शीर्ष व्यापारिक साझेदारों के साथ भारत का व्यापार घाटा | 31 May 2024
प्रिलिम्स के लिये:व्यापार घाटा, मुक्त व्यापार समझौता, निर्यातोन्मुख क्षेत्र, बाह्य ऋण, मुद्रास्फीति, मर्चेंडाइज़ एक्सपोर्ट्स फ्रॉम इंडिया स्कीम (MEIS), सागरमाला परियोजना, प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) मेन्स के लिये:भारत के व्यापार घाटे की वर्तमान स्थिति, भारतीय अर्थव्यवस्था पर व्यापार घाटे के प्रमुख प्रभाव, व्यापार घाटे को नियंत्रित करने के संभावित उपाय। |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
हालिया आधिकारिक आँकड़ों द्वारा पता चलता है कि वर्ष 2023-24 में भारत को अपने शीर्ष 10 व्यापारिक साझेदारों में से 9 के साथ व्यापार घाटा होगा, जिनमें चीन, रूस, सिंगापुर और दक्षिण कोरिया शामिल हैं।
- व्यापार घाटा तब होता है जब किसी देश के आयात का मूल्य उसके निर्यात के मूल्य से अधिक हो जाता है, आयात और निर्यात से तात्पर्य भौतिक वस्तुओं और सेवाओं दोनों से है।
भारत के व्यापार घाटे की वर्तमान स्थिति क्या है?
- पिछले वित्त वर्ष में भारत का कुल व्यापार घाटा घटकर 238.3 बिलियन अमेरिकी डॉलर रह गया, जबकि वित्त वर्ष 2021-22 में यह 264.9 बिलियन अमेरिकी डॉलर था।
- चीन, रूस, दक्षिण कोरिया और हॉन्गकॉन्ग के साथ व्यापार घाटा 2022-23 की तुलना में पिछले वित्त वर्ष में बढ़ गया, जबकि संयुक्त अरब अमीरात, सऊदी अरब, रूस, इंडोनेशिया और इराक के साथ व्यापार घाटा कम हो गया।
- चीन वर्ष 2023-24 में 118.4 बिलियन डॉलर के दोतरफा वाणिज्य के साथ अमेरिका को पीछे छोड़ते हुए भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार बनकर उभरा है।
- हालाँकि, वर्ष 2021-22 और 2022-23 के दौरान अमेरिका भारत का शीर्ष व्यापारिक साझेदार था।
- वर्ष 2023-24 में भारत का अमेरिका के साथ 36.74 बिलियन डॉलर का व्यापार अधिशेष होगा तथा ब्रिटेन, बेल्जियम, इटली, फ्राँस और बांग्लादेश के साथ भी यह अधिशेष रहेगा।
- भारत का अपने चार शीर्ष व्यापारिक साझेदारों - सिंगापुर, संयुक्त अरब अमीरात, कोरिया और इंडोनेशिया (एशियाई ब्लॉक (Asian Bloc) के भाग के रूप में) के साथ मुक्त व्यापार समझौता है।
भारत के व्यापार घाटे के पीछे क्या कारण हैं?
- ऊर्जा आयात पर निर्भरता:
- भारत अपनी कच्चे तेल की 85% से अधिक जरूरत को आयात करता है, जिससे भारतीय अर्थव्यवस्था वैश्विक तेल कीमतों में उतार-चढ़ाव के प्रति सुभेद्य हो जाती है, जिससे व्यापार घाटे पर काफी प्रभाव पड़ता है।
- प्रमुख इनपुट पर निर्भरता:
- कुछ भारतीय उद्योग, जैसे फार्मास्यूटिकल्स (Pharmaceuticals), सेमीकंडक्टर (Semiconductors) आदि आयातित कच्चे माल और मध्यवर्ती वस्तुओं पर बहुत अधिक निर्भर हैं। इससे आयात मूल्य बढ़ता है और घाटा बढ़ता है।
- उदाहरण के लिये, फार्मास्युटिकल क्षेत्र चीन से सक्रिय फार्मास्युटिकल सामग्री (Active Pharmaceutical Ingredients- APIs) का भारी मात्रा में आयात करता है।
- विनिर्मित वस्तुओं के निर्यात में कमी:
- चीन व अमेरिका जैसे देशों की तुलना में अल्प विनिर्माण क्षमता और वैश्विक बाज़ार में अल्प प्रतिस्पर्द्धात्मकता जैसे कारकों के कारण भारत से निर्यातित निर्मित वस्तुओं की मात्रा अक्सर आयातित वस्तुओं की मात्रा से अपेक्षाकृत कम रह जाती है।
भारतीय अर्थव्यवस्था पर व्यापार घाटे के प्रमुख प्रभाव क्या हैं?
