विलफुल डिफॉल्टर हेतु समाधान समझौता: RBI
प्रिलिम्स के लिये:ऋण वसूली न्यायाधिकरण (DRTs), NPA, नेशनल एसेट रिकंस्ट्रक्शन लिमिटेड (NARC), भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI), भारत ऋण समाधान कंपनी लिमिटेड, SARFAESI अधिनियम, दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता (IBC), बैंकिंग विनियमन अधिनियम, 1949 मेन्स के लिये:NPA की चुनौतियाँ, NPA संकल्प के प्रावधान |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारतीय रिज़र्व बैंक (Reserve Bank of India- RBI) ने प्रस्ताव/सर्कुलर पेश किया है, जिसमें विलफुल डिफॉल्टर/इरादतन चूककर्त्ताओं और धोखाधड़ी में शामिल कंपनियों को समाधान समझौता या तकनीकी राइट-ऑफ का विकल्प चुनने की अनुमति दी गई है।
- यह सर्कुलर ऐसे मामलों से निपटने में बैंकों और वित्त कंपनियों हेतु दिशा-निर्देश प्रदान करता है।
प्रमुख बिंदु
- सर्कुलर :
- समाधान समझौता और तकनीकी राइट-ऑफ:
- देनदारों के खिलाफ चल रही आपराधिक कार्यवाही के बावजूद बैंक और वित्त कंपनियाँ विलफुल डिफॉल्टर्स या धोखाधड़ी के रूप में वर्गीकृत खातों हेतु समाधान समझौता या तकनीकी राइट-ऑफ कर सकती हैं।
- RBI का सर्कुलर यह सुनिश्चित करते हुए इन निपटान को सक्षम बनाता है कि आपराधिक कार्यवाही अप्रभावित रहे।
- नए ऋणों हेतु कूलिंग पीरियड:
- बैंकों को उन उधारकर्त्ताओं को नए ऋण देने से पहले 12 महीने की न्यूनतम कूलिंग पीरियड लागू करने की आवश्यकता होती है, जिन्होंने समाधान समझौता किया है।
- कूलिंग पीरियड कृषि ऋण के अलावा अन्य जोखिमों पर भी लागू होता है, विनियमित संस्थाओं के पास उनके बोर्ड द्वारा अनुमोदित नीतियों के आधार पर दीर्घकालिक कूलिंग पीरियड निर्धारित करने का अधिकार होता है।
- समाधान समझौता और तकनीकी राइट-ऑफ:
- चुनौतियाँ:
- सार्वजनिक धन की संभावित हानि:
- बैंकों ने पूर्व में समाधान समझौता को मंज़ूरी दे दी है, जिसके परिणामस्वरूप बकाया भुगतानों पर भारी कटौती के कारण काफी नुकसान हुआ है।
- हालाँकि समाधान समझौता की अनुमति देने से बड़े धोखेबाजों और बकाएदारों को बढ़ावा मिल सकता है।
- समाधान समझौते की अनुमति देने से NPA कृत्रिम रूप से कम हो जाएगा, भले ही वित्तीय नीतियाँ अस्थिर हों।
- कुल सकल NPA में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का बड़ा हिस्सा है। सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का NPA कुल NPA का लगभग 72% हैं, बाकी निजी क्षेत्र के बैंकों, विदेशी बैंकों और छोटे वित्तीय संस्थानों का NPA है।
- PSB को सरकार द्वारा पुनर्पूंजीकृत किया जाता है जिससे जनता के पैसे का नुकसान होता है।
- ऋण वसूली न्यायाधिकरण (DRT) के मुद्दे:
- ऐसे उदाहरण सामने आए हैं जहाँ बैंकों ने ऋण वसूली न्यायाधिकरण (Debt Recovery Tribunals- DRT) को सूचित किये बिना समाधान समझौता किया।
- एर्नाकुलम में DRT ने एक ऐसी स्थिति देखी जिसमें एक समझौता किया गया था, लेकिन बैंक सहमति डिक्री को सुरक्षित करने में विफल रहा और काफी समय तक DRT से निपटान को गुप्त रखा गया।
- यह एसेट रिकंस्ट्रक्शन कंपनी और IBC दोनों के महत्त्व को कम कर रहा है।
- सार्वजनिक धन की संभावित हानि:
- समाधान समझौते के लाभ:
- लागत कम करना:
