जैव विविधता और पर्यावरण
भारत और हाई सी ट्रीटी
- 28 Nov 2024
- 17 min read
प्रिलिम्स के लिये:हाई सी ट्रीटी, सामुद्रिक कानून पर संयुक्त राष्ट्र अभिसमय, विशेष आर्थिक क्षेत्र, सतत् विकास लक्ष्य, महासागर अम्लीकरण, ब्लू इकॉनमी, मिशन LiFE, जैवविविधता पर अभिसमय मेन्स के लिये:हाई सी ट्रीटी, भारत के लिये महत्व, अंतर्राष्ट्रीय समुद्री कानून और महासागर अभिशासन, पर्यावरण संरक्षण में अंतर्राष्ट्रीय संधियाँ |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
भारत ने सितंबर 2024 में हाई सी ट्रीटी पर हस्ताक्षर किया, जिसे औपचारिक रूप से राष्ट्रीय क्षेत्राधिकार से परे जैवविविधता (BBNJ) समझौते के रूप में जाना जाता है, जो अंतर्राष्ट्रीय महासागर अभिशासन में एक प्रमुख मील का पत्थर है।
हालाँकि, कार्यान्वयन और भू-राजनीतिक चुनौतियाँ इसकी प्रभावशीलता के बारे में चिंताएँ पैदा करती हैं।
हाई सी ट्रीटी क्या है?
- परिचय: सामुद्रिक कानून पर संयुक्त राष्ट्र अभिसमय (UNCLOS) के ढाँचे के तहत विकसित BBNJ समझौता राष्ट्रीय अधिकार क्षेत्र से परे क्षेत्रों में समुद्री जैवविविधता के संरक्षण और स्थायी उपयोग पर केंद्रित है, जो विशेष आर्थिक क्षेत्रों (EEZ) के 200 समुद्री मील (370 किमी) से परे हैं।
- BBNJ समझौता लागू होने के बाद UNCLOS के तहत तीसरा कार्यान्वयन समझौता बन जाएगा, जो निम्नलिखित का पूरक है:
- 1994 भाग XI कार्यान्वयन समझौता (अंतर्राष्ट्रीय समुद्र तल में खनिज संसाधन अन्वेषण पर केंद्रित)।
- 1995 संयुक्त राष्ट्र मत्स्य स्टॉक समझौता (स्ट्रेडलिंग और प्रवासी मछली भंडार के संरक्षण और प्रबंधन पर केंद्रित)।
- यह समझौता सतत् विकास लक्ष्यों (SDG), विशेष रूप से SDG 14 (जल के नीचे जीवन) को प्राप्त करने में योगदान देता है।
- BBNJ समझौता लागू होने के बाद UNCLOS के तहत तीसरा कार्यान्वयन समझौता बन जाएगा, जो निम्नलिखित का पूरक है:
- आवश्यकता: समुद्र की सतह का 64% और पृथ्वी के क्षेत्रफल का 43% हिस्सा समुद्र में फैला हुआ है। वे लगभग 2.2 मिलियन समुद्री प्रजातियों और एक ट्रिलियन सूक्ष्मजीवों का आवास हैं।
- ये क्षेत्र किसी भी राष्ट्र के स्वामित्व में नहीं हैं, जिससे नौवहन, आर्थिक गतिविधियों और वैज्ञानिक अनुसंधान के लिये समान अधिकार प्राप्त हैं।
- वर्ष 2021 में, अनुमानतः 17 मिलियन टन प्लास्टिक समुद्रों में फेंका गया, और यह संख्या बढ़ने की उम्मीद है। जवाबदेही की कमी से अतिदोहन, जैवविविधता की हानि, प्रदूषण और महासागरों का अम्लीकरण होता है।
- यह संधि संसाधनों के सतत् उपयोग को सुनिश्चित करने, जैवविविधता की रक्षा करने तथा प्रदूषण फैलाने वालों को जवाबदेह बनाने के लिये महत्त्वपूर्ण है।
- संधि के उद्देश्य:
- समुद्री संरक्षित क्षेत्र (MPA): उन क्षेत्रों की स्थापना और विनियमन पर ध्यान केंद्रित करता है जहाँ जैवविविधता सहित समुद्री प्रणालियाँ मानवीय गतिविधियों या जलवायु परिवर्तन के कारण तनाव में हैं, जैसे भूमि पर राष्ट्रीय उद्यान या वन्यजीव रिज़र्व।
- इन क्षेत्रों का उद्देश्य समुद्री जैवविविधता और पारिस्थितिकी तंत्र का संरक्षण करना है।
- समुद्री आनुवंशिक संसाधन: औषधि विकास सहित समुद्री आनुवंशिक संसाधनों के उपयोग से उत्पन्न लाभों का न्यायसंगत बंटवारा सुनिश्चित करना तथा इन संसाधनों से उत्पन्न ज्ञान तक खुली पहुँच को बढ़ावा देना।
