IBC के तहत वसूली में वृद्धि | 03 Jun 2024
स्रोत: इकोनॉमिक टाइम्स
चर्चा में क्यों?
भारतीय दिवाला और शोधन अक्षमता बोर्ड ( Insolvency and Bankruptcy Board of India- IBBI) के हालिया आँकड़ों से पता चलता है कि भारत में लेनदारों ने दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता (Insolvency and Bankruptcy Code- IBC), 2016 के तहत अपने लगभग आधे दावों को 330 दिनों की समय सीमा के भीतर पूरा कर लिया है।
नवीनतम आँकड़ों की मुख्य बातें क्या हैं?
- वसूली दरें और समयबद्धता:
- आँकड़ों से पता चलता है कि वित्तीय रूप से संकटग्रस्त 947 कंपनियों के समाधान के परिणामस्वरूप लेनदारों को 3.36 लाख करोड़ रुपए प्राप्त हुए, जो कि IBC (2016) की शुरुआत के बाद से उनके दावों के 32.1% के बराबर हैं।
- दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता (Insolvency and Bankruptcy Code- IBC), 2016 के तहत स्ट्रेस रिज़ोल्युशन (Stress Resolution) में हाल के वर्षों में सुधार हुआ है, लेकिन वसूली में तेज़ी नहीं आई है।
- वित्त वर्ष 18 और वित्त वर्ष 19 में लेनदारों द्वारा वसूली 54% थी, जो महामारी के कारण वित्त वर्ष 21 में घटकर 22% रह गई है।
- वित्त वर्ष 2022 में वसूली बढ़कर 23% और वित्त वर्ष 2023 में 36% हो गई तथा वित्त वर्ष 2024 में यह फिर घटकर 27% रह गई।
- पिछले वित्त वर्ष (वित्त वर्ष 24) में प्रस्तावों की संख्या रिकॉर्ड 269 तक पहुँच गई, जो वित्त वर्ष 23 में 189 और वित्त वर्ष 22 में 144 थी, जिसका मुख्य कारण पिछले दो वर्षों में सरकार द्वारा राष्ट्रीय कंपनी कानून न्यायाधिकरण (National Companies Law Tribunal- NCLT) के रिक्त पदों को भरना था।
- लेनदारों ने दिवालियापन स्वीकार करने पर दबाव बनाने वाली कंपनियों के उचित मूल्य की तुलना में 85% पर मज़बूत संचयी वसूली (Stronger Cumulative Recoveries) का अनुभव किया है।
- परिसमापन मूल्य के संदर्भ में, वसूली दर कुल परिसंपत्तियों के 161.8% तक पहुँच गयी है।
- विशेषज्ञ स्ट्रेस रिज़ोल्यूशन के लिये दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता (IBC) को समय पर शुरू करने के महत्त्व पर बल देते हैं, क्योंकि देरी (औसतन 679 दिन) के कारण वसूली दर घटकर 26% रह गई है, जिससे परिसंपत्ति मूल्य एवं ऋण वसूली प्रभावित हुई है।
IBC को मज़बूत करने हेतु प्रस्तावित उपाय क्या हैं?
- विलंब को कम करना: IBC की 330-दिन की समय-सीमा के भीतर दिवालियापन मामलों को कुशलतापूर्वक हल करना अनिवार्य है, समाधान की वर्तमान औसत अवधि 679 दिन है, जो प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करने और मुकदमेबाज़ी को कम करने की आवश्यकता को रेखांकित करती है।
- वसूली दरों में सुधार: जबकि IBC ने इससे संबंधित समाधान को बढ़ावा दिया है, ऋणदाताओं द्वारा वसूले गए दावों के प्रतिशत में सुधार की आवश्यकता है। समय पर समाधान के लिये यह 49% से घटकर विलंबित मामलों में यह 26% हो गया है। इसे निम्न तरीकों से प्राप्त किया जा सकता है:
- NCLT में मामलों को कुशलतापूर्वक निपटाने के लिये पर्याप्त संख्या में न्यायाधीशों और कर्मचारियों की उपलब्धता सुनिश्चित की जाए, ताकि प्रक्रिया में तेज़ी आए तथा लंबित मामलों के कारण होने वाली देरी को कम किया जा सके।
- अनावश्यक कदमों को समाप्त करने व मानकीकरण प्रक्रियाओं से संबंधित अनुमोदनों में तेज़ी लाने के लिये IBC प्रक्रियाओं की समीक्षा करना तथा उन्हें सरल बनाना आवश्यक है।
- क्षेत्र-विशिष्ट व्यवस्थाएँ: रियल एस्टेट जैसे क्षेत्रों के लिये विशेष दिवालियापन व्यवस्थाओं पर विचार कीजिये, जिनमें अन्य उद्योगों की तुलना में विशिष्ट चुनौतियाँ हो सकती हैं।
- सीमा-पार दिवालियापन ढाँचा: अनेक देशों में परिसंपत्तियों के साथ कंपनियों से जुड़े दिवालियापन मामलों को हल करने के लिये अंतर्राष्ट्रीय व्यापार कानून पर संयुक्त राष्ट्र आयोग (United Nations Commission on International Trade Law- UNCITRAL) पर आधारित एक प्रभावी कानूनी ढाँचा स्थापित करना।
- समय-सीमा की समीक्षा करना: IBC द्वारा निर्धारित समय-सीमा का पुनर्मूल्यांकन करना, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि वे कुशल हैं और समाधान हेतु अनावश्यक देरी को कम किया जा सके।
- सभी कंपनियों हेतु औपचारिक प्रीपैक: केवल सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (Micro, Small and Medium Enterprises- MSME) के लिये ही नहीं, बल्कि सभी कंपनियों हेतु एक औपचारिक पूर्व-निर्धारित दिवालियापन प्रक्रिया (Pre-Packaged Insolvency Process) की अनुमति दें। इसमें औपचारिक दिवालियापन कार्यवाही शुरू करने से पूर्व एक समाधान योजना पर सहमति बनाना शामिल है।
- सभी कंपनियों के लिए औपचारिक प्रीपैक: सभी कंपनियों के लिए औपचारिक प्री-पैकेज्ड दिवालियापन प्रक्रिया की अनुमति दें, न कि केवल सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (MSME) के लिए। इसमें औपचारिक दिवालियापन कार्यवाही शुरू करने से पहले एक समाधान योजना पर सहमति बनाना शामिल है।
दिवाला एवं शोधन अक्षमता संहिता, 2016 की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?