- समाधान समझौता बकाए की शीघ्र वसूली की सुविधा प्रदान करता है और कानूनी खर्चों और अन्य संबंधित लागतों को कम करके बैंकों की लागत को बचाता है।
- अंतर्निहित उद्देश्य कम समय-सीमा के भीतर अधिकतम संभव सीमा तक देय राशि की वसूली करना है।
- तकनीकी राइट-ऑफ और NPA में कमी:
- बैंकों ने पिछले एक दशक में गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों (NPA) को कम करने के लिये राइट-ऑफ का उपयोग किया है, जिसके परिणामस्वरूप NPA का स्तर कम दर्ज किया गया है।
- राइट-ऑफ का उपयोग लेखांकन और कर उद्देश्यों के लिये किया गया था लेकिन चिंताएँ मौजूद हैं कि इस अभ्यास ने बैंकों और कॉरपोरेट्स को अपनी ऋण बुक को "एवरग्रीन" बनाए रखने की अनुमति दी है।
- बैंकों ने पिछले एक दशक में गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों (NPA) को कम करने के लिये राइट-ऑफ का उपयोग किया है, जिसके परिणामस्वरूप NPA का स्तर कम दर्ज किया गया है।
- समाधान समझौते का उद्देश्य अनपेक्षित बाज़ार जोखिमों के परिणामस्वरूप गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों (NPA) का सामना करने वाली आर्थिक रूप से बोझिल कंपनियों को महत्त्वपूर्ण मानवीय सहायता प्रदान करना है।
- लागत कम करना:
गैर-निष्पादित परिसंपत्तियाँ:
- परिचय:
- NPA उन ऋणों या अग्रिमों के वर्गीकरण को संदर्भित करता है जो डिफॉल्ट रूप से हैं या मूलधन या ब्याज के निर्धारित भुगतान पर बकाया हैं।
- ज़्यादातर मामलों में ऋण को गैर-निष्पादित के रूप में वर्गीकृत किया जाता है, जब 90 दिनों की न्यूनतम अवधि के लिये ऋण भुगतान नहीं किया जाता है।
- कृषि की यदि द्वि-फसली मौसमों के लिये मूलधन और ब्याज का भुगतान नहीं किया जाता है, तो ऋण को NPA के रूप में वर्गीकृत किया जाता है।
- सकल NPA:
- सकल NPA उन सभी ऋणों का योग है जो व्यक्तियों द्वारा चूक किये गए हैं
- कुल NPA:
- कुल NPA वह राशि है जो प्रावधान राशि को सकल गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों से घटाए जाने के बाद प्राप्त होती है।
- NPA उन ऋणों या अग्रिमों के वर्गीकरण को संदर्भित करता है जो डिफॉल्ट रूप से हैं या मूलधन या ब्याज के निर्धारित भुगतान पर बकाया हैं।
- NPA से संबंधित कानून और प्रावधान:
- बैड बैंक:
- भारत में बैड बैंक को नेशनल एसेट रिकंस्ट्रक्शन लिमिटेड (NARC) कहा जाता है।
- यह NARC एक एसेट रिकंस्ट्रक्शन कंपनी के तौर पर काम करेगी।
- यह बैंकों से खराब ऋण खरीदेगा, जिससे उन्हें NPA से राहत मिलेगी। इसके बाद NARC संकटग्रस्त ऋण खरीदारों को दबावग्रस्त ऋण बेचने का प्रयास करेगा।
- सरकार ने पहले ही इन तनावग्रस्त संपत्तियों को बाज़ार में बेचने के लिये इंडिया डेट रेज़ोल्यूशन कंपनी लिमिटेड (IDRCL) की स्थापना की है। तदनुसार, IDRCL उन्हें बाज़ार में बेचने का प्रयास करेगी।
- वित्तीय संपत्तियों का प्रतिभूतिकरण और पुनर्निर्माण एवं सुरक्षा हित का प्रवर्तन (SARFAESI) अधिनियम, 2002:
- सरफेसी अधिनियम बैंकों और वित्तीय संस्थानों को अदालत के हस्तक्षेप के बिना बकाया राशि की वसूली के लिये संपार्श्विक संपत्ति पर कब्ज़ा करने और उन्हें बेचने की अनुमति देता है।
- यह सुरक्षा हितों के प्रवर्तन के लिये प्रावधान प्रदान करता है तथा बैंकों को डिफॉल्ट उधारकर्त्ताओं को डिमांड नोटिस जारी करने की अनुमति देता है।