- पर्यावरणीय प्रभाव आकलन (EIA): समुद्री पारिस्थितिकी तंत्रों के लिये संभावित रूप से हानिकारक गतिविधियों के लिये पूर्व EIA को अनिवार्य बनाना, जिसमें राष्ट्रीय अधिकार क्षेत्र के भीतर की गतिविधियाँ भी शामिल हैं जो हाई सी को प्रभावित कर सकती हैं, तथा आकलन का सार्वजनिक प्रकटीकरण करना।
- क्षमता निर्माण और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण: संरक्षण प्रयासों में छोटे द्वीप राज्यों और स्थलबद्ध राष्ट्रों को समर्थन देने और क्षमता निर्माण और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण के माध्यम से उन्हें धारणीय समुद्री संसाधन उपयोग से लाभान्वित करने में सक्षम बनाने पर ध्यान केंद्रित किया जाता है।
- समुद्री संरक्षित क्षेत्र (MPA): उन क्षेत्रों की स्थापना और विनियमन पर ध्यान केंद्रित करता है जहाँ जैवविविधता सहित समुद्री प्रणालियाँ मानवीय गतिविधियों या जलवायु परिवर्तन के कारण तनाव में हैं, जैसे भूमि पर राष्ट्रीय उद्यान या वन्यजीव रिज़र्व।
- हस्ताक्षर और अनुसमर्थन: कम-से-कम 60 देशों द्वारा अपने औपचारिक अनुसमर्थन दस्तावेज़ प्रस्तुत करने के 120 दिन बाद यह संधि अंतर्राष्ट्रीय कानून बन जाएगी। हाई सीज़ एलायंस के अनुसार, नवंबर 2024 तक 105 देशों द्वारा संधि पर हस्ताक्षर किये गए हैं, लेकिन उनमें से केवल 15 ने ही इसे अनुसमर्थित और प्रस्तुत किया है।
नोट: अनुसमर्थन (रटिफिकेशन) वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा कोई देश कानूनी रूप से किसी अंतर्राष्ट्रीय कानून के प्रति प्रतिबद्धता प्रदर्शित करता है, जो हस्ताक्षर करने से भिन्न है।
- हस्ताक्षर करने से यह संकेत मिलता है कि कोई देश संबंधित अंतर्राष्ट्रीय कानून के प्रावधानों से सहमत है, और उसका पालन करने के लिये तैयार है। जब तक इसकी पुष्टि नहीं हो जाती, तब तक कोई देश कानून का पालन करने के लिये कानूनी रूप से बाध्य नहीं होता है।
भारत के लिये हाई सी ट्रीटी का क्या महत्त्व है?
- ब्लू इकॉनमी से आर्थिक लाभ: भारत की ब्लू इकॉनमी उसके सकल घरेलू उत्पाद में 4% का योगदान प्रदान करती है, जिसमें इको-पर्यटन, मत्स्य पालन और जलीय कृषि (विशेष रूप से केरल जैसे तटीय क्षेत्रों में) में लाखों रोज़गारों का सृजन शामिल है।
- चूँकि अधिकांश बेड़े अपने अनन्य आर्थिक क्षेत्रों (EEZs) में ही कार्य करते हैं, इसलिये अफ्रीका और भारत जैसे देशों को अंतर्राष्ट्रीय जलक्षेत्र में विदेशी बेड़े द्वारा शोषण का खतरा बना रहता है।
- यह संधि इन क्षेत्रों में मत्स्य ग्रहण को विनियमित करने में मदद कर सकती है, ताकि सतत् उपयोग सुनिश्चित हो सके।
- चूँकि अधिकांश बेड़े अपने अनन्य आर्थिक क्षेत्रों (EEZs) में ही कार्य करते हैं, इसलिये अफ्रीका और भारत जैसे देशों को अंतर्राष्ट्रीय जलक्षेत्र में विदेशी बेड़े द्वारा शोषण का खतरा बना रहता है।
- प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना (PMMSY) का उद्देश्य मत्स्य पालन क्षेत्र को बढ़ावा देना है। हाई सी ट्रीटी पर हस्ताक्षर करने से मत्स्य पालन के संरक्षण और स्थायी समुद्री उद्योगों से राजस्व प्राप्ति में मदद मिलेगी।
- जलवायु परिवर्तन पर ध्यान देना: संधि में समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र पर कार्बन सिंक के रूप में ध्यान केंद्रित करना जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिये महत्त्वपूर्ण है।