- लाभ:
- यदि कोई राष्ट्र मध्यवर्ती वस्तुओं या कच्चे माल का आयात कर रहा है, तो ऐसा व्यापार असंतुलन स्वाभाविक रूप से हानिकारक नहीं है, क्योंकि इससे निर्यात और विनिर्माण में वृद्धि होगी।
- व्यापार घाटे का एक अल्पकालिक लाभ यह है कि आयात वृद्धि से नागरिकों को विविध प्रकार की वस्तुओं एवं सेवाओं की उपलब्धता सुनिश्चित होती है, जिससे उन्हें अधिक विकल्प प्राप्त होते हैं तथा उनके जीवन स्तर में भी सुधार होता है।
- व्यापार घाटे के कारण मुद्रा का अवमूल्यन भी होता है, जिसके परिणामस्वरूप अधिक प्रतिस्पर्द्धी कीमतों के कारण भारतीय निर्यात को प्राथमिकता मिलती है।
- कुछ मामलों में, व्यापार घाटा घरेलू व्यवसायों को नवाचार में निवेश करने और आयातित वस्तुओं के साथ प्रतिस्पर्द्धा करने हेतु दक्षता में सुधार करने के लिये प्रोत्साहित कर सकता है। इससे पैकेजिंग, शिपिंग, लॉजिस्टिक्स आदि जैसे निर्यात-उन्मुख क्षेत्रों में रोज़गार सृजन हो सकता है।
- चुनौतियाँ:
- आयात पर अत्यधिक निर्भरता कुछ क्षेत्रों में घरेलू नवाचार और उत्पादन को बाधित कर सकती है, जिससे घरेलू स्तर पर उत्पादित वस्तुओं की उपलब्धता सीमित हो सकती है।
- उच्च व्यापार घाटा, विशेष रूप से उन क्षेत्रों में जहाँ आयात की मात्रा उच्च है, उस विशेष क्षेत्र से संबंधित उद्योगों में रोज़गार के कम होने का कारण बन सकता है।
- उदाहरण के लिये, बांग्लादेश से सस्ती दरों पर वस्त्र उत्पादों के आयात के कारण कुछ उद्योग बंद हो गए हैं, जिसके परिणामस्वरूप देश में नौकरियाँ समाप्त हो गई हैं।
- निरंतर व्यापार घाटा रुपए के मूल्य पर दबाव डाल सकता है, जिससे घरेलू मुद्रा कमज़ोर हो सकती है। इससे आयात और भी महँगा हो सकता है।
- निर्यात में कमी होने से निर्यात शुल्क से सरकार को मिलने वाला राजस्व कम हो सकता है। इससे सरकार की सामाजिक कार्यक्रमों और बुनियादी ढाँचे के विकास के लिये धन जुटाने की क्षमता प्रभावित हो सकती है।
- व्यापार घाटे को वित्तपोषित करने के लिये भारत को विदेशी स्रोतों से ऋण लेने की आवश्यकता हो सकती है, जिससे बाह्य ऋण और ब्याज भुगतान में वृद्धि होगी।
- इससे विदेशी मुद्रा भंडार और भी कम हो जाता है तथा निवेशकों को आर्थिक अस्थिरता का संकेत मिलता है, जिससे विदेशी निवेश में कमी आती है।
व्यापार घाटे को नियंत्रित करने के लिये क्या उपाय किये जा सकते हैं?