- दिवाला और दिवालियापन संहिता (IBC), 2016:
- IBC भारत में दिवालियापन और दिवालियापन समाधान प्रक्रिया के लिये एक व्यापक ढाँचा प्रदान करता है।
- इसका उद्देश्य तनावग्रस्त संपत्तियों (स्ट्रेस एसेट) के समयबद्ध समाधान को सुगम बनाना और लेनदारों के अनुकूल वातावरण को बढ़ावा देना है।
- IBC के तहत एक देनदार या लेनदार एक डिफॉल्ट उधारकर्त्ता के विरुद्ध दिवाला कार्यवाही शुरू कर सकता है।
- प्रक्रिया की देख-रेख के लिये यह राष्ट्रीय कंपनी कानून न्यायाधिकरण (NCLT) और भारतीय दिवाला और शोधन अक्षमता बोर्ड (IBBI) की स्थापना करता है।
- बैंकों और वित्तीय संस्थान (RDDBFI) अधिनियम, 1993 के कारण ऋण की वसूली:
- RDDBFI अधिनियम बैंकों और वित्तीय संस्थानों के ऋणों की वसूली के लिये शीघ्र अधिनिर्णय तथा वसूली हेतु ऋण वसूली न्यायाधिकरण (DRT) की स्थापना करता है।
- DRT के पास एक निर्दिष्ट सीमा से अधिक बकाया ऋणों की वसूली से संबंधित मामलों को सुनने और निर्णय लेने की शक्ति है।
- भारतीय अनुबंध अधिनियम, 1872:
- भारतीय अनुबंध अधिनियम उधारदाताओं और उधारकर्त्ताओं के बीच संविदात्मक संबंध को नियंत्रित करता है।
- यह ऋण समझौतों, नियमों एवं शर्तों, डिफॉल्ट तथा भुगतान न करने की स्थिति में उधारदाताओं के लिये उपलब्ध उपायों हेतु कानूनी ढाँचा स्थापित करता है।
- बैड बैंक:
आगे की राह
- वसूली की कार्यवाही और सहमति डिक्री:
- समाधान समझौते पर बातचीत करते समय बैंकों को न्यायिक मंचों के तहत चल रही वसूली कार्यवाही पर विचार करना चाहिये।
- निपटान से संबंधित न्यायिक अधिकारियों से सहमति डिक्री प्राप्त करने के अधीन होना चाहिये।
- NPA वसूली का महत्त्व:
- जमाकर्त्ताओं और हितधारकों के हितों की रक्षा के लिये NPA की वसूली महत्त्वपूर्ण है।
- समझौता निपटान को न्यूनतम व्यय के साथ तथा कम समय सीमा के अंदर देय राशि की अधिकतम वसूली को प्राथमिकता देनी चाहिये।
- जनहित पर विचार:
- समाधान समझौते के दौरान सार्वजनिक क्षेत्र की संस्था होने के नाते बैंकों को उधारकर्त्ताओं के हितों पर कर-भुगतान करने वाली जनता के हितों पर भी विचार करना चाहिये।
विलफुल डिफॉल्टर:
- जब उधारकर्त्ता (व्यक्ति या कंपनी) भुगतान दायित्वों को पूरा करने की क्षमता के बावजूद भुगतान करने के अपने दायित्व से चूक जाता है या जान-बूझकर ऋण न चुकाने का इरादा रखता है।
- जब पूंजी का उपयोग उस विशिष्ट उद्देश्य के लिये नहीं किया जाता है जिसके लिये वित्त प्राप्त किया गया था लेकिन ऋण लेने वाले द्वारा ऋण समझौते में परिभाषित उद्देश्य के अतिरिक्त किसी अन्य उद्देश्य के लिये प्राप्त पूंजी का उपयोग किया जाता है।
- जब इस प्रकार के संदेह की स्थिति हो, जिसमें उधार लेने वाले ने धन की हेरा-फेरी की हो और उसका उपयोग उस उद्देश्य के लिये नहीं किया गया है जिसके लिये उधार लिया गया था। इसके अतिरिक्त उसके पास ऐसी कोई संपत्ति उपलब्ध नहीं हो जो उसके द्वारा फंड के इस तरह के उपयोग को उचित ठहराती हो।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. भारत में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के संचालन के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2018)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (b) व्याख्या:
अतः कथन 2 सही है। |