेरोज़गारी को प्रदर्शित करती है जब उत्पादकता कम होती है और बहुत से श्रमिक कार्य कर रहे हों।

स्रोत: द इंडियन एक्सप्रेस

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