- भारत के लिये, स्वस्थ समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र तटीय क्षरण, चरम मौसम और बढ़ते समुद्री स्तर के विरुद्ध प्रतिरोधक के रूप में कार्य करता है।
- यह संधि प्रकृति आधारित समाधानों (NBS) को बढ़ावा देती है, जैसे समुद्री परिदृश्य की बहाली और MPA, जो प्रवाल भित्तियों की सुरक्षा के लिये महत्त्वपूर्ण हैं, जो ग्लोबल वार्मिंग के कारण ढहने के खतरे में हैं।
- प्रवाल भित्तियों के संरक्षण हेतु, जो वैश्विक तापमान वृद्धि के परिणामस्वरूप खतरे में हैं, यह समझौता प्रकृति-आधारित समाधानों (NBS) जैसे MPA और समुद्री परिदृश्य बहाली को प्रोत्साहित करता है।
- इस संधि के लिये भारत का समर्थन प्रवाल भित्तियों की गिरावट को रोकने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
- सतत् विकास लक्ष्यों और वैश्विक प्रतिबद्धताओं के साथ संरेखण: हाई सी ट्रीटी के अनुसमर्थन से भारत सतत् विकास लक्ष्यों 13 (जलवायु कार्रवाई) और 14 के साथ संरेखित हो जाएगा, पेरिस समझौते, 2015 के तहत अपने राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (NDC) को सुदृढ़ करेगा तथा मिशन LIFE (पर्यावरण के लिये जीवन शैली) और सागर (SAGAR) पहल का समर्थन करेगा।
- यह भारत को सतत् विकास और समुद्री जैव विविधता संरक्षण में वैश्विक नेता के रूप में स्थापित करेगा।
हाई सी ट्रीटी के समक्ष क्या चुनौतियाँ हैं?
- अनुसमर्थन का अभाव: हाई सी ट्रीटी को महत्त्वपूर्ण चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, जिसमें अनुसमर्थन की धीमी प्रक्रिया भी शामिल है, भू-राजनीतिक चिंताओं के कारण 105 हस्ताक्षरकर्त्ताओं में से केवल 15 ने ही इसे मंजूरी दी है।
- दक्षिण चीन सागर जैसे समुद्री क्षेत्रों पर विवाद MPA के निर्माण में बाधा डालते हैं।
- दक्षिण-पूर्व एशिया और बंगाल की खाड़ी से सटे देशों को डर है कि MPA संप्रभुता और राष्ट्रीय आर्थिक हितों को कमज़ोर कर सकता है, जिससे संरक्षण एवं राष्ट्रीय प्राथमिकताओं के बीच संतुलन जटिल हो सकता है।
- समुद्री आनुवंशिक संसाधन: समुद्री आनुवंशिक संसाधनों से लाभ साझा करने के संधि के प्रावधान जवाबदेही संबंधी चिंताएँ उत्पन्न करते हैं, जिसमें यह जोखिम है कि धनी राष्ट्र लाभ पर एकाधिकार कर सकते हैं, जिससे कम विकसित देश हाशिये पर चले जाएंगे तथा मौजूदा असमानताएँ और बढ़ जाएंगी।
- मौजूदा ढाँचे के साथ अतिव्यापन (ओवरलैप): समुद्री आनुवंशिक संसाधनों, क्षेत्र-आधारित प्रबंधन विधियों और EIA के संबंध में समान प्रावधानों के कारण, हाई सी ट्रीटी और जैव विविधता पर अभिसमय (CBD) के मध्य मतभेद उत्पन्न हो सकता है।
- मौजूदा ढाँचे के साथ अतिव्यापन से महासागरीय प्रशासन प्रभावित हो सकता है, प्रवर्तन जटिल हो सकता है तथा छोटे देशों के लिये अंतर्राष्ट्रीय मानदंडों का अनुपालन बाधित हो सकता है।
- कार्यान्वयन में स्पष्टता का अभाव: संधि में व्यापक उद्देश्य निर्धारित किये गए हैं, लेकिन कार्यान्वयन संबंधी स्पष्ट दिशा-निर्देशों का अभाव है, जिसके कारण इसका अनुप्रयोग असंगत है।
- यद्यपि पर्यावरणीय प्रभाव आकलन (EIA) अनिवार्य है, लेकिन संधि में पर्यावरणीय प्रभाव आकलन (EIA) के संचालन और क्रियान्वयन के लिये निर्दिष्ट प्रक्रियाओं का अभाव है, जिससे इसकी प्रभावशीलता, विशेष रूप से सीमित क्षमता वाले क्षेत्रों में सीमित हो सकती है।
