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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

हिंद महासागर क्षेत्र में भारत का पहला रिस्पांडर

  • 26 Nov 2021
  • 9 min read

प्रिलिम्स के लिये:

हिंद महासागर क्षेत्र, आपदा प्रबंधन पर विश्व कॉन्ग्रेस, सागर पहल, नीली अर्थव्यवस्था

मेन्स के लिये:

प्रथम रिस्पांडर के रूप में भारत का प्रकटीकरण

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत के रक्षा मंत्री ने नई दिल्ली में आपदा प्रबंधन पर विश्व कॉन्ग्रेस (World Congress on Disaster Management- WCDM) के पाँचवें संस्करण  को संबोधित किया।

  • इस सम्मेलन में रक्षा मंत्री ने इस बात को प्राथमिकता देते हुए कहा कि भारत ने बार-बार हिंद महासागर क्षेत्र (IOR) में स्वयं को "प्रथम प्रतिक्रियाकर्त्ता" (First Responder) के रूप में साबित किया है।
  • "प्रथम प्रतिक्रियाकर्त्ता" (First Responder) के रूप में भारत की उभरती अवधारणा देश की बढ़ती क्षमता और एक प्रमुख शक्ति की भूमिका ग्रहण करने की बढ़ती इच्छा को दर्शाती है।

आपदा प्रबंधन पर विश्व कॉन्ग्रेस (WCDM):

  • आपदा जोखिम प्रबंधन के विभिन्न चुनौतीपूर्ण मुद्दों पर चर्चा करने के लिये विश्व के शोधकर्त्ताओं, नीति निर्माताओं एवं चिकित्सकों को एक मंच पर लाने हेतु यह आपदा प्रबंधन और अभिसरित समाज की एक अनूठी पहल है।
  • इसका उद्देश्य जोखिमों को कम करने और आपदाओं के प्रति लचीलापन के लिये जोखिमों एवं अग्रिम कार्यों की समझ बढ़ाने हेतु विज्ञान, नीति तथा प्रथाओं पर बातचीत को बढ़ावा देना है।