- परिचय:
- दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता (IBC), 2016 समयबद्ध तरीके से कंपनियों, व्यक्तियों और साझेदारी के दिवालियेपन एवं शोधन अक्षमता को हल करने के लिये एक रूपरेखा प्रदान करती है।
- दिवालियापन वह स्थिति है, जहाँ किसी व्यक्ति या संगठन की देनदारियाँ उसकी परिसंपत्तियों से अधिक हो जाती हैं और वह संस्था अपने दायित्वों या ऋणों को चुकाने के लिये पर्याप्त नकदी जुटाने में असमर्थ होती है।
- शोधन अक्षमता तब होता है जब किसी व्यक्ति या कंपनी को कानूनी रूप से अपने देय और भुगतान योग्य बिलों का भुगतान करने में असमर्थ घोषित कर दिया जाता है।
- दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता (संशोधन) अधिनियम, 2021 ने MSME के लिये अधिक कुशल दिवाला समाधान ढाँचा प्रदान करने के लिये 2016 की संहिता को संशोधित किया, जिससे सभी हितधारकों हेतु त्वरित, लागत प्रभावी तथा मूल्य-अधिकतम परिणाम सुनिश्चित हुए।
- दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता (IBC), 2016 समयबद्ध तरीके से कंपनियों, व्यक्तियों और साझेदारी के दिवालियेपन एवं शोधन अक्षमता को हल करने के लिये एक रूपरेखा प्रदान करती है।
- भारतीय दिवाला और शोधन अक्षमता बोर्ड (Insolvency and Bankruptcy Board of India- IBBI)
- IBBI भारत में दिवालियापन कार्यवाही की देखरेख करने वाले नियामक प्राधिकरण के रूप में कार्य करता है।
- IBBI के अध्यक्ष और तीन पूर्णकालिक सदस्य सरकार द्वारा नियुक्त किये जाते हैं तथा वे वित्त, कानून एवं दिवालियापन के क्षेत्रों के विशेषज्ञ होते हैं।
- इसमें पदेन सदस्य भी होते हैं।
- कार्यवाही का न्यायनिर्णयन:
- राष्ट्रीय कंपनी कानून न्यायाधिकरण (National Companies Law Tribunal- NCLT) कंपनियों के लिये कार्यवाही का निर्णय करता है।
- ऋण वसूली न्यायाधिकरण (Debt Recovery Tribunal- DRT) व्यक्तियों के लिये कार्यवाही संभालता है।
- वे समाधान प्रक्रिया की शुरुआत को अनुमति देने, पेशेवरों की नियुक्ति करने और ऋणदाताओं के अंतिम निर्णयों का समर्थन करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
- संहिता के तहत दिवालियापन समाधान की प्रक्रिया: चूक होने पर देनदार या लेनदार द्वारा शुरू की गई प्रक्रिया में, दिवालियापन पेशेवर वित्तीय जानकारी और देनदार की परिसंपत्तियों का प्रबंधन करते हैं तथा समाधान के दौरान 180 दिन की कानूनी कार्रवाई पर प्रतिबंध होता है।
- ऋणदाताओं की समिति (Committee of Creditors- CoC): दिवालियापन पेशेवरों द्वारा गठित और वित्तीय ऋणदाताओं से मिलकर बनी CoC, ऋण पुनरुद्धार, पुनर्भुगतान अनुसूची में परिवर्तन या परिसंपत्ति परिसमापन के माध्यम से बकाया ऋणों के भाग्य का निर्धारण करती है, जिसमें देनदार की परिसंपत्तियों के परिसमापन से पूर्व 180 दिन की समय-सीमा निर्धारित होती है।
- परिसमापन प्रक्रिया: देनदार की परिसंपत्तियों की बिक्री से प्राप्त आय को सबसे पहले दिवालियापन समाधान लागतों में वितरित किया जाता है, दूसरे स्थान पर सुरक्षित ऋणदाता, तीसरे स्थान पर श्रमिकों और कर्मचारियों के बकाये तथा चौथे स्थान पर असुरक्षित ऋणदाता हैं।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न: भारत में दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता (IBC) के कार्यान्वयन में आने वाली चुनौतियों पर चर्चा कीजिये तथा इसकी प्रभावशीलता को मज़बूत करने के उपाय सुझाएँ। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा हाल ही में समाचारों में आए 'दबावयुक्त परिसंपत्तियों के धारणीय संरचन पद्धति (स्कीम फॉर सस्टेनेबल स्ट्रक्चरिंग ऑफ स्ट्रेस्ड एसेट्स/S4A)' का सर्वोत्कृष्ट वर्णन करता है? (2017) (a) यह सरकार द्वारा निरूपित विकासपरक योजनाओं की पारिस्थितिकीय कीमतों पर विचार करने की पद्धति है। उत्तर: (b) |