- इसमें तेल और गैस अन्वेषण जैसी गतिविधियों से हो रही पर्यावरणीय क्षति की भी उपेक्षा की जाती है और यह समुद्री पारिस्थितिकी प्रणालियों की अंतर्संबंधता (विशेष रूप से EEZ गतिविधियों- जैसे कि मत्स्यन और प्रदूषण के कारण गहन समुद्री पारिस्थितिकी प्रणालियों पर पड़ने वाले प्रभाव को संबोधित करने में विफल है।
- यद्यपि पर्यावरणीय प्रभाव आकलन (EIA) अनिवार्य है, लेकिन संधि में पर्यावरणीय प्रभाव आकलन (EIA) के संचालन और क्रियान्वयन के लिये निर्दिष्ट प्रक्रियाओं का अभाव है, जिससे इसकी प्रभावशीलता, विशेष रूप से सीमित क्षमता वाले क्षेत्रों में सीमित हो सकती है।
- क्षमता निर्माण और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण: इस संधि में प्रौद्योगिकी हस्तांतरण के लिये प्रवर्तनीय तंत्र का अभाव है जिससे निम्न एवं मध्यम आय वाले देश इसके लाभों से वंचित रह सकते हैं तथा इससे असमानताएँ बनी रह सकती हैं।
- इसके अतिरिक्त कई क्षेत्रों में इस संधि के प्रावधानों की निगरानी करने एवं उन्हें लागू करने के लिये मज़बूत संस्थाओं का अभाव बना हुआ है। इसके साथ ही घरेलू एवं अंतर्राष्ट्रीय कानूनी मानकों के टकराव से इसकी प्रभावशीलता और कम हो जाती है।
हाई सी ट्रीटी के कार्यान्वयन अंतराल को किस प्रकार दूर किया जा सकता है?
- तटीय एवं गहन-समुद्री गतिविधियों का एकीकरण: इस क्रम में तटीय राज्यों को बेहतर तालमेल के क्रम में घरेलू कानूनों को अंतर्राष्ट्रीय मानदंडों के साथ संरेखित करना चाहिये।
- अनुपालन को प्रोत्साहित करना: क्षमता निर्माण हेतु ग्लोबल साउथ देशों को तकनीकी और वित्तीय सहायता प्रदान करनी चाहिये।
- धनी देशों को संसाधनों का समान वितरण सुनिश्चित करना चाहिये तथा विकास प्रयासों हेतु धन उपलब्ध कराना चाहिये।
- प्रवर्तन तंत्र को मज़बूत बनाना: मज़बूत निगरानी एवं जवाबदेही ढाँचे की स्थापना करनी चाहिये। EIA और लाभ-साझाकरण तंत्र की अंतर्राष्ट्रीय निगरानी के माध्यम से पारदर्शिता को बढ़ावा देना चाहिये।
- राजनीतिक सहमति बनाना: भू-राजनीतिक तनावों को हल करना (विशेष रूप से दक्षिण चीन सागर जैसे विवादित क्षेत्रों में) चाहिये। इस संधि की सफलता सुनिश्चित करने हेतु बहुपक्षीय सहयोग को बढ़ावा देना चाहिये।
सामुद्रिक कानून पर संयुक्त राष्ट्र अभिसमय (UNCLOS)
- UNCLOS (जिसे अक्सर "महासागरों का संविधान" कहा जाता है) समुद्रों एवं महासागरों के उपयोग के संबंध में राष्ट्रों के अधिकारों एवं कर्त्तव्यों को परिभाषित करने वाला एक अंतरराष्ट्रीय कानून है जिसमें संप्रभुता, समुद्री मार्ग अधिकार एवं आर्थिक उपयोग शामिल है।
- इसके तहत समुद्री क्षेत्रों को पाँच मुख्य क्षेत्रों में विभाजित किया गया है- आंतरिक जल, प्रादेशिक समुद्र, सन्निहित क्षेत्र, अनन्य आर्थिक क्षेत्र (EEZ) एवं गहन समुद्र।
दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: प्रश्न: हाई सी ट्रीटी सतत् विकास लक्ष्यों के प्रति भारत की प्रतिबद्धता के साथ किस प्रकार संरेखित है तथा इसका भारत की ब्लू इकॉनमी पर क्या प्रभाव हो सकता है? |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नमेन्सप्रश्न. दक्षिण चीन सागर के मामले में समुद्री भू-भागीय विवाद और बढ़ता तनाव समस्त क्षेत्र में नौपरिवहन और ऊपरी उड़ान की स्वतंत्रता को सुनिश्चित करने के लिये समुद्री सुरक्षा की आवश्यकता की अभिपुष्टि करते हैं। इस संदर्भ में भारत तथा चीन के बीच द्विपक्षीय मुद्दों पर चर्चा कीजिये। (2014) |