प्रमुख बिंदु

  • भारत, प्रथम प्रतिक्रियाकर्त्ता के रूप में:
    • अंतर्निहित विज़न: हिंद महासागर के लिये भारत का दृष्टिकोण सागर पहल (Security and Growth for All in the Region-SAGAR) की अवधारणा से प्रेरित है। सागर में विशिष्ट और अंतर-संबंधित दोनों तत्त्व शामिल हैं जैसे:
      • तटीय राज्यों के बीच आर्थिक और सुरक्षा सहयोग को मज़बूत करना।
      • भूमि और समुद्री क्षेत्रों की सुरक्षा के लिये क्षमता बढ़ाना।
      • सतत् क्षेत्रीय विकास की दिशा में कार्य करना।
      • नीली अर्थव्यवस्था और प्राकृतिक आपदाओं, समुद्री डकैती तथा आतंकवाद जैसे गैर-पारंपरिक खतरों से निपटने के लिये सामूहिक कार्रवाई को बढ़ावा देना।
    • सक्षम बनाने वाले कारक: हिंद महासागर क्षेत्र में भारत की अद्वितीय स्थिति, सशस्त्र बलों की क्षमता से पूरित इसे मानवीय सहायता और आपदा राहत (HADR) स्थितियों में महत्त्वपूर्ण योगदान देने में सक्षम बनाती है।
      • क्षेत्रीय और अंतर्राष्ट्रीय संकटों को रोकने या कम करने में अपने संसाधनों के योगदान से  भारत अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था में एक ज़िम्मेदार नेतृत्वकर्त्ता के रूप में अपनी प्रतिबद्धता का प्रदर्शन कर रहा है।
    • इस पहल की आवश्यकता: भौगोलिक-राजनीतिक परिदृश्य और पारंपरिक एवं गैर-पारंपरिक खतरों को चुनौती देना जिसमें दुनिया के सामने कोविड-19 जैसी प्राकृतिक आपदाएँ शामिल हैं।
      • क्षेत्रीय और वैश्विक निहितार्थों के साथ आपदाएँ (चाहे वह प्राकृतिक आपदा हो, या आकस्मिक वित्तीय संकट) अक्सर बड़े पैमाने पर प्रभाव डालती हैं।
      • नेतृत्वकर्त्ता के रूप में भारत अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था सुनिश्चित करने की कोशिश करता है क्योंकि छोटे या कम सक्षम राष्ट्रों को सहायता की सख्त ज़रूरत है।
  • प्रथम प्रतिक्रियाकर्त्ता के रूप में भारत का प्रकटीकरण:
    • मानवीय सहायता और आपदा राहत (HADR) अभियान: भारत विशेषज्ञता और निर्माण क्षमता को साझा करने पर ध्यान देने के साथ अपने पड़ोसियों और मित्र देशों के साथ HADR सहयोग व समन्वय को मज़बूत करने के लिये नियमित रूप से अभ्यास करता रहा है।
    • डिज़ास्टर रेज़िलिएशन: भारत द्वारा इसका नेतृत्व किया जा रहा है और अपने मित्र देशों को डिज़ास्टर रेज़िलिएंट इंफ्रास्ट्रक्चर (Disaster Resilient Infrastructure- DRI) की विशेषज्ञता प्रदान कर रहा है।
    • प्रवासी निकासी अभियान: वर्ष 2015 में ‘ऑपरेशन राहत’ के तहत  भारत ने 40 से अधिक देशों के 6,700 लोगों के साथ 1,940 भारतीय नागरिकों को यमन से सुरक्षित बाहर निकाला।
    • गैर-पारंपरिक सुरक्षा चुनौतियांँ: भारतीय नौसेना गैर-पारंपरिक सुरक्षा चुनौतियों के लिये  हिंद महासागर की डिफाॅल्ट फर्स्ट रेसपोंडर (Default First Responder) के रूप में उभरी है।
      • वर्ष 2008 से अदन की खाड़ी में समुद्री डकैती का मुकाबला करने के लिये  भारतीय सेना द्वारा लगभग तीस युद्धपोतों को तैनात किया गया, जिन्होंने 1500 से अधिक जहाज़ोंं को बचा लिया और लगभग तीस समुद्री डकैती के प्रयासों को विफल कर दिया गया।
    • संघर्ष के बाद राहत और पुनर्वास: भारत ने अक्सर संघर्ष के बाद की प्रक्रियाओं से गुज़रने वाले देशों का समर्थन करने में अग्रणी भूमिका निभाई है, इसके लिये संसाधनों और महत्त्वपूर्ण धन की आवश्यकता होती है।
      • उदाहरण के लिये भारत ने संघर्ष के बाद की स्थिति से बाहर निकलने हेतु अफगानिस्तान और श्रीलंका को सहायता प्रदान की।
    • शरणार्थी प्रवाह: जब भी लोग दक्षिण एशिया में अपने जीवन को संकट में देखते हैं, तो वे अक्सर पहले भारत की ओर देखते हैं। भारत ने शरणार्थियों और अल्पसंख्यक आबादी के लिये आपातकालीन सुरक्षित आश्रय प्रदान किया है। 

आगे की राह 

  • अत्याधुनिक तकनीकों का लाभ उठाना: अंतरिक्ष, संचार, जैव-इंजीनियरिंग, जैव-चिकित्सा और कृत्रिम बुद्धिमत्ता के क्षेत्र में उभरती अत्याधुनिक प्रौद्योगिकियांँ आपदा के जोखिमों का आकलन करने और पूर्व चेतावनी के माध्यम से संचार के तरीके में क्रांतिकारी बदलाव ला सकती हैं।
  • महामारी के बाद का आकलन: ‘2030 सतत् विकास हेतु एजेंडा’ के कार्यान्वयन पर महामारी के प्रभाव के व्यापक मूल्यांकन की आवश्यकता है।
    • नए ढांँचे को लक्ष्यों के कार्यान्वयन हेतु वैश्विक और राष्ट्रीय रणनीतियों में नए विचारों को शामिल करने पर ज़ोर देना चाहिये। 
  • प्रथम प्रतिक्रियाकर्त्ता परंपरा और संवर्द्धन: प्रथम प्रतिक्रियाकर्त्ता परंपरा का और अधिक प्रचार किया जाना चाहिये क्योंकि यह अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था में एक प्रेरक भूमिका का निर्वहन करने की भारत की गहरी प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
    • इसके लिये भारत को अपनी सीमाओं से भी और आगे बढ़ने के लिये पर्याप्त संसाधनों और क्षमताओं से संपन्न होना होगा।

स्रोत: द हिंदू

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