- व्यापार समझौते: प्रमुख साझेदारों के साथ FTA पर बातचीत और क्रियान्वयन से भारतीय निर्यात पर टैरिफ एवं अन्य बाधाएँ कम हो सकती हैं, जिससे वे विदेशी बाज़ारों में प्रतिस्पर्द्धा कर सकेंगे।
- उदाहरण: भारत-यूएई CEPA का उद्देश्य द्विपक्षीय व्यापार में होने वाले 80% से अधिक टैरिफ को कम करना है, जिससे भारतीय वस्त्रों, फार्मास्यूटिकल्स और कृषि उत्पादों के निर्यात को बढ़ावा मिलेगा।
- निर्यात अवसंरचना में सुधार: बंदरगाहों, सड़कों और लॉजिस्टिक्स नेटवर्क के आधुनिकीकरण जैसे बुनियादी ढाँचे के विकास में निवेश से निर्यात प्रक्रिया को सुव्यवस्थित किया जा सकता है और परिवहन लागत को कम किया जा सकता है।
- आयात प्रतिस्थापन: सरकार सार्वजनिक खरीद नीतियों और स्थानीय स्तर पर निर्मित वस्तुओं को बढ़ावा देने वाले अभियानों के माध्यम से आयातित उत्पादों के लिये घरेलू विकल्पों के उपयोग को प्रोत्साहित करेगी।
- उदाहरण: सरकारी बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं में घरेलू स्तर पर उत्पादित इस्पात के उपयोग को बढ़ावा देने से आयातित इस्पात पर निर्भरता कम हो सकती है और घरेलू इस्पात उद्योग को बढ़ावा मिल सकता है।
- आयात को तर्कसंगत बनाना: आयात डेटा का विश्लेषण करने से गैर-आवश्यक या विलासिता की वस्तुओं की पहचान की जा सकती है, जिन्हें घरेलू स्तर पर उत्पादित विकल्पों के साथ प्रतिस्थापित किया जा सकता है।
- उदाहरण: सरकार को उच्च टैरिफ के माध्यम से कुछ इलेक्ट्रॉनिक वस्तुओं के आयात को हतोत्साहित करना चाहिये तथा उपभोक्ताओं को घरेलू स्तर पर उत्पादित विकल्प चुनने के लिये प्रोत्साहित करना चाहिये।
- कार्यबल को कुशल बनाना: कौशल विकास कार्यक्रमों में निवेश करके आधुनिक उद्योगों के लिये आवश्यक विशेषज्ञता से युक्त कार्यबल तैयार किया जा सकता है, जिससे घरेलू उत्पादन क्षमता में वृद्धि होगी और आयात पर निर्भरता कम होगी।
- मुद्रा और ऋण स्तर का प्रभावी प्रबंधन: RBI को रुपये की विनिमय दर का प्रभावी प्रबंधन करना चाहिये तथा ऐसा संतुलन स्थापित करना चाहिये जो अत्यधिक मूल्यह्रास किये बिना निर्यात को बढ़ावा दे।
- सरकार को अपने ऋण भार को निम्न करने के लिये राजकोषीय समेकन पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये, ताकि घरेलू उद्योगों के विकास हेतु अधिक स्थिर आर्थिक वातावरण का निर्माण हो सके।
निष्कर्ष
यह ध्यान रखना महत्त्वपूर्ण है कि सभी के लिये एक जैसा समाधान नहीं है, और इन उपायों की प्रभावशीलता विशिष्ट व्यापार साझेदार, आयात और निर्यात की प्रकृति तथा वैश्विक आर्थिक माहौल जैसे विभिन्न कारकों पर निर्भर करती है। भारत सरकार को स्थिति का सावधानीपूर्वक आकलन करने और व्यापार घाटे को प्रभावी ढंग से संबोधित करने तथा सतत् आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के लिए इन रणनीतियों के संयोजन को लागू करने की आवश्यकता है।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. भारत के अधिकांश प्रमुख व्यापारिक साझेदारों के साथ वर्तमान व्यापार घाटे की स्थिति पर प्रकाश डालते हुए, भारतीय अर्थव्यवस्था पर इसके प्रभावों पर चर्चा कीजिये। साथ ही भारत के व्यापार घाटे को कम करने के उपाय भी सुझाएँ। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स :प्रश्न. निम्नलिखित देशों पर विचार कीजिये:(2018)
उपर्युक्त में से कौन-से देश आसियान (ASEAN) के ‘मुक्त-व्यापार साझेदार’ हैं? (a) 1, 2, 4 और 5 उत्तर: (c) प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन सा 'आयात कवर' शब्द का सबसे अच्छा वर्णन करता है, जो कभी-कभी समाचारों में देखा जाता है? (वर्ष 2016) (A) यह किसी देश के सकल घरेलू उत्पाद के आयात के मूल्य का अनुपात है। उत्तर: D मेन्स:प्रश्न. सामान्यतः देश कृषि से उद्योग और बाद में सेवाओं को अन्तरित होते हैं पर भारत सीधे ही कृषि से सेवाओं को अन्तरित हो गया है। देश में उद्योग के मुक़ाबले सेवाओं की विशाल संवृद्धि के क्या कारण हैं? क्या भारत सशक्त औद्योगिक आधार के बिना एक विकसित देश बन सकता है? (